तिरुप्पुर: कोविड-19 के प्रकोप के लगभग छह महीने बाद तिरुप्पुर की कपड़ा (गारमेंट) बनाने वाली फैक्ट्री अब खुल चुकी हैं. इन फैक्ट्रियों पर संक्रमण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा था. तिरुप्पुर को भारत में ‘निटवियर की राजधानी’ भी कहा जाता है. अब यहां विश्व के कई भागों से एक्सपोर्ट ऑर्डर मिलने लगे हैं और काम शुरू हो चुका है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, तिरुप्पुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजा एम शनमुग़म ने कहा कि कोविड -19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने उद्योग को बड़ा झटका दिया, लेकिन श्रमिक अब कारखानों में वापस आ गए हैं.
उन्होंने कहा, सकारात्मक संकेत यह है कि जून, जुलाई और अगस्त को आमतौर पर हल्का (कम काम वाला) मौसम माना जाता है और हमें पहले से ही ऑर्डर मिल रहे हैं. पिछले तीन हफ्तों से, जब से कारखानों ने उत्पादन फिर से शुरू किया है, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसे देशों के लिए निर्यात शुरू हो गया है.
उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने तमिलनाडु हब के लिए 20 प्रतिशत कार्यशील पूंजी तरलता (वर्किंग कैपिटल लिक्विडिटी) और छह महीने का लोन मोराटोरियम प्रदान करने का निर्णय लिया है, जिसका निर्यात और घरेलू बिक्री में लगभग 52,000 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार है.
दुनिया भर में महामारी और बढ़ती चीन विरोधी भावना भी उद्योग को आगे बढ़ा सकती है और इसे एशियाई दिग्गजों से दूर व्यापार करने का अवसर प्रदान कर सकती है, जो दुनिया के प्रमुख कपड़ा निर्माता है.
अब तक, उद्योग का ध्यान शहर में सामान्य स्थिति बहाल करने पर था. बता दें कि 2 मई के बाद से कोई भी नया कोविड-19 का मामला सामने नहीं आया है. साथ ही सभी 114 रिपोर्ट किए गए मरीजों को छुट्टी भी दे दी गई है.
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कोविड -19 का शुरुआती प्रभाव
गारमेंट हब कहे जाने वाला तिरुप्पुर चेन्नई से करीब 450 किलोमीटर दूर है और इसकी आबादी लगभग 25 लाख है. -इसका भारत में कॉटन के बने रहे कपड़ों पर 90 फीसदी पर आधिपत्य रखता है.
यह बड़े पैमाने पर टीशर्ट का उत्पादन करता है साथ ही पैंट और जीन्स भी बनाता है. यह सभी कपड़े यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में निर्यात होते हैं. इसके वैश्विक स्तर पर प्रमुख और बड़े ग्राहकों में ज़ारा, जीएपी(गैप), मार्को पोलो, टॉमी हिलफिगर, एचएंड एम और पूमा जैसे नाम शामिल हैं.
जब जनवरी में कोविड -19 के प्रकोप ने चीन को प्रभावित किया और यात्रा पर प्रतिबंध लगाए गए, इन प्रतिबंधों ने तिरुप्पुर के इस हब को सबसे पहले प्रभावित किया. फिर अचानक निर्यात बंद हो गया और मार्च के मध्य में बाजार बंद हो गया क्योंकि पश्चिमी दुनिया ने उद्योग के लिए अव्यवस्था उत्पन्न की.
जिला कलेक्टर विजयकार्तिकेयन के. ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने लॉकडाउन से एक सप्ताह पहले सभी कपड़ा कारखाना मालिकों से मुलाकात की और सभी कारखानों को बंद करने का फैसला किया क्योंकि ‘खतरा मोल लेने से जरूरी था कि खतरे से दूरी बना ली जाए.’
शनमुग़म ने कहा, ‘जनवरी की शुरुआत के बाद से ही, तिरुप्पुर में कपड़ा उद्योग को लगभग 9,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है,’ उन्होंने बताया कि पुराने कपड़े निर्यात नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि यूरोपी और अमेरिका के बाजार मौसम के आधार पर काम करते हैं.
शिखर-निर्माता वारसॉ इंटरनेशनल के मालिक, शनमुग़म ने कहा कि पीक सीज़न के दौरान – मार्च से मई के दौरान उद्योग को सामान्य स्थिति में 2,700 करोड़ रुपये तक के सामान का निर्यात होता था.
जैसा कि अप्रैल से अर्थव्यवस्था फिर से खुलने लगी थी, कारखानों को शुरू में 30 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ काम करना पड़ा, फिर 50 प्रतिशत और अब लगभग सभी आ रहे हैं.
पीपीई का निर्माण – लॉकडाउन के दौरान उद्योग कैसे काम करता रहा
तिरुप्पुर में 1,500 कंपनियां हैं जो सीधेतौर पर निर्यात से जुड़ी हैं. जबकि इसकी 10,000 सहायक इकाइयां भी हैं. लॉकडाउन के दौरान इनमें से कई कारखाने बंद थे, लेकिन कुछ खुले रहे क्योंकि वे निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट बनाने में जुटे हुए थे, इस दौरान भारत ने कोविड -19 से लड़ने के लिए अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ा दिया था.
एससीएम गारमेंट्स, जो तिरप्पुर के पांच बड़े एक्सपोर्टर में शामिल है ने लॉकडाउन के दौरान 5 लाख पीपीई किट का निर्माण किया. कंपनी के मार्केटिंग हेड अशोक ने कहा, ‘हमने न केवल पीपीई किट का उत्पादन किया, बल्कि हमने आइसोलेशन गाउन और मास्क भी बनाए, जो तमिलनाडु सरकार और केरल सरकार को दिए गए थे.’
सुरक्षा सामग्री का उत्पादन लॉकडाउन के 15 दिन बाद शुरू हुआ और कंपनी के कर्मचारी इसमें पूरी तरह से शामिल रहे.
विजयाकार्तिकेयन ने कहा कि पीपीई किट और उपकरण जैसे आइसोलेशन गाउन, गॉगल्स, मास्क सिर्फ तमिलनाडु और केरल को नहीं बल्कि तेलंगाना और अन्य राज्यों को भी भेजे गए थे. उन्होंने कहा कि गैर-कोविड परिदृश्य पर अगर नजर डालें तो इन दिनों में कारखानों ने जो कमाया है, वह आम दिनों का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा है, जिसने पूरे काम को चलते रहने में काफी मदद की है.
यह एक मानवीय प्रयास के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन बाद में एक व्यावसायिक लेंस से देखा जाने लगा, शनमुग़म ने कहा, पीपीई निर्माण ने आर्थिक रूप से मदद की, लेकिन साथ ही उद्योग की आंखों को तकनीकी कपड़ा क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति के लिए खोल दिया. इसमें लगभग 10 प्रतिशत लेबर फोर्स भी शामिल थी.
प्रवासी संकट के बीच उद्योग ने क्या किया
तिरप्पुपर की गार्मेंट इंडस्ट्री में करीब 6 लाख लोग काम करते हैं जिसमें 2-2.5 लाख प्रवासी मजदूर हैं. विजयाकार्तिकेयन ने कहा कि यहां लगभग सभी 29 राज्यों के लोग काम करने आते हैं.
शनमुग़म ने कहा, ‘इस जगह आने वाले सभी लोग स्वतंत्र वातावरण में सांस लेंगे और उन सभी सामाजिक कलंक के चंगुल से मुक्त होंगे, जिनके साथ वे रह रहे थे.’
जब लॉकडाउन लागू किया गया था, तो देश के अधिकांश हिस्सों की तरह, तिरुप्पुर ने भी प्रवासियों के पलायन को देखा. जबकि कुछ लोग अपने घरों में फंसे हुए थे क्योंकि वे मार्च में कुछ हफ्तों के लिए होली के लिए अपने घर गए हुए थे और वापस नहीं लौटे थे, कुछ अन्य लोग लॉकडाउन के तुरंत बाद अपने घरों के लिए रवाना हो गए.
यह दोनों उद्योग के साथ-साथ श्रमिकों के लिए हानिकारक था, शनमुग़म ने भी कहा कि उन्हें विश्वास है कि हर कोई काम करने के लिए जल्द वापस लौटेगें.
विजयाकार्तिकेयन ने कहा कि उन्हें उद्योग में किसी भी तरह की छंटनी या सैलरी में कटौती हुई है इसके बारे में पता नहीं है.
शनमुग़म ने कहा कि जो लोग लौट आए थे, उन्हें भुगतान नहीं किया जा सका है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कारखानों ने लॉकडाउन के दौरान भोजन और सूखे राशन का ध्यान रखा, लेकिन वे मजदूरी नहीं दे सके. उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के राज्य बीमा (ईएसआई) में मजदूरों की भलाई का ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि सभी कारखाने ईएसआई को निर्धारित रूप से 100-150 करोड़ रुपये सालाना देते हैं.
‘ईएसआई को श्रमिकों का ध्यान रखना चाहिए लेकिन कोई भी इसका उपयोग नहीं कर रहा है. इस मामले में उनलोगों ने चुप्पी साध रखी है.’ शनमुगम ने कहा.
तारा बोडो भद्रा, जो कोलकाता की हैं और यहां एक कारखाने में काम करने वाले मजदूरों में से एक हैं और वह छह साल से तिरुप्पुर में काम कर रही हैं, ने बताया, ‘लॉकडाउन के दौरान मैंने घर जाने की कोशिश नहीं की. हमें यहां किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा, जिस कंपनी के लिए हम काम कर रहे हैं, उसमें से प्रत्येक ने हमें लॉकडाउन के दौरान 700 रुपये दिए और हमें सरकार से राशन मिला, इसलिए कोई समस्या नहीं हुई.’
विजयाकार्तिकेयन ने कहा कि स्थानीय प्रशासन कम ब्याज के साथ लंबे समय के पुनर्भुगतान समय के साथ प्रणाली में अधिक नकदी का उपयोग करने के लिए ऋण का भी इंतजाम किया है. मजदूरों की शिकायतों को दूर करने के लिए एक कोविड नियंत्रण कक्ष भी स्थापना की गई.
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संचालन फिर से शुरू, चीन पर बढ़त
शनमुग़म ने कहा कि काम शुरू हो चुका है और फैक्ट्रियों को ऑर्डर मिलने लगे हैं. जबकि उन्होंने कोविड -19 लॉकडाउन को ‘असामान्य’ घटना बताया, लेकिन वह आशावादी है और उनका मानना है कि छह महीने से पहले उद्योग सामान्य स्थिति में पहुंच जाना चाहिए.
तिरुप्पुर के नेताजी अपैरल पार्क में, करतार फैशन प्राइवेट लिमिटेड की एक कार्यकर्ता, सरोजिनी ने कहा कि उसने दो हफ्ते पहले सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ काम फिर से शुरू किया है.
‘हमें अपने हाथों को नियमित रूप से धोना है, काम करते समय दूरी बनाए रखना है और हमेशा मास्क लगाए रखना है.’ उन्होंने कहा. कारखाने में फर्श पर लोगों को दूरी बनाए रखने के लिए गोले और चौकोर आकार बनाए गए हैं जिससे लोग सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें.
यह पूछे जाने पर कि क्या महामारी कपड़ा उद्योग पर अपना स्थायी प्रभाव छोड़ेगी, शनमुग़म ने कहा यह एक नए सामान्य की स्थिति को लाएगा. हां अब मास्क निर्माताओं के लिए एक अतिरिक्त व्यवसाय के रूप में शामिल हो गया है जिसके बारे में पहले सपने में भी नहीं सोचा गया था.
उन्होंने कहा कि महामारी चीन में एक वैश्विक टकराव पैदा कर सकती है और भारत को इसके निर्यात को बढ़ाने में मदद कर सकती है. हालांकि, इसके लिए भारत को तैयार होने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘सरकार और औद्योगिक दोनों स्तरों पर हमारे पास तैयारियों की कमी देखी जा रही है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इस अवसर को हड़पने के लिए हमें तैयार रहने और उस स्तर तक पहुंचने की जरूरत है. यह कहना आसान है कि चीन को मिलने वाले ऑर्डर अब तिरुप्पूर को मिलेंगे. हालांकि, इसे धरती पर लाना और निष्पादन करना मुश्किल है. हमें अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने की जरूरत है. चीन के पास बड़े पैमाने पर उत्पादन का आधार है और बहुत मजबूत प्रतिबद्धता भी है.
शनमुग[म ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह है कि हम उस प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) का सम्मान नहीं करते हैं, जो हमारी स्थिरता और गुणवत्ता को अपेक्षाकृत कमजोर करती है.
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