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Saturday, 22 June, 2024
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क्या है बॉटम ट्रॉलिंग जो श्रीलंका के साथ टकराव की वजह बनी है, और क्यों यह भारत में बड़े पैमाने पर जारी है

जबकि भारत में मछली पकड़ने की गतिविधियों पर मौसम के हिसाब प्रतिबंध है और यह अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पालन करता है जो 'विनाशकारी मछली पकड़ने की गतिविधियों' को प्रतिबंधित करते हैं, फिर भी भारतीय मछुआरों द्वारा इसका बड़े पैमाने पर प्रेक्टिस किया जाता है.

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नई दिल्ली: इस साल की शुरुआत से, श्रीलंकाई नौसेना ने भारत और श्रीलंका के बीच फैले पाक खाड़ी समुद्री क्षेत्र में सीमा रेखा को पार करने के आरोप में 69 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया है. इसने मछुआरों द्वारा बॉटम ट्रॉलिंग (निचली सतह से मछली पकड़ना) के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 10 मशीनीकृत या इंजन वाली नौकाओं को भी जब्त कर लिया, जो कि बंगाल की खाड़ी और सामान्य रूप से भारत में मछली पकड़ने की एक आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली विधि है.

सेंट्रल मरीन रिसर्च फिशरीज इंस्टीट्यूट के एक विश्लेषण के अनुसार, 2021 में, भारत की कुल फिशिंग (मछली पकड़ना) का 52 प्रतिशत ट्रॉलिंग से आया, लेकिन श्रीलंका, इंडोनेशिया और मेडागास्कर जैसे देशों ने पर्यावरणीय कारणों से इस प्रेक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है.

दक्षिण फाउंडेशन में सस्टेनेबल फिशरीज कार्यक्रम की सीनियर प्रोग्राम एसोसिएट अभिलाषा शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “बॉटम ट्रॉलिंग की वजह से सीबेड या समुद्री तल के ईकोसिस्टम खराब होता है और समुद्र की जैव विविधता पर असर पड़ता है और ऐसी प्रजातियां भी जाल में फंस जाती हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती.”

जबकि भारत ने 2014 से कुछ ट्रॉलिंग के लिए कुछ शर्तें व परिस्थितियां बताई हैं, जैसे कि ट्रॉलिंग पर मौसमी प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पालन करना जो ‘विनाशकारी मछली पकड़ने की गतिविधियों’ पर प्रतिबंध लगाते हैं, फिर भी भारतीय मछुआरों द्वारा बड़े पैमाने पर ट्रॉलिंग की जाती है. यह पहली बार नहीं है जब भारतीय मछुआरों को श्रीलंका के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में मछली पकड़ने के लिए पकड़ा गया है, उनमें से 240 को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था.

दिप्रिंट आपको यह बता रहा है कि बॉटम ट्रॉलिंग क्या है, यह पारिस्थितिक रूप से कैसे हानिकारक है, इसके विकल्प क्या हैं, और भारत में यह अभी भी क्यों जारी है.

बॉटम ट्रॉलिंग क्या है और यह हानिकारक क्यों है?

बॉटम ट्रॉलिंग में मछली पकड़ने के जाल को समुद्र तल पर खींचा जाता है, इस प्रकार झींगा, ऑक्टोपस और हैलिबूट जैसे समुद्र के तल में रहने वाले समुद्री जीवों को पकड़ लिया जाता है. इन जीवों को डिमर्सल प्रजाति कहा जाता है, क्योंकि वे समुद्र के तल पर रहते हैं. अधिकांश मेकैनिकल ट्रॉलर्स में कॉनिकल यानि शंकु के आकार के जाल लगे होते हैं, जो 1-7 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलते हैं.

अभिलाषा शर्मा ने कहा, “मछली पकड़ने के अन्य तरीकों में, आप मछलियों को देख सकते हैं और यह फैसला कर सकते हैं कि किसे पकड़ना है और किसे नहीं लेकिन ट्रॉलिंग में मछली पकड़ने का काम काफी सघनता से किया जाता है जिसमें यह किसी खास टारगेटेड प्रजाति और अन्य के बीच अंतर कर पाना संभव नहीं होता.”

जाल में फंसने वाली अतिरिक्त प्रजातियों को बाइकैच कहा जाता है और उन्हें या तो वापस समुद्र में फेंक दिया जाता है या उर्वरक अथवा मछली का भोजन बनाने के लिए उपयोग किया जाता है. शर्मा के अनुसार, बाइकैच की मात्रा दुनिया में सालाना समुद्र से जितने जीवों का शिकार किया जाता है उसका 40% होता है. उन्होंने आगे कहा, “कुछ जगहों पर, जहाज के आकार और क्षेत्र के आधार पर, बाइकैच कुल फिशिंग का लगभग 80 प्रतिशत है.”

ट्रॉलिंग की वजह से समुद्र तल से समुद्री वनस्पतियां भी नष्ट हो जाती हैं. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित 2017 के एक अध्ययन से पता चलता है कि मेकैनिकल ट्रॉलर, उनके आकार के आधार पर, हर बार गुजरने पर समुद्र में 6-41 प्रतिशत बायोटा को ख़त्म कर सकते हैं. समुद्र के उन हिस्सों की तुलना में जहां बड़े पैमाने पर ट्रॉलिंग होती है, अन्य हिस्सों में अधिक जैव विविधता, अधिक कार्बनिक पदार्थ सामग्री और अधिक प्रजातियों की विविधता है, जैसा कि 2014 में उसी पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चलता है.

बॉटम ट्रॉलर्स की प्रकृति का एक और प्रमुख परिणाम यह है कि चूंकि वे समुद्र तल पर तलछट और वनस्पतियों की निचली परत को ‘बिखेर’ कर देते हैं, इसलिए वे कुछ मछलियों को उनका भोजन नहीं मिल पाता है. बड़े पैमाने पर अत्यधिक मछली पकड़ने और अत्यधिक बाइकैच से मांसाहारी मछलियों के लिए शिकार की उपलब्धता में कमी भी आती है. अध्ययनों से पता चला है कि किसी क्षेत्र में लगातार मछली पकड़ने से मछलियों के लिए भोजन की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं.

शर्मा कहती हैं, “समुद्री जीव अक्सर अपने जीवन चक्र के आधार पर समुद्र की अलग-अलग गहराई में रहते हैं – कम उम्र के जीव समुद्र में गहराई में रह सकते हैं और जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते हैं वैसे-वैसे वे ऊंचाई पर आ जाते हैं. अगर छोटे पर ही या प्रजनन के मौसम में ही उनका शिकार कर लिया जाता है तो इससे उनकी संख्या कम हो जाती है.”

समुद्र तल में गड़बड़ी पैदा होने के अलावा, तली में ट्रॉलिंग के कारण एक और पारिस्थितिकी समस्या उत्पन्न होती है जो कि है समुद्र तल से कार्बन डाइऑक्साइड का निकलना है. 2021 में नेचर में प्रकाशित एक मौलिक अध्ययन में पाया गया कि बॉटम ट्रॉलिंग सो सालाना 1 गीगाटन CO2 उत्सर्जन होता है – जो कि साल 2019 में पूरे एविएशन इंडस्ट्री यानि विमानन उद्योग द्वारा उत्सर्जित कार्बनडाई ऑक्साइड (918 मिलियन टन) से अधिक है.


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मछुआरे मछली पकड़ना क्यों जारी रखते हैं?

भारत में, मछली पकड़ने की यह विधा यानि कि बॉटम-ट्रॉलिंग ऐतिहासिक कारणों से भी जारी है. केंद्र सरकार ने 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के बाद से मछुआरों को मशीनीकृत ट्रॉलर, इंजन और ईंधन के लिए सब्सिडी देना शुरू किया है. भारत सरकार के अलावा, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) जैसे संगठनों ने भी ओडिशा में मछुआरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए हैं ताकि वे बॉटम ट्रॉलिंग के नए तरीके सीख सकें.

यहां तक कि 1980 के अंत में भी, जब इंडोनेशिया जैसे देशों ने अपने मलक्का जलडमरूमध्य (मलक्का स्ट्रेट) में बॉटम ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था, तब भी भारत सरकार बंगाल की खाड़ी कार्यक्रम के तहत मछुवारों को ‘हाई-ओपनिंग बॉटम ट्रॉलिंग’ जैसे मछली पकड़ने की नई विधा की ट्रेनिंग देने पर काम कर रही थी.

बॉटम ट्रॉलिंग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए समय और प्रयास की आवश्यकता होगी. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (भारत और दक्षिण एशिया) के एसोसिएट फेलो आदित्य शिवमूर्ति कहते हैं, “सरकार इसे आजीविका का सवाल मानती है, आप अचानक मछुआरों को अपनी आय का मुख्य स्रोत छोड़ने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बाधित करने के लिए कैसे कह सकते हैं?”

सेंट्रल मरीन रिसर्च फिशरीज इंस्टीट्यूट की 2016 की जनगणना के अनुसार, भारत में 30,772 मशीनीकृत ट्रॉलर हैं. रखरखाव और डीजल लागत के अलावा 25 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है. दक्षिण फाउंडेशन के शर्मा ने कहा, “मछुआरे अक्सर खुद को ऐसी स्थिति में फंसा हुआ पाते हैं जहां वे चाहकर भी ट्रॉलिंग करने के काम से बाहर नहीं निकल पाते हैं. उनके पास सिर पर लोन और अन्य आर्थिक जिम्मेदारियां भी हैं जो उन्हें इस काम को करने को मजबूर करते हैं.”

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के महासागर और मत्स्य पालन संस्थान की 2023 की रिपोर्ट उन विभिन्न कारणों पर नज़र डालती है कि क्यों भारतीय मछुआरों ने तलहटी में मछली पकड़ना शुरू किया और इसे जारी रखा. आर्थिक ऋण से लेकर झींगा और अन्य डिमर्सल प्रजातियों की बढ़ती मांग तक, अध्ययन बताता है कि क्यों कुछ मछुआरे इसे छोड़ने में असमर्थ हैं, जबकि अन्य इसे मुनाफे के लिए चुनते हैं.

भारत और विश्व में ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध

संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (यूएनसीबीडी) के अनुच्छेद 10 में उल्लेख है कि सभी पक्षों को अपने जैविक संसाधनों का स्थायी उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए. समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में कहा गया है कि राज्य अपने समुद्री संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन उन्हें टिकाऊ उपज और संरक्षण उपायों को ध्यान में रखना चाहिए. इनमें से किसी भी दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से बॉटम ट्रॉलिंग का उल्लेख नहीं है.

भारत में, मछली के प्रजनन के लिए मानसून के दौरान कुछ महीनों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में मछली पकड़ने पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया जाता है. 2014 में, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग द्वारा पारित ‘भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने के लिए दिशानिर्देश’ ने ईईजेड में गहरे समुद्र में चलने वाले वाहनों को ‘बॉटम-ट्रॉलिंग, बुल-ट्रॉलिंग या पेयर ट्रॉलिंग’ करने से स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित कर दिया.

गैर-लाभकारी संस्था इंटरनेशनल कलेक्टिव इन सपोर्ट ऑफ फिशवर्कर्स के कार्यक्रम प्रबंधक वेणु ने कहा, “बॉटम ट्रॉलिंग को नियंत्रित करने में सक्षम होने के लिए मौजूदा कानूनों के उचित कार्यान्वयन की भी आवश्यकता है. निगरानी तंत्र और ट्रॉलिंग वेसेल की निगरानी की जानी चाहिए.”

भारत के विपरीत, श्रीलंका का बॉटम ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध उसके जल क्षेत्र तक फैला हुआ है और यह केवल ईईजेड को कवर नहीं करता है. भारतीय मछुआरों को पकड़ने के लिए श्रीलंका द्वारा बताए गए मुख्य कारणों में से एक उनके जल क्षेत्र में मछली पकड़ना है, जो अवैध है.

ओआरएफ के शिवमूर्ति ने कहा, “आधिकारिक कारण अतिक्रमण हो सकता है, लेकिन श्रीलंका ने इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय मछुआरे अपने जल क्षेत्र में ट्रॉलर का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी पकड़ पर असर पड़ता है और उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बड़ा पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है.”

बॉटम ट्रॉलिंग के विकल्प

बॉटम ट्रॉलिंग के पारिस्थितिक प्रभाव को कम करने के ऐसे तरीके हैं जिनमें आवश्यक रूप से पूर्ण प्रतिबंध शामिल नहीं है. कुछ संगठन और सरकारें जाल के आकार जैसे पहलुओं को बदलकर, बॉटम ट्रॉलिंग के कम हानिकारक तरीकों को ईजाद करने के लिए काम कर रही हैं. मरीन पॉलिसी जर्नल में प्रकाशित 2023 का एक अध्ययन उन तरीकों के बारे में सुझाव देता है जिनसे ऑल्टरनेटिव गियर और ऑल्टरनेटिव कैच स्टिमुलाई या चारा (Bait) ट्रॉलिंग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर सकते हैं.

शर्मा ने कहा, “चूंकि ट्रॉल नेट बहुत अधिक मात्रा में बाइकैच पकड़ते हैं, इसलिए जाल का आकार बढ़ाने जैसे कुछ बदलावों से से कुछ कम उम्र की मछलियों और गैर-लक्षित प्रजातियों को भागने में मदद मिल सकती है.”

हाल के वर्षों में, सरकार ने भी लोगों को मछली पकड़ने के इस प्रकार के तरीके से दूर ले जाने के उपायों को लागू करना शुरू कर दिया है. मत्स्य पालन विभाग द्वारा नीली क्रांति योजना (2015) और प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (2020) दो योजनाएं हैं जिनका उद्देश्य भारतीय मछुआरों की बॉटम ट्रॉलिंग वाली नौकाओं को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली नौकाओं से बदलना है. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने में गिल जाल और टूना लॉन्गलाइनिंग जैसी तकनीकें शामिल होती हैं जो मछली पकड़ने के लक्षित तरीके हैं और समुद्र तल को नहीं छूती हैं. 2022 में लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक, 2022 तक तमिलनाडु में मछुआरों को गहरे समुद्र में ऐसी 800 नावें दी गई हैं.

दक्षिण फाउंडेशन की अभिलाषा शर्मा के अनुसार, भारत में टिकाऊ मछली पकड़ने की शुरुआत के प्रयासों में कई हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए. “मछली पकड़ने का कोई भी तरीका, अगर ज़्यादा किया जाए, तो पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है. समस्या पूरी तरह से मछुआरों के साथ भी नहीं है – प्रोसेसर, उपभोक्ता और सरकार सभी एक ऐसी प्रणाली विकसित करने के लिए उत्तरदायी हैं जो गहन नहीं है और फिर भी मांग को पूरा करनेके लिए पर्याप्त है.

 (इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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