शिमला: ऐसे समय में जब राज्य गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मंगलवार को हाईड्रो पॉवर उत्पादन पर जल उपकर (वॉटर सेस) लगाने के सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के फैसले को “असंवैधानिक” बताते हुए रद्द कर दिया.
कांग्रेस सरकार ने बिजली कंपनियों से 1,800 करोड़ रुपये के राजस्व का अनुमान लगाया था. कुछ निजी पनबिजली कंपनियों ने पहले ही बतौर सेस 33 करोड़ रुपये जमा कर दिए हैं.
याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने किया, जिन्होंने पहाड़ी राज्य से राज्यसभा चुनाव लड़ा था और असफल रहे थे.
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि राज्य में पनबिजली उत्पादन के लिए पानी के उपयोग पर टैक्स/सेस लगाने की विधायी क्षमता का अभाव है क्योंकि उक्त लेवी सीधे राज्य के बाहर उत्पादित और हस्तांतरित बिजली से संबंधित है.
न्यायाधीश तरलोक चौहान और सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने फैसला सुनाया, “हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन अधिनियम, 2023 पर वॉटर सेस के प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 246 और 265 के संदर्भ में राज्य सरकार की विधायी क्षमता से परे घोषित किया गया है और इस प्रकार, यह संविधान से परे है.”
पीठ ने कहा, “परिणामस्वरूप, जलविद्युत विद्युत उत्पादन नियम, 2023 पर हिमाचल प्रदेश वॉटर सेस को भी रद्द कर दिया गया है.”
हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन पर वॉटर सेस विधेयक पिछले साल 14 मार्च को विधानसभा में पेश किया गया था और 16 मार्च को पारित किया गया था.
हाई कोर्ट में हिमाचल सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि राज्य सरकार अपने क्षेत्र के भीतर स्थित प्राकृतिक संसाधनों से पानी के उपयोग पर शुल्क लगाने के लिए सक्षम है.
इसने आगे तर्क दिया कि सेस अंतरराज्यीय नदियों के पानी के संबंध में कोई विवाद पैदा नहीं करता है. इसमें कहा गया है, “ज़मीन के अंदर और ऊपर पानी होने के कारण, पानी से उत्पन्न आय/राजस्व राज्य का भू-राजस्व है.”
लेकिन कोर्ट ने पाया कि अधिसूचना से यह स्पष्ट है कि राज्य ने पानी की क्षमता को ध्यान में रखते हुए सेस को कैलिब्रेट किया है, यानी जितनी अधिक ऊंचाई से पानी टरबाइन पर गिरता है, उतना अधिक बिजली उत्पादन होता है.
फैसले में कहा गया है, “इसलिए, यह मूल रूप से पानी की मात्रा नहीं है, बल्कि यह शीर्ष-ऊंचाई है, जिसे लेवी की दर तय करते समय राज्य द्वारा ध्यान में रखा गया है.”
“दूसरे शब्दों में कर लगाने की शक्ति बिजली उत्पादन पर है और पानी का उपयोग केवल आकस्मिक है. ‘पानी के उपयोगकर्ता’ पर कर नहीं लगाया जा रहा है और यह केवल ‘बिजली उत्पादन के लिए पानी का उपयोगकर्ता’ है, जिस पर कर लगाया जा रहा है. इसलिए, यह बिजली उत्पादन पर एक कर है. अगर यह उपयोग किए गए पानी की मात्रा थी, तो उपकर की दर निर्धारित करने के उपाय के रूप में जिस ऊंचाई से पानी गिरेगा वह पूरी तरह से अप्रासंगिक होगा.”
हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने संकेत दिया कि राज्य सरकार इस फैसले को कानूनी तौर पर चुनौती दे सकती है. सक्सेना ने दिप्रिंट को बताया, “यह फैसला राजस्व उत्पन्न करने के लिए लिया गया था. हम फैसले की जांच करेंगे और आगे की कार्रवाई तय करेंगे.”
एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने फैसले को हिमाचल के लिए विनाशकारी बताया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “राज्य को वॉटर सेस से भारी राजस्व की उम्मीद थी. केंद्र ने डोर खींच ली है…राज्य सरकार कई कारणों से उस पर निर्भर थी.” उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि राज्य ने जल्दबाजी में इस सेस योजना को छोड़ दिया. उन्हें कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए थी.”
बोनाफाइड हिमाचली हाइड्रो पावर डेवलपर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश शर्मा ने कहा कि हिमाचल सरकार को स्वयं ही सेस वापस ले लेना चाहिए था.
कैसे खुला प्रकरण
सुक्खू सरकार द्वारा वॉटर सेस विधेयक पारित करने के तुरंत बाद केंद्र ने इस कदम पर आपत्ति जताई थी. केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक ने अप्रैल में सभी मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में कहा था, “बिजली उत्पादन पर कोई भी कर या शुल्क, जिसमें थर्मल, हाइड्रो, पवन, सौर, परमाणु इत्यादि जैसे सभी प्रकार के उत्पादन शामिल हैं, अवैध और असंवैधानिक है.”
पंजाब और हरियाणा ने भी सुक्खू सरकार के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, जिसमें तर्क दिया गया कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के शेयरधारकों पर वॉटर सेस से 1,200 करोड़ रुपये का अनुमानित बोझ पड़ेगा.
राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ भी बीबीएमबी परियोजनाओं से बिजली लेते हैं.
हिमाचल में 172 जलविद्युत परियोजनाओं में से 146 – जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) और नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) शामिल हैं – जलविद्युत उत्पादन अधिनियम पर हिमाचल प्रदेश वॉटर सेस के आदेशानुसार राज्य सरकार के साथ रजिस्टर्ड हैं.
हिमाचल के लिए उसके भारी कर्ज के बोझ को कम करने के लिए वॉटर सेस लागू किया गया था. दिसंबर 2022 में उनकी सरकार के सत्ता में आने के दो महीने बाद फरवरी में, सुक्खू ने दावा किया था कि राज्य पर 91,000 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय देनदारियां हैं.
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