नई दिल्ली: राकेश टिकैत के आंखों से निकले महज कुछ आंसुंओं ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के बीच खुद को प्रतिष्ठा का प्रतीक बना और नरेंद्र मोदी की बाजी को पूरी तरह बदल दिया. यह सब गणतंत्र दिवस पर किसानों द्वारा की गई हिंसा के मजह एक दिन बाद ही हुआ.
28 जनवरी को जब गाजीपुर बॉर्डर पर भारी पुलिस बल के बीच, जब ऐसा लग रहा था कि किसान आंदोलन आज खत्म हो जाएगा तभी राकेश टिकैत मीडिया के सामने फफक फफक कर रोए और उन्होंने कहा कि वो आत्म हत्या कर लेगें लेकिन आंदोलन खत्म नहीं होने देंगे. और फिर सारी बाजी पलट गई.
भारी पुलिसबल के साथ दिल्ली यूपी के ग़ाज़ीपुर बार्डर को खाली कराने पहुंची पुलिस , अर्धसैनिक बल के पैर अचानक ठिठक गए.
पश्चिमी यूपी के किसानों में उनके आंसूओं ने आग में घी का काम किया और जाट समुदाय ने इसे अपनी सम्मान के साथ खिलवाड़ मान लिया.
टिकैत वहीं हैं जिन्होंने 2014 में भारतीय जनता पार्टी का धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया और पार्टी का साथ दिया था आज भाजपा की निंदा की है और कहा है कि यह विरोध अक्टूबर तक जारी रहेगा.
कई पश्चिमी यूपी के जिलों में जाटों ने पंचायतें की हैं, आंदोलन तेज करने की धमकी दी है और साथ ही भाजपा नेताओं का भी बहिष्कार किया है.
29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में टिकैत के बड़े भाई और बीकेयू प्रमुख नरेश टिकैत द्वारा आयोजित महापंचायत में लाखों जाटों की उपस्थिति देखी गई. बुधवार को टिकैत हरियाणा के जींद में महापंचायत कर रहे हैं.
पिछले दिनों टिकैत के गृह ज़िले मुज़फ़्फ़रनगर में हुई खाप पंचायत में उमड़ी भीड़ ने पश्चिमी यूपी के किसानों को उनके पिता महेन्द्र सिंह टिकैत की याद दिला दी, जब सीनियर टिकैत ने 1988 में अपने वोट क्लब के धरने से यूपी से लेकर दिल्ली की सरकार को हिला दिया था.
जाटों की राजधानी माने जाने वाले सिसौली में ढेर सारे घरों में उस रात जाटों ने खाना तक नहीं खाया और दूसरे दिन जाट पंचायत में आंदोलन तेज करने और बीजेपी नेताओं का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया,कई किसानों ने कहा राकेश का आज जन्म हुआ है .
टिकैत ने जाटों को कैसे एक किया
राकेश टिकैत के एक करीबी दोस्त ने दि प्रिंट को बताया कि ‘जाट समुदाय के लिए सम्मान सबसे बड़ा होता है. जब योगी और सरकार के मंत्री राकेश टिकैत से घंटो बात करते थे ,राकेश को लगा कि जब बीजेपी मेरे साथ ऐसा कर सकती है तो ऐसी पार्टी के साथ सहानूभूति रखने का कोई मतलब नहीं. एक तरह से यह पश्चाताप के आंसू थे.
‘जाटों के बीच संदेश ऐसा गया कि ताकतवर सरकार कमजोर टिकैत को दबा रही है. यह जाटों के सम्मान पर हमला था .जाटों के लिए टिकैत सम्मान की लड़ाई के प्रतीक बन गए. तभी से जाट गोलबंद होने शुरू हो गए. ‘
उनके दोस्त ने कहा,’2019 में, टिकैत ने मुज़फ्फरनगर से भाजपा के संजीव बाल्यान को जीतने में मदद की थी. फैसले में अपनी गलती को स्वीकार करते हुए, उन्होंने जाटों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाने का प्रयास किया है.’
गाजीपुर में पिछले दिनों विपक्षी एकता का प्रदर्शन भी दिखा, जिसमें जाट नेता अजीत सिंह, अकाली दल के सुखबीर बादल, AAP के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के संजय निरुपम, शिवसेना के संजय राउत ने मौके का फायदा उठाया.
कौन हैं टिकैत
52 वर्षीय बीकेयू के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के चार बेटों में दूसरे नंबर के बेटे हैं राकेश टिकैत. 2011 में कैंसर के कारण वरिष्ठ किसान नेता के निधन के बाद, बाल्यान खाप की परंपराओं के अनुसार, उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत का भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष के रूप में अभिषेक किया गया था और राकेश टिकैत को इसके प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किये गए थे.
पर टिकैत परिवार के करीबी बताते हैं कि राकेश में नेतृत्व के गुण के कारण संगठन में उनकी ही ज़्यादा चलती है. टिकैत परिवार के विरोधी बताते हैं कि महेन्द्र सिंह टिकैत एक बड़ी शख़्सियत थे.
लेकिन दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़कर पिता का साथ देने आए राकेश टिकैत वैसी शख़्सियत नहीं बना पाए क्योंकि वो सत्ता के साथ अपनी राजनैतिक ज़मीन बदलते रहे.
लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सुधीर पंवार बताते है, ‘टिकैत साहब का खांटीपन, ईमानदारी और सरकार के प्रलोभनों से दूर रहने के कारण सारे नेता उनका सम्मान करते थे. बल्कि उन्हें डर लगता था कि ‘पता नहीं कब यह व्यक्ति आंदोलन शुरू कर दे.’ उन्होंने अपने जीवन में किसानों की मांग के लिए न जाने कितने आंदोलन किए लेकिन कभी सत्ता से कुछ लिया नहीं. सबसे अपने खेत में ही मिलते थे. मेरठ के ऐतिहासिक आंदोलन के बाद टाईम्स ऑफ इंडिया ने लिखा ‘दूसरे महात्मा का जन्म हुआ है.’
बीजेपी की मदद करने से लेकर उसे शुरू करने तक
2013 में, कंवल पंचायत और दंगों में 63 लोगों के मारे जाने के बाद, टिकैत ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय को लामबंद किया और भाजपा के साथ इस हद तक गठबंधन किया कि उन्होंने अजीत सिंह के लिए वोट नहीं किया, जो समुदाय के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के बेटे थे.
भाजपा के एक पूर्व सांसद ने कहा, 2014 में , राकेश टिकैत ने अमरोहा से अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के चुनाव लड़ने पर, मुज़फ्फरनगर में बाद में समर्थन बढ़ाया, लेकिन चालाकी से उनकी खाप पंचायत ने ध्रुवीकरण कर भाजपा को मदद की.
नाम न बताने की शर्त पर भाजपा नेता ने कहा कि बाद में टिकैत ने 2017 के विधानसभा चुनाव में और 2019 के लोक सभा चुनाव में भी भाजपा की मदद की.
पूर्व सांसद ने कहा, ‘ जो आज उन्होंने क़बूला है. यह और कुछ नहीं ,जाटों के बीच अपनी खोई ज़मीन पाने की कोशिश है. समय बताएगा जाटों का भावनात्मक ग़ुस्सा कब तक उनके साथ रहता है.’
2013 की खाप पंचायत जिसके बाद हिंसा भड़की गई उसमें राकेश और बीजेपी के केन्द्र में मंत्री संजीव बालियान के लोग भी शामिल थे और एफ़आइआर में उनके नाम भी थे .यहां तक की किसान आंदोलन की एकता में सबसे कमजोर कड़ी उन्हें ही माना जा रहा था .टिकैत ने गुरूवार ग़ाज़ीपुर मंच से कहा कि मैंने बीजेपी को वोट दिया था लेकिन मेरे साथ बीजेपी ने साज़िश की
मौक़े पर चौका मारते हुए गुरूवार की रात जाटों के नेता अजीत सिंह ने सबसे पहले राकेश टिकैत को फ़ोन किया और आंदोलन में डटे रहने को कहा.
शुक्रवार को अजित सिंह के बेटे और पूर्व सांसद जयंत चौधरी राकेश टिकैत से मिलने ग़ाज़ीपुर बार्डर गए.
टिकैत चौधरी के पुराने सहयोगी रहे है .
वैसे केजरीवाल ने भी पंजाब और यूपी चुनाव को देखते हुए मनीष सिसोदिया को राकेश टिकैत से मिलने भेजा.
शुक्रवार को हुई खाप पंचायत में राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत ने अपनी गलती मानते हुए कहा कि 2014 में अजित सिंह को हराना हमारी गलती थी. यह जाटों को इक्टठा करने की रणनीति थी . 2014 में टिकैत ने संजीव बालियान को जिताने में मदद की थी.अपनी गलती मानकर उन्होंने जाटों के दिल में जगह बनाने की कोशिश की
राकेश टिकैत का उदय ,क्या योगी के लिए चुनौती
तो सवाल अब उठता है कि क्या राकेश टिकैत पश्चिमी यूपी में किसान राजनीति को नई दिशा दे सकते हैं. क्या जाट समुदाय जो मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद से बीजेपी के साथ आ खड़ा हुआ है और जिसने अपनी बिरादरी और किसानों के नेता चरण सिंह के बेटे और पोते को भी वोट नहीं दिया, अपना पाला बदल सकता है.
यूपी में ज़मीन तलाश रही प्रियंका गांधी की कांग्रेस ,सत्ता से बेदख़ल समाजवादी पार्टी और अजित सिंह की तिकड़ी के ज़रिये टिकैत क्या नई राजनैतिक ज़मीन तलाश योगी के लिए मुसीबत बन सकते हैं?
सुधीर बालियान कल्याण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और जाटों की प्रतिष्ठित सीट खतौली सीट से जीतते रहे हैं.
2007 में जब राकेश टिकैत ने पहली बार चुनावी राजनीति में निर्दलीय रूप से क़िस्मत आज़मायी तो बालियान उनके सामने चुनाव लड़े थे.
सुधीर बालियान कहते है ‘राकेश टिकैत की जाटों में महेन्द्र सिंह टिकैत वाली इज़्ज़त कभी नहीं रही हालांकि जाटों की बिरादरी के प्रमुख उनके भाई खुद है. पहली बार चुनाव में महज़ उन्हें आठ हज़ार वोट मिले थे और 2014 में जब अजित सिंह की पार्टी लोकदल से खड़े हुए तब भी चुनाव नहीं जीत सके.’
2007 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चौधरी अजित सिंह की पार्टी लोकदल के साथ गठबंधन था. अजित सिंह को बीजेपी ने 47 सीटें दी. टिकैत उनके साथ थे पर अजित सिंह ने मात्र 14 सीटें जीती. मतलब राकेश टिकैत अजित सिंह के पक्ष में भी वोटों को ट्रांसफ़र अकेले नहीं करा पाए.
मायावती ने जाट बनाम अन्य की लड़ाई लड़ बाकियों को गोलबंद कर लिया .मोदी और शाह जब 2013 में दिल्ली आए तो उन्होंने अजित सिंह से भी गठबंधन को नकार दिया.
एक जमाने में अजित सिंह से गठबंधन करने के लिए पापड़ बेलने पड़ते थे. पर मोदी शाह ने पश्चिमी यूपी प्रोजेक्ट के लिए टिकैत की सहायता तो ली पर अपने जाट नेताओं को बढ़ाना शुरू कर दिया .
जाटों के सम्मान पर चोट की भावना लंबे समय तक रहेगी या नहीं यह समय बताएगा क्योंकि विधानसभा चुनाव अभी दूर है. पर टिकैत की रोने घटना को और अच्छे ढंग से हल किया जा सकता था ,जाट भावनात्मक हो गए है.’
तो क्या बीजेपी ने टिकैत को हल्के में लिया
पश्चिमी यूपी से बीजेपी के पूर्व सांसद कहते है, ‘पार्टी को लगता था कि पंजाब के किसान संगठन चूंकि वामपंथी विचार से तालुक्कात रखते हैं, सिख समुदाय जो बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक नहीं है और पूरे राशन पानी के साथ लंबी लड़ाई के लिए आए हैं उनकी एकता तोड़ना आसान नहीं होगा.’
सांसद नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘पर टिकैत तो अपना ही सहयोगी है और उन्हें आसानी से मनाया जा सकता है. देर सवेर राकेश को मनाया जा सकता था पर सरकार की एक भूल ने राकेश को नेता बनने का मौक़ा दे दिया. राकेश को भी लगा कि अपनी खोई ज़मीन पाने का इससे बढ़िया मौक़ा नहीं हो सकता.’
बीजेपी नेता कहते है, ‘चुनाव हमेशा सामाजिक समीकरण पर जीते जाते हैं 2013 के पहले जाट चौधरी को वोट देता था. हमने हिन्दू ध्रुविकरण के ज़रिये जाट गुर्जर और बाक़ी जातियों को इक्टठा कर लिया. पर ऐसी घटना उस सामाजिक एकता को ख़त्म कर सकती है. जाट और सिख में एक समानता है कि वो अपने सम्मान के लिए दोस्त होकर भी कभी भी दुश्मन बन सकता है, अगर आपने उनके सम्मान को ललकारा .
बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के ट्वीट ने इस भावना को भड़काने में आग में घी का काम किया. मिश्रा ने लिखा कि टिकैत रो रहा है, पूरा देश हंस रहा है. ‘न्यूज़ चैनलों की एकतरफ़ा कवरेज ने जाटों को और भड़काया. जब टिकैत और उनके साथ के किसानों पर व्यंग्य कसे गए,जाटों को लगा कि सिख किसानों को बार बार खालिस्तानी कहा गया पर हम जाटों ने तो बीजेपी को वोट किया था ,हमें क्यों अपमानित किया जा रहा है.’
पश्चिमी यूपी के समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद कहते है, ‘अजित सिंह ने जाटों के इलाक़ों में कभी भी कोई बड़ा विकास नहीं किया. पर चुनाव के समय खाप पंचायत में हाथ जोड़कर पहुंच जाते थे और कहते थे इज़्ज़त का सवाल है. जाटों ने चौधरी चरण सिंह के नाम पर कितने चुनाव जिताये.
‘वैसे ही जब जाटों ने महेन्द्र सिंह टिकैत के बेटे को रोते देखा तो उनका ज़मीर जागा कि अरे यह तो टिकैत के बेटे के साथ ठीक नहीं हुआ.’
‘महेन्द्र टिकैत अब भी उनके लिए परिवार की स्मृति है हर गांव में उनसे जुड़ी कहानियां है जो बीजेपी को परेशान कर सकती है .’
जाटों ने बीजेपी को वोट दिया उसमें टिकेत परिवार की भुमिका समझ नंही आई! जब राकेश टिकैत 2014 में अपना चुनाव राष्ट्रीय लोक दल से लड़ रहा था फिर उसने बीजेपी की मदद कैसे की?
विना मतलब के झूठ सच लिख दो अपना राज है