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Thursday, 19 December, 2024
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वाराणसी कोर्ट ने 8 ज्ञानवापी मामलों में एक और केस को जोड़ा— कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट को सौंपने की मांग

नवीनतम दायर मुकदमे में, याचिकाकर्ता ने एक पुजारी के रूप में ज्ञानवापी परिसर के तहखाने क्षेत्र में प्रार्थना फिर से शुरू करने की अनुमति मांगी है और इसकी निगरानी डीएम को सौंपने की मांग की है.

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लखनऊ: वाराणसी जिला अदालत अब ज्ञानवापी विवाद से संबंधित नौ मुकदमों की सुनवाई करेगी, जिसमें एक याचिका को ट्रांसफर करने की मांग की गई है कि स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी परिसर में तहखाने की निगरानी सौंपी जाए.

गुरुवार को जिला अदालत ने याचिकाकर्ता शैलेन्द्र कुमार पाठक ‘व्यास’ द्वारा सितंबर में सिविल जज, सीनियर डिवीजन की अदालत में दायर मामले के रिकॉर्ड मांगे और इस मुकदमे को आठ अन्य संबंधित मामलों के साथ जोड़ दिया, जिन पर वह सुनवाई कर रही है.

मई में दिप्रिंट ने बताया कि जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेशा ने निर्देश दिया कि दो स्थानीय अदालतों में लंबित आदि विशेश्वर मंदिर से संबंधित सात मुकदमों को समेकित किया जाए और श्रृंगार गौरी मामले – जो पहले से ही उनके सामने लंबित आठवां मामला है – को उनके लिए प्रमुख मामला बनाया जाए.

25 सितंबर को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में व्यास द्वारा दायर नवीनतम सिविल सूट (844/2023) में अनुमति मांगी गई थी कि उन्हें तहखाना क्षेत्र में प्रार्थनाएं फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए जो 1993 में बंद कर दी गई थी और क्षेत्र की निगरानी जिलाधिकारी को सौंप दिया गया.

याचिकाकर्ता के वकील, सुधीर त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया कि व्यास परिवार ने कहा कि वह 1993 तक तहखाना क्षेत्र में पूजा आयोजित करने में लगे हुए थे, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर उस स्थान पर बैरिकेडिंग करने के बाद इसे रोक दिया गया था.

त्रिपाठी ने कहा, “याचिकाकर्ता ने मांग की कि पूजा फिर से शुरू की जाए. सिविल जज की अदालत में दायर मुकदमे में कहा गया कि तहखाना का दरवाजा तोड़ दिया गया है और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी इस क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है, इसलिए उसे रोका जाए. इसमें मांग की गई कि क्षेत्र को पर्यवेक्षण के लिए डीएम को सौंप दिया जाए.”

जिला जज ने अपने गुरुवार के आदेश में कहा कि न्यायहित में इस मामले को भी उनकी अदालत में ट्रांसफर किया जाना चाहिए.

जज ने अपने आदेश में कहा, “उल्लेखनीय है कि मुख्य प्रकरण जिला न्यायालय में 18/2022 की सुनवाई चल रही है, जिसके तहत वाराणसी के चौक थाना क्षेत्र में प्लॉट नंबर 9130 पर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी, गणेश और अन्य देवताओं की पूजा करने की राहत मांगी गई है. सिविल जज की अदालत में लंबित केस नं. 844/2023 में भी तथाकथित ज्ञानवापी परिसर में स्थित तहखाना के संबंध में प्रार्थना करने का अधिकार मांगा गया है. इसलिए, न्याय के हित में, यह सही होगा कि इस मामले को भी जिला अदालत में ट्रांसफर कर दिया जाए.”

यह कहते हुए कि तहखाना पर अधिकार के संबंध में कोई मामला दायर नहीं किया गया था, अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने राहत मांगी है कि उसे पुजारी के रूप में फिर से प्रार्थना करने का अधिकार दिया जाए और शिव भक्तों को भी यह लाभ दिया जाए. .

इसमें कहा गया है, “याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसे पुजारी के रूप में अलग से पूजा करने का अधिकार है. यह उनका वंशानुगत काम है और यह काशी विश्वनाथ ट्रस्ट का कर्तव्य है कि वह स्थापित नियमों के अनुसार वंशानुगत पुजारी के रूप में उनके काम में उनका समर्थन करे. इस मामले की सुनवाई जिला अदालत में की जा सकती है.”

आगे कहा गया है, “इसकी प्रकृति-दायरे और मुख्य मामले में उठाए गए बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, वाराणसी जिला अदालत में सुनवाई करना महत्वपूर्ण है. इसलिए, संबंधित मामलों में पारित आदेशों में नियमितता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मामले को सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत से जिला अदालत में ट्रांसफर किया जाए.”


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मस्जिद कमेटी की आपत्ति खारिज

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने ट्रांसफर आवेदन (व्यास द्वारा दायर) के खिलाफ आपत्ति दर्ज की थी और आरोप लगाया था कि “मुकदमा गलत तथ्यों के आधार पर दायर किया गया है”, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया.

अदालत ने कहा कि मस्जिद समिति ने “सिविल जज की अदालत में दायर मामले पर कोई आपत्ति या प्रतिक्रिया पेश नहीं की”.

यह देखते हुए कि दोनों मामले (संख्या 18/2022 और 844/2023) “अलग-अलग राहत की मांग कर रहे थे,” अदालत ने कहा कि “विरोधाभासी आदेश जारी करने का कोई सवाल ही नहीं है.”

इस बीच, काशी विश्वनाथ बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ ने भी ट्रांसफर आवेदन (व्यास द्वारा दायर) के खिलाफ आपत्ति दर्ज की, लेकिन अदालत ने इसे “निराधार” पाया.

बोर्ड ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि “जिस मुख्य मामले के संबंध में ट्रांसफर के लिए आवेदन दिया गया है, उसका केस नंबर और वर्ष का उल्लेख नहीं किया गया है” और इसलिए यह “अधूरा और गलत” है.

हालांकि, जिला अदालत ने कहा कि आपत्ति “निराधार” थी क्योंकि इसका उल्लेख “आवेदन के पृष्ठ संख्या 2 के बिंदु संख्या 6 में किया गया था”.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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