(अरुणव सिन्हा)
लखनऊ, तीन नवंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश विधानसभा की नौ सीट पर हो रहे उपचुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों के बीच चुनावी नारों की जंग छिड़ गई है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनावों की घोषणा से बहुत पहले ही ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा गढ़ दिया था। वहीं, देवरिया जिले के समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने लखनऊ में पार्टी कार्यालय के बाहर एक होर्डिंग लगाई है, जिस पर लिखा है ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’।
महराजगंज जिले के एक अन्य सपा कार्यकर्ता द्वारा लगाए गए होर्डिंग में लिखा है ‘न बंटेंगे, न कटेंगे, पीडीए के संग रहेंगे’ और ‘पीडीए जुड़ेगा और जीतेगा’। प्रदेश में 13 नवंबर को उपचुनाव के तहत नौ सीट पर मतदान होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी इस होड़ में कूद पड़ी है।
मायावती ने शनिवार को कहा, ‘बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे, सुरक्षित रहेंगे।’
महाराजगंज जिले के सपा कार्यकर्ता अमित चौबे ने दो नारे गढ़े। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘समाजवादी पार्टी ने पीडीए शब्द गढ़ा है, जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हैं। यहां ‘पी’ का मतलब ‘पंडित’ (ब्राह्मण) और ‘ए’ का मतलब ‘अगड़ा’ (उच्च जाति) है। सपा सभी धर्मों की पार्टी है। पार्टी के संस्थापक ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव और पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने समाज के सभी वर्गों के लिए काम किया है और उनके लिए नीतियां बनाई हैं। हालांकि, भाजपा जाति के आधार पर लोगों को बांटकर काम करती है।’
देवरिया जिले के सपा कार्यकर्ता विजय प्रताप यादव ने लखनऊ में पार्टी कार्यालय के बाहर एक होर्डिंग लगाई, जिसमें लिखा था ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’।
सपा कार्यकर्ता रंजीत सिंह द्वारा लगाए गए तीसरे पोस्टर पर लिखा है, ‘ना बाटेंगे, ना काटेंगे, 2027 को नफरत करने वाले हटेंगे। हिंदू मुस्लिम एक रहेंगे तो नेक रहेंगे।’
ऐसे राजनीतिक नारों के मनोवैज्ञानिक पहलू पर बात करते हुए लखनऊ के नेशनल पीजी कॉलेज में मनोविज्ञान पढ़ाने वाले प्रदीप खत्री ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘ये सभी राजनीतिक नारे नए, आकर्षक और लोगों के दिमाग पर गहरा असर डालने वाले हैं।”
उन्होंने कहा, ‘यही मुख्य कारण है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता ज्यादातर समय नारे लगाते हैं। ये मतदाताओं और जनता के साथ तत्काल और प्रभावी संबंध बनाते हैं। नतीजतन, ये भाषणों की तुलना में जनता के जहन में ज्यादा समय तक बने रहते हैं।’
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की ‘बटेंगे तो कटेंगे’ टिप्पणी का स्पष्ट संदर्भ देते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि यह नकारात्मक नारा भाजपा की ‘निराशा और विफलता’ का प्रतीक है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि यह नारा देश के इतिहास में ‘सबसे खराब’ नारे के रूप में दर्ज किया जाएगा और यह भाजपा के राजनीतिक पतन का कारण बनेगा।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यादव की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए सपा मुखिया के गढ़े गए ‘पीडीए’ को ‘परिवार’ डेवलपमेंट एजेंसी’ करार दिया।
पीडीए से यादव का मतलब पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक है।
इस बीच, बसपा प्रमुख मायावती ने शनिवार को सपा और भाजपा पर उनके ‘भ्रामक’ नारों के लिए निशाना साधा और कहा कि ये नारे लोगों का ध्यान उनकी अपनी कमियों से हटाने के लिए बनाए गए हैं।
मायावती ने कहा, ‘बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे, सुरक्षित रहेंगे।’
मौर्य ने आदित्यनाथ द्वारा अगस्त में इस्तेमाल किए गए ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे से भाजपा को अलग करने की कोशिश की है जिसके कुछ घंटों के बाद बसपा प्रमुख ने यह टिप्पणी की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी आदित्यनाथ की इस टिप्पणी का पुरजोर समर्थन किया था।
मौर्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा था, ‘हम विपक्ष को ‘बटेंगे तो कटेंगे’ को भाजपा का नारा बताने के गंदे खेल में सफल नहीं होने देंगे। हमारी पार्टी का नारा हमारे शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तय किया गया नारा है, जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ है। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ एक भाषण का हिस्सा था, यह पार्टी का नारा नहीं है।’
आदित्यनाथ ने 23 सितंबर को अपनी ‘बटेंगे तो कटेंगे’ टिप्पणी दोहराते हुए कहा था कि यह हिंदू समाज में व्याप्त फूट ही थी जिसके कारण अयोध्या में ‘आक्रमणकारियों ने राम मंदिर को नष्ट किया’।
इससे पहले, उन्होंने शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हुई हिंसा और हिंदुओं के खिलाफ कथित अत्याचारों के संदर्भ में भी यही टिप्पणी की थी।
भाषा सलीम नोमान
नोमान
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