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Thursday, 28 March, 2024
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त्रिपुरा पुलिस ने दो वकीलों पर लगाया UAPA, ‘अगर और FIRs हो जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं’: फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम

त्रिपुरा पुलिस ने अभी तक 71 लोगों के खिलाफ मुक़दमा दर्ज किया है और सोशल मीडिया पर कथित रूप से भड़काऊ पोस्ट डालने के आरोप में पांच आपराधिक मामले दर्ज किए हैं.

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नई दिल्ली: त्रिपुरा पुलिस ने दो वकीलों के ख़िलाफ ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम लगा दिया है जिन्होंने आरोप लगाया था कि पिछले महीने राज्य में भड़की हिंसा में मुसलमानों को निशाना बनाया गया था. उन्होंने अपराधकर्त्ताओं के तौर पर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), हिंदू जागरण मंच (एचजेएम) और बजरंग दल जैसे सीमांत संगठनों को नाम भी लिया है.

अपनी रिपोर्ट में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL) की ओर से तथ्य खोजने और क़ानूनी सहायता के मिशन को अंजाम देने वाले वकीलों ने ये भी कहा कि त्रिपुरा सरकार और राज्य पुलिस ने हिंसा को रोकने के लिए समय पर कार्रवाई नहीं की जो ‘हिंसा को प्रायोजित करने के बराबर है’.

जिन वकीलों पर यूएपीए समेत अन्य आरोप लगाए गए हैं उनमें मुकेश, दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करते हैं और अंसार इंदौरी, सुप्रीम कोर्ट के वकील शामिल हैं. यह दोनों विभिन्न मानवाधिकार समूहों की एक अम्ब्रेला बॉडी नेशनल कंफेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशंस (एनसीएचआरओ) के सदस्य हैं.

इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में उनके साथ सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी और अमित श्रीवास्तव भी थे.

उनकी रिपोर्ट मंगलवार को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जारी की गई.

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त्रिपुरा में हिंसा उस समय शुरू हुई जब पिछले महीने पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में, 26 अक्टूबर को वीएचपी की हुंकार रैली के दौरान पानीसागर क़स्बे में एक मस्जिद में तोड़फोड़ की गई साथ ही दुकानों और घरों को निशाना बनाकर हमला किया.

उसके बाद कथित रूप से और कई घटनाएं हुईं जिनमें मस्जिदों में तोड़-फोड़ की गई और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी संपत्ति में आगजनी की गई.

हिंसा के सिलसिले में त्रिपुरा पुलिस ने अभी तक 71 लोगों के खिलाफ मुक़दमा दर्ज किया है और सोशल मीडिया पर कथित रूप से भड़काऊ पोस्ट डालने के आरोप में पांच आपराधिक मामले दर्ज किए हैं.

त्रिपुरा हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और राज्य सरकार से हिंसा पर एक रिपोर्ट तलब की है.

पीयूसीएल ने 30 अक्टूबर को प्रदेश का दौरा किया था.

दोनों वकीलों को 10 नवंबर तक अगरतला पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा गया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, मुकेश ने इस मामले को ‘साफ तौर पर संदिग्ध व्यक्तियों की खोज और प्रतिशोध’ क़रार दिया.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने हिंसा के लिए कुछ धार्मिक संगठनों की भूमिका का पर्दाफाश किया लेकिन त्रिपुरा पुलिस ने किसी से पूछताछ नहीं की और अब वो उन वकीलों के पीछे लग रहे हैं जो तथ्य खोजने वाली रिपोर्ट के लिए वहां गए थे’.

दिप्रिंट ने पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंचार्ज जयंता करमाकर से संपर्क करना चाहा लेकिन मैसेज और कॉल्स का कोई जवाब नहीं मिला.

पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि उन्हें मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है, ‘क्योंकि मामला अब कोर्ट में है’.


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अगर और FIRs हो जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं

पश्चिम अगरतला पुलिस ने बुधवार को दोनों वकीलों को नोटिस भेजा दिए है. उनपर आईपीसी की धारा 153ए (धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाने वाले, और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना),153 बी, 469 (ख्याति को नुक़सान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाज़ी), 471, 503 (आपराधिक रूप से धमकाना), 504, 120बी (आपराधिक षडयंत्र की सज़ा) और ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि को उकसाने या उसमें सहायता करने से संबंध रखने वाली, यूएपीए की धारा 13 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.        

नोटिस के अनुसार, जिसकी कॉपी दिप्रिंट ने देखी है, उनके ऊपर अपने बयानात और सोशल मीडिया पोस्टों के ज़रिए शांति भंग करने के आरोप लगाए गए हैं.

मुकेश ने कहा कि उन्होंने ‘ऐसा कुछ शेयर नहीं किया जिससे दूर-दूर भी हिंसा भड़की हो या धार्मिक समूहों के बीच नफरत पैदा हुई हो’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने सिर्फ वो तथ्य सामने रखे, जो मुझे ज़मीन पर दिखाई दिए’.

मुकेश के फेसबुक पेज पर त्रिपुरा हिंसा से जुड़ी एक पोस्ट, उनकी प्रेस कॉनफ्रेंस की एक यूट्यूब वीडियो जिसमें उन्होंने कहा कि वीएचपी और बजरंग दल ने पहले से ही अपने काडर्स को अल्पसंख्यकों के घरों में तोड़फोड़ और अल्पसंख्यक-विरोधी नारेबाज़ियों के लिए प्रशिक्षित कर दिया था.

मुकेश और अंसारी दोनों ने कहा कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया से कोई पोस्ट नहीं हटाई है. अंसारी ने भी कहा, ‘अगर उन्हें कुछ ज़रा सा भी राजद्रोही दिखता है तो अदालतें और सरकार चेक कर सकती हैं’.

हाशमी जिन्होंने फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम की अगुवाई की उन्होंने कहा कि वो अपनी रिपोर्ट पर क़ायम हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘मुझे कोई ताज्जुब नहीं होगा अगर हमारी फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम के दूसरे सदस्यों के खिलाफ भी एफआईआर दायर हो जाएं’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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