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Sunday, 6 October, 2024
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संयुक्त राष्ट्र ‘पुरानी कंपनी’ जैसी, पूरी तरह से बाजार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा: जयशंकर

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(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, छह अक्टूबर (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को संयुक्त राष्ट्र के प्रति आलोचनात्मक रुख अख्तियार करते हुए कहा कि यह वैसी ‘‘पुरानी कंपनी’ की तरह है, जो बाजार के साथ पूरी तरह से तालमेल तो नहीं बिठा पा रहा, लेकिन जगह घेरे हुए है।

विदेशमंत्री ने यहां आयोजित कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में संवाद करते हुए कहा कि दुनिया में दो बहुत गंभीर संघर्ष चल रहे हैं, ‘‘ऐसे में संयुक्त राष्ट्र कहां है, अनिवार्य रूप से मूकदर्शक बना हुआ है।’’

जयशंकर ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के संभावित नतीजों पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका ने वास्तव में भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में ‘बदलाव’ किया है और नवंबर में नतीजे चाहे जो भी हों, आने वाले दिनों में यह रुझान ‘तेज’ होगा।

जयशंकर ने ‘भारत और विश्व’ विषय पर आयोजित संवादात्मक सत्र में हिस्सा लिया और बदलती वैश्विक परिस्थितियों के बीच भारत की भूमिका और चुनौतियों पर चर्चा की।

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इसलिए, हम विकासशील होने के साथ-साथ विपरीत परिस्थितियों की दृष्टि से जरूरी रोड़ा भी हैं।’’ उन्होंने इस दौरान श्रीलंका जैसे अपने पड़ोसियों सहित अन्य देशों की मदद के लिए भारत द्वारा उठाए गए कुछ कदमों का उल्लेख भी किया।

जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आगामी पाकिस्तान यात्रा के बारे में पूछे जाने पर एक बार फिर अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ किसी भी द्विपक्षीय वार्ता की संभावना को खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं वहां एक निश्चित काम, एक निश्चित जिम्मेदारी के लिए जा रहा हूं। मैं अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेता हूं। इसलिए, मैं एससीओ बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए वहां जा रहा हूं और यही मैं करने जा रहा हूं।’’

विदेश मंत्री ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि वह इस्लामाबाद एक ‘‘बहुपक्षीय कार्यक्रम’’ के लिए जा रहे हैं, न कि भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा के लिए।

जयशंकर ने बदलते वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में विश्व निकाय के बारे में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 में स्थापित इस विश्व निकाय में शुरुआत में 50 देश थे, जो इन वर्षों में बढ़कर लगभग चार गुना हो गए हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र एक तरह से वैसी पुरानी कंपनी की तरह है, जो पूरी तरह से बाजार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है, लेकिन जगह (जरूर) घेर रही है। जब यह समय से पीछे होती है, तो इस दुनिया में आपके पास स्टार्ट-अप और नवाचार होते हैं, इसलिए अलग-अलग लोग अपनी तरह से चीजें करना शुरू कर देते हैं।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘आज आपके पास एक संयुक्त राष्ट्र है, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली अपर्याप्त है, इसके बावजूद यह अब भी एकमात्र सर्वमान्य बहुपक्षीय मंच है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, जब यह प्रमुख मुद्दों पर कदम नहीं उठाता है, तो देश अपने तरीके से रास्ते तलाश कर लेते हैं। उदाहरण के लिए पिछले पांच-10 वर्षों पर विचार करें, शायद हमारे जीवन में सबसे बड़ी बात कोविड थी। अब, कोविड पर संयुक्त राष्ट्र ने क्या किया? मुझे लगता है कि इसका उत्तर है- बहुत ज्यादा नहीं।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘आज विश्व में दो संघर्ष चल रहे हैं, दो बहुत गंभीर संघर्ष, उन पर संयुक्त राष्ट्र कहां है, वह केवल मूकदर्शक बना हुआ है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जो हो रहा है, जैसा कि कोविड के दौरान भी हुआ, देशों ने अपने-अपने तरीके से काम किया, जैसे कि कोवैक्स जैसी पहल, जो देशों के एक समूह द्वारा की गई थी।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘जब बात बड़े मुद्दों की आती है, तो आपके पास कुछ करने के लिए सहमत होने के लिए एक साथ आने वाले देशों का एक बढ़ता हुआ समूह होता है।’’

विदेश मंत्री ने इस संदर्भ में भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी), वैश्विक साझा हितों की देखभाल के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) और आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) जैसी पहलों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि ये सभी निकाय संयुक्त राष्ट्र के ढांचे से बाहर हैं।

जयशंकर ने कहा, ‘‘आज, संयुक्त राष्ट्र बना हुआ है, लेकिन तेजी से गैर-संयुक्त राष्ट्र क्षेत्र का विस्तार हो रहा है और मुझे लगता है कि इसका असर संयुक्त राष्ट्र पर पड़ रहा है।’’

भारत बदलते समय के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग करता रहा है।

इस साल की शुरुआत में जयशंकर ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों का ‘‘अदूरदर्शी’’ दृष्टिकोण वैश्विक निकाय के लंबे समय से लंबित सुधार की दिशा में आगे बढ़ने में बाधक बना हुआ है।

सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका के पास किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव को वीटो का अधिकार है।

जयशंकर से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के संभावित परिणाम और नए प्रशासन के साथ भारत के संबंधों के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘आपने अमेरिकी चुनावों में दो में से एक संभावना की बात की। मैं आपसे कहना चाहता हूं कि पिछले पांच सालों पर नजर डालें, 2020 में कई नीतियां थी जो लोगों को लगता था कि ट्रंप प्रशासन की नीतियां हैं, लेकिन बाइडन ने न केवल उन नीतियों को आगे बढ़ाया, बल्कि उनपर दोगुना जोर दिया।’’

विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए, यह कोई एक नेता की बात नहीं, केवल एक परिपाटी नहीं है, केवल एक प्रशासन है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि बहुत गहरे बदलाव हो रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह वह अमेरिका है, जिसने वास्तव में भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में बदलाव किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि कई वर्ष पहले उसने जो व्यवस्था तैयार की थी, वह अब उसके लिए उस हद तक फायदेमंद नहीं है।’’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इसलिए, मैं कहूंगा कि नवंबर में परिणाम चाहे जो भी हों, आने वाले दिनों में इनमें से कई प्रवृत्तियां और रफ्तार पकड़ेंगी। मैं कहूंगा कि दुनिया अधिक खंडित हो गई है, लेकिन साथ ही मैं कहूंगा कि कुछ मायनों में विश्वसनीयता और पारदर्शिता दो बहुत महत्वपूर्ण कारक होंगे जो देशों के लिए उद्यम और एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने के लिए एक मापदंड बन जाएंगे।’’

एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए प्रयुक्त ‘ग्लोबल साउथ’ के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि इसका अपना एक ‘‘बड़ा महत्व’’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह एक प्रयास है। हम नेता बनने की उम्मीद नहीं करते। हमें एक विश्वसनीय सदस्य, एक मुखर सदस्य के रूप में देखा जाता है… इसलिए, मैं इस विचार से वास्तव में सहज नहीं हूं कि आप ‘ग्लोबल साउथ’ से दूर चले जाएं। इसके विपरीत, मैं इसका महत्व देखता हूं।’’

भाषा धीरज सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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