नई दिल्ली: धुएं के एक बादल ने रविवार दोपहर 2.30 बजे नोएडा सेक्टर 93ए को ढक लिया लेकिन केवल कुछ सेकंड्स के लिए. एक जोरदार धमाके के साथ नोएडा के सुपरटेक ट्विन टॉवर्स- एपेक्स (32 मंजिला) और सिएन (29 मंजिला) मलबे में तब्दील हो गए, जिससे पहले महीनों तैयारी की गई, 3,500 किलोग्राम विस्फोटक इस्तेमाल किए गए और 500 करोड़ रुपए खर्च हुए. इसके साथ ही एमिराल्ड कोर्ट के निवासियों और सुपरटेक लिमिटेड के अधिकारियों के बीच एक दशक से चली आ रही लड़ाई का अंत हो गया.
दिल्ली-एनसीआर और उसके पास से सैकड़ों दर्शक दोनों टॉवर्स का विध्वंस देखने आए थे. कुछ लोग दोनों इमारतों को गिरते हुए देखकर खुश थे, जो भारत में गिराई जाने वाली सबसे ऊंची इमारतें थीं, जबकि दूसरों को निराशा थी कि इससे उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं लेकिन एक बात ऐसी थी जिसपर सब सहमत थे- इससे भ्रष्ट अधिकारियों को एक सबक मिलेगा.
डिवाइन टॉवर्स, जहां से सुपरटेक इमारतें नजर आती थीं, उसकी एक निवासी रंजना श्रीवास्तव धमाके से हिल गईं थीं क्योंकि वो ‘काफी जोरदार’ था और ‘उनके कानों पर असर’ पड़ा था. उन्हें उन दो टॉवर्स के साथ एक लगाव था, क्योंकि वो पास में ही रहती थीं और पार्क में सैर के लिए जाते हुए नियमित रूप से उसे देखती थीं.
उन्होंने कहा, ‘वो काफी आलीशान थे. मुझे उनके विध्वंस के बारे में बुरा लगा क्योंकि मैं उनकी मौजूदगी की आदी हो गई थी लेकिन सभी बिल्डरों को सबक सिखाने के लिए ये कार्रवाई जरूरी थी ताकि ऐसा भविष्य में दोबारा न हो’.
‘भू-माफियाओं के लिए एक मिसाल’
गाजियाबाद के नरेश सिंह जो निर्माण व्यवसाय से जुड़े हैं, जीवन में एक बार दिखने वाले इस क्षण का गवाह बनने के लिए नोएडा 93ए आए, और बिल्डिंग को गिरते देख उन्हें रोमांच का अहसास हुआ. उनका मानना था कि ये घटना ‘भू-माफियाओं’ के लिए एक मिसाल बनेगी.
उन्होंने कहा, ‘कम से कम अब, भू-माफिया को एक सबक मिलेगा क्योंकि वो सरकारी इमारतों पर ये अवैध ढांचे बना लेते हैं जो बिल्कुल भी अच्छा नहीं है. इससे आसपास रहने वाले और छोटे टॉवरों में रहने वाले लोग प्रभावित होते हैं. इस डिमोलिशन से उसपर लगाम लगेगी’.
असगरी सैफी के लिए बिल्डिंग के गिराए जाने में कुछ भी आसामान्य नहीं था और ये कोई बड़ी घटना नहीं थी.
उसने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं एक घंटा पहले देखने आई थी कि सरकार बिल्डिंग को कैसे गिरा रही थी क्योंकि वो गैर-कानूनी रूप से बनाई गई थी. लोग कह रहे थे कि दिल की धड़कनें तेजी से बढ़ जाएंगी; डर बढ़ जाएगा, बहुत सारा धुआं उठेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. तीन सेकंड्स में सब कुछ खत्म हो गया और वो कह रहे थे कि इसमें 15 सेकंड्स लगेंगे. धुआं भी बहुत दूर तक नहीं गया. वो बस बिल्डिंग के करीब बना रहा और 15-20 मिनट्स के अंदर सब कुछ वापस से सामान्य स्थिति में आ गया’.
एडिफिस के एक अधिकारी के अनुसार, सुपरटेक ट्विन टॉवर्स के विध्वंस के बाद, एमिराल्ड कोर्ट से लगे आवासीय टावरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. हालांकि, नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी ने बताया कि पास की एटीएस सोसाइटी में 10 मीटर लंबी एक चारदीवारी मलबा टकराने से क्षतिग्रस्त हो गई.
माहेश्वरी ने कहा, ‘इसके अलावा और कहीं से भी किसी नुकसान की खबर नहीं मिली है’.
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उन्हें क्यों गिराया गया?
शुरू में रियल एस्टेट दिग्गज सुपरटेक को 2005 में न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) की ओर से नौ-नौ मंजिलों के 14 टावर बनाने की मंजूरी दी गई थी जिसके साथ एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और एक गार्डन एरिया भी होना था. 2009 में उसने अपने प्रोजेक्ट में संशोधन किया और उसमें दो गगनचुंबी इमारतों को जोड़ लिया. नोएडा प्राधिकरण की ओर से मंजूरी मिलने के बाद भी, एमिराल्ड कोर्ट ओनर्स-रेजिडेंट्स वेल्फेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) ने इस पर आपत्ति जताई और 2012 में वो इलाहबाद हाईकोर्ट चली गई.
निवासियों का तर्क था कि ये निर्माण अवैध था और उन्होंने इसे हटाए जाने की गुजारिश की. 2014 में इलाहबाद एचसी ने उनके पक्ष में फैसला सुना दिया और डिमॉलिशन के आदेश दे दिए. हालांकि, नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 31 अगस्त 2021 को दिए गए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहरा दिया.
डिमॉलिशन और इसमें लिप्त अधिकारियों पर मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी देते हुए, कोर्ट ने कहा कि टावरों का निर्माण ‘नोएडा के अधिकारियों और कंपनी के बीच मिलीभगत से हुआ था’ जिसमें बिल्डिंग नियमों और अग्नि सुरक्षा मानदंडों का पालन नहीं किया गया. इसके अलावा प्लान में बदलाव- जिसमें गार्डन एरिया को हटा दिया गया- फ्लैट मालिकों की सहमति या जानकारी के बिना किया गया, जो अन्य बातों के अलावा, उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट्स एक्ट, 2010, का उल्लंघन था.
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