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Monday, 4 November, 2024
होमदेश‘मामला कमजोर, जांच पर संदेह’, यूपी सरकार ने अतीक अहमद के लिए गवाही देने वाले CBI अधिकारी की जांच की

‘मामला कमजोर, जांच पर संदेह’, यूपी सरकार ने अतीक अहमद के लिए गवाही देने वाले CBI अधिकारी की जांच की

प्रयागराज के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (अपराध) ने प्रयागराज के डीएम और यूपी सरकार को पत्र लिखकर सिफारिश की है कि अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा जाए.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के एक अधिकारी के आचरण की जांच कर रही है, जिसने 2006 के अपहरण मामले में गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद के मुकदमे के दौरान बचाव पक्ष के गवाह के रूप में गवाही दी थी. आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी है.

अभियोजकों ने आरोप लगाया है कि अधिकारी की गवाही ने अहमद के खिलाफ उनके मामले को कमज़ोर कर दिया था.

मंगलवार को दिप्रिंट से बात करते हुए प्रयागराज के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (आपराधिक) सुशील कुमार वैश्य ने कहा कि उन्होंने प्रयागराज के जिला मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार को लिखा है कि अधिकारी का आचरण एक लोक सेवक की आचार संहिता के खिलाफ था और सिफारिश की कि सरकार इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखे और पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) अमित कुमार के खिलाफ कार्रवाई की मांग करें.

कुमार ने प्रयागराज की एक अदालत को बताया था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता उमेश पाल, जिसकी फरवरी में प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, ने उनके सामने स्वीकार किया था कि वह 2005 के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेता राजू पाल हत्याकांड के चश्मदीद गवाह नहीं था. अहमद और उसके परिवार के सदस्यों और कथित गिरोह पर राजू पाल हत्याकांड, 2006 में उमेश पाल के अपहरण और इस फरवरी में उसे गोली मारने का आरोप लगा था.

प्रयागराज की एक एमपी/एलएलए कोर्ट ने 28 मार्च को उमेश पाल अपहरण मामले में अहमद, उसके सहयोगी दिनेश पासी और उसके लंबे समय से अधिवक्ता शौलत हनीफ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. कई मामलों में आरोपी होने के बावजूद, यह अतीक अहमद की पहली सजा थी.

कुछ दिनों बाद, पूर्व सांसद और उनके भाई अशरफ की प्रयागराज में पुलिस हिरासत में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. गोलीबारी के बाद से तीन संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है.

अपहरण के मामले में अहमद और अन्य दो को दोषी ठहराते हुए, अदालत ने कहा था कि उमेश पाल का अपहरण किया गया था और उसे 2005 के राजू पाल हत्याकांड में गैंगस्टर से राजनेता के पक्ष में गवाही देने के लिए राजी किया गया था. दिप्रिंट के पास फैसले की एक प्रति है.

यह देखते हुए कि डीएसपी अपहरण के बारे में कुछ नहीं कह सकते, विशेष न्यायाधीश दिनेश शुक्ला ने फैसले में कहा था कि कुमार द्वारा प्रदान किए गए साक्ष्य और केवल उनके बयान कि उमेश पाल का अपहरण नहीं किया गया था पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

फैसले में कहा गया कि अमित कुमार ने गवाही दी थी कि वे राजू पाल हत्याकांड की जांच का हिस्सा थे.

वैश्य के मुताबिक, अपहरण मामले में अमित के अहमद के पक्ष में गवाही देने की मीडिया में खबर आने के बाद यूपी सरकार ने पिछले महीने अभियोजन पक्ष से इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी.

उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी और कुमार के खिलाफ शिकायत का मसौदा तैयार किया था, जिसे लगभग 15 दिन पहले प्रयागराज के डीएम संजय खत्री और राज्य सरकार को भेजा गया था.

वैश्य ने कहा, “लोक सेवक के बयान ने न केवल अभियोजन पक्ष को नुकसान पहुंचाया बल्कि उसकी अपनी जांच (राजू पाल हत्याकांड में) पर भी संदेह जताया. अदालत ने पाया कि अमित कुमार के सबूत विश्वसनीय नहीं थे और अभियोजन पक्ष मजबूत था.”

उन्होंने आगे कहा कि अपनी रिपोर्ट में उन्होंने उल्लेख किया था कि बचाव पक्ष के गवाह के रूप में अधिकारी ने गैंगस्टर से नेता बने अहमद को बचाने की कोशिश की थी.

वैश्य ने कहा, “उन्होंने मामले (उमेश के अपहरण) की जांच नहीं की और फिर भी दावा किया कि उमेश का अपहरण नहीं किया गया. उमेश ने सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) 164 के तहत अपने बयान में कहा था कि उसका अपहरण कर लिया गया था जिसे अदालत ने विश्वसनीय पाया, जबकि अधिकारी के साक्ष्य को विश्वसनीय नहीं पाया.”

उन्होंने आगे कहा कि उनकी शिकायत में यह सिफारिश की गई है कि यूपी सरकार मामले के संबंध में अधिकारी की भूमिका के बारे में गृह मंत्रालय (एमएचए) से शिकायत करे.

दिप्रिंट ने कुमार से कॉल और टेक्स्ट संदेशों पर संपर्क किया, लेकिन उनका नंबर पहुंच से बाहर रहा.


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डीएसपी की गवाही

उमेश पाल बसपा विधायक राजू पाल की 2005 की हत्या के मामले में गवाहों में से एक थे, जिन्हें कथित तौर पर उस वर्ष 25 जनवरी को अहमद के गुर्गों ने गोली मार दी थी.

राजू की पत्नी पूजा के एक रिश्तेदार, उमेश बाद में मुकर गए और जब 2016 में सीबीआई ने मामले को संभाला, तो उन्हें एजेंसी द्वारा गवाह के रूप में छोड़ दिया गया, जिसने उन्हें “अविश्वसनीय” पाया.

हालांकि, 2007 में उमेश ने आरोप लगाया था कि 2006 में प्रयागराज के फांसी इमली क्षेत्र के पास से उसका अपहरण कर लिया गया था और अहमद के पक्ष में गवाही देने के लिए दबाव डाला गया था.

लेकिन अपहरण मामले में फैसले के अनुसार, मुकदमे के दौरान कुमार ने अदालत को बताया कि उमेश पाल ने उनके सामने स्वीकार किया था कि वह राजू पाल हत्याकांड में चश्मदीद गवाह नहीं था और न ही अदालत में पेश हुआ और न ही वह राजू द्वारा चलाई जा रही कार में था जब उसे गोली मारी गई थी.

विशेष न्यायाधीश दिनेश शुक्ला की अदालत ने यह भी पाया कि कुमार ने गवाही दी थी कि राजू पाल हत्याकांड के अन्य गवाह, जो मुकर गए थे, उमेश पाल के दबाव को कारण बताया था.

फैसले में आगे कुमार ने कहा, “उन्होंने आगे बताया कि उनके अपहरण के संबंध में दर्ज मामले फर्जी थे और न तो उनका अपहरण किया गया था और न ही उमेश पाल का अपहरण किया गया था. इन्हीं वजहों से उमेश को मामले (राजू पाल हत्याकांड) में गवाह नहीं माना गया.”

हालांकि, कुमार द्वारा की गई जांच को “त्रुटिपूर्ण” करार देते हुए, न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि जांच अधिकारी की राय के बावजूद, यदि कोई गवाह किसी घटना के संबंध में अपना बयान देना चाहता है और जांच अधिकारी के कार्यालय में मौजूद है, तो सीआरपीसी की धारा 161 के तहत उसका कुमार को बयान लिखना चाहिए था.

न्यायाधीश ने कहा, “अगर उमेश पाल पूजा पाल (राजू की पत्नी) के साथ आईओ के कार्यालय पहुंचे और कहा कि वह मामले में चश्मदीद गवाह नहीं थे, तो वही बयान आईओ द्वारा लिखा जाना चाहिए था, लेकिन उनका कोई बयान दर्ज नहीं किया गया जो कुमार की ओर से दोषपूर्ण जांच को दर्शाता है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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