नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून को लेकर यूपी में हो रहे विरोध के दौरान फिरोजाबाद में गोली से घायल हुए मोहम्मद शफीक ने 26 दिसंबर की सुबह दम तोड़ दिया था. फिरोजाबाद के घायलों की सफदरजंग और एम्स अस्पताल में हुई ये तीसरी मौत है. इसके बाद मोहम्मद अबरार नाम के एक और शख्स को सफदरजंग लाया गया है. उनके परिवार के लोग बताते हैं कि उन्हें रीढ़ की हड्डी पर गोली लगी है.
सफदरजंग में एक किशोर मुकीम की 23 दिसंबर और एम्स में भर्ती मोहम्मद हारून की 25 दिसंबर को रात 1 बजे मौत हुई थी. शफीक की मेडिकल रिपोर्ट में साफ लिखा है कि उन्हें गोली लगने के घाव थे. लेकिन हारून व मुकीम की शुरुआती रिपोर्ट्स इस बात का जिक्र नहीं करतीं. हारून और मुकीम को लेकर अस्पताल प्रशासनों ने भी ये साफ नहीं किया है कि उनके शरीर में ये घाव गोली लगने से हुए थे या नहीं.
दिप्रिंट ने सफदरजंग अस्तपाल प्रशासन से बात की तो पता चला कि शफीक और मुकीम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स 15 जनवरी के बाद ही आएंगी. हारून के परिवार को एक महीने के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स लेने की बात कही गई है. ऐसे में पीड़ित परिवार आशंकित हैं और पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स का इंतजार कर रहे है क्योंकि ये रिपोर्ट्स ही उनके दावे कि ये मौतें विरोध प्रदर्शनों में गोली लगने से हुई हैं, के पक्ष या विपक्ष में काम करेंगी. जबकि एम्स के ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि इस मसले को लेकर गोपनीयता बरत रहे हैं. हालांकि विभाग प्रमुख से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनकी तरफ से जवाब नहीं मिला है.
यूपी से एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के साथ लौटे स्वराज इंडिया प्रमुख योगेंद्र यादव ने यूपी पुलिस पर गंभीर आरोप लगाया है कि पीड़ित परिवारों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स नहीं दी जा रही हैं.
राष्ट्रीय मीडिया में चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस हर्ष मंदर ने भी कहा, ‘यूपी पुलिस की बर्बरता को लेकर एक स्वतंत्र कानूनी जांच होनी चाहिए. उसके लिए जरूरी है कि महत्वपूर्ण साक्ष्यों को सुरक्षित रखा जाए. इस संबंध में सीसीटीवी फुटेज और पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स अति महत्वपूर्ण हैं लेकिन संभव है कि पुलिस इन साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर मामलों को प्रभावित करने की कोशिश करे.’
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मगर दिप्रिंट से बात करते हुए फिरोजाबाद एसएसपी सचिंद्र पटेल कहते हैं, ‘ जब मामलों में दिल्ली एम्स और सफदरजंग अस्पताल व दिल्ली पुलिस शामिल है तो यूपी पुलिस मेडिकल रिपोर्ट्स को किस तरह प्रभावित कर सकती है? पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स का इंतजार हमें भी है. शफीक के परिवार के आरोप कि गोली पुलिस ने चलाई है, बेबुनियाद हैं. हम पीड़ित परिवारों से लगातार संपर्क में हैं.’
जामिया हिंसा को लेकर हाई-कोर्ट में याचिका दायर करने वाले दिल्ली बेस्ड वकील तारीक खान का कहना है, ‘आमतौर पर दो या तीन हफ्तों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स दे दी जाती हैं. मृतक के परिवार वालों को ये जानने का पूरा हक है कि कि मौत का क्या कारण रहा. बॉडी हैंड ओवर करते वक्त भी मौत के कारण बताये जाते हैं.
अगर अस्पताल वाले मीडियाकर्मियों से भी घायल होने के कारण नहीं बता रहे हैं तो संबंधित एसएसपी या डीसीपी को लिखकर इन मामलों की मेडिकल रिपोर्ट्स तुरंत उपलब्ध कराई जानी चाहिए.’
मगर पीड़ित परिवारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आशंकाओं को लेकर एसएसपी सचिंद्र पटेल का कहना है कि हम खुद इन रिपोर्ट्स के इंतजार में है. पुलिस के मुताबिक 20 दिसंबर को फिरोजाबाद हिंसा में लाठीचार्ज और आंसू गैस का ही इस्तेमाल किया था. लेकिन 28 दिसंबर की सुबह मातम मना रहे शफीक के परिवार के पास जब फिरोजाबाद पुलिस पहुंची और मृतक के आधार कार्ड व बाकी मेडिकल रिपोर्ट्स मांगी तो परिवार डर गया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए शफीक की पत्नी रानी कहती हैं, ‘हमारी बात केजरीवाल तक पहुंचा दो कोई. यूपी में कोई मुसलमान जिंदा नहीं बचेगा. मेरे पति को मारने वाली पुलिस अब क्या उनपर झूठा मुकदमा चलाएगी. आधार कार्ड क्यों ले जा रहे हैं?’
रानी के इस बयान पर एसएसपी ने सफाई दी है कि आगे की जांच कार्रवाई के लिए पुलिस जरूरी कागजात जुटाने के लिए मृतकों के परिवारों के पास जा रही है. एसएसपी बताते हैं कि हमारी मंशा उन्हें धमकाने या आशंकित करने की नहीं है. लेकिन इसके साथ ही वो जोर देकर कहते हैं, ‘हम निर्दोषों को पकड़ेंगे नहीं, दोषियों को छोड़ेंगे भी नहीं.’
‘पुलिस और अस्पताल का रवैया अजीब’
24 दिसंबर के दिन अस्पताल में लाश का इंतजार कर रहे मुकीम के चाचा के पास मेडिकल कागजों के नाम पर कुछ भी नहीं था. फोन में एक रफ रिपोर्ट की तस्वीर दिखाते हुए उन्होंने दिप्रिंट को बताया था, ‘हमारे सारे कागज सफदरजंग पुलिस चौकी के पास हैं. मेरे पास कुछ नहीं है.’
लगभग डेढ़ दिन बाद हुए पोस्टमार्टम और कई कानूनी पेचिदिगियों के बाद उन्हें मुकीम का शव सौंपा गया. कुछ ऐसा ही हारून के परिवार वालों कहना है कि अस्पताल वालों ने जानबूझकर पोस्टमार्टम करने में 18 घंटे से ज्यादा का वक्त लगाया.
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मुकीम के परिवार से हुई टेलिफॉनिक बातचीत में वो बार-बार किसी भी डिस्चार्ज रिपोर्ट ना सौंपे जाने की बात करते हैं. लेकिन सफदरजंग चौकी के अधिकारी दिप्रिंट को बताते हैं, ‘हमारे पास उस परिवार की कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं है. जब हमारे पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो हम फिरोजाबाद पुलिस को सूचित करेंगे.’
सफदरजंग अस्पताल अथॉरिटीज का इसपर कहना है, ’15 जनवरी के बाद ही इन दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आएंगी. आमतौर पर भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आने में इतना वक्त लग जाता है. इन केसों के लिए हो सकता है डॉक्टर्स जल्दी रिपोर्ट तैयार करें. हम यहां पुलिस चौकी को रिपोर्ट्स भेजेंगे.’
‘हम मुंह नहीं खोलेंगे, योगी हमें मरवा देंगे’
यूपी पुलिस के रवैये को लेकर पीड़ित परिवार आश्वस्त नहीं हैं. अस्ताल में 24 तारीख को हुई मेरी और रानी की मुलाकात के दौरान भी रानी ने डर जाहिर करते हुए कहा था, ‘मैडम मेरे बताने से पुलिस मेरे शौहर को तो कुछ नहीं करेगी न? हमारे पीछे आगरा से दो पुलिस वाले लगे हुए हैं, मैंने अस्पताल में भी देखा था उन्हें.’ 27 दिसंबर को रानी के भाई कइय्यम पहलवान टेलिफोन पर ही जोर-जोर से रोने लगते हैं, ‘हमने अपनी बहन को समझा दिया है. हमने इस देश का नमक खाया है और हमें ही गद्दार कह रहे हैं. इतना डर हमें कभी नहीं लगा था. अब हम मुंह नहीं खोलेंगे वरना योगीजी हमारे बच्चों को नहीं छोड़ेंगे.’
उधर हारून के परिवार का कहना है, ‘पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद डिस्चार्ज कॉपी की तस्वीरें नहीं लेने दीं. रिपोर्ट्स दिखाने में भी जल्दबाजी की. हमें पुलिस का रवैया संदेहास्पद लगा.’
अब तक दर्ज हुईं 35 एफआईआर
दिप्रिंट से हुई बातचीत में एसएसपी सचिंद्र बताते हैं, ’20 दिसंबर को हुई हिंसा में हमारे 18 जवानों को फायर आर्म चोटें आई हैं और 50 से ज्यादा जवान पथराव के चलते घायल हुए हैं. कुछ का इलाज अभी घर पर चल रहा है और कुछ अब ड्यूटी पर लौट आए हैं. 20 तारीख को हमने 13 लोग अरेस्ट किए थे. उसके बाद एक और व्यक्ति को इस दंगे के संबंध में अरेस्ट किया गया था.
कुल मिलाकर 14 लोग ही हिरासत में हैं. पब्लिक प्रॉपर्टी जलाने के लिए अब तक 35 एफआईआर दर्ज हुई हैं. हम कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी निर्दोष गलती से ना फंसे लेकिन हम ये भी कह रहे हैं कि एक भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा.’