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Tuesday, 1 October, 2024
होमदेश‘हमें ज़मीन का पर्चा चाहिए’, बिहार के नवादा में आगज़नी से प्रभावित दलित बस्ती के लोग भविष्य को लेकर परेशान

‘हमें ज़मीन का पर्चा चाहिए’, बिहार के नवादा में आगज़नी से प्रभावित दलित बस्ती के लोग भविष्य को लेकर परेशान

करीब 200 लोग तंग तिरपाल से बने तंबुओं में रह रहे हैं, जिनके चारों ओर उनकी सारी संपत्ति जलकर राख हो गई है.

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नवादा (बिहार): बिहार के देदौर गांव में लक्ष्मीनिया देवी एक शाम अपनी मिट्टी और ईंट की जर्जर झोपड़ी में दाल पका रही थीं, तभी अचानक गोली चलने की आवाज़ सुनकर वे चौंक गईं.

इससे पहले कि वे कुछ समझ पातीं, नवादा जिले में उनके दलित टोले में हवाई फायरिंग करने वाले हथियारबंद लोगों के एक समूह ने 80 में से 34 घरों को जला दिया और एक दर्जन से अधिक मकानों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचाया गया, जिससे 50 से अधिक बेहद गरीब परिवारों के सिर पर छत नहीं बची.

दशकों पुराने ज़मीन के विवाद में उनके घरों को जलकर राख हुए 10 दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन सदमे में डूबे दलित परिवार अभी भी डर के साये में जी रहे हैं. उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं कि उनकी ज़िंदगी कब पहले जैसी होगी.

लगभग 200 लोग लगातार निगरानी में रह रहे हैं, जिला प्रशासन ने नारियल के पेड़ों से घिरे गांव में उनके जले हुए घरों से कुछ ही दूर तिरपाल से अस्थाई तंबू बनाए हैं.

नवादा प्रशासन ने दलित कॉलोनी के निवासियों के लिए तंबू लगाए हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नवादा प्रशासन ने दलित कॉलोनी के निवासियों के लिए तंबू लगाए हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

कई लोगों के पास सिर्फ वही कपड़े बचे हैं जो उन्होंने तब पहने थे जब उनके घर, बकरियां, मुर्गियां और साथ ही भंडारित अनाज को आग के हवाले कर दिया गया था.

नवादा की दलित बस्ती में जला हुआ सामान | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नवादा की दलित बस्ती में जला हुआ सामान | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

दिहाड़ी मजदूर सिया रविदास ने कहा, “घटना के बाद से मैं कहीं बाहर नहीं गया हूं. मुझे अभी भी डर है कि कोई मुझ पर हमला कर सकता है.”

उन्होंने जले हुए घरों में लोगों के बिखरे हुए सामान की ओर इशारा करते हुए कहा, “ज़िंदगी अचानक बदल गई. पेट्रोल डालकर घरों को आग लगा दी. लगभग 150 लोगों ने बस्ती को चारों तरफ से घेर लिया था.”

हर जगह 18 सितंबर की उस घातक आग की यादें हैं जिसने उनके घरों को नष्ट कर दिया: काली पड़ चुकीं दीवारें, जली हुई चारपाई और गाड़ियां, साइकिलें और राख से सने एल्युमिनियम के बर्तन मलबे में बिखरे पड़े हैं.

नवादा की दलित बस्ती में जले हुए बर्तन और चूल्हे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नवादा की दलित बस्ती में जले हुए बर्तन और चूल्हे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

59-वर्षीय लक्ष्मीनिया देवी ने भी घटना में अपना घर खो दिया, “हमें हर दिन ये जले हुए घर देखने पड़ते हैं. यह हमारे लिए दर्दनाक है. घर बहुत मेहनत से बनता है और आज हम सभी सरकारी टेंटों में रहने को मजबूर हैं.”


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तंग तंबुओं में रहना

अपने घर खो चुके देदौर गांव के ज़्यादातर निवासी दिहाड़ी मज़दूर हैं जो पहले से ही अपना पेट पालने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

अब उनके पास न तो घर है और न ही कोई काम.

तंग अस्थायी तंबुओं में रहने से उनकी परेशानियां और बढ़ गई हैं.

ग्रामीण प्रशासन की व्यवस्थाओं के बारे में शिकायत कर रहे हैं क्योंकि उनमें से ज़्यादातर लोग गर्मी में ज़मीन पर सोते हैं और 200 लोगों के लिए सिर्फ 18 लकड़ी की खाटें और 10 पंखे हैं.

उनका कहना है कि एक दर्जन से ज़्यादा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता उनसे मिलने आए और उन्हें मुआवज़ा और उनके ज़मीनी अधिकारों का आश्वासन देकर चले गए.

लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे अलग ही है.

प्रशासन द्वारा वितरित की गई साड़ी पहनी 40-वर्षीय चंदा देवी ने कहा, “हम उबड़-खाबड़ ज़मीन पर बिछी चटाई पर सोते हैं. फर्श पर सोने से कई लोग बीमार पड़ गए हैं.”

सुबह 9 बजे भी वे सरकार की तरफ से मिलना वाले नाश्ते का इंतज़ार कर रही हैं. उन्होंने कहा, “नाश्ते में हमें चूड़ा, दूध मिलता है, लेकिन आज हमें वो भी नहीं दिया गया.”

ललिता देवी याद करती हैं कि आग लगने के बाद उन्हें और उनके परिवार को सड़क पर सोना पड़ा था क्योंकि प्रशासन को व्यवस्था करने में काफी रात हो गई थी.

भोजन के लिए बैठे ग्रामीण अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.फिलहाल वे अपनी बस्ती में ही कैद होकर रह गए हैं. विशेष बलों सहित 100 से अधिक पुलिसकर्मी गांव के चप्पे-चप्पे पर डेरा डाले हुए हैं. दलित बस्ती में किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति नहीं है और लोग बिना अनुमति के बाहर नहीं जा सकते.

दशकों से अंधेरे में जी रहे इस गांव में एकमात्र बड़ा अंतर यह है कि 26 सितंबर को नवादा के सांसद विवेक ठाकुर के दौरे के बाद कॉलोनी में सोलर लाइट और एलईडी बल्ब लगाए गए हैं.


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मुआवजा

ग्रामीणों का कहना है कि हमला सिर्फ ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए किया गया था और वह बस अपने घर वापस जाना चाहते हैं.

स्थानीय प्रशासन ने 34 प्रभावित परिवारों को मुआवजे के तौर पर 1.05 लाख रुपये का चेक दिया है.

लेकिन ग्रामीण संतुष्ट नहीं हैं. वह चाहते हैं कि उन्हें ज़मीन का मालिकाना हक दिया जाए.

ललिता देवी ने कहा, “हमें ज़मीन का पर्चा चाहिए. नहीं तो ऐसी घटनाएं होती रहेंगी. अगर हमें ज़मीन के कागज मिल गए तो हमें सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलेगा.”

फिलहाल, इस दलित बस्ती के लोग कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि उनके पास ज़मीन के कागज़ात नहीं हैं.

सभी घरों में मिट्टी के चूल्हे इस बात का संकेत हैं कि परिवारों के पास गैस सिलेंडर नहीं है. सरकार की उज्ज्वला योजना, एक ऐसी योजना है जो एलपीजी गैस कनेक्शन प्रदान करती है.

सरकार से मुआवजा मिले करीब पांच दिन हो गए हैं, लेकिन लोग अपने मकान की मरम्मत कराने के बजाय पहले अपने स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे हैं.

लक्ष्मीनिया देवी ने कहा, “अभी पैसा बैंक में है. मैंने अभी तक उस पैसे से कुछ नहीं खरीदा है. मेरी तबीयत खराब हो रही है, इसलिए वो उसी पर खर्च हो रहा है.”

उन्होंने बताया कि उन्होंने इलाज के लिए 5,000 रुपये का कर्ज़ा लिया था, लेकिन आग में वो जल गया.

पुलिस ने कहा कि करीब तीन दशक पुराना ज़मीन विवाद केवल अदालतों में ही सुलझ सकता है.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “मामला अभी भी मुंसिफ कोर्ट में लंबित है. हमारा काम उन्हें बचाना है, ताकि उन्हें फिर कोई परेशानी न हो. मामलों को सुलझाना और फैसला लेना अदालत और सरकार का काम है.”

पुलिस ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि दलित बस्ती की सुरक्षा के लिए उन्हें कितने दिन वहां डेरा डालना पड़ेगा.

सरकार का कहना है कि वह मामले में सख्त कार्रवाई कर रही है.

बिहार के अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग के मंत्री जनक राम ने कहा, “दोषियों को गिरफ्तार किया जा रहा है. पीड़ितों के लिए तत्काल राहत कार्य किया जा रहा है, जो भी इसमें शामिल होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.”

पुलिस ने मुख्य आरोपी नंदू पासवान समेत 22 लोगों को गिरफ्तार किया है, जो दलित बस्ती से करीब दो किलोमीटर दूर प्राण बिगहा गांव का निवासी है.

पुलिस ने गुरुवार को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 191(2) (दंगा), 303 (2) (चोरी), 61 (2) (ए) (आपराधिक साजिश), 351(2)(3) (आपराधिक धमकी) और 1959 की शस्त्र अधिनियम की धारा 27 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एफआईआर दर्ज की है.

पासवान की बहू सरिता भारती का कहना है कि जिस ज़मीन पर लोगों ने कब्ज़ा किया था, वो उनकी है. उन्होंने कहा, “हमारे पास ज़मीन के कागज़ हैं, जिसके लिए हमें किराए की रसीदें भी मिलती हैं.”

नवादा के पुलिस अधीक्षक अभिनव धीमान ने खुफिया जानकारी की विफलता को स्वीकार किया है और घटना की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है.

दशकों पुराना ज़मीन का विवाद

बिहार में जाति आधारित संघर्षों का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन नवादा की घटना अलग है क्योंकि इसमें एक ही समुदाय के दो समूह एक-दूसरे पर हमला किया है.

नवादा में दलित बस्ती में मांझी और रविदास समुदाय के लोग रहते हैं, जो कि राज्य की आबादी का लगभग आठ प्रतिशत हैं.

यह संघर्ष ज़मीन के विवाद से उपजा है. नवादा में महादलित दशकों से इस ज़मीन पर रहते आए हैं, लेकिन अब पासवानों सहित एक अन्य पक्ष इसे अपना बता रहा है.

जिन ग्रामीणों के घर जलाए गए, उनका कहना है कि 15 एकड़ से थोड़ी अधिक ज़मीन सरकार की है और वह 1964 से इस पर रह रहे हैं.

अस्थाई तंबू में खाट पर बैठे 23-वर्षीय व्यास मुनि ने कहा, “यह ज़मीन पहले एक गड्ढा हुआ करती थी. हमारे पूर्वजों ने इसे रहने लायक बनाया था.”

दलित बस्ती में रहने वाले 23-वर्षीय व्यास मुनि ने बताया कि ज़मीन का विवाद तीन दशकों से चल रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
दलित बस्ती में रहने वाले 23-वर्षीय व्यास मुनि ने बताया कि ज़मीन का विवाद तीन दशकों से चल रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “दरअसल, यह ज़मीन बिहार सरकार की है, लेकिन हम दशकों से इस पर रहते आए हैं.”

ग्रामीणों के अनुसार, यह ज़मीन मूल रूप से नवाब की बेटी रज़िया बेगम की थी, जो एक नवाब की बेटी थीं, जिनकी मृत्यु के बाद यह बिहार सरकार की संपत्ति बन गई और इसे अनाबाद बिहार सरकार की ज़मीन कहा जाने लगा.

स्वामित्व विवाद तब शुरू हुआ जब कुछ ग्रामीणों ने 1995 में नवादा मुंसिफ कोर्ट में टाइटल सूट का मामला दायर किया. तब से 29 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है.

कोर्ट ने इस साल 29 मई को जमीन की मापी का आदेश दिया और यह नियमित सुनवाई का हिस्सा था, जिसमें न्यायालय ने विशेष सर्वेक्षक के अधीन भूमि की मापी के लिए आदेश दिया था.

कोर्ट ने कहा, “यह मुकदमा 29 साल पुराना है और 2009 से अंतिम बहस के चरण में लंबित है.”

व्यास मुनि, जिनके परिवार ने मामला दायर किया था, ने कहा कि कुछ लोगों ने 1980 के आसपास ज़मीन के गलत रिकॉर्ड (खतियान) बनाए, ज़मीन का म्यूटेशन करवाया और इसे बेचना शुरू कर दिया.

उनका दावा है कि 15 एकड़ में से 10 एकड़ जमीन जालसाजी करके बेची गई है.

अधिकारियों ने कहा कि लोग अपनी ज़मीन पर दावा कर रहे थे और सरकार द्वारा ज़मीन के सर्वेक्षण और ज़मीन के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण अभ्यास से पहले बिहार भर में अपनी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे थे.

जब से ज़मीन डिजिटलीकरण प्रक्रिया की खबर फैली है, तब से बिहार में लोग अपने रिकॉर्ड वेरीफाई कराने के लिए लैंड डिपार्टमेंट के सामने कतार में लगे हैं.

लोगों को इस बात से समस्या है कि अब तक स्वामित्व ज्यादातर अनौपचारिक है क्योंकि भूखंडों को उचित दस्तावेज़ के बिना परिवारों की अगली पीढ़ियों को सौंप दिया गया है.

कैंप में मौजूद एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “इस ज़मीन को खरीदने वालों को लगा कि अगर सर्वेक्षण से पहले ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया गया और इन दलितों को नहीं हटाया गया तो ज़मीन कभी अधिग्रहित नहीं होगी और इसी जल्दबाज़ी में उन्होंने इतना बड़ा अपराध कर दिया.”

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व महासचिव चिंटू कुमारी ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि बिहार में चल रहे ज़मीन सर्वे की वजह से यह घटना हुई.

उन्होंने कहा, “माफिया एक्टिव हो गए हैं. वे गरीबों को ज़मीन से बेदखल करना चाहते हैं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है.”

ग्रामीणों ने कहा कि यह हमला दलित समुदाय की ज़मीन छीनने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था, क्योंकि ‘माफिया’ ने पहले भी ग्रामीणों पर हमला किया था और उनसे अपने घर खाली करने को कहा था.

मुनि ने कहा कि पिछले साल, कुछ लोगों ने उनकी कॉलोनी पर गोलीबारी की थी और निवासियों ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी.

मुनि ने बताया, “लेकिन उस समय कोई कार्रवाई नहीं की गई. तब से हम डर में जी रहे थे और अब इतनी बड़ी घटना हो गई. शुक्र है कि लोग बच गए.”

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

इस बीच, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी खूब चल रहा है.

अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में चिराग पासवान से लेकर जीतन राम मांझी तक कई राजनीतिक नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया है और गांव का दौरा भी किया है.

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने एक्स पर एक पोस्ट में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि दलितों पर अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

यादव ने लिखा, “महा जंगलराज! महा दानवराज! महा राक्षसराज! नवादा में दलितों के 100 से अधिक घरों में लगायी आग. नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के राज में बिहार में आग ही आग. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेफिक्र, NDA के सहयोगी दल बेख़बर! गरीब जले, मरे-इन्हें क्या? दलितों पर अत्याचार बर्दाश्त नहीं होगा. #Bihar #Crime.”

तेजस्वी यादव ने पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति को घटनास्थल का दौरा करने के लिए भेजा.

वहीं, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी भी घटनास्थल पर पहुंचे और इस घटना को लेकर यादव समुदाय को घेर रहे हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि इस पूरी घटना के पीछे प्रमुख यादव समुदाय का हाथ है, जिन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों को आगे किया है.

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने 26 सितंबर को राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर को पत्र लिखकर बेघर परिवारों को ज़मीन का पट्टा, तीन महीने का दैनिक भत्ता और 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की.

करीब दो दशक से सत्ता में काबिज़ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बार-बार कहा है कि राज्य में 60 फीसदी अपराध ज़मीन विवाद के कारण होते हैं.

2023 के जाति सर्वेक्षण के अनुसार, सामंती बिहार में ज़मीन एक संवेदनशील विषय है, जहां ज्यादातर भूमिहीन अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी है.

मांझी और रविदास समुदाय बिहार के 22 सबसे गरीब दलित समूहों में से महादलित श्रेणी में आते हैं, जिन्हें नीतीश सरकार ने 2007 में यह दर्जा दिया था.

राष्ट्रीय नेताओं ने भी इस मुद्दे को उठाया.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि नवादा में महादलितों की पूरी बस्ती को जला देना और 80 से अधिक परिवारों के घरों को नष्ट कर देना “बिहार में बहुजनों के विरुद्ध अन्याय की डरावनी तस्वीर” को उजागर करता है.

उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “भाजपा और NDA के सहयोगी दलों के नेतृत्व में ऐसे अराजक तत्व शरण पाते हैं – भारत के बहुजनों को डराते हैं, दबाते हैं, ताकि वो अपने सामाजिक और संवैधानिक अधिकार भी न मांग पाएं.”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने घटना को “एनडीए डबल इंजन सरकार के जंगल राज” का एक और सबूत बताया.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने भी घटना की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की.

उन्होंने एक्स पर अपने पोस्ट में सरकार से पीड़ितों के पुनर्वास के लिए पूरी आर्थिक मदद देने की मांग की.

जैसे-जैसे राजनीति हावी होती जा रही है, नवादा गांव के लोग निराश हो रहे हैं.

रामजीत मांझी अपने घर की जली हुई ईंट की दीवार के पास लगभग निराश और हताश खड़े हैं.

रामजीत ने कहा, “तकलीफ तो गरीब को ही होता है. हर कोई रातें रात बेघर हो गया.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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