नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बी आर गवई ने न्यायपालिका को हाल में निशाना बनाए जाने का स्पष्ट जिक्र करते हुए सोमवार को कहा कि ‘‘हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण करने का आरोप’’ लगाया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हाल में हुई हिंसा की जांच कराए जाने का अनुरोध करने वाली एक नयी याचिका पर न्यायालय की पीठ द्वारा विचार किए जाते समय न्यायमूर्ति गवई ने यह टिप्पणी की। इस पीठ में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं।
विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा के मद्देनजर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने का अनुरोध करने वाले दो याचिकाकर्ताओं की ओर से 2021 में जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पीठ से नयी याचिका पर सुनवाई करने का मंगलवार को आग्रह किया।
जैन ने कहा कि 2021 की याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है तथा पश्चिम बंगाल में हिंसा की और घटनाओं को सामने लाने वाली नयी याचिका पर भी सुनवाई की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘कल की सूची में मद संख्या 42 पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने से संबंधित है। यह याचिका मैंने दायर की है। उस याचिका में मैंने पश्चिम बंगाल राज्य में हुई हिंसा की कुछ और घटनाओं को सामने लाने संबंधी अभियोग और निर्देश के लिए एक अंतर्वर्ती (इंटरलोक्यूटरी) आवेदन दायर किया है।’’
अंतर्वर्ती (इंटरलोक्यूटरी) आवेदन एक औपचारिक कानूनी अनुरोध होता है जो अंतरिम आदेश या निर्देश प्राप्त करने के लिए न्यायालय की कार्यवाही के दौरान दायर किया जाता है।
जैन ने कहा कि अर्धसैनिक बल की तैनाती और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 355 का हवाला दिया, जो बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्यों की रक्षा करने के संघ के कर्तव्य से संबंधित है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत इस बारे में रिपोर्ट मांग सकती है कि राज्य में क्या हो रहा है।
जैन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 2021 की याचिका पर पहले नोटिस जारी किया था।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मामले पर सुनवाई होगी तो मैं बताऊंगा कि हिंसा कैसे हुई।’’
शीर्ष अदालत ने जुलाई 2021 में जनहित याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस याचिका में केंद्र को राज्य में सशस्त्र/अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय ने याचिका पर केंद्र, पश्चिम बंगाल और निर्वाचन आयोग को नोटिस भी जारी किया था।
हाल में शीर्ष अदालत में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें नए वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की घटनाओं की अदालत की निगरानी में जांच कराए जाने का अनुरोध किया गया।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर इलाके में वक्फ कानून से जुड़ी हिंसा की हालियां घटनाएं 14 अप्रैल को हुईं जबकि पुलिस ने दावा किया था कि पिछले दंगों के केंद्र मुर्शिदाबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है।
मुर्शिदाबाद जिले के कुछ हिस्सों में 11 और 12 अप्रैल को हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम तीन लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद निशिकांत दुबे ने पिछले सप्ताह न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं।
धनखड़ ने राष्ट्रपति के फैसला करने की समयसीमा तय करने और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में काम को लेकर न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘‘परमाणु मिसाइल’’ नहीं दाग सकता।
इसके कुछ समय बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय को ही कानून बनाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
दुबे ने भारत में ‘‘धर्म के नाम पर हिंसा’’ के लिए भी प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को जिम्मेदार ठहराया था।
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सिम्मी नरेश
नरेश
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