नई दिल्ली : भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी के बृहस्पतिवार को प्रत्यर्पण का आदेश सुनाते हुए लंदन की वेस्टमिनिस्टर कोर्ट के ज़िला जज सैम गूज़ी ने, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू और उनकी विशेषज्ञ गवाही के खिलाफ, दोषारोपण से भरी टिप्पणी की है.
काटजू पिछले साल एक विशेषज्ञ गवाह के तौर पर वेस्टमिनिस्टर कोर्ट में पेश हुए थे और उन्होंने दावा किया था कि नीरव मोदी की भारत में निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी. लेकिन, यूके कोर्ट ने कहा कि, ‘ऐसा कोई ठोस या भरोसेमंद सबूत नहीं है, कि भारत में न्यायपालिका अब स्वतंत्र नहीं है या एक निष्पक्ष सुनवाई करने में सक्षम नहीं है, जबकि ये एक हाई प्रोफाइल मुक़दमा है, जिसमें मीडिया की काफी दिलचस्पी है’.
कोर्ट ने फिर नीरव मोदी के ख़िलाफ प्रत्यर्पण याचिका मंज़ूर कर ली, जो 13,758 करोड़ के पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी केस में वांछित हैं. कोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में, उसके ख़िलाफ मामला बनता है.
ऐसा करते हुए कोर्ट ने कुछ टिप्पणियों के लिए, काटजू को आड़े हाथों लिया, जो उन्होंने अपनी जिरह के दौरान की थीं, और कहा कि वो एक ‘आश्चर्यजनक, अनुचित और घोर असंवेदनशील तुलना थी’.
फैसले में कहा गया, ‘वह (काटजू) कहते हैं कि चूंकि बीजेपी आर्थिक संकटों का समाधान नहीं कर सकती, इसलिए वो बिल्कुल ‘हिटलर और यहूदियों’ की तरह है’.
काटजू ने कथित तौर पर कहा, ‘नीरव मोदी वो यहूदी हैं, जिसे भारत की सभी आर्थिक समस्याओं के लिए ज़िम्मेवार ठहराया जाना चाहिए’. उन्होंने ये भी कहा कि भारत सरकार नीरव मोदी को, ‘भारत में वित्तीय संकट खड़ा करने के लिए, बलि का बकरा बनाना चाहती है’.
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‘मुखर आलोचक जिनका एक निजी एजेंडा है’
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रहने के बाद भी, काटजू की गवाही ‘निष्पक्ष और विश्वसनीय नहीं थी’.
कोर्ट ने आगे कहा, ‘कोर्ट में दी गई उनकी गवाही में, अपने पूर्व वरिष्ठ न्यायिक सहयोगियों के प्रति नाराज़गी साफ झलकती है. ये एक ऐसे मुखर आलोचक की टिप्पणी थी, जिसका अपना एक अलग निजी एजेंडा था’.
काटजू ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की भी आलोचना की, और कहा कि उन्हें ‘रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा का सदस्य मनोनीत करके, प्रतिदान के तौर पर नवाज़ा गया’.
लेकिन, इस आरोप के जवाब में यूके कोर्ट ने कहा कि ख़ुद काटजू ने रिटायरमेंट के बाद सरकार की ओर से पेश किए गए पद को स्वीकार किया था, जब वो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने थे.
फैसले में कहा गया, ‘ग़ौरलतब है कि इस आलोचना के बावजूद कि एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में एक मुक़दमे में फैसला दिया था, जिसके बदले में रिटायरमेंट के बाद, उन्हें भारत की संसद के उच्च सदन में मनोनीत किया गया, जिससे मिलीभगत और भ्रष्टाचार का संकेत मिलता है, ख़ुद जस्टिस काटजू ने रिटायर होने के बाद, सरकार की ओर से प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हासिल की थी’.
‘झूठी और अनुचित’
काटजू ने यूके जज की कुछ टिप्पणियों को, ‘झूठी और अनुचित क़रार दिया’.
दिप्रिंट को ईमेल से भेजे गए अपने जवाब में उन्होंने कहा, ‘मैंने फैसले के कुछ अंश पढ़े हैं. बेशक जज को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है. लेकिन ये कहना कि मेरा कोई निजी एजेंडा है, बिल्कुल झूठ और अनुचित है’.
बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज, अभय थिप्से की ओर इशारा करते हुए काटजू ने आगे कहा, ‘जस्टिस थिप्से के उलट, मैं किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य न तो हूं, न कभी रहा हूं और न कभी रहने का इरादा रखता हूं’. थिप्से अब कांग्रेस के सदस्य हैं, और वो भी नीरव मोदी की ओर से एक विशेषज्ञ गवाह के तौर पर पेश हुए थे.
यूके कोर्ट ने थिप्से की गवाही की भी आलोचना की, और कहा कि ‘वो एक रिटायर्ड जज हैं, जो रिटायर होने के बाद एक राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़ गए हैं, और जिनके खिलाफ मीडिया में टिप्पणियां हुईं’, लेकिन ‘वो ख़ुद मीडिया के साथ मेल-मिलाप रखने लगे हैं’.
काटजू ने कहा कि यूके के जज ने उस व्यापक सामग्री के बारे में कुछ नहीं कहा, जो उन्होंने अपने निवेदनों के समर्थन में पेश की थी, जिसे लगता है उन्होंने ‘छिपा लिया है’.
उन्होंने लिखा, ‘उसके अलावा, अगर मान भी लें कि मेरा कोई एजेंडा है, तो भी उन्हें मेरी दी हुई उस व्यापक सामग्री के बारे में कुछ नहीं कहा है (जिसमें दूसरे रिटायर्ड जजों की राय शामिल थी, जो मेरी जैसी ही थी), जिससे पता चलता है कि भारतीय न्यायपालिका ने, काफी हद तक सरकार के सामने सरेंडर कर दिया है (दि वायर.इन में प्रकाशित मेरा लेख देखिए ‘सुप्रीम कोर्ट ने हर समय अन्याय के सामने आंखें मूंद लीं’), लेकिन उन्होंने इसे छिपा लिया’.
‘सभी जजों में 50% से अधिक भ्रष्ट हैं’
सुनवाई के दौरान यूके कोर्ट में पिछले साल, भारत से लाइव लिंक के ज़रिए काटजू की गवाही हुई थी.
अपनी गवाही में, काटजू ने आरोप लगाया कि ‘भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर अब राजनीतिक और कार्यकारी प्रभाव बहुत हो गया है’.
उन्होंने ये भी कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार के सामने लगभग सरेंडर कर दिया है. वो सरकार के कहे पर चल रहा है, और सरकार के एक स्वतंत्र अंग के तौर पर लोगों के अधिकारों का संरक्षण नहीं कर रहा है, जो उसका काम है’. उन्होंने आगे कहा कि ‘भारतीय न्यायपालिका ने काफी हद तक राजनीतिक कार्यकारी के सामने समर्पण कर दिया है’.
ये पूछे जाने पर कि क्या ये समस्या, भारत के उच्च न्यायालयों तक ही सीमित है, काटजू ने आरोप लगाया कि ‘हर स्तर पर बड़ी संख्या में जज भ्रष्ट हो गए हैं’. उन्होंने भ्रष्ट मुख्य न्यायधीशों के बारे में भी बात की, और कहा, ‘पिछले दशक में बहुत से मुख्य न्यायाधीश आए और गए और सब जानते हैं कि वो भ्रष्ट थे. ये मेरी गवाही है, जो सही है. मैं इसका हिस्सा रह चुका हूं- एक जज के तौर पर 20 साल- मैं कामकाज को जानता हूं…सभी जजों में 50 प्रतिशत भ्रष्ट हैं- ये मेरा अंदाज़ा है’.
लेकिन, यूके जज ने कहा कि मीडिया ट्रायल के आलोचक होने के बावजूद, काटजू ने एक आश्चर्यजनक फैसला लेते हुए, इन सुनाइयों में दी जा रही अपनी गवाही के बारे में, पत्रकारों से बात की और मीडिया में तूफान खड़ा किया, जिसने इस केस में मीडिया की रुचि को बढ़ाकर आज तक बनाए रखा है’.
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