नई दिल्ली: उपहार सिनेमा अग्निकांड में अपने दोनों युवा बच्चों को खो चुकीं नीलम कृष्णमूर्ति सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंल बंधुओं को राहत दिए जाने के बाद सदमे में हैं. वह कहती हैं मेरा आज न्याय व्यवस्था से विश्वास उठ गया है. मेरा विश्वास पूरी तरह से खत्म हो चुका है..इससे ज्यादा अन्याय हमारे साथ क्या हो सकता है. हमने अपने बच्चों को इंसाफ दिलाने के लिए पूरी जिंदगी लगा दी लेकिन हमें आखिर में क्या मिला..
वह आगे कहती हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शाहीन बाग प्रदर्शन के दौरान ठंड के कारण बच्चे की हुई मौत से परेशान हो जाते हैं लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि उपहार अग्निकांड में भी 30 दिन का एक बच्चा मारा गया था, उसका इंसाफ कौन करेगा.’
‘हमने अपने बच्चों और इन 59 लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए पूरी जिंदगी लगा दी लेकिन हमें क्या मिला.’ वह कहती है इस अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हुई थी जिनमें 23 बच्चे थे. जिसमें सबसे छोटा बच्चा महज 30 दिन यानी एक महीने का था, 100 से अधिक बच्चे घायल हुए थे लेकिन शाहीन बाग के बच्चे पर दिल पसीजने वाले जज साहब का दिल हमारे बच्चों के लिए नहीं पसीज रहा है.’
उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उद्योगपति और रीयल एस्टेट से जुड़े अंसल बंधू सुशील और गोपाल अंसल को उनकी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने उपहार ट्रेजेडी विक्टिम एसोसिएशन की असंल बंधुओं की सजा बढ़ाए जाने और जेल भेजे जाने की मांग की थी जिसे अदालत ने ठुकरा दिया है. बता दें कि 2015 के अपने जजमेंट में शीर्ष अदालत ने सिनेमा हॉल के मालिक दोनों भाईयों पर 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था और कहा था कि उन्हें वापस जेल जाने की जरूरत नहीं है.
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उपहार ट्रेजेडी विक्टिम एसोसिएशन चला रही नीलम कृष्णमूर्ति कहती हैं, ‘आज इंसाफ हार गया है.’
वह कहती हैं मेरे बच्चों को फ़िल्म देखना बहुत पसंद था. 13 जून 1997 के उस काले दिन अपने दोनों बच्चों को खो दिया था. कृष्णमूर्ति के दोनों बच्चे 17 साल की उन्नति और 13 साल का उज्जवल ये फिल्म देखने ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा गए थे. लेकिन, उस दिन फ़िल्म देखना उनके लिए एक भयानक हादसे में बदल गया और नीलम और उनके पति शेखर को न्याय पाने की एक दशकों लंबी लड़ाई का हिस्सा बन गया.
नीलम कहती हैं युवा बच्चों को फिल्म देखने का शौक होता है मेरे बच्चों को भी था और सिर्फ मेरे बच्चों को नहीं उस दिन फिल्म देखने पहुंचे सभी लोगों को था..वह मनोरंजन के लिए गए थे लेकिन हमें क्या मिला? 13 जून की सुबह नीलम ने ही अपने दोनों बच्चों के लिए सिनेमा के टिकट खरीदे थे.
नीलम दिप्रिंट से बातचीत में कहती हैं, ‘मेरा आज अपने देश की न्याय प्रक्रिया से पूरी तरह से विश्वास उठ गया है. कहां है न्याय?
‘न्याय प्रक्रिया आउटरेज पर निर्भर हो गई है. निर्भया मामले में हमारी न्याय प्रक्रिया एक्टिव है क्योंकि उनपर देशवासियों का दवाब है.’ तेलंगाना मामले में न्यायाधीश अपना विचार रखते हैं लेकिन उपहार कांड में 59 लोगों की जान की कीमत उनकी नजर में कुछ नहीं है.
वह आगे कहती हैं, ‘आज मुझे लग रहा है कि मैंने बहुत बड़ी गलती की थी..मुझे बंदूक उठाकर उनलोगों को वहीं मार देना चाहिए था.’ ये बात मैंने पांच साल पहले कही थी लेकिन मुझे आज यह लग रहा है कि सचमुच मुझे अपने बच्चों को इंसाफ दिलाने के लिए उन्हें मार देना चाहिए था.
नीलम कहती हैं कि 59 लोगों की मौत नहीं हुई थी बल्कि हत्या हुई थी. अंसल बंधु प्रभावशाली रीयल एस्टेट के व्यवसायी थे. वह आगे कहती हैं ‘justice is luxury and it accessible only for the rich and powerful.‘ (न्याय मिलना एक लक्ज़री है और यह सिर्फ अमीरों और शक्तिशालियों को ही मिलता है.)
क्या हुआ था
दक्षिणी दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 को ‘बॉर्डर’ फिल्म चल रही थी. हॉल खचाखच भड़ा हुआ था. बताया जाता है कि इस दिन सुबह ही सिनेमा हॉल के ग्राउंड फ्लोर पर दो ट्रांसफॉर्मर लगाए गए थे. ट्रांसफॉर्मर का इंस्टालेशन ठीक से नहीं हो सका था और कुछ ही देर बाद ट्रांसफॉर्मर में धमाका हुआ. सुरक्षा गार्ड ने धमाके की आवाज सुनी और उससे धुआं निकलता देखा तो सिनेमा हॉल प्रशासन को भी बताया लेकिन सिनेमा को रोका नहीं गया और लापरवाही बरतते हुए इसकी जानकारी फायरब्रिगेड को दी गई..कुछ देर बाद इसे ठीक कर दिया गया और सिनेमा शुरू कर दिया गया.
लेकिन जब दोपहर का शो चल रहा था तब एकबार फिर ट्रांसफॉर्मर में आग लग गई..और यह आग फैल गई. पार्किंग में लगी गाड़ियों में आग लगी और आग फैलते हुए सिनेमा हॉल के अंदर तक पहुंच गई. धुआं एयरकंडीशन के जरिए हॉल के अंदर पहुंचा और धुआं देख लोग हड़बड़ाहट में भागने के लिए दौड़े..इस भगदड़ में और दम घुटने की वजह से सबसे ज्यादा मौतें ‘बालकनी’ में बैठे लोगों की हुई थी.