नई दिल्ली: पिछले हफ्ते सिविल सोसायटी ग्रुप्स ने मोदी सरकार की सार्वजनिक खाद्य योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर आयरन-फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की घोषणा पर चिंता जताई है.
भोजन का अधिकार अभियान और नीति समर्थन समूह एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर ने चेतावनी दी है कि बड़े पैमाने पर चावल का फोर्टिफिकेशन किए जाने से थैलेसीमिया और सिकल सेल बीमारी से पीड़ित मरीजों पर प्रतिकूल असर डाल सकती है. क्योंकि उनके लिए आयरन की अधिकता सही नहीं है. यह उन्हें खतरे में डाल सकती है. उनके हृदय, लीवर और एंडोक्राइन सिस्टम को भी नुकसान पहुंचा सकती है.
इन समूहों ने 22 अगस्त को जारी एक बयान में कहा, ‘आयरन फोर्टिफाइड फूड को अन्य बीमारियों मसलन तीव्र संक्रमण, तीव्र कुपोषण, मलेरिया और तपेदिक और यहां तक कि डायबिटीज में भी न लेने की सलाह दी जाती हैं.’
उन्होंने यह भी कहा कि इन योजनाओं में यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तरीका नहीं है जो बताता हो कि उपरोक्त बीमारियों से जूझ रहे मरीज आयरन-फोर्टिफाइड चावल का सेवन न करें. क्योंकि यह चावल आमतौर पर बिना पैक के बेचा जाता है.
बेंगलुरू के सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज में फिजियोलॉजी विभाग की पूर्व प्रमुख और लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन की फेलो अनुरा वी. कुरपड़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘ सही तो यह रहेगा कि भारत लक्षित योजनाओं को लागू करे (जैसे गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को आयरन की गोलियां देना). आयरन उन्हें दिया जाए जिन्हें इसकी जरूरत है… लेकिन पूरी आबादी, या उसमें से आधी को भी इसकी जरूरत नहीं है.’
उन्होंने समझाया कि समस्या यह है कि फोर्टिफाइड फूड से बहुत ज्यादा मात्रा में आयरन शरीर में जा सकता है, विशेष रूप से पुरुषों में, क्योंकि वे महिलाओं की तरह (मासिक धर्म के समय में) आयरन (अतिरिक्त) नहीं खोते हैं. इसकी तुलना में आयोडीन की अधिकता आमतौर पर यूरिन के जरिए निकल जाती है.
लेकिन क्या बड़े पैमाने पर फूड को फोर्टिफाइड करना सचमुच ही इतना विवादास्पद है जितनी कि बताया जा रहा है? दिप्रिंट ने बारीकी से इसकी पड़ताल की है.
स्टेपल फूड को फोर्टिफाइड क्यों किया?
भारत की एक बड़ी आबादी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से जूझ रही है. इसके समाधान के रूप में खनिज और विटामिन के साथ अनाज और दूध जैसे रोजाना के खाने को पोषक तत्वों से भरपूर करने के लिए बड़े पैमाने फोर्टिफाइड करने पर जोर दिया जा रहा है.
अब तक भारत ने चावल, गेहूं, खाद्य तेल, नमक और दूध के लिए फोर्टिफिकेशन मानकों का विकास किया है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रजनन आयु वर्ग (15-49) की 57 प्रतिशत महिलाओं में आयरन की कमी है. इसके अलावा, अध्ययनों से पता चला है कि लगभग हर पांचवें बच्चे (0-5 साल) के पास पौष्टिक और विविध आहार तक पहुंच नहीं है. वे विटामिन-ए की कमी से जूझ रहे हैं, जबकि विटामिन-डी की कमी को एक मूक महामारी बताया गया है.
पिछले साल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि खाद्य सुरक्षा योजनाओं के तहत दिए जाने वाले चावल को 2024 तक आयरन और फोलिक एसिड के साथ फोर्टिफाइड किया जाएगा. सरकार सार्वजनिक खाद्य कार्यक्रमों के तहत 3 करोड़ टन से अधिक चावल वितरित करती है, जो भारत के हर साल होने वाले चावल उत्पादन का लगभग एक चौथाई है.
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चावल को आयरन से कैसे फोर्टिफाइड किया जाता है?
फोर्टिफिकेशन स्कीम के तहत पिसे हुए टूटे चावल को पीसकर बिल्कुल बारीक कर दिया जाता है. फिर इसमें विटामिन और मिनरल का मिश्रण मिलाया जाता है. इसके बाद एक एक्सट्रूडर मशीन से फोर्टिफाइड राइस कर्नेल्स (FRK) तैयार किया जाता है, जो आमतौर पर साधारण चावल जैसा ही दिखता है. पोषक तत्वों की परत चढ़े इस फोर्टिफाइड चावल को साधारण चावल के साथ 1:100 के अनुपात में मिलाया जाता है. यानी एक किलो चावल में 100 ग्राम फोर्टिफाइड राइस. ग्राहकों पर इसकी लागत का बोझ 50 पैसे प्रति किलो से भी कम पड़ने का अनुमान है.
खाद्य मंत्रालय के अनुसार, फोर्टिफिकेशन प्रोग्राम का लक्ष्य मार्च 2023 तक देश भर के 291 आकांक्षी और उच्च बोझ (पोषक तत्वों की कमी) जिलों को कवर करना है, जिसके लिए 90 लाख टन फोर्टिफाइड चावल का उत्पादन किया जाना है.
क्या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का एकमात्र तरीका फोर्टिफिकेशन है?
सरकार मानती है कि विविध आहार, फलों और सब्जियों का नियमित सेवन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा नियमित रूप से विविध आहार लेने में सक्षम नहीं हो सकता है. इसलिए थोड़े समय में आयरन की कमी को कम करने के लिए व्यापक रूप से नियमित तौर पर खाए जाने वाले चावल में आयरन मिलाने के बारे में सोचा गया.
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के सीईओ अरुण सिंघल ने दिप्रिंट को बताया, ‘दुनिया भर में अध्ययनों से पता चला है कि आयरन के साथ चावल का फोर्टिफिकेशन हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार और एनीमिया के स्तर को कम करने में फायदेमंद रहा है. चावल के जरिए आयरन की कमी को दूर करना एक बेहतर तरीका है क्योंकि भारत में करीब 70 फीसदी आबादी चावल खाती है. और एनीमिया सिर्फ गरीब वर्गों तक ही सीमित नहीं है.
सिंघल ने कहा कि कुछ राज्यों में पिछले कुछ सालों से एनीमिया के मामले काफी बढ़े हैं, जो बहुत चिंता का विषय है. वास्तव में आयरन-फोर्टिफाइड चावल खाने से एनीमिया के 35-40 फीसदी मामलों में फायदा पहुंच सकता है.
सिंघल आगे कहते हैं, ‘संतुलित आहार और एक स्वस्थ जीवन शैली इसे दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है. यह आज भी मानक बना हुआ है … लेकिन कितने परिवार ऐसे हैं जो गरीबी के कारण अलग-अलग फल और सब्जियों खाने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए फूड फोर्टिफिकेशन आहार विविधता के साथ-साथ एक सप्लीमेंट्री रणनीति भी है.’
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इससे मिलने वाले फायदों के बावजूद कुछ विशेषज्ञों ने माना है कि बड़े पैमाने पर होने वाले फोर्टिफिकेशन ने उनकी कुछ चिंताओं को बढ़ा दिया है.
कुरपड़ ने कहा, ‘ इससे पुरुषों पर कई तरह के बुरे प्रभाव देखे जा सकते हैं. इसकी वजह से सीरम फेरिटिन के स्तर में होने वाली वृद्धि डायबिटीज और हाई बीपी जैसी पुरानी बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़ी है. भारतीयों के लिए आयरन की जरूरतों को काफी हद तक विविध आहार से पूरा किया जा सकता है’ भारत में 15-49 आयु वर्ग के सिर्फ लगभग एक चौथाई पुरुष एनीमिक हैं.
कुरपाड़ ने फोर्टीफाइड को चुपचाप आगे बढ़ाने की रणनीति के खिलाफ भी चेतावनी दी, जहां बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता कि उनके भोजन में क्या मिलाया जा रहा है.
हालांकि, FSSAI ने वार्निंग के साथ इसे बेचे जाने की बात कही है. उसके मुताबिक आयरन फोर्टीफाइड फूड के प्रत्येक पैकेट को निम्नलिखित डिस्क्लेमर के साथ बेचा जाना अनिवार्य है: ‘थैलेसीमिया से पीड़ित लोग चिकित्सकीय देखरेख में इसे ले सकते हैं और सिकल सेल एनीमिया वाले व्यक्तियों को आयरन फोर्टिफाइड खाद्य उत्पादों का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है.’
ग्लोबल एलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशन के कंट्री डायरेक्टर तरुण विज कहा, ‘मैं सरकार और वैज्ञानिक समुदाय के इरादों का पुरजोर समर्थन करता हूं क्योंकि मानकों को सोच-समझकर (किसी भी ओवरडोज या टॉक्सिसिटी को रोकने के लिए) सूक्ष्म पोषक तत्वों के अनुशंसित दैनिक भत्ते के आधार पर 25-30 प्रतिशत के बीच देने के लिए डिजाइन किया गया है.’ उनकी यह संस्था फूड फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एजेंसियों और व्यवसायों के साथ मिलकर काम करती है.
लेकिन इसी के साथ विज ने ये भी कहा कि सभी पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए फोर्टिफिकेशन रामबाण नहीं है. उन्होंने बताया, ‘हमें विविध आहारों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है. लेकिन क्या ये सचमुच इतना आसान है. फल और सब्जियां महंगी हैं, तो वहीं गैर-पौष्टिक, अनहेल्दी और ओवर प्रोसेस्ड (जंक) फूड की जमकर मार्केटिंग की जाती है.
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