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Sunday, 24 November, 2024
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निर्भया फंड के लिए करोड़ों रुपए लेकिन महिला पुलिस वॉलेंटियर हजार रुपए सैलरी की मोहताज!

तीन साल में इस योजना से कितनी महिलाएं लाभान्वित हुईं या कितनी महिला पुलिस वॉलेंटियर सशक्त हुईं, इस बात की पड़ताल सरकार ने अब तक नहीं की है.

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नई दिल्ली: दिसंबर 2016 में निर्भया फंड से तहत शुरू की गई योजना ‘महिला पुलिस वॉलेंटियर’ को लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में बताया है कि सरकार ने इस योजना के परिणाम जानने के लिए कोई सर्वे नहीं किया है. मतलब इस योजना से कितनी महिलाएं लाभान्वित हुईं या कितनी महिला पुलिस वॉलेंटियर सशक्त हुईं, इस बात की पड़ताल सरकार ने नहीं की है.

साथ ही मंत्रालय ने अपने लिखित उत्तर में ये भी बताया कि ‘महिला पुलिस वॉलेंटियर’ के तहत बनाए जाने वाले महिला एवं शिशु रक्षक दल को भी अभी तक लॉन्च नहीं किया है. गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही इस योजना को अब तीन साल होने वाले हैं.

इस योजना का ड्राफ्ट बनाते समय कहा गया था कि 12 मई 2015 को गृह मंत्रालय ने महिला मुद्दों की जांच के दौरान संवेदनशीलता बरतने की सलाह दी थी. उसके बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने निर्भया फंड के तहत इस योजना का जोर शोर से प्रचार किया था.


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2016-2017 वित्तीय वर्ष में देश के 8 राज्यों ने इस योजना को लागू करने का प्रपोजल दिया गया था. शुरुआती तौर पर हरियाणा के करनाल और महेंद्रगढ़ जिले में लागू करके देखा गया था. इन 8 राज्यों में भी सिर्फ 5 राज्यों ने ही इस योजना को लागू किया है.

9531 महिलाएं बनती हैं पीड़िता और पुलिस के बीच की कड़ी

आंध्र प्रदेश में 3000, छत्तीसगढ़ में 4568, गुजरात में 791, हरियाणा में 967 और मिजोरम में 205 महिला पुलिस वॉलेंटियर हैं. फिलहाल देश में कुल 9531 महिला पुलिस वॉलेंटियर हैं. मध्यप्रदेश, कर्नाटक और झारखंड ने इस योजना को लागू नहीं किया है. जिन राज्यों ने प्रपोजल के बावजूद इसे लागू नहीं किया, उन्होंने इसके पीछे कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है. इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को दी गई है. महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के मद्देनजर यह योजना देश के सभी राज्यों और केंद्र शाषित राज्यों की सहायता से लागू की जा सकती है.

नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड्स के मुताबिक साल 2014 में 3,37,922 केस महिलाओं के खिलाफ हिंसा के थे. वहीं 2013 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या 3,09,546 थी. हालांकि, 2016 के बाद सरकार ने ऐसा कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है.

जहां से इसकी शुरुआत हुई, वहां कैसा हाल है?

हरियाणा के करनाल की 27 वर्षीय सविता 2016 में इस योजना के पायलेट प्रोजेक्ट से जुड़ी थीं. दिप्रिंट से बातचीत के दौरान वो कहती हैं, ‘हमारी एक साल की सैलरी रुकी हुई है. अप्रैल से कह रहे हैं कि अब आएगी, तब आएगी. हम थाने में भी ड्यूटी करते हैं, कभी चालान कटवाने में मदद करते हैं, भागे हुए लड़के-लड़कियों को पकड़ने के लिए दूसरे राज्यों में भी जाते हैं. एक हजार से काम तो नहीं चलता, लेकिन एक साल से वो भी नहीं दिए हैं. हमारा 2 साल का कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने पर एसएचओ ने कहा कि अब जरूरत नहीं है.’

वहीं, उनके साथ काम करने वाली 40 वर्षीय नीतू का कहना है, ‘मैं एक हजार में काम करके भी संतुष्ट हूं. ये एक तरह से समाज सेवा का काम है. थाने में ड्यूटी के दौरान कई महिलाएं कहती हैं कि आप हैं तो सही है. मैंने पिछले दो साल में कम से कम 130 केस एसिड अटैक, बुजुर्गों के साथ ज्यादती, बहू के साथ मारपीट वगैरह के केस पुलिस को बताए हैं. ये काम बढ़िया है, लेकिन हमारी कम से कम 1 हजार सैलरी तो दी जाए. अब काम भी बंद कर दिया है. एसएचओ ने कहा है कि अब जरूरत नहीं है.’


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कौन होती हैं महिला पुलिस वॉलेंटियर और कैसे काम करती हैं?

कोई भी 21 वर्ष से बड़ी उम्र की महिला जिसकी शैक्षणिक योग्यता 12वीं है, महिला पुलिस वॉलेंटियर बन सकती है. बशर्ते वो उसी क्षेत्र की रहने वाली हो और लोकल बोली से परिचित भी हो. साथ ही उसका किसी भी राजनीतिक दल से कोई जुड़ाव नहीं होना चाहिए और न ही कोई आपराधिक रिकॉर्ड होना चाहिए.

ऐसी महिलाएं पुलिस और समाज के बीच कड़ी का काम करेंगी. इनका मुख्य काम महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, बाल विवाह और सार्वजनिक स्थलों पर होने वाली छेड़खानी की घटनाओं को रिपोर्ट करना है. इसके लिए उन्हें प्रतिमाह 1000 रुपए का मानदेय दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें महिला एवं शिशु रक्षक दल का भी निर्माण करना होता है.

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