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Saturday, 20 April, 2024
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122 दिन और 6 बार सुनवाई टलने के बाद भी SC में सिद्दीक कप्पन की हेबियस कॉर्पस याचिका लंबित

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया था, जब वो उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित महिला के कथित गैंगरेप और हत्या की खबर कवर करने जा रहे थे.

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नई दिल्ली: केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन, जिन्होंने 122 दिन हिरासत में बिताए हैं, गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका और उनकी ज़मानत के लिए डाली गई अर्ज़ी पर, सुप्रीम कोर्ट छह बार सुनवाई स्थगित कर चुका है और स्थगन की अवधि चार दिन से छह सप्ताह तक रही है.

कप्पन के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, जिन्हें पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया था, जब वो एक दलित महिला के कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या की खबर कवर करने हाथरस जा रहे थे, पिछले चार महीने से शीर्ष अदालत में लंबित पड़ी है, जबकि उनकी ज़मानत याचिका तीन महीने पहले दायर की गई थी.

कप्पन के वकील विल्स मैथ्यूज़ ने दिप्रिंट से कहा, ‘उन सभी देशों में जहां कानून का राज है, बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर प्राथमिकता के आधार पर फैसला किया जाता है. आमतौर से, इस पर एक हफ्ते या ज़्यादा से ज़्यादा 15 दिन के अंदर फैसला कर लिया जाता है’.

मैथ्यूज़ ने कहा कि चूंकि, ‘कप्पन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही पृथम दृष्टया अवैध थी और शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों के खिलाफ थी…इसलिए ये बन्दी प्रत्यक्षीकरण दायर करने और उसे माने जाने का एक पर्याप्त आधार हो सकता है’.

कप्पन के खिलाफ 7 अक्टूबर को मथुरा में दर्ज एफआईआर में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (धर्म आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन) और 295ए (विमर्श और विद्वेष पूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके, उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों), के साथ साथ विधि विरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं.

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मैथ्यूज़ ने कहा, ‘इस मामले में, दरअसल सलाखों के पीछे कप्पन नहीं हैं, सलाखों के पीछे मुझे मीडिया दिखाई देता है, क्योंकि आखिरकार उनके पास कप्पन के खिलाफ कुछ नहीं है. वो अभी भी सलाखों के पीछे इसलिए हैं कि वो एक मीडिया प्रोफेशनल हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे डर है कि अंत में इसका असर ये होगा कि मीडिया खौफ में आ जाएगा. इसका असर धीरे-धीरे और लगातार नागरिकों के बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी और उनके सूचना के अधिकार पर पड़ने लगेगा’.


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यूपी सरकार को एक महीने बाद जारी हुआ सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

5 अक्टूबर को कप्पन की गिरफ्तारी के अगले दिन, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्लूजे) ने, उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. याचिका में तर्क दिया गया कि उनकी गिरफ्तारी अवैध और असंवैधानिक थी और ये भी कहा गया कि उनकी हिरासत से संविधान की धाराओं 14 (समानता का अधिकार), 19 (बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी) तथा 21 (जीने के अधिकार) का उल्लंघन होता है.

याचिका पहली बार 12 अक्टूबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश, एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने आई. लेकिन कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से अनिच्छा जताते हुए, केयूडब्लूजे की ओर से पेश हो रहे सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल को टहोका दिया कि इसकी बजाय वो हाई कोर्ट का रुख करें. बेंच ने फिर इस मामले को चार हफ्ते आगे के लिए लिस्ट कर दिया और उत्तर प्रदेश सरकार को इस पर नोटिस जारी करने से भी इनकार कर दिया.

इस बीच 29 अक्टूबर को एक अर्ज़ी दायर की गई कि कप्पन की गिरफ्तारी के बाद से केयूडब्लूजे और मैथ्यूज़ की उनसे मुलाकात करने की कई कोशिशें नाकाम हो गई हैं. कप्पन के लिए एक ज़मानत याचिका भी दायर की गई.

कोर्ट ने यूपी सरकार का जवाब जानने के लिए नोटिस जारी किया लेकिन सुनवाई की अगली तारीख पर, जो 16 नवंबर 2020 के लिए तय की गई. उस समय भी कोर्ट ने दोहराया कि जवाब दाखिल होने के बाद भी, याचिका को हाई कोर्ट भेजा जा सकता है और कहा कि अदालत ‘धारा 32 से जुड़ी याचिकाओं को निरुत्साहित करना चाह रही है’. संविधान की धारा 32 नागरिकों को अधिकार देती है कि अगर उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो, तो वो शीर्ष अदालत का रुख कर सकते हैं.

43 दिन तक हिरासत में रहने के बाद आख़िकार 17 नवंबर को जाकर कप्पन, मैथ्यूज़ के साथ पांच मिनट फोन पर बात कर पाए.

मार्च में होगी केस की सुनवाई

मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को हुई, जब यूपी सरकार ने हलफनामा देकर कहा कि उसने कप्पन को हाथरस में कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी करने से रोकने के लिए गिरफ्तार किया था. उसने दावा किया कि कप्पन को पकड़ते समय, उनके पास से फंसाने वाले सबूत बरामद हुए जिनमें ऐसे पर्चे भी थे जिनमें ‘हाथरस पीड़िता के लिए इंसाफ’ की मांग की गई थी.

हलफनामे में केयूडब्लूजे के इस दावे को भी खारिज किया गया कि गिरफ्तारी अवैध थी और कहा गया कि कप्पन के परिवार को गिरफ्तारी के बारे में विधिवत सूचित कर दिया गया था. हलफनामे में ये भी कहा गया कि गिरफ्तारी के बाद 6 अक्टूबर को कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी के समय कप्पन की ओर से एक वकील पेश हुआ था.

यूपी सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ये कहने के बाद कि राज्य को कप्पन के वकील के, उनसे मिलने पर कोई ऐतराज़ नहीं है, बेंच ने सुनवाई को स्थगित कर दिया. कप्पन के वकील ने 21 नवंबर को उनसे मुलाकात की, वकालतनामे पर उनके दस्तख़त कराए- वो दस्तावेज़ जिसके आधार पर किसी वकील को अपने मुवक्किल की पैरवी करने का अधिकार मिलता है.

केयूडब्लूजे ने इसके बाद 30 नवंबर को एक हलफनामा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि हिरासत के दौरान, कप्पन को लाठी से पीटा गया, तीन बार थप्पड़ मारे गए और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया.

केस को 2 दिसंबर के लिए लिस्ट किया गया लेकिन फिर से स्थगित कर दिया गया, जब कपिल सिब्बल ने कप्पन की पत्नी और बेटी को याचिका में पक्षकार बनाने की पेशकश की. इससे पहले कोर्ट ने कप्पन की ओर से याचिका दायर करने के केयूडब्लूजे के अधिकार पर सवाल उठाए थे.

9 दिसंबर को यूपी सरकार ने एक और हलफनामा दाखिल किया जिसमें गिरफ्तारी को उचित ठहराया गया था. 14 दिसंबर को जब ये मामला फिर सुनवाई के लिए आया तो सिब्बल ने यूपी सरकार के नए हलफनामे का जवाब देने के लिए समय मांग लिया.

22 जनवरी को मामले की फिर सुनवाई हुई, जहां मेहता ने सुनवाई को अगले हफ्ते के लिए टालने की मांग कर दी. सिब्बल ने इसका विरोध नहीं किया बल्कि ये मांग उठाई कि कप्पन को अपनी मां के साथ वीडियो कांफ्रेंस करने की अनुमति दी जाए. कोर्ट ने उनकी अर्ज़ी को मान लिया और मामले को स्थगित कर दिया.

लेकिन कोर्ट आदेश में निर्देश दिया गया कि मामले को छह सप्ताह के बाद लिस्ट किया जाए. इसलिए अब इस केस की अगली सुनवाई मार्च में होगी.


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बिस्तर पर पड़ी मां से मिलने के लिए अंतरिम ज़मानत अर्ज़ी

पिछले हफ्ते कप्पन ने एक अर्ज़ी दाखिल की जिसमें मां की बीमारी का हवाला देते हुए पांच दिन की अंतरिम ज़मानत मांगी गई थी.

अर्ज़ी में कहा गया कि कप्पन की 90 वर्षीय मां, ‘बिस्तर पर हैं और बेहद बीमार हैं’, और ‘बार बार कप्पन से बात करने की मांग कर रही हैं’.

उसमें ये भी कहा गया कि ‘वो जब भी होश में आती हैं, तो अपने बेटे से मिलने की मांग करती हैं, हर किसी से अनुरोध है कि ये एक मां की आखिरी इच्छा है कि वो अपने बेटे से मिलना चाहती है’.

अर्ज़ी में कहा गया कि 28 जनवरी को मथुरा जेल अधिकारियों ने कप्पन की मां को एक 10 मिनट की वीडियो कॉल का प्रबंध किया लेकिन वो ‘जवाब नहीं दे पाईं और मोबाइल के स्क्रीन को भी नहीं देख पाईं, चूंकि वो बहुत गंभीर अवस्था में हैं, और अस्पताल में भर्ती हैं’.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार को लिखे एक पत्र में कप्पन के वकीलों ने अब उनकी अंतरिम ज़मानत अर्ज़ी पर तुरंत सुनवाई की गुहार लगाई है. इस मामले को अभी तक सूचिबद्ध नहीं किया गया है.

सिब्बल ने गोस्वामी केस से तुलना की

मुकदमे के दौरान कई बार, कप्पन के केस और 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी के बीच समानता की ओर इशारा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फौरन ज़मानत दे दी थी.

पिछले साल 11 नवंबर को गोस्वामी की ज़मानत पर सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कप्पन मामले का उल्लेख किया था.

सिब्बल ने, जो महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हो रहे थे, सुप्रीम कोर्ट से कहा था, ‘केरल के एक पत्रकार को यूपी पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वो खबर करने के लिए हाथरस जा रहा था. धारा 32 के अंतर्गत हम इस कोर्ट में आए थे. कोर्ट ने कहा कि आप निचली अदालत जाइए. याचिका को चार हफ्ते के बाद पोस्ट किया गया. ऐसी चीज़ें भी हो रही हैं’. गोस्वामी को उसी दिन अंतरिम ज़मानत दे दी गई थी.

30 नवंबर को दायर केयूडब्लूजे के हलफनामे में, गोस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का भी हवाला दिया गया था, कि ‘इस अदालत के दरवाज़े उस नागरिक के लिए बंद नहीं किए जा सकते, जो पहली नज़र में ये स्थापित कर दे कि आपराधिक कानून का बल प्रयोग करने में राज्य के साधन को हथियार बनाया गया है’.

2 दिसंबर को कप्पन मामले की सुनवाई के दौरान सिब्बल ने फिर गोस्वामी के केस का हवाला दिया. उस दिन सीजेआई बोबडे ने सिब्बल से फिर पूछा कि क्या वो नीचे की अदालत में जाने के इच्छुक हैं.

लेकिन सिब्बल ने ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि ये मामला ‘गंभीर उल्लंघनों’ से जुड़ा है और एफआईआर झूठी थी. उन्होंने तब ये भी कहा था कि गोस्वामी के मामले में कोर्ट ने दखलअंदाज़ी की थी, हालांकि उनकी ज़मानत अर्ज़ी ट्रायल कोर्ट में लंबित थी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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