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Saturday, 23 November, 2024
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कश्मीरी, डोगरी और हिंदी J&K की आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल होंगी, सिख समिति ने बताया ‘अल्पसंख्यक विरोधी’

एक बयान जारी कर एपीएससीसी अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 से पंजाबी को अलग करना ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ कदम है.’

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नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के लिए राजभाषा विधेयक लाने को मंजूरी दे दी जिसके तहत उर्दू और अंग्रेजी के अलावा अब कश्मीरी, डोगरी और हिंदी को भी इस केंद्र शासित प्रदेश की आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल किया जाएगा.

इस फैसले की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जम्मू और कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक 2020 को संसद के आगामी मानसून संत्र में पेश किया जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राजभाषा विधेयक 2020 लाने के फैसले को मंजूरी दी गई. जावड़ेकर ने विधेयक की विस्तृत जानकारी देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस बारे में संसद में विस्तार से चर्चा होगी.

केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि सरकार ने डोगरी, हिन्दी और कश्मीरी को जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं की सूची में डालकर क्षेत्र की जनता की एक बहुत पुरानी और लंबित मांग को पूरा किया है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा करके सरकार ने न सिर्फ क्षेत्र की जनता की ओर से लंबे समय से की जा रही एक मांग पूरी की है बल्कि यह गत पांच अगस्त के निर्णय के अनुरूप समानता की भावना को भी प्रतिबिंबित करता है.’


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सिख समिति ने बताया ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ कदम’ 

ऑल पार्टी सिख कोऑर्डिनेशन कमिटी (एपीएसएससी) ने जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक से पंजाबी को निकालने पर केंद्र की तीखी आलोचना की और इसे ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ कदम करार दिया.

एक बयान जारी कर एपीएससीसी अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 से पंजाबी को अलग करना ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ कदम है.’

रैना ने कहा कि अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को समाप्त करने से पहले पंजाबी भाषा जम्मू-कश्मीर के संविधान का हिस्सा थी. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में पंजाबी भाषा को मान्यता दी गई थी और प्रमाणित की गई थी.

सिख नेता ने कहा कि इस कदम से अल्पसंख्यकों, खासतौर पर सिख समुदाय की भावनाओं को धक्का लगा है.

उन्होंने कहा कि पूरे जम्मू-कश्मीर में लाखों लोग पंजाबी भाषा बोलते हैं.

रैना ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘पंजाबी भाषा को अलग कर सरकार ने अतिवादी कदम उठाया है जिससे अल्पसंख्यकों के बीच नाराजगी पैदा होगी. इस अल्पसंख्यक विरोधी कदम से स्वभाविक है कि लोग तीखी प्रतिक्रिया देंगे.’

उन्होंने विधेयक में संशोधन कर पंजाबी भाषा को शामिल करने की मांग की.


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