अगरतला, 30 जनवरी (भाषा) इस महीने के प्रारंभ में अपना 50 वां स्थापना दिवस मना चुका त्रिपुरा लगभग 75 साल करीब-करीब पाकिस्तान के साथ चला गया था।
मुस्लिम लीग के समर्थन से महल में तख्तापलट का प्रयास हुआ था और भारतीय संघ में विलय के त्रिपुरा के महाराज का अंतिम निर्णय पलटने के कगार पर पहुंच चुका था, लेकिन उस समय के कुछ निष्ठावान मंत्रियों (दरबारियों) द्वारा समय से उठाये गये कदम एवं उस दौर के नेताओं की चेतावनी से ऐसा संभव नहीं हो पाया।
‘रजवाड़े त्रिपुरा का भारतीय संघ में विलय’ के लेखक और इतिहासकार पन्ना लाल रॉय ने कहा, ‘‘महाराजा बीर बिक्रम ने 28 अप्रैल, 1947 को घोषणा की थी कि त्रिपुरा भारतीय संघ का हिस्सा होगा और उसी दिन उन्होंने अपने इस फैसले के बारे में संविधान सभा के सचिव को टेलीग्राम भेजा था।’’
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘दुर्भाग्य से राजकुमार की 17 मई, 1947 को मृत्यु हो गयी। उनके निधन के बाद उच्च पदस्थ अधिकारियों ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर पाकिस्तान में राज्य के विलय की साजिश रच डाली।’’
‘प्रसाद षडयंत्र’ नामक पुस्तक के लेखक रॉय ने कहा कि बीर बिक्रम किशोर के निधन के बाद कुछ मंत्रियों एवं दिवंगत राजा के एक सौतेले भाई ने राजपरिवार के एक सदस्य को सिंहासन पर बिठाने तथा पाकिस्तान के साथ राज्य के विलय का ताजा समझौता करने के लिए त्रिपुरा के मुस्लिम लीग समर्थक संगठन ‘अंजुमन इस्लामिया’ के साथ सुनियोजित साजिश रच डाली।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम लीग के नेताओं ने पूर्वी पाकिस्तान के साथ त्रिपुरा के विलय के लिए कोमिल्ला एवं नोआखाली जिलों में कई बैठकें कीं तथा उन क्षेत्रों में दंगा भड़क जाने के बाद बड़ी संख्या में लोग शरणार्थी के तौर पर त्रिपुरा भागे।
जनजाति राज्य के महाराजों का न केवल वर्तमान त्रिपुरा पर बल्कि (ब्रिटिश भारतीय उपनिवेश काल में) जमींदारी व्यवस्था के जरिये पड़ोसी कोमिल्ला, नोआखाली और सिलहट जिलों के विशाल हिस्सों पर भी उनका शासन था।
उन दिनों जमींदारों द्वारा ब्रिटिश भारत सरकार से जमींदारी ‘खरीदी’ जा सकती थी, जो अंग्रेजों को एक निश्चित राशि का भुगतान करने के वादे पर कर संग्रहण कर सकते थे।
माणिक्या शासक जमींदार के तौर पर इन जिलों के निवासियों से राजस्व लेते थे, न कि शासक के तौर पर । वे न केवल उन क्षेत्रों में जनशिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च करते थे, बल्कि उन्होंने संभ्रांत कोमिला क्लब जैसे क्लब भी बनवाये। रेडक्लिफ आयोग ने इन क्षेत्रों को पाकिस्तान को दे दिया।
रॉय ने कहा कि इससे और आयोग के एक अन्य फैसले से मुस्लिम लीग के नेताओं का मनोबल बढ़ गया। दूसरे फैसले में आयाग ने 97 फीसद बौद्ध धर्मावलंबी बहुल चट्टगांव हिल ट्रैक पाकिस्तान को इस आधार पर दे दिया कि वे चारों ओर से जमीन से घिरे होने के कारण आर्थिक रूप से अपना अस्तित्व बनाकर नहीं रख पायेंगे।
उनके लिए समस्या यहां यह थी कि 11 जून, 1947 को आखिरी शासक के निधन के 25 दिनों बाद अधिसूचना जारी की गयी जिसमें कहा गया, ‘‘यह अधिसूचित किया जाता है कि त्रिपुरा प्रांत के शासक दिवंगत कर्नल महामहिम महाराजा माणिक्य सर बीर बिक्रम किशेार देब बर्मन बहादुर ने वर्तमान संविधान सभा से जुडने का फैसला करते हुए 28 अप्रैल, 1947 को त्रिपुरा सरकार के मंत्री जी एस गुहा को उक्त संविधान सभा में त्रिपुरा का प्रतिनिधि नामित किया है।’’
बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेंद्र मोहन घोष ने 29 अक्टूबर को गृहमंत्री सरदार पटेल को पत्र लिखकर (मुस्लिम लीग की) साजिश की सूचना दी। उसके बाद हिंदू महासभा के नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने पटेल को त्रिपुरा की स्थिति पर पत्र लिखा।
इन सभी चेतावनी के बाद पटेल ने 31 दिसंबर, 1947 को असम के राज्यपाल को चिट्ठी लिखी और फिर संघ सरकार ने वायुसेना को त्रिपुरा भेजा।
असम के तत्कलीन राज्यपाल के सलाहकार नारी रूस्तम जी ने ‘इनचैंटेड फ्रंटियर’ पुस्तक में लिखा है, ‘‘त्रिपुरा में पाकिस्तान समर्थक तत्वों के सक्रिय रहने के सबूत हैं.. लेकिन हम पूरी तरह चौकस हैं और समस्या खड़ी करने वालों पर हमने तत्काल प्रहार किया।’’
रॉय ने कहा कि महारानी ने कई मंत्रियों को इस्तीफा देने के लिए कहा एवं एक को राज्य में प्रवेश करने से रोक दिया गया। उन्होंने कहा कि महारानी के नये दीवान ए बी चटर्जी ने ऐसे मुश्किल दौर में मदद की।
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सुरेश रंजन
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