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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअमरमणि किस बीमारी के चलते अस्पताल में हैं? 22 साल पुराना मामला लटका हुआ है और कोर्ट जवाब तलाश रही है

अमरमणि किस बीमारी के चलते अस्पताल में हैं? 22 साल पुराना मामला लटका हुआ है और कोर्ट जवाब तलाश रही है

बस्ती की एमपी/एमएलए कोर्ट 2001 में शहर के एक व्यवसायी के बेटे के अपहरण के मामले में सुनवाई कर रही है, जिसे पुलिस ने बाद में लखनऊ के एक घर में पाया था, जिसका प्रबंधन अमरमणि द्वारा किया जा रहा था.

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लखनऊ: भले ही उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को 2003 में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में आधिकारिक तौर पर न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया है, लेकिन एक अन्य मामले में कोर्ट में पेश न होने के कारण मामला लटका हुआ है.

बस्ती की एमपी/एमएलए कोर्ट 2001 में शहर के व्यवसायी धर्मराज गुप्ता के किशोर बेटे के अपहरण के मामले में सुनवाई कर रही है, जिसे बाद में पुलिस ने लखनऊ के एक घर से बरामद किया था, जो घर अमरमणि त्रिपाठी के कंट्रोल में था. 

बाद में आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 364 (हत्या के उद्देश्य से अपहरण), 364 ए (अपहरण और जीवन के लिए धमकी), 216 ए (लुटेरों या डकैतों को शरण देना), 212 (अपराधी को शरण देना), 120-बी (आपराधिक) और यूपी गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि अधिनियम के तहत उनपर मामला दर्ज किया गया था.

आरोप तय करने के लिए अमरमणि को अभी भी कोर्ट में पेश होना है, लेकिन कथित तौर पर वह अपने गृहनगर गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक “बीमारी” का इलाज करा रहे हैं.

इस साल की शुरुआत से बस्ती कोर्ट ने बार-बार बीआरडी मेडिकल कॉलेज से उस बीमारी के बारे में पूछा जिसके कारण वह इतने दिनों अस्पताल में भर्ती हैं.

कोर्ट ने इस महीने कहा कि बीमारी के बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगने के बावजूद बीआरडी मेडिकल कॉलेज ने अभी तक एक स्पष्ट रिपोर्ट नहीं दी है और केवल इसकी जानकारी दी गई कि उन्होंने नेहरू अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) से इसकी जानकारी मांगी थी. यह मेडिकल कॉलेज परिसर में स्थित एक अस्पताल है.

17 अगस्त को, कोर्ट ने गोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करने और बिना किसी देरी के एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. रिपोर्ट न मिलने पर कोर्ट ने सोमवार को सीएमओ को इसके लिए एक रिमाइंडर भेजा है.

सीएमओ गोरखपुर आशुतोष दुबे ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड का गठन कर सोमवार को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी है.

पिछले गुरुवार को जारी यूपी सरकार की अधिसूचना के अनुसार, हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व मंत्री और उनकी पत्नी को जेल में उनके “अच्छे आचरण” के कारण जेल से रिहा कर दिया गया है.

हालांकि, शुक्ला की बहन ने आरोप लगाया है कि दंपति ने अपनी 16 साल की जेल अवधि का 50 प्रतिशत से अधिक समय अस्पताल में बिताया है. उन्होंने उनकी रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. 

2015 में, ऐसी खबरें थीं कि त्रिपाठी को “अवसाद और मानसिक तनाव” के इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर कर दिया गया था. उनके बेटे अमनमणि ने पिछले सप्ताह एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके पिता “रीढ़ की हड्डी और तंत्रिका संबंधी समस्याओं” से पीड़ित हैं.

‘लापरवाही का काम’

17 अगस्त के अपने आदेश में विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए) प्रमोद कुमार गिरि की कोर्ट ने कहा कि उन्होंने बस्ती के पुलिस अधीक्षक को आरोपी अमरमणि, नैनीश शर्मा और शिवम के खिलाफ 2 मार्च को गैर-जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया था. दिप्रिंट के पास आदेश की एक प्रति है.

इसके संबंध में गोरखपुर जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर कहा है कि कैदी अमरमणि को 26 अक्टूबर 2021 को जेल चिकित्सक की सिफारिश पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेजा गया था, जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती कर लिया था. 

जेल अधीक्षक ने रिपोर्ट में आगे कहा कि जेल प्रशासन ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को पत्र लिखकर अमरमणि की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी मांगी थी, लेकिन उनकी ओर से अबतक जवाब का इंतजार है. 

कोर्ट के आदेश में लिखा है, “उसी के संबंध में जब कोर्ट ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से अमरमणि की शारीरिक ताकत, बीमारी के बारे में स्पष्ट रिपोर्ट देने के लिए कहा तो प्रिंसिपल ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने सीएमएस से इसके लिए कहा है. नेहरू अस्पताल से संबंधित चिकित्सक को इस पर स्पष्ट रिपोर्ट देनी है.”

कोर्ट ने कहा कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा अमरमणि के स्वास्थ्य और बीमारी पर रिपोर्ट पेश करने में विफलता “अत्यधिक आपत्तिजनक और लापरवाही का कार्य है”. इसके बाद कोर्ट ने गोरखपुर सीएमओ को एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि अमरमणि किस बीमारी का इलाज करा रहे हैं.


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‘देरी होने पर आरोप तय करने में देरी’

दिप्रिंट से बात करते हुए, बस्ती के विशेष लोक अभियोजक देवानंद सिंह ने कहा कि अमरमणि के कोर्ट में पेश न होने और दो अन्य आरोपियों नैनीश और शिवम के फरार होने के कारण मामले का आरोप तय करने में देरी हो रही है.

उन्होंने कहा, “कोर्ट ने मार्च में पुलिस से अमरमणि और मामले के दो अन्य आरोपियों नैनीश और शिवम के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने को कहा था, लेकिन उन्हें अभी तक कोर्ट में पेश नहीं किया गया है. इस वजह से आरोप तय करने में देरी हो रही है.”

सिंह ने कहा कि मामले में पांच अन्य आरोपी हैं जिनके वकील सुनवाई के दौरान मौजूद रहते हैं और कोर्ट उनके रिकॉर्ड को अलग से संभाल रही है.

उन्होंने कहा, “अन्य पांच आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं जिन्होंने अपनी केस फाइलें अन्य तीन से अलग कर लीं.”

सिंह ने कहा कि 6 दिसंबर 2001 को धर्मराज गुप्ता के बेटे के अपहरण में कुल नौ लोग आरोपी थे और उनमें से एक की अब मौत हो चुकी है.

रिपोर्ट सौंपी गई, ब्योरा नहीं दे सकते: सीएमओ गोरखपुर

दिप्रिंट द्वारा संपर्क करने पर गोरखपुर के सीएमओ आशुतोष दुबे ने बताया कि उन्होंने कोर्ट के निर्देश पर पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया था और इसकी रिपोर्ट सोमवार को सौंपी गई थी.

जब उनसे रिपोर्ट के निष्कर्षों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनका खुलासा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक सीलबंद रिपोर्ट है.

मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने आरोप लगाया है कि जेल में रहने के बजाय, अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि कैद के दौरान अधिकांश समय बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड में रहे हैं.

उन्होंने अपनी जान का खतरा बताते हुए त्रिपाठी परिवार की जेल से रिहाई को चुनौती दी है.

उन्होंने कहा, “मैं यह सुनकर स्तब्ध हूं कि उन्हें रिहा किया जा रहा है, क्योंकि पिछले 15 दिनों से हम नियमित रूप से यूपी सरकार और राज्यपाल को पत्र और ईमेल के माध्यम से जानकारी दे रहे हैं कि हमने कोर्ट की अवमानना ​​​​की याचिका दायर की है. मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में 25 अगस्त को सुनवाई होनी थी.” मधुमिता ने पिछले हफ्ते सरकार से सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई होने तक रिहाई आदेश को स्थगित रखने का अनुरोध किया था.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के संबंध में यूपी सरकार को नोटिस जारी किया और जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया, जिसके बाद दोनों की रिहाई का रास्ता साफ हो गया.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की वकील कामिनी जायसवाल को सरकार के जवाब का इंतजार करने को कहा और आगे कहा कि अगर उनकी दलीलों में दम है तो वह दोनों को वापस जेल भेज देगी.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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