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Wednesday, 15 October, 2025
होमदेशउत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बने पराली जलाने के नए हॉटस्पॉट, पंजाब और हरियाणा पीछे छूटे

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बने पराली जलाने के नए हॉटस्पॉट, पंजाब और हरियाणा पीछे छूटे

सैटेलाइट डेटा से पता चला कि 1 से 14 अक्टूबर के बीच यूपी में 158 और मध्य प्रदेश में पराली जलाने की 70 घटनाएं दर्ज हुईं जबकि पंजाब और हरियाणा में यह संख्या क्रमशः 39 और 9 थी.

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नई दिल्ली: इस साल उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पराली जलाने के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर के पहले पखवाड़े में इन दोनों राज्यों में सबसे अधिक पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुईं, जबकि पंजाब और हरियाणा जैसी परंपरागत समस्या वाले राज्य पीछे रह गए.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा संचालित कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) के सैटेलाइट डेटा के अनुसार, 1 से 14 अक्टूबर के बीच उत्तर प्रदेश में 158 और मध्य प्रदेश में 70 घटनाएं सामने आईं, जबकि वर्षों से पराली जलाने के लिए चर्चित पंजाब और हरियाणा में यह संख्या क्रमशः 39 और 9 थी. राजस्थान में 26 घटनाएं रिपोर्ट हुईं.

उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर धान की पराली जलाना—जो पहले मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा तक सीमित था—रोज़ाना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण स्तर बढ़ने का एक अहम कारण बन चुका था.

घने काले धुएं के गुब्बारे दिल्ली तक पहुंचते हैं, जिससे पहले से ही उच्च प्रदूषण स्तर और बढ़ जाते हैं. सर्दियों की शुरुआत में तापमान कम होने और हवा धीमी होने के कारण प्रदूषक सतह के करीब रुक जाते हैं और आने वाले महीनों में स्थिति और खराब होने की संभावना बढ़ जाती है.

हालांकि, पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले वर्षों की तुलना में कम रही हैं.

इस साल भारी बारिश और बाढ़ ने पंजाब में धान की अधिकांश फसलों को नुकसान पहुंचाया है.

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल ने कहा, “कई हॉटस्पॉट जिलों में इस मौसम की बाढ़ के कारण फसलों का बड़ा हिस्सा खराब हो गया है. इसका पराली जलाने की संख्या पर असर पड़ेगा, लेकिन हमें इंतज़ार करना होगा.”

पंजाब और हरियाणा सरकारों ने पहले भी यह कहा है कि प्रदूषण निगरानी एजेंसियां लगातार किसानों को पराली जलाने के बजाय मशीनी तरीके से धान की पराली हटाने के लिए प्रेरित कर रही हैं. इसके कारण खेतों में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं.

दिल्ली स्थित थिंकटैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) के प्रोग्राम लीड एलएस कुरिन्जी ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारें दोनों किसानों को हैप्पी सीडर जैसी क्रॉप रेजिड्यू मैनेजमेंट मशीनें इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं और अभियान चला रही हैं. हमने देखा है कि इन कोशिशों से किसानों की सोच में बदलाव आया है.”

यूपी और एमपी में पराली जलाना बढ़ने की वजहें

CREAMS लैब के सैटेलाइट डेटा के अनुसार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि अचानक नहीं हुई है.

2024 में उत्तर प्रदेश में 3,308 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जो 2023 में 2,649 थी. मध्य प्रदेश की स्थिति और गंभीर रही. 2024 में मध्य प्रदेश में 16,360 घटनाएं दर्ज़ हुईं, जो 2023 के 12,500 से काफी अधिक हैं. सैटेलाइट डेटा के अनुसार, पिछले साल जो 10 जिले सबसे ज्यादा पराली जला रहे थे, उनमें से छह जिले मध्य प्रदेश के थे.

केंद्र के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि इन दोनों राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि का एक कारण क्षेत्र में धान की खेती के बढ़ते हिस्से से जुड़ा हो सकता है.

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा धान की खेती वाला राज्य बन गया, जिसमें 74.25 लाख एकड़ में धान की फसल उगाई गई. इसके बाद पश्चिम बंगाल (55.59 लाख हेक्टेयर), तेलंगाना (48.09 लाख हेक्टेयर) और मध्य प्रदेश (39.93 लाख हेक्टेयर) हैं.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश अब धान-गेहूं फसल चक्र में फंसे हुए हैं, जितनी अधिक धान की खेती होगी, उतना ही अधिक खतरा है कि किसान पराली जलाने का सहारा लेंगे.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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