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Friday, 14 March, 2025
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J&K के दो उदारवादी संगठनों पर UAPA बैन को सरकार के नॉर्मलाइजेशन के दावे से अलग क्यों देखा जा रहा है

गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को एक पोस्ट में संगठनों द्वारा कानून-व्यवस्था में व्यवधान का हवाला देते हुए जम्मू-कश्मीर इत्तिहादुल मुस्लिमीन और अवामी एक्शन कमेटी पर बैन की घोषणा की.

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नई दिल्ली: गृह मंत्रालय (एमएचए) ने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और धार्मिक संगठनों पर एक बड़ी कार्रवाई करते हुए दो उदारवादी हुर्रियत गुटों, जम्मू और कश्मीर इत्तिहादुल मुस्लिमीन (जेकेआईएम) और अवामी एक्शन कमेटी (एएसी) को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया है.

यह बैन ऐसे वक्त पर लगाया गया है जब हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज़ उमर फारूक की नई दिल्ली में हुई हालिया राजनीतिक बैठकों के बाद जम्मू-कश्मीर में उदारवादी अलगाववादी आवाज़ों और केंद्र के बीच बढ़ती हुई बातचीत की उम्मीद की जा रही थी.

संभावित रूप से सुलह वार्ता में एक प्रमुख शख्सियत, मीरवाइज़ उमर फारूक अवामी एक्शन कमेटी के प्रमुख भी हैं. हुर्रियत कांफ्रेंस के एक अन्य अध्यक्ष और शिया धर्मगुरु मोहम्मद अब्बास अंसारी इत्तिहादुल मुस्लिमीन का नेतृत्व करते हैं.

मंगलवार को एक्स पर एक पोस्ट में बैन की घोषणा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा कि जेकेआईएम और एएसी लोगों को कानून और व्यवस्था को बाधित करने के लिए उकसा रहे थे, जिससे “भारत की एकता और अखंडता” खतरे में पड़ गई. उन्होंने कहा, “देश की शांति, व्यवस्था और संप्रभुता के खिलाफ गतिविधियों में शामिल पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को मोदी सरकार की कड़ी सजा का सामना करना पड़ेगा.”

गृह मंत्रालय का यह फैसला, जिसकी अब विभिन्न राजनीतिक दलों और नागरिक समाज द्वारा तीखी आलोचना की जा रही है, 2019 के बाद से केंद्र के “सब ठीक है” के दावों के बीच आया है, जब उसने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था.

यह कदम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, मुस्लिम लीग, डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी और दुख्तरान-ए-मिल्लत पर बैन लगाने के बाद उठाया गया है, जो अब जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन पर एक बड़ी कार्रवाई की तरह लग रहा है.

अपनी आधिकारिक अधिसूचना में गृह मंत्रालय ने एएसी और जेकेआईएम के सदस्यों पर “लोगों में असंतोष के बीज बोने, कानून-व्यवस्था अस्थिर करने के लिए लोगों को भड़काने, आतंकवाद का समर्थन करने और स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने जैसी राष्ट्र विरोधी और विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त होकर भारत से जम्मू-कश्मीर के अलगाव को बढ़ावा देने और सहायता करने” का आरोप लगाया.

हालांकि, दिप्रिंट से बात करते हुए कश्मीरी राजनीतिक वैज्ञानिक नूर बाबा ने बैन को “कश्मीर में बेहतर स्वतंत्रता के पहले के दावों को उलटने” के रूप में वर्णित किया. उन्होंने कहा, “उदारवादी आवाज़ों पर भी प्रतिबंध लगाना एक स्वतंत्र और उदार समाज की विशेषता नहीं है; यह लोकतंत्र की मूल भावना के उलट है.” उन्होंने कहा कि इस तरह के बैन उदारवादी ताकतों को मुख्यधारा की राजनीति में लाने में मदद नहीं करेंगे.

गुलमर्ग में पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र ने एएसी पर प्रतिबंध के बारे में राज्य सरकार को सूचित नहीं किया है.

अब्दुल्ला ने कहा, “मुझे बैन का आधार नहीं पता. यह निर्वाचित सरकार (जम्मू-कश्मीर में) के अधिकार क्षेत्र में नहीं है और जिस खुफिया जानकारी के आधार पर यह हुआ है, उसे हमारे साथ साझा नहीं किया गया है…बल्कि, हमने कभी भी ऐसे फैसलों का समर्थन नहीं किया है.”

सीएम ने कहा कि मीरवाइज़ उमर फारूक की नज़रबंदी से रिहाई के बाद से उन्होंने कोई “आपत्तिजनक” बयान नहीं दिया है.

मीरवाइज़ उमर फारूक ने एक्स पर प्रतिबंध की निंदा करते हुए कहा कि एएसी “जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अडिग रूप से खड़ी है, पूरी तरह से अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीकों से उनकी आकांक्षाओं और अधिकारों की वकालत करती है और बातचीत और विचार-विमर्श के माध्यम से कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करती है, जिसके लिए इसके सदस्यों को जेल और कारावास और यहां तक ​​कि शहादत भी झेलनी पड़ी.”

इस कदम को “अगस्त 2019 से जम्मू-कश्मीर के संबंध में अपनाई जा रही डराने-धमकाने और शक्तिहीन करने की नीति” का हिस्सा बताते हुए, मीरवाइज़ ने आगे लिखा, “सच की आवाज़ को बल से दबाया जा सकता है, लेकिन चुप नहीं कराया जाएगा.”

प्रतिबंध पर प्रतिक्रियाएं

नूर बाबा ने कहा कि मीरवाइज़ फारूक हाल ही में मुख्य रूप से सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे है और एएसी की पारंपरिक भूमिका को बरकरार रख रहे हैं.

उन्होंने कहा, “अवामी एक्शन कमेटी ऐतिहासिक रूप से कश्मीर में एक उदारवादी संगठन रही है. इसे उस उदारवाद के कारण नुकसान भी उठाना पड़ा है. मीरवाइज़ के पिता मौलवी फारूक की हत्या ठीक इसलिए की गई क्योंकि वे कश्मीरी समाज में एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में संतुलित रुख रखते थे.”

उन्होंने कहा कि प्रतिबंध के पीछे का तर्क “कमज़ोर लगता है”, जो 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में माहौल को ठीक बनाने की अपनी क्षमता में केंद्र के “विश्वास की कमी” को दर्शाता है.

बाबा ने कहा, “अगर कश्मीर सच में बड़े भारतीय मुख्यधारा का हिस्सा बन रहा है, तो ऐसे संगठनों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय उन्हें कमज़ोर क्यों किया जा रहा है? यह बैन कश्मीर की वास्तविक स्थिति के बारे में गहरी अनिश्चितता दिखाता है.”

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और पुलवामा के विधायक वहीद पारा ने दिप्रिंट से कहा कि बातचीत और सुलह चाहने वाले राजनीतिक संगठनों के खिलाफ यूएपीए का इस्तेमाल करना “अन्यायपूर्ण” है.

उन्होंने कहा, “हमारी लड़ाई जगह और चुप्पी खत्म करने की है. अनुच्छेद हटाने के बाद, कश्मीरियों ने अपनी आज़ादी खो दी है और हमें चुप कराने की कोशिशें चल रही हैं. हम इस तरह के प्रतिबंधों को खारिज करते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की मांग करते हैं और इन प्रतिबंधों को हटाने की मांग करते हैं.”

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रतिबंध की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि असहमति को दबाने से तनाव हल होने के बजाय और बढ़ेगा.

उन्होंने ज़ोर दिया, “जम्मू-कश्मीर सरकार को इस तरह की कार्रवाइयों को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए. लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं है – यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है.”

उन्होंने कहा, “कश्मीर की आवाज़ों को चुप कराना भाजपा के राजनीतिक एजेंडे की पूर्ति कर सकता है, लेकिन यह संविधान को कमजोर करता है जो इन अधिकारों की रक्षा करता है. केंद्र सरकार को अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और कठोर रणनीति से दूर रहना चाहिए.”

अपने एक्स पोस्ट में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और खानयार के विधायक अली मोहम्मद सागर ने बैन का विरोध करते हुए कहा कि मीरवाइज़ परिवार शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक रहा है, जिसने जम्मू-कश्मीर को अपनी धर्मनिरपेक्ष साख बनाए रखने में मदद की है.

उन्होंने आगे लिखा, “इस तरह से जम्मू-कश्मीर की स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा; भारत सरकार को अलगाव के बजाय सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए. मीरवाइज़ उमर फारूक हमेशा शांति के लिए खड़े रहे हैं; उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों को लोहे की मुट्ठी की नीति का शिकार होने के बजाय शांति का हितधारक बनाया जाना चाहिए.”

नूर बाबा ने केंद्र द्वारा लगाए गए एक और बैन का ज़िक्र करते हुए आगे कहा, “आधुनिक समय में साहित्य पर प्रतिबंध लगाना भी निरर्थक लगता है.”

केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) की विचारधारा को बढ़ावा देने के आरोप में 668 किताबों पर बैन लगा दिया है. प्रतिबंधित की गई ज़्यादातर किताबें 20वीं सदी के एक प्रमुख इस्लामी विद्वान और प्रतिबंधित जेईआई के संस्थापक अबुल अला मौदूदी की थीं.

उन्होंने कहा, “ज़्यादातर प्रतिबंधित सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध है और कश्मीर में केवल कुछ ही लोग उन्हें पढ़ रहे हैं, जिन्हें मन है वह अभी भी डिजिटल रूप से उन तक पहुंच सकते हैं. दरअसल, इस तरह के प्रतिबंधों से बहुत कम हासिल होता है.”

जेकेआईएम और एएसी की पृष्ठभूमि

बैन से मीरवाइज़ उमर फारूक की राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लग गई है, जिनके पिता मीरवाइज़ मोहम्मद फारूक ने एएसी की स्थापना की थी. यह संगठन श्रीनगर के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक और धार्मिक समूहों में से एक रहा है, जो पारंपरिक रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस का विरोध करता रहा है.

एएसी की स्थापना 1964 में श्रीनगर में हजरतबल दरगाह से पैगंबर के (पवित्र बाल) के गायब होने पर ‘मोई मुकद्दस’ आंदोलन के चरम पर की गई थी. यह जल्दी ही कश्मीर में एक मजबूत आवाज़ बन गई. मीरवाइज़ मोहम्मद फारूक की 1990 में आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी और उनके बेटे मीरवाइज़ उमर फारूक ने 17 साल की उम्र में एएसी का धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व दोनों संभाल लिया था.

1992 में, एएसी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का संस्थापक सदस्य बन गया, जो एक अलगाववादी गठबंधन था जो बातचीत के माध्यम से कश्मीर विवाद का शांतिपूर्ण समाधान चाहता था.

इसी तरह, 1962 में अंसारी द्वारा स्थापित जेकेआईएम ने कश्मीर में शिया राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अंसारी ने लखनऊ और इराक के नजफ में अपनी पढ़ाई पूरी की और जम्मू-कश्मीर में “मुसलमानों के विभिन्न संप्रदायों के बीच एकता” को बढ़ावा देने के लिए जेकेआईएम की स्थापना की.

1987 में, जेकेआईएम एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बन गया, जिसके कारण मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की स्थापना हुई, जो सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक समूहों का एक गठबंधन था जिसने 1987 के जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ा था. बाद में, जेकेआईएम 1993 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का संस्थापक सदस्य बन गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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