लखनऊ: अब तक हम में से बहुत लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि यूपी के गृह विभाग का पूरा नाम ‘गृह और गोपनीयता विभाग’ है. जाहिर सी बात है यह ‘गोपनीयता’ विभाग अपने नाम के अनुरूप दशकों तक अपना काम बखूबी करता आया है. इसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. यह विभाग लो प्रोफाइल रहकर चुपचाप अपने काम को अंजाम देता रहा है.
इस विभाग के काम में राज्य भर के पुलिस विभागों और अधिकारियों से ‘गुप्त सूचना’ और खुफिया जानकारी को इक्ट्ठा करना शामिल है. लेकिन फिलहाल योगी आदित्यनाथ की दूसरी सरकार इसे खासी तवज्जो देती नजर आ रही है.
राज्य की नई कैबिनेट ने मंगलवार को अपनी दूसरी बैठक में यह फैसला लिया कि पहली बार गोपनीयता विभाग को अपना अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) -ग्रेड अधिकारी दिया जाएगा.
विभाग को कई अनुभागों में बांटा गया है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के मामले, आर्थिक अपराध, पत्रकारों का उत्पीड़न, विदेशी गुप्त एजेंसियों की गतिविधियां, आम चुनाव, राजनीतिक विरोध, राज्य सचिवालय की आंतरिक सुरक्षा, भ्रष्टाचार विरोधी जांच, वीआईपी की सुरक्षा व्यवस्था और राज्यपाल से संबंधित कार्य जैसे कई क्षेत्र इससे जुड़े है.
कैबिनेट बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए यूपी के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने संकेत दिया कि योगी सरकार के तहत गोपनीय विभाग का रुतबा बढ़ाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘अब तक आपने देखा होगा कि इस विभाग में अंडरसेक्रेटरी, सेक्रेटरी जैसे अलग-अलग नाम के पद रहे हैं … अब, अतिरिक्त मुख्य सचिव का एक पद है, जिसके लिए लोगों ने लंबे समय से काम किया है.’
हालांकि अभी तक कोई नई नियुक्ति नहीं की गई है. लेकिन दिप्रिंट से बात करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने कहा कि वह गोपनीय विभाग की देख-रेख करेंगे.
गृह और सतर्कता के अलावा 30 से अधिक अन्य विभागों की जिम्मेदारी स्वयं सीएम योगी आदित्यनाथ के पास ही है.
गोपनीयता विभाग के कार्यों और इस सप्ताह हुए बदलाव के प्रभावों को समझने के लिए दिप्रिंट ने वर्तमान और पूर्व अधिकारियों के साथ-साथ विशेषज्ञों से भी बात की.
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सर्विलांस इनपुट, ‘राजनेताओं, नौकरशाहों पर डोजियर’
गोपनीय विभाग राज्य भर के पुलिस विभागों और अधिकारियों से ‘गुप्त’ जानकारी प्राप्त करता है.
यूपी में एक पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने दिप्रिंट से कहा, ‘जैसा कि नाम से जाहिर हो रहा है, यह विभाग गुप्त तरीके से काम करता है. खुफिया जानकारी जुटाना, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, एनएसए से जुड़े मामले और अन्य गोपनीय कार्य इसके अंतर्गत आते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर डीजीपी कार्यालय गृह विभाग से डील करता है, लेकिन गोपनीयता विभाग को स्थानीय पुलिस अधिकारियों से भी बिना किसी हस्तक्षेप के सीधे रिपोर्ट मिलती है’
वैसे पुलिस अधिकारी आमतौर पर अपनी गोपनीय रिपोर्ट डीजीपी कार्यालय को भेजते हैं. कुछ मामलों में इन्हें बाद में अक्सर गृह और गोपनीय विभागों तक भी पहुंचाया जाता है.
पूर्व डीजीपी ने कहा कि विभाग में बदलाव की कोई भी कोशिश संभावित रूप से इसे मजबूत करने और जानकारियों के लीक होने की संभावना से बचने की दिशा में सक्षम बनाएगी.
महत्वपूर्ण पद पर रह चुके यूपी के एक अन्य पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि गोपनीय विभाग के पास विभिन्न राज्य और केंद्रीय एजेंसियों से इकट्ठा की गई सूचनाओं का ‘भंडार’ है और यह सर्विलेंस डेटा से भी डील करता है.
इस पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘सर्विलेंस से प्राप्त जानकारी और सामग्री यहां आती है … लेकिन यह विभाग राज्य की खुफिया एजेंसियों से बहुत अलग है.’
दिप्रिंट से बात करते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रमुख रमेश दीक्षित ने दावा किया कि गोपनीय विभाग राजनेताओं, नौकरशाहों और संदेह के घेरे में आए कई ‘संदिग्धों’ के बारे में जानकारी के डोजियर बनाए रखने की ‘औपनिवेशिक परंपरा’ को भी जारी रखे हुए है.’
इस विषय पर खास जानकारी रखने वाले एक महत्वपूर्ण निकाय के अनुसार, औपनिवेशिक राज्य अपने प्रशासनिक तंत्र के जरिए ‘खुफिया राज्यों’ के रूप में भी काम करते थे. जो न केवल स्थानीय आबादी के बारे में जानकारी इकट्ठा करते थे, बल्कि राजनेताओं और अन्य अभिजात वर्ग के बारे में खुफिया फाइलें बनाया करते थे.
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गृह विभाग को ‘कमतर’ किया जाना
लगातार सभी सरकारों में गोपनीयता विभाग ने हमेशा सीधे गृह मंत्री के अधीन रहते हुए कार्य किया है. लेकिन वास्तव में इसका मतलब मुख्यमंत्री से ही है. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से लेकर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ तक ने महत्वपूर्ण गृह विभाग को अपने पास ही रखा है. ये मंत्रालय राज्य की आंतरिक सुरक्षा और पुलिस के लिए जिम्मेदार है.
दीक्षित के अनुसार, यह कभी शक्तिशाली रहे गृह विभाग को ‘कमतर बनाए जाने’ जैसा है. उन्होंने कहा, ‘तकनीकी रूप से गृह विभाग को मुख्य सचिव संभालता है, लेकिन अंतिम फैसला सीएम का ही रहता है.
पिछली गैर-भाजपा सरकारों में गोपनीयता विभाग का प्रशासन राज्य के शीर्ष नौकरशाह, मुख्य सचिव के दायरे में आता था. लेकिन मुख्य सचिव पर भार कम करने के लिए कनिष्ठ स्तर के सचिव या अवर सचिव को इसके देख-रेख की जिम्मेदारी सौंपी जाती रही है.
योगी 1.0 सरकार के बाद से गोपनीयता विभाग के संचालन की निगरानी की जिम्मेदारी एसीएस (गृह) के पास थी. लेकिन इस बार ऐसा हुआ है कि विभाग के लिए एसीएस (गोपनीय) का पद तैयार किया गया.
दीक्षित ने बताया कि ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ हो. पिछली सरकारें भी गोपनीयता विभाग में ‘चुपचाप’ बदलाव करती रही हैं लेकिन मौजूदा सरकार इस संबंध में अधिक ‘शोर-शराबे’ के साथ आई है.
दीक्षित कहते हैं, ‘पिछली सरकारें भी पदों के नामों में बदलाव करती रही हैं. किसी अवर सचिव का तो किसी ने सचिव का इस्तेमाल किया. मायावती सरकार ने कैबिनेट सचिव के पद की शुरुआत की थी. वर्तमान सरकार इसे और अधिक स्पष्ट रूप से लेकर आई है.’
यूपी पुलिस के एक रिटायर सुपरिंटेंडेंट ने भी गोपनीय विभाग को दी गई उच्च प्रोफ़ाइल पर टिप्पणी की.
वह याद करते हुए बताते हैं, ‘यह पूरी तरह से गोपनीय तरीके से काम करता था और हमें शायद ही पता होगा कि वहां कौन तैनात था और कौन किस अनुभाग को देख रहा है.’
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गोपनीय विभाग कैसे काम करता है
कई सरकारों के साथ काम कर चुके एक पूर्व नौकरशाह ने समझाया कि गोपनीय विभाग को आठ भागों में बांटा गया है.
पहला खंड मंत्रियों से संबंधित कार्यों से जुड़ा है मसलन कार्य आवंटन, कैबिनेट को निर्देश जारी करना, विदेश यात्राओं को मंजूरी देना और इसी तरह से और भी कई कामों का जिम्मा इसी के पास है. इसके अलावा यह खंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए मेडिकल रिम्बर्समेंट जैसे मामलों को भी देखता है.
पूर्व अधिकारी ने कहा, जबकि अन्य सात खंड सीधे गृह विभाग के दायरे में आते हैं. इनमें से तीन खंड राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामलों को देखते हैं.’
एनएसए यानी रासुका बिना किसी आरोप के व्यक्ति को एक साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है. इसे लागू करना राज्य सरकार के दायरे में आता है. गोपनीयता विभाग की भूमिका जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस प्रमुखों द्वारा एनएसए लागू करने के लिए अनुशंसित मामलों की जांच करना है.
रासुका से संबंधित तीन खंडों में से प्रत्येक यूपी में विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के साथ-साथ कानून के अनेक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है.
सेवानिवृत्त नौकरशाह ने कहा, ‘विभाग के शेष खंड में से एक आर्थिक अपराध शाखा से संबंधित मामलों से जुड़ा है और अन्य ‘राज्यपाल के कार्यालय, बजट से संबंधित कार्य, सर्विलांस और प्रोटोकॉल, आदि’ से संबंधित हैं.
इन विभागों के स्टाफ के बारे में बताते हुए रिटायर ब्युरोक्रेट ने कहा, ‘प्रत्येक अनुभाग में सात या आठ कर्मचारी होते हैं. कभी-कभी इनकी संख्या कम भी हो जाती है. एक सेक्शन ऑफिसर के अंदर ये सब काम करते हैं. सेक्शन ऑफिसर उप सचिव , सचिव आदि को रिपोर्ट करता है.’
उन्होंने कहा, आर्थिक अपराध अनुभाग के तहत एक ‘विशेष विंग’, ‘साइबर अपराधों’ से डील करती है.
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