(गौरव सैनी)
नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) भारत के बाघ अभयारण्यों के ‘कोर जोन’ (बाघों के आवास का मुख्य क्षेत्र) में रहने वाले हजारों आदिवासियों ने इन क्षेत्रों से उनके शीघ्र स्थानांतरण के सरकारी निर्देश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
वन अधिकार अधिनियम के तहत अपने अधिकारों का दावा करने वाला आदिवासी समुदाय जंगलों से निकटता से जुड़ी अपनी आजीविका और परंपराओं के लिए “न्याय” की मांग करने के वास्ते दिल्ली में एकत्र होने की योजना बना रहे हैं।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 19 जून को एक आदेश जारी कर वन अधिकारियों को 54 बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में स्थित 591 गांवों के 64,801 परिवारों के पुनर्वास में तेजी लाने का निर्देश दिया।
एनसीटीए के पत्र में कहा गया, “गांवों के स्थानांतरण की प्रगति बहुत धीमी है और यह बाघ संरक्षण के मद्देनजर गंभीर चिंता का विषय है। यह बहुत सराहनीय होगा, यदि गांवों के स्थानांतरण के मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाए और गांवों को मुख्य/महत्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्रों से सुचारू रूप से स्थानांतरित करने के लिए समयसीमा तय की जाए।”
एनटीसीए के सदस्य सचिव गोबिंदसागर भारद्वाज ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि निर्देश कानून के अनुसार जारी किए गए हैं।
उन्होंने कहा, “यह पत्र एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है और बाघ अभयारण्यों से गांवों का स्थानांतरण पूरी तरह से स्वैच्छिक है। इसमें कोई भ्रम नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोगों ने पत्र की गलत व्याख्या की है।”
एक बाघ अभयारण्य में दो क्षेत्र होते हैं – कोर (बाघों का महत्वपूर्ण आवास) और बफर (परिधीय क्षेत्र)।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार, मुख्य (कोर) क्षेत्रों को “बाघ संरक्षण के उद्देश्य से अछूता रहना चाहिए”। इसके विपरीत, बफर क्षेत्र वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ स्थायी मानवीय गतिविधियों की अनुमति देते हैं।
मुख्य क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय और मूलनिवासी समुदायों का कहना है कि वे पीढ़ियों से प्रकृति और वनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए रह रहे हैं तथा उनकी आजीविका, संस्कृति और परंपराएं वन पारिस्थितिकी तंत्र से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के तहत, इन समुदायों को वन संसाधनों तक पहुंच, प्रबंधन और उपयोग के साथ-साथ इन जंगलों में रहने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
हालांकि, उनका तर्क है कि एफआरए के “विवादास्पद” और “विलंबित” कार्यान्वयन ने उन्हें जबरन बेदखल किए जाने के खतरे में डाल दिया है।
पिछले दो सप्ताहों में, राजाजी (उत्तराखंड), नागरहोल (कर्नाटक), उदंती-सीतानदी (छत्तीसगढ़), अचानकमार (छत्तीसगढ़) और काजीरंगा (असम) सहित कई बाघ अभयारण्यों में एनटीसीए के स्थानांतरण निर्देश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
समुदाय के नेता अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली में एक रैली की योजना बना रहे हैं, जिसमें एफआरए के त्वरित कार्यान्वयन और एनटीसीए आदेश को रद्द करने की मांग की जाएगी।
छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) के मुख्य क्षेत्र लोरमी गांव के निवासी सीमांचल ने कहा कि एनटीसीए के आदेश से बैगा समुदाय के पांच गांवों के लगभग 3,000 लोग प्रभावित हो सकते हैं।
बैगा, एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह है, जो अपनी आजीविका के लिए झूम खेती और वन संसाधनों पर निर्भर है।
सीमांचल ने कहा, “अभयारण्य में 25 गांव थे। 2013-14 में छह गांव लोगों को स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन उनकी स्थिति खराब हो गई। वे अब दयनीय परिस्थितियों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर हैं।”
शेष 19 गांवों में से 14 को एटीआर संघर्ष समिति के प्रयासों से 2022-23 में सामुदायिक वन अधिकार प्राप्त हो गए, लेकिन पांच गांवों के लिए प्रक्रिया अब भी लंबित है।
भाषा प्रशांत दिलीप
दिलीप
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