बेगूसराय: दिल्ली में एक सड़क पर बैठकर रोते मजदूर की एक तस्वीर भारत के दो महीने के लॉकडाउन संकट का प्रतीक बन गई. इस तस्वीर ने सभी को हिलाकर रख दिया और बिहार में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने तो रामपुकार के आंसुओं से भीगे चेहरे वाली तस्वीर को अपनी प्रोफाइल पिक्चर तक बना लिया. मई में बिहारी प्रवासी की यह तस्वीर उस समय सामने आई थी जब वह अपने बीमार बेटे को देखने के लिए पैदल ही घर जाने के लिए निकल पड़े थे.
फोटो लिए जाने के कुछ ही समय बाद पंडित जब बेगूसराय स्थित अपने गांव लौटे तो उसी दिन उनके बेटे की मृत्यु हो गई.
पंडित की वायरल फोटो और उनकी कहानी से व्यथित राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता ने उन्हें वित्तीय सहायता और नौकरी दिलाने का वादा किया. उन्होंने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये उनसे बात की और अपनी पार्टी के एक कार्यकर्ता को सहायता मुहैया कराने का निर्देश दिया.
यह एक ऐसा समय था जब पूरा देश बड़े पैमाने पर प्रवासी संकट से हतप्रभ था, जिसमें मजदूरों के साथ दुर्व्यवहार और रोजगार की कमी का संकट सामने आ रहा था. यह समस्या सुलझाने के लिए पर्याप्त कदम न उठाने को लेकर सरकार भी आलोचनाओं के घेरे में थी.
अब, छह महीने बीतने के बाद भी पंडित को वादे के मुताबिक कोई रोजगार नहीं मिला है. वह बेगूसराय स्थित अपने गांव में कोई काम खोजने के लिए संघर्षरत हैं.
पंडित ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि उन्होंने यादव के स्टाफ को कई बार फोन किया लेकिन किसी ने भी उनके कॉल का जवाब नहीं दिया.
उन्होंने बताया, ‘मैं मदद के लिए एक उनकी पार्टी के एक कार्यकर्ता से भी मिला, लेकिन उन्होंने कहा कि अभी हर कोई चुनाव में व्यस्त है और मुझसे चुनाव बाद संपर्क करने को कहा. जैसा वादा किया गया था वैसे कोई नौकरी नहीं दी गई. मैं गांव में कुछ कामकाज खोज रहा हूं. यहां खेती का मौसम खत्म हो चुका है. अब मैं आलू की बुवाई के समय काम पाने की कोशिश करूंगा.’
हालांकि, राजद के जिला अध्यक्ष ने पंडित के दावों पर सवाल उठाए.
मोहित यादव ने कहा, ‘हमने दिल्ली से आने पर उनकी आर्थिक मदद की. प्रदेश कार्यालय ने उन्हें 1 लाख रुपये दिए और जिला कार्यालय ने उन्हें खाद्यान्न के अलावा 30,000 रुपये की सहायता की. तेजस्वी जी ने उनसे निजी क्षेत्र की नौकरी दिलाने का वादा किया था. मैंने उनसे कहा है कि हम चुनाव बाद नौकरी दिलाने में उनकी मदद करेंगे. हम सरकार में नहीं हैं, इसलिए उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दे सकते.’
फोटो कैसे चर्चा में आई
रामपुकार पंडित होली (मार्च) में नौकरी की तलाश में दिल्ली गए थे क्योंकि उनके गांव में रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं थी. उन्हें राजधानी के बाहरी इलाके नजफगढ़ में एक निर्माण स्थल पर नौकरी मिल भी गई. लेकिन थोड़े समय बाद ही लॉकडाउन की घोषणा हो गई.
उन्होंने मई में बिहार लौटने का फैसला किया. यातायात का कोई साधन न होने और पैसों के अभाव में पंडित घर लौटने के लिए नजफगढ़ से पैदल ही निकल पड़े.
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निजामुद्दीन पुल पर पुलिस ने कथित तौर पर उनके साथ ‘दुर्व्यवहार’ किया और वह फूट-फूटकर रोने लगे. पंडित के मुताबिक यही वह क्षण था जब पीटीआई के एक फोटोग्राफर ने उसकी तस्वीर क्लिक कर ली और यह वायरल हो गई. पंडित उन लाखों प्रवासियों का चेहरा बन गए जो देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर फंसे थे.
वह किसी तरह गाजीपुर पुल पर पहुंचे, जहां वह एक सामाजिक कार्यकर्ता से मिले, जिसने उनके ट्रेन से बेगूसराय जाने की व्यवस्था की और 5,000 रुपये दिए. उन्होंने बताया, ‘सलमा जी (सामाजिक कार्यकर्ता) ने बेगूसराय लौटने के लिए मेरी टिकट का इंतजाम करने के पहले भोजन भी कराया.’
उनकी पत्नी बिमला देवी ने कहा, ‘पहली बार जब वह दिल्ली गए तो नोटबंदी हो गई थी और इस बार लॉकडाउन हो गया. और दोनों ही बार हमने किसी को खोया- पिछली बार परिवार का एक सदस्य और इस बार बेटा. अब मैंने कह दिया है कि वह दिल्ली नहीं जाएंगे चाहे यहां पर भूखों मरने की ही नौबत क्यों न आ जाए.’
बिहार वापसी
गांव लौटने के बाद पंडित को एक स्कूल में क्वारंटाइन कर दिया गया. अंततः जब वे घर पहुंचे तो उनके पास तेजस्वी यादव का फोन आया, जिन्होंने तत्काल मदद और एक निजी नौकरी का वादा किया. पंडित ने बताया, ‘उन्होंने अपना नंबर भी दिया और कहा कि अगर मुझे कोई परेशानी हो तो उनसे संपर्क कर सकता हूं.’
यह उनके लिए कारगर साबित नहीं हुआ. लेकिन उन्हें नीतीश कुमार सरकार की तरफ से भी कोई सहायता नहीं मिली.
पंडित के बरियारपुर पुरवी गांव का प्रतिनिधित्व नरेंद्र मोदी सरकार में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मामलों के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह करते हैं. उनका गांव सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) के नेता के प्रतिनिधित्व वाले विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है.
हालांकि, कुछ सामाजिक संगठनों ने तो उन्हें खाद्यान्न उपलब्ध कराया लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक सदस्य ने उनकी मदद नहीं की.
लॉकडाउन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि एक कौशल केंद्र स्थापित किया जाएगा और बिहार के कामगारों को काम के लिए राज्य से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार सहित छह राज्यों के लिए गरीब कल्याण योजना शुरू की थी, लेकिन पंडित जैसे कई श्रमिकों को नौकरी और प्रोत्साहन नहीं मिला.
महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा बने तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया है. लेकिन गांवों में रोजगार के अवसरों के अभाव में दिल्ली और अन्य बड़े शहरों की ओर प्रवास फिर से शुरू हो गया है.
‘नौकरी देने वाले को वोट देंगे’
जाति से एक कुम्हार पंडित और उनके पिता मिट्टी के बर्तन बनाते थे. लेकिन पंडित अपने पैर में फ्रैक्चर के बाद यह काम जारी नहीं रख पाए.
अब नौकरी के अभाव में वह मुफ्त सहायता के तौर पर मिले अनाज और उधार के पैसों पर निर्भर हैं. उनके बच्चे स्कूल नहीं जा रहे और पंडित नौकरी पाने की हरसंभव कोशिश में जुटे हैं. उन्हें विधानसभा चुनाव पूरे होने और आलू की बुआई का मौसम शुरू होने का इंतजार है.
यह पूछे जाने पर कि वह किसे वोट देंगे, पंडित ने कहा, ‘किसी को भी जो हमें रोजगार उपलब्ध कराए.’
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