नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब सरकार को भूजल संरक्षण के उद्देश्य से बनाए गए राज्य के कानून पर पुनर्विचार करने की सलाह दी, जिसकी वजह से उत्तर भारत, विशेष रूप से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली जलाने और वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है.
इसने, इस चिंता पर कि धान की खेती राज्य के भूजल स्तर को प्रभावित कर रही है, धान के स्थान पर अन्य फसलें उगाने का भी आह्वान किया.
अदालत, पंजाब में पराली जलाने से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही थी, वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन के उसका ध्यान पंजाब उपमृदा जल संरक्षण अधिनियम, 2009 के प्रावधानों की ओर दिलाया था.
कानून हर साल 10 मई से पहले धान के बीज बोने और 10 जून से पहले रोपाई पर रोक लगाता है, जिस वजह से फसल को केवल मानसून के महीनों के दौरान बोने की अनुमति मिलती है.
परिणामस्वरूप, धान, जून-जुलाई (मानसून महीने) में बोया जाता है और अक्टूबर-नवंबर में कटाई की जाती है, जबकि गेहूं नवंबर-दिसंबर में बोया जाता है और अप्रैल-मई में कटाई की जाती है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यह खेती की इस प्रतिबंधित अवधि के कारण है, जिससे किसानों के पास धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल के लिए अपने खेतों को तैयार करने का कम समय बचता है और वे फसल अवशेषों को जलाने का सहारा लेते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है.
भूजल संरक्षण और वायु प्रदूषण के बीच संबंध को 2019 में नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित ‘उत्तर पश्चिमी भारत में कृषि आग से भूजल संरक्षण और वायु प्रदूषण के बीच ट्रेडऑफ’ शीर्षक से एक अध्ययन में भी इसे चिह्नित किया गया था, और बाद में देहरादून स्थित भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान की वैज्ञानिक रिपोर्ट में प्रकाशित 2022 के अध्ययन के शोधकर्ताओं द्वारा इसकी पुष्टि की गई थी.
यह भी पढ़ें : IIT बनाम BHU की जंग में, उठी दीवार की मांग! क्या इससे महिलाओं पर यौन हमले रुकेंगे?
कथित तौर पर शीर्ष अदालत ने पहले भी पंजाब सरकार को उसके प्रतिबंधात्मक जल प्रबंधन कानून पर फटकार लगाई थी, साथ ही राज्य ने कानून का बचाव करते हुए दावा किया था कि इससे 1,000 अरब लीटर पानी बचाने में मदद मिली है.
2020 में, केंद्र ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए कानून लाने की बात कही थी, लेकिन 2021 में किसान संगठनों की मांग मान ली और इसे अपराध मुक्त कर दिया था.
दिप्रिंट भूजल बचाने के लिए पंजाब के कानून के बारे में बता रहा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इससे आस-पास के राज्यों में हवा की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है.
क्या कहता है कानून
पानी की अधिक खपत करने वाली फसल, धान, कथित तौर पर राज्य में ग्रीष्मकालीन खेती का 75-80 प्रतिशत हिस्सा होता है, जो इसके भूजल पर असर डालती है.
स्थिति का समाधान करने के लिए, पंजाब सरकार ने धान की बुआई और रोपाई में अनिवार्य रूप से देरी करने, इसकी खेती को मानसून तक सीमित करने के लिए पंजाब सबसॉइल वॉटर प्रिजर्वेशन एक्ट 2009 लाया था, ताकि बारिश के पानी से सिंचाई के दौरान भूजल पर दबाव कम हो सके.
कानून में कहा गया है, “कोई भी किसान कृषि वर्ष के मई के 10वें दिन या राज्य सरकार द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र के लिए आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किसी अन्य तारीख से पहले धान की नर्सरी के लिए बुआई नहीं करेगा.”
अधिनियम ऑथराइज्ड अधिकारी को कानून के उल्लंघन का आकलन करने के लिए खेत में प्रवेश करने और किसान को नोटिफाइड समय सीमा से पहले लगाए गए धान को नष्ट करने के निर्देश जारी करने की शक्ति भी प्रदान करता है.
अधिनियम के मुताबिक, इस तरह की कार्रवाई पर आने वाले खर्च को किसान को वहन करना पड़ेगा.
कानून के मुताबिक, “किसी भी हाल में किसान अगर अधिकृत अफरसर के निर्देश पर कदम नहीं उठाता तो अधिकारी धान की इस तरह की नर्सरी लगाएगा, मामला जैसा भी हो, वह किसान के खर्चे पर नष्ट किया जाएगा.”
इसमें कानून के उल्लंघन पर प्रति हेक्टेयर भूमि पर 10,000 रुपये प्रति माह का आर्थिक जुर्माना भी लगाने का प्रावधान है.
इसके अलावा, यह अधिनियम पंजाब में किसी भी अन्य विपरीत कानून पर “ओवरराइडिंग” प्रभाव डालता है और इस विषय पर अन्य सभी कानूनों को खत्म कर देता है.
2009 के अधिनियम में कहा गया है, “पंजाब राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किसी भी अन्य कानून में कुछ भी विपरीत होने के बावजूद, इस अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे.”
कथित तौर पर किसान संगठनों ने कहा है कि देर से बुआई करने से उनके खेतों को तैयार करने के लिए कम समय मिलता है, और इस प्रकार पराली जलाना एक जल्दी का समाधान है.
हरियाणा में भी धान की रोपाई के लिए समान दिशा-निर्देश हैं और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य में फसल की बुआई और रोपाई के लिए नियमित रूप से समय-सीमा निर्धारित की जाती है.
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : ‘उसकी जीभ निकाल लेनी चाहिए’ से लेकर ‘गंदी फिल्में देखते हैं’ तक— नीतीश के बयान पर किसने क्या कहा?