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Tuesday, 17 December, 2024
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UCC लाने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड, अनुसूचित जनजाति को इससे रखा गया बाहर

संहिता में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है. पुरुष व महिलाओं के तलाक से संबंधित विषयों में तलाक लेने के समान कारण व अधिकार रखे गए हैं.

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देहरादून: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) 2024 बिल मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में पेश किया. सदन में इस बिल के पारित होने और सभी विधिक प्रक्रिया एवं औपचारिकताएं पूरी करने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा.

ड्राफ्ट में यूसीसी के सभी प्रावधानों को विस्तार से बताया गया है. यूसीसी में सभी धर्म और संप्रदायों में महिला-पुरुषों को समान अधिकारों की सिफारिश की गई है. किसी भी धर्म की संस्कृति, मान्यता और रीति-रिवाज़ इस कानून से प्रभावित नहीं होंगे. बाल और महिला अधिकारों की यह कानून सुरक्षा करेगा. सभी अनुसूचित जनजातियां को यूसीसी की परिधि से बाहर रखा गया है.

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के विधेयक पेश करते ही पूरा सदन भारत माता के जयकारों से गूंज उठा. विशेषज्ञ समिति ने चमोली जिले में भारत-चीन सीमा पर स्थित देश के पहले गांव माणा से ड्राफ्ट की शुरुआत की थी. 43 जन संवाद कार्यक्रमों, 72 बैठकों और प्रवासी उत्तराखंडियों से विचार मंथन के बाद ड्रॉफ्ट को अंतिम रूप दिया गया है.

ड्राफ्ट में खास तौर पर विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को शामिल किया गया है. किसी भी धर्म, जाति, मज़हब या पंथ की परंपराओं और रीति-रिवाज़ों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

अनुसूचित जनजातियां को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया है. संहिता में पार्टीज़ टू मैरिज को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है. विवाह एक पुरुष व एक महिला के मध्य ही हो सकेंगे. बच्चों के अधिकारों और उनके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है, चाहे वह जायज़ हों या नाजायज़.

संहिता में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है. पुरुष व महिलाओं के तलाक से संबंधित विषयों में तलाक लेने के समान कारण व अधिकार रखे गए हैं. महिला के दोबारा विवाह करने के लिए (चाहे वह तलाक लिए हुए उसी पुराने व्यक्ति से विवाह करना हो या किसी दूसरे व्यक्ति से) किसी भी प्रकार की शर्तों को प्रतिबंधित किया गया है. हलाला जैसे प्रकरण सामने आने पर तीन साल की सज़ा और एक लाख रुपये के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है. वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुज़ारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा. एक पति या पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना प्रतिबंधित होगा.

विवाह और तलाक का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा, ऐसा नहीं होने पर संबंधित दंपत्ति को समस्त सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित होना पड़ेगा. पति पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास ही रहेगी.

संहिता में सभी वर्गों के लिए पुत्र और पुत्री को संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है. जायज़ और नाजायज़ बच्चों में कोई भेद नहीं किया गया है. नाजायज बच्चों, गोद लिए हुए बच्चों, सरोगेसी के द्वारा जन्म लिए गए बच्चों और असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी के द्वारा जन्मे बच्चों में को भी दंपति की जैविक संतान ही माना गया है.

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी और बच्चों को समान अधिकार दिया गया है. उसके माता-पिता को भी उसकी संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है. जबकि पुराने कानूनों में सिर्फ माता को ही मृतक की संपत्ति में अधिकार प्राप्त था. किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में भी अधिकार को संरक्षित किया गया है. संहिता के प्राविधानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत के द्वारा अपनी संपत्ति दे सकता है.


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