नई दिल्ली: भारत और ऑस्ट्रेलिया ने शनिवार को स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने साझा दृष्टिकोण और बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व पर जोर दिया.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष मारिसे पायने और पीटर डटन के साथ यहां ‘टू प्लस टू’ वार्ता की. वार्ता के बाद संवाददाता सम्मेलन में सिंह ने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच साझेदारी मुक्त, खुले, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण पर आधारित है. उन्होंने कहा कि बातचीत के दौरान नियम-कायदे पर आधारित व्यवस्था पर जोर दिया गया.
जयशंकर ने कहा कि दोनों पक्षों ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए भविष्य के सहयोग पर चर्चा की. विदेश मंत्री ने बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व पर भी जोर दिया. जयशंकर ने कहा कि आज 11 सितंबर की घटना की 20वीं बरसी है, यह बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को रेखांकित करता है.
पायने ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया और भारत स्वतंत्र, खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को साझा करते हैं. दोनों देश के नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति पर भी विस्तार से चर्चा की.
पायने ने कहा, ‘पिछले महीने काबुल पर कब्जा होते हुए देखा गया और आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई के साथ, अफगानिस्तान का भविष्य हमारे दोनों देशों के लिए चिंता का महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है.’ उन्होंने कहा, ‘हमारे दोनों देश भयावह आतंकवादी हमलों के शिकार रहे हैं और यह दिन, 11 सितंबर को हमेशा 20 साल पहले की उन भयानक घटनाओं के लिए याद किया जाएगा, जब आतंकवादियों ने हमारे मित्र- अमेरिका और आधुनिक, बहुलवादी तथा लोकतांत्रिक दुनिया पर हमला किया.’
डटन ने भारत-ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय रक्षा संबंधों की सराहना की और कहा कि यह ऐतिहासिक ऊंचाई पर है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए ‘क्वाड’ सदस्य देशों द्वारा नए सिरे से किए गए प्रयासों के बीच विदेश और रक्षा मंत्री स्तरीय वार्ता हुई है. ‘क्वाड’ में भारत और ऑस्ट्रेलिया के अलावा अमेरिका और जापान शामिल हैं.
‘क्वाड’ समूह को एशिया के नाटो के रूप में वर्णित करने के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि ‘क्वाड’ टीके, आपूर्ति श्रृंखला, शिक्षा और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों पर केंद्रित है. विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं इस तरह के मुद्दों और नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) या इस तरह के किसी अन्य संगठन के बीच कोई संबंध नहीं देखता. इसलिए मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है कि वहां की वास्तविकता को गलत तरीके से प्रस्तुत न किया जाए.’