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Tuesday, 3 December, 2024
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संसदीय समिति की सिफारिश — आर्थिक अपराधों के लिए गिरफ्तार लोगों को नए कानून के तहत नहीं लगे हथकड़ी

सीआरपीसी की जगह लेने के लिए प्रस्तावित कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की जांच करने वाली समिति ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट पेश की. इसकी सिफारिश है कि हथकड़ी लगाना कई प्रकार के ‘आर्थिक अपराधों’ के लिए उपयुक्त नहीं है.

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नई दिल्ली: कानून दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को प्रतिस्थापित करने वाले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की जांच करने वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि ‘आर्थिक अपराध’ के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस द्वारा हथकड़ी का इस्तेमाल किए जाने के प्रावधान को प्रस्तावित कानून के खंड 43(3) से हटाया जाना चाहिए.

बीजेपी नेता बृजलाल की अध्यक्षता वाली 28-सदस्यीय गृह मंत्रालय की स्थायी समिति ने बीएनएसएस पर संसद में सोमवार को पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की, “आर्थिक अपराध” शब्द में छोटे से लेकर गंभीर तक के अपराधों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है और इसलिए, इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाने के लिए यह उपयुक्त नहीं हो सकता है.

बीएनएसएस सीआरपीसी 1973 की जगह लेगा, जो भारतीय दंड संहिता और आपराधिक अपराधों को नियंत्रित करने वाले किसी भी अन्य कानून के तहत अपराधों की गिरफ्तारी, जांच, पूछताछ और मुकदमे की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है.

बीएनएसएस के खंड 43 (3) में कहा गया है कि “पुलिस अधिकारी, अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, किसी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी करते समय हथकड़ी का उपयोग कर सकते हैं जो आदतन, बार-बार अपराधी है, हिरासत से भाग गया है, जिसने संगठित अपराध, आतंकवादी कृत्य का अपराध, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध, या हथियारों और गोला-बारूद के अवैध कब्जे का अपराध, हत्या, बलात्कार, एसिड हमला, सिक्कों और मुद्रा नोटों की जालसाजी, मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, जिसमें भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य या आर्थिक अपराध शामिल हैं.”

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि क्लॉज 43 (3) में उल्लिखित हथकड़ी लगाना उचित रूप से चुनिंदा जघन्य अपराधों तक ही सीमित है, जो गिरफ्तारी के दौरान गंभीर अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के भागने को रोकने और पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है. पैनल ने कहा, ‘‘हालांकि, समिति का मानना है कि ‘आर्थिक अपराधों’ को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.’’

बीएनएसएस उन तीन कानूनों में से एक है जिसे नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत के तीन प्रमुख आपराधिक कानूनों – भारतीय दंड संहिता, 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और सी.आर.पी.सी. में बदलाव के हिस्से के रूप में पेश किया है.

जहां सीआरपीसी में 484 धाराएं हैं, वहीं बीएनएसएस में 533 धाराएं हैं. प्रस्तावित कानून में अपने पूर्ववर्ती से 160 खंडों में बदलाव, नौ नए खंड जोड़े गए और नौ अन्य को हटा दिया गया है.

‘आर्थिक अपराधों’ के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए हथकड़ी का उपयोग करने पर धारा को हटाने की सिफारिश करने के अलावा, समिति ने बीएनएसएस में सरकार को कई अन्य सिफारिशें भी की हैं, जिसमें प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को सामुदायिक सेवा लागू करने का अधिकार देना भी शामिल है.


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‘बिल कॉपी और पेस्ट है’

बीएनएसएस बिल भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को एक सज़ा के रूप में प्रस्तावित करता है, जैसे मानहानि, लोक सेवकों का अवैध रूप से व्यापार में शामिल होना, किसी उद्घोषणा के जवाब में उपस्थित न होना और वैध शक्ति के प्रयोग को मजबूर करने या रोकने के लिए आत्महत्या करने का प्रयास करना.

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने बीएनएसएस के खंड 23 की समीक्षा की है और नोट किया है कि अपने वर्तमान स्वरूप में, यह खंड प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को सज़ा के तौर पर सामुदायिक सेवा के रूप में लागू करने का अधिकार नहीं देता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “सामुदायिक सेवा को सज़ा के रूप में लागू करने के संबंध में समिति का मानना ​​है कि यह दृष्टिकोण इस बात पर प्रकाश डालता है कि दंडात्मक कार्रवाइयों में सामाजिक पुनर्स्थापन और व्यक्तिगत विकास भी शामिल हो सकता है. समिति यह भी महसूस करती है कि प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत को इस प्रकार की सज़ा देने की शक्ति देना आवश्यक और उचित होगा.”

संसदीय समिति, जिसने बिल के प्रत्येक खंड के पाठ की विस्तृत जांच की, ने बताया कि बीएनएसएस में कई टाइपोग्राफिकल, क्रॉस-रेफरेंसिंग और व्याकरण संबंधी त्रुटियां हैं.

“समिति का विचार है कि एक भी टाइपोग्राफिकल, क्रॉस-रेफरेंसिंग या व्याकरण संबंधी त्रुटि से गलत व्याख्या होने और प्रावधान के इरादे को कमजोर करने की संभावना है. इसलिए, समिति मंत्रालय को ऐसी त्रुटियों को सुधारने की सिफारिश करती है.”

समिति के आठ सदस्य – कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, रवनीत सिंह बिट्टू, दिग्विजय सिंह, पी.चिदंबरम, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, काकोली घोष दस्तीदार, डीएमके के दयानिधि मारन और एन.आर. एलांगो – ने बिल के कई खंडों, बिल के हिंदी शीर्षक और इसके खराब प्रारूपण पर बीएनएसएस पर अपना असहमति नोट दिया है.

अपने असहमति नोट में, चिदंबरम ने कहा, “बिल कॉपी और पेस्ट का काम है. ऐसा अनुमान है कि 95 प्रतिशत धाराएं दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 से कॉपी और पेस्ट की गई हैं. यह अभ्यास एक बेकार अभ्यास था. अगर यह ज़रूरी था, तो वांछनीय परिवर्तन लाने का अवसर बर्बाद कर दिया गया है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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