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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशअपराध'मैंने जासूस की तरह महसूस किया'- एक अंडरकवर पुलिसकर्मी का मेडिकल कॉलेज में 'रैगिंग गिरोह' का भंडाफोड़

‘मैंने जासूस की तरह महसूस किया’- एक अंडरकवर पुलिसकर्मी का मेडिकल कॉलेज में ‘रैगिंग गिरोह’ का भंडाफोड़

एमपी पुलिस में 25 साल की कांस्टेबल शालिनी चौहान अपराधियों और पीड़ितों की पहचान के लिए करीब 2 महीने तक महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में एक छात्र की तरह रहीं. इस मामले में 11 गिरफ्तारियां हुईं हैं.

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नई दिल्ली: वह फ्रेंडली सी दिखने वाली युवती करीब दो महीने तक कॉलेज कैंटीन में हर रोज आती थी. एक सफेद कोट पहने इस युवती, जो अन्य सभी मेडिकल छात्रों की ही तरह जल्दबाजी में चाय का प्याला गटकने के लिए वहां आती थी, के पास लोगों के विभिन्न समूहों के साथ बातचीत शुरू करने के लिए एक वास्तविक कौशल था.

लेकिन 25 वर्षीय शालिनी चौहान कोई आम मेडिकल छात्रा नहीं थी, बल्कि वह मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएमएमसी) में रैगिंग के एक मामले को सुलझाने के लिए अंडरकवर काम कर रही एक पुलिस कांस्टेबल थी. उन्होंने लोगों को उनकी खोल से बाहर निकालने और उनसे बातें करने के लिए कैंटीन में जो घंटे बिताए, उसी के बदौलत अंततः 11 छात्रों को गिरफ्तार किया गया और उनके कथित पीड़ित भी सामने आए.

चौहान ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कैंटीन को इसलिए चुना क्योंकि वहां आने वाले छात्रों को वास्तव में इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि वहां कौन खा रहा है या बातें कर रहा है, और इसलिए भी क्योंकि वहां आईडी कार्ड भी चेक नहीं किया जाता था.’ हालांकि, यह सब एकदम सहज भी नहीं था. उनके अनुसार ऐसे क्षण भी आये थे जब उन्हें चिंता होने लगी कि उनका राज खुल ही जाएगा.

चौहान ने कहा, ‘शुरुआत में, कुछ छात्र सस्पीशीयस लगते थे, जिससे मुझे डर लगता था. अगर उन्हें पता चल जाता कि मैं कौन हूं, तो पूरा मामला खतरे में पड़ जाता. इसलिए, मैं छात्रों के अलग-अलग समूहों को उस वर्ष के बारे में जिसमें मैं थी और मैं कहां से थी आदि के बारे में अलग-अलग बातें बताती थी. ‘

यह महिला पुलिसकर्मी एक खतरों से भरे रास्ते पर चल रही थी – अधिक परंपरागत जांच से कोई नतीजा न निकलने के बाद उसे पीड़ितों और अपराधियों की पहचान सहित गंभीर रैगिंग की शिकायत के पीछे छिपे तथ्यों का पता लगाना था.


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कैसे शुरू हुआ यह अंडरकवर अभियान?

इस साल जुलाई में, नई दिल्ली स्थित एक एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर इंदौर से एक कॉल आई थी. शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि एमजीएमएमसी में सीनियर स्टूडेंट्स का एक समूह उन्हें अपने कमरे में बुलाकर उनके साथ दुर्व्यवहार करता था और उन्हें थप्पड़ मारता था. उन्हें धमकाने वाले ये सीनियर स्टूडेंट कथित तौर पर उन्हें अपनी ही महिला सहपाठियों को परेशान करने और तकिए के साथ विभिन्न यौन क्रिया करने के लिए भी मजबूर किया करते थे.

हालांकि, बदले की कार्रवाई के डर से, इन शिकायतकर्ताओं ने अपने या अपने कथित उत्पीड़कों के बारे में और कोई जानकारी नहीं दी थी.

फिर भी, इंदौर के संयोगिता गंज थाने में एक मामला दर्ज किया गया और पुलिस ने मेडिकल कॉलेज परिसर का दौरा भी किया.

इस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) तहजीब काजी ने कहा, ‘शुरुआत में, हमने खुद छात्रों से संपर्क किया, लेकिन कोई आगे नहीं आना चाहता था.’

कुछ महीनों तक इस मामले में कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन फिर संयोगिता गंज पुलिस टीम ने एक नई योजना बनाई – गुप्त रूप से जाने की. लगभग इसी समय, सितंबर में, चौहान को इस मामले की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

काज़ी ने बताया, ‘एक टीम बनाई गई थी. शालिनी एक आम छात्र के रूप में आसानी से छात्रों से घुलमिल सकती थी, जबकि कुछ पुरुष पुलिसकर्मियों को कैंपस और उसके आसपास के कैफे में समय बिताने का काम सौंपा गया था.’

कुछ पुलिसकर्मियों ने कैंटीन कर्मचारी का रूप धारण किया, जबकि अन्य ने पास के कैफे में ग्राहकों की भूमिका निभाई.

इस सब में चौहान की भूमिका सबसे अहम थी, क्योंकि उन्हें न केवल कथित रैगिंग वाले गिरोह में घुसपैठ करनी थी, बल्कि कथित पीड़ितों को बोलने के लिए प्रेरित भी करना था.

यह पूछे जाने पर कि क्या कॉलेज के अधिकारियों को इस अंडरकवर ऑपरेशन के बारे में पहले से पता था, काज़ी ने कहा: ‘उन्हें बिल्कुल नहीं पता था कि कौन किस भूमिका में है. वे सिर्फ यही जानते थे कि कुछ पुलिस कर्मी सिविल यूनिफॉर्म में नजर रख रहे थे और छात्रों से पूछताछ कर रहे थे.’

दिप्रिंट ने इस कॉलेज की आधिकारिक वेबसाइट पर दिए गए लैंडलाइन नंबर के माध्यम से कॉलेज से संपर्क किया, लेकिन उनकी कोई जवाब नहीं मिला. कॉलेज के डीन की आधिकारिक आईडी पर भी एक ईमेल भेजा गया है. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जायेगा.

‘मुझे बहुत सावधान रहना पड़ा’

शालिनी चौहान, जो 2014-2015 में पुलिस बल में शामिल हुईं थीं, को संभावित पीड़ितों के साथ-साथ अपराधियों से जुड़ने के बारे में बताया गया. वह इस काम की संवेदनशीलता से भली-भांति परिचित थी.

वे कहती हैं, ‘मुझे बहुत सावधान रहना पड़ा. बहुत सारे सवाल पूछने से वे सतर्क हो जाते. इसके अलावा, अगर संदिग्धों को मेरे बारे में पता चला, तो ऐसा भी हो सकता था कि वे पीड़ितों को और अधिक धमकाते और परेशान करते.’

आम छात्रों के साथ तालमेल बनाने के लिए चौहान ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि वह शुरू में ज्यादा कठोरता के साथ पेश न आए.

उन्होंने बताया, ‘पहले कुछ दिनों के लिए, मैं छात्रों के साथ सामान्य रूप से खाना, कक्षाओं, चिकित्सा विज्ञान आदि के बारे में बात किया करती थी. फिर धीरे-धीरे मैंने उनसे पूछना शुरू किया कि सीनियर्स कैसे हैं और अंदर क्या सब होता है.’

हालांकि, राज खुलने के कुछ अवसर मिले. चौहान ने कहा, ‘कैंटीन में ज्यादातर समय भीड़ रहती है, इसलिए अगर लोगों को मेरे सवाल पूछने पर शक होता, तो मैं वहां से हटकर गायब हो जाती थी.’

अगले दो महीनों तक किये गए टीम के निरंतर प्रयासों ने अंततः रंग दिखाया और 11 छात्रों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं – धारा 294 (किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कृत्य), 341 (गलत रूप से बंदी बनने की सजा), 506 (आपराधिक धमकी), और 323 (चोट पहुंचाना) – के तहत गिरफ्तार किया गया.

काजी ने कहा कि आठ कथित पीड़ितों ने भी सामने आकर अपने बयान दिए हैं.

चौहान कहती हैं, ‘यह मेरे लिए सीखने का एक शानदार अनुभव था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं खुद को किसी और के रूप में पेश कर सकती हूं और इस तरह के संवेदनशील मामले को सुलझाने में मदद कर सकती हूं. मुझे किसी जासूस से कम नहीं लगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना)
(संपादन: अलमिना खातून)


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