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Saturday, 18 May, 2024
होमदेशकलिमुद्दीन के '2 बार दफ़न होने' से लेकर अंजुम बी के अंतिम संस्कार तक, कोविड वाले मुर्दाघर में कहां-कहां हुई गड़बड़ियां

कलिमुद्दीन के ‘2 बार दफ़न होने’ से लेकर अंजुम बी के अंतिम संस्कार तक, कोविड वाले मुर्दाघर में कहां-कहां हुई गड़बड़ियां

शवों की अदला-बदली और इससे जुड़ी जानकारी के लिए दिप्रिंट ने एम्स, एम्स ट्रामा सेंटर और मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के मुर्दाघरों का दौरा किया और जाना की गलतियां कहां हुईं और कैसे समाधान निकला.

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नई दिल्ली: बीते दिनों में दिल्ली समेत देशभर के मुर्दाघरों से कोविड के मृतकों के शरीर की अदला-बदली के कई मामले आए. दिप्रिंट ने जब ऐसे मामलों की पड़ताल की तो पता चला कि प्रशासन की जल्दबाज़ी, लापरवाही और परिवार वालों का डर और मुर्दाघरों में स्टाफ़ की कमी ने ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया है. या इन घटनाओं के प्रमुख कारण हैं.

ऐसे कई मामले भी सामने आए जिसमें गलती प्रशासन की नहीं थी बल्कि परिवार वालों की थी लेकिन आरोप प्रशासन पर ही मढ़ा गया. दिल्ली में कोविड की वजह से एक मुस्लिम महिला अंजुम बी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. आरोप एम्स मुर्दाघर प्रशासन पर लगाया गया.

वर्चुअल ऑटोप्सी के लिए बनकर तैयार एम्स के इस मुर्दाघर को कोविड 19 की वजह से शुरू नहीं किया जा सका है. एम्स का मुर्दाघर ठीक इसी के साथ लगा है. फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट
वर्चुअल ऑटोप्सी के लिए बनकर तैयार एम्स के इस मुर्दाघर को कोविड 19 की वजह से शुरू नहीं किया जा सका है. एम्स का मुर्दाघर ठीक इसी के साथ लगा है. फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट

खुद एम्स के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि , ‘ऐसा नहीं है कि इस मामले में एक ही धर्म के मुर्दों की अदला-बदली हुई हो. अंजुम बी के अंतिम संस्कार का कारण एम्स ट्रॉमा सेंटर के मुर्दाघर की लापरवाही है. इससे बचने के धर्म आधारित शवयान/एंबुलेंस की व्यवस्था होनी चाहिए.’ जबकि ट्रामा सेंटर के अधिकारी ने इसे सिरे से नकारते हुए दिप्रिंट से कहा, ‘बी वाले मामले में ट्रामा सेंटर से बॉडी निकली तो सब ठीक था. एक ही एंबुलेंस में कई शरीर होने की वजह से ये घटना घटी.’

जब बेटा नहीं पहचान पाया पिता

ऐसा नहीं है कि गलतियां सिर्फ प्रशासन या मुर्दाघर में मौजूद कर्मचारी कर रहे हैं. दिप्रिंट ने जब छान-बीन की तो पता चला कि परिवार और रिश्तेदार भी शवों की अदला बदली में बराबर के जिम्मेदार हैं.

ट्रामा सेंटर मुर्दा घर के इस अधिकारी ने कहा कि देशभर में ऐसी घटनाओं का बड़ा कारण डर और जल्दबाज़ी रहा है. तीनों मुर्दाघरों के अधिकारियों ने कहा कि रिश्तेदार मृतक के पास नहीं आना चाहते. हालांकि, ट्रामा सेंटर के दावों के उलट अंजुम बी के सगे भाई नसीम ख़ान ने दिप्रिंट से कहा, ‘लाख़ मिन्नतों के बाद भी ट्रामा सेंटर वालों ने हमें चेहरा नहीं देखने दिया.’

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ट्रामा सेंटर के मुर्दाघर में यहां के कोविड मृतकों का शरीर रखा जता है और एम्स के मुर्दाघर में कोविड के ऐसे मृतकों को लाया जाता है जिनका पोस्टमॉर्टम होना है. दिल्ली के सबसे बड़े कोविड सेंटर लोकनायक अस्पताल (एलएमजेपी) के कोविड मृतकों का शरीर मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज मुर्दाघर में लाया जाता है.

लाशों की अदला-बदली का ऐसा ही एक वाक्या जून के पहले सप्ताह में सामने आया जब एक व्यक्ति को अपने ‘पिता’ मोइनुद्दीन को दो बार दफ़नाना पड़ा. कलिमुद्दीन रहीम के पिता मोइनुद्दीन के शरीर की अदला-बदली मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज मुर्दा घर में 7 जून को हुई थी.

यहां के मुर्दाघर के प्रमुख डॉक्टर तनुजा उपेंद्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘परिवार वाले डर के मारे शरीर के पास नहीं आना चाहते. मोइनुद्दीन वाले मामले में एक बॉडी की दाढ़ी थी दूसरे की नहीं थी. दाढ़ी वाले मोइनुद्दीन कलिमुद्दीन के पिता थे. फ़िर भी कलिमुद्दीन ने बिना दाढ़ी की पहचान अपने पिता के तौर पर की.’

डॉक्टर उपेंद्र के मुताबिक कलीमुद्दीन का कहना था कि उन्हें लगा कि अस्पताल वालों ने उनके पिता का शेव करा दिया होगा. डॉक्टर उपेंद्र ने दावा करते हुए कहा, ‘पुलिस वालों ने भी कलीमुद्दीन को फटकार लगाई कि जब वो अपने पिता की पहचान नहीं कर पाया तो मुर्दाघर वाले क्या करेंगे?’

एम्स ट्रॉमा सेंटर और मुर्दाघर

अधिकारी ने यह भी कहा कि इसमें मुश्किल से 70,000 रुपए महीने का ख़र्च आता है और एम्स जैसे संस्थान में पैसे की कमी भी नहीं है. उन्होंने ये जानकारी भी दी कि एम्स के मुर्दा घर में मृतकों के लिए धर्म आधारित शवयान की व्यवस्था है. ऐसी घटनाओं की पड़ताल के लिए दिप्रिंट ने एम्स, एम्स ट्रामा सेंटर और मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के मुर्दघरों का दौरा किया और यहां के प्रशासन के अलावा दिल्ली के निगम बोध घाट और जदीद कब्रिस्तान में कोविड मृतकों के परिवार वालों से बात की.

एम्स मुर्दा घर के अधिकारी के आरोपों के एम्स ट्रॉमा सेंटर मुर्दाघर के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर नकार दिया. ट्रामा सेंटर के अधिकारी ने कहा, ‘बी वाले मामले में ट्रामा सेंटर से बॉडी निकली तो सब ठीक था. एक ही एंबुलेंस में कई शरीर होने की वजह से ये घटना घटी.’

मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज का मुर्दाघर. दिल्ली सरकार की सबसे बड़ी कोविड फ़ैसिलिटी एलएनजेपी के कोविड मृतकों का शरीर यहीं आता है.<br /> फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट
मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज का मुर्दाघर. दिल्ली सरकार की सबसे बड़ी कोविड फ़ैसिलिटी एलएनजेपी के कोविड मृतकों का शरीर यहीं आता है.
फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट

परिवार में डर के माहौल की डॉक्टर उपेंद्र के बातों की पुष्टी दर्जनों लाशों के सफ़र से साथी रहे शवयान ड्राइवर छोटू (42) ने भी की. तपती दोपहर में वो कोविड की एक बॉडी निगमबोध पहुंचाकर मुर्दा घर लौटे थे. उन्होंने कहा, ‘यहां का मुर्दाघर प्रशासन चेहरा दिखाने की पूरी कोशिश करता है. लेकिन परिवार वालों में बहुत डर होता हैं. वो बड़ी मुश्किल से पास आते हैं.’

कोविड से जान गंवाने वाली बद्र जहां (60) को मंगलवार को जदीद क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक करने पहुंचे परिजनों ने इसकी पुष्टी की कि राम मनोहर लोहिया के मुर्दाघर प्रशासन ने उन्हें शरीर को पहचानने में पूरी मदद की. निगम बोध घाट पर इसी दिन अपने पिता का अंतिम संस्कार करने पहुंचे सुरिंदर ने भी कहा कि मौलााना आज़ाद मुर्दाघर में उन्हें अच्छे से उनके पिता की पहचान कराई गई.

सुरिंदर ने कहा, ‘उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाते हुए हमें एक-एक करके उनका (पिता का) चेहरा देखने दिया.’ यही बता कई और परिवार वालों ने कही. फ़िर अदला-बदली की घटनाएं हो जाने को लेकर मुर्दाघर प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि एक जैसा नाम होना आफ़त का सबब है. 13 मई को हैदराबाद से एक जैसे नाम वाली बॉडी मिक्स हो जाने का ऐसा ही मामला सामने आया था.

सज़ा के तौर पर मिलती है मुर्दाघर पोस्टिंग, रहती है स्टाफ़ की कमी

हालांकि, स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल के तहत बॉडी के सिर और छाती पर नाम, पिता का नाम, उम्र, सेक्स, पता और किस वॉर्ड से शिफ़्ट हो रहा है ये सब लिखा होता है. इसी प्रोटोकॉल के तहत कोविड बॉडी की डबल प्लास्टिक पैंकिंग की जाती है जिसके बाद इसे बॉडी बैग में रखा जाता है.

अस्पताल प्रशासन मृतक की जानकारी मुर्दाघर को देता है और लेबलिंग, डेथ सर्टिफिकेट और डेथ स्लिप (अंतिम संस्कार के लड़की और ज़मीन लेने के काम आती है) के साथ बॉडी मुर्दाघर भेजी जाती है. फ़िर भी ग़लती हो जाती है और ऐसी ग़लतियों के लिए स्टाफ़ की कमी की समस्या भी एक बड़े कारण के तौर पर सामने आई.

अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप के चेयरमैन डॉक्टर प्रताप सी रेड्डी ने दिप्रिंट के कार्यक्रम ऑफ़ द कफ़ में शुक्रवार को कहा कोविड संकट से निपटने के लिए भारत को डॉक्टर की संख्या दोगुना, नर्सों की संख्या तीन गुना और पैरामेडिक्स की संख्या चार गुना बढ़ाने की ज़रूरत है.

मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज मुर्दाघर में यहीं मुर्दों को ऑटोप्सी की जाती है. फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट
मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज मुर्दाघर में यहीं मुर्दों को ऑटोप्सी की जाती है. फ़ोटो: तरुण कृष्णा/दिप्रिंट

स्टाफ़ की कमी की ये बात मुर्दाघरों में भी निकलकर सामने आई. मौलाना आज़ाद के मुर्दाघर में 25 लोगों की दरकार है. लेकिन यहां महज़ 8 लोग हैं जिनमें से छह सफ़ाईकर्मी हैं. हालांकि, राहत की बात ये है कि पहले यहां 12-15 शरीर आ रहे थे लेकिन अब मुश्किल से 6-8 शरीर ही आ रहे हैं. ऐसे में हालत पहले से बेहतर हुई है.

एम्स के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अभिषेक यादव ने कहा, ‘संक्रमण के डर के कई स्टाफ़ काम छोड़ गए. इसके अलावा कन्टेनमेंट ज़ोन में स्टाफ़ का फंस जाना लोगों की कमी का बड़ा कारण बना.’ उन्होंने कहा पहले राज्यों के बॉर्डर सील होने और लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्टेशन में भी दक्कत आ रही थी. हालांकि, बीतते समय के साथ ये समस्याएं कम हुई हैं.

स्टाफ़ की कमी का एक और कारण ये है कि यहां कोई काम नहीं करना चाहता. सभी अधिकारियों ने एक सुर में कहा कि मुर्दाघर पोस्टिंग को सज़ा के तौर पर मिली पोस्टिंग माना जाता है. एलएनजेपी के डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा,जो अस्पतालों में काम नहीं कर रहे होते उन्हें सज़ा के तौर पर मुर्दाघर भेज देते हैं.’

निगम बोध घाट पर इसी दिन अपने पिता का अंतिम संस्कार करने पहुंचे सुरिंदर ने भी कहा कि मौलााना आज़ाद मुर्दाघर में उन्हें अच्छे से उनके पिता की पहचान कराई गई. फ़ोटो: दिप्रिंट के लिए तरुण कृष्णा

पहले से बेहतर हुए हालात

मुर्दाघर प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि अप्रैल-मई में शवदाह गृह और कब्रिस्तानों में काफ़ी भीड़ थी. अब ये कम हुई है. सरकार ने दाह-संस्कार की सुविधा और समय दोनों बढ़ाए हैं. मुर्दाघर से शवदाह गृह और कब्रिस्तानों का तालमेल भी पहले से बेहतर हुआ है.

अधिकारियों से बातचीत के दौरान ये भी पता चला कि पहले जब लाशों की भरमार थी तो एक एबुलेंस में एक से ज्यादा लाशें भेजी जा रही थीं. अब एक बार में एक ही लाश भेजी जा रही है. मृतकों के परिजनों की मदद से जुड़े कई कदम भी उठाए गए हैं.

मदद के तौर पर इनकी काउसिलिंग की जा रही है. कुछ मुर्दा घर रिश्तेदारों को प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट भी दे रहे हैं ताकि वो आकर डेड बॉडी की पहचान करें और अगर संभव हो तो खुद के एबुलेंस में डेड बॉडी ले जाएं. डॉक्टर उपेंद्र ने कहा, ‘मोइनुद्दीन वाली घटना के बाद से हमने और सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है. अब हम परिवार वालों से कहते हैं कि वो अपने फ़ोन से बॉडी की तस्वीर ले लें.’

अपने परिवार को कोविड से खोने वाले कई परिजनों ने अस्पताल प्रशासन द्वारा सहायता की तस्दीक की. मुर्दाघर प्रशासन के लोगों को उम्मीद है कि जो हुआ है उससे मिले सबक के बाद ये ग़लतियां दोहराई नहीं जाएंगी.

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