नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने 62 प्रमुख निजी अस्पतालों/श्रृंखलाओं के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर उनसे स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल कोर्स शुरू करने का आग्रह किया है. इस कदम का उद्देश्य मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की बढ़ती संख्या को कम करना है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि उम्मीद है कि निजी अस्पतालों के माध्यम से इस साल लगभग 1,500 अतिरिक्त मेडिकल सीटें उपलब्ध हो जाएंगी.
मांडविया ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा, “मैंने हाल ही में लीलावती, अमृता अस्पताल, मेदांता, ब्रीच कैंडी और कोकिलाबेन सहित 62 निजी अस्पतालों के साथ बैठक की और उनसे ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स शुरू करने का आग्रह किया. मुझे उम्मीद है कि उनमें से कम से कम 15-20 इस साल कुछ सीटों से शुरुआत करेंगे. उन्होंने कहा मैं व्यक्तिगत रूप से अपने डॉक्टरों को विदेशों के बजाय भारत में ट्रेनिंग देने के पक्ष में हूं.”
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2016 में निजी अस्पतालों को मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों के पात्रता नियमों में एक गैर-लाभकारी खंड को हटा दिया था. हालांकि, इस बदलाव के बावजूद उठाव न्यूनतम बना हुआ है, जबकि अपोलो जैसे प्रमुख अस्पतालों में चुनिंदा विशिष्टताओं में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स हैं, उन्होंने ग्रेजुएशन के क्षेत्र में प्रवेश से परहेज किया है.
समर्थन की उम्मीद
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, अस्पतालों को कोर्स शुरू करते समय सामर्थ्य को ध्यान में रखने के लिए कहा गया है और क्वालिटि बनाए रखने के लिए घटिया संस्थानों को बाहर निकालने की एक सख्त प्रक्रिया रखी जाएगी.
एक अधिकारी ने कहा, “निजी अस्पतालों में कुछ बेहतरीन बुनियादी ढांचे हैं, लेकिन मेडिकल शिक्षा में उनकी उपस्थिति बहुत सीमित है. हम इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं.”
मेडिकल शिक्षा प्रदान करने के लिए निजी अस्पतालों को लाना कुछ वर्षों से एक नीतिगत प्राथमिकता रही है, लेकिन यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर मामले की तात्कालिकता प्रबल हो गई, जब विदेश में पढ़ रहे सैकड़ों भारतीय मेडिकल छात्रों को अधर में छोड़ दिया गया.
वर्तमान नियम उन भारतीयों के लिए हैं, जिन्होंने इस देश में मेडिकल प्रैक्टिस करने के योग्य होने के लिए विदेश में मेडिकल की पढ़ाई की है- विदेशी मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जाम या एफएमजीई, जिसका पासिंग रेट दर खराब है. हालांकि, सिर्फ यूएस, यूके, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा की मेडिकल डिग्री वालों को इससे छूट है.
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः ‘ये बर्बादी है’- चीन से ऑनलाइन MBBS करने वाले छात्र 2 साल की इंटर्नशिप के लिए मजबूर, कोई पैसा नहीं