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Thursday, 25 April, 2024
होमदेश‘क्या कम होंगे किसानों की आत्महत्याओं के मामले’, राजस्थान में कर्ज़ राहत आयोग से कितनी बदलेगी उनकी तकदीर

‘क्या कम होंगे किसानों की आत्महत्याओं के मामले’, राजस्थान में कर्ज़ राहत आयोग से कितनी बदलेगी उनकी तकदीर

विधेयक पारित होने से कर्ज़ राहत आयोग के गठन का रास्ता साफ हो गया है अब बैंक या कोई भी फाइनेंशियल संस्था जिसे भारत सरकार ने अधिसूचित किया हो फसल खराब होने की सूरत में किसानों पर कर्ज़ वसूली का प्रेशर नहीं बना सकेंगे.

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नई दिल्ली: देश में हर दिन कर्ज़ में डूबे कई किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर रहते हैं, राजस्थान में भले ही ये आंकड़ा कम हो, लेकिन महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश में ये संख्या अधिक है.

जलवायु परिवर्तन, कभी सूखा, कभी बाढ़, कभी कीट पतंगों का हमला और फसल बर्बाद, ऐसे में जिन किसानों ने बैंकों से या फिर महाजनों से कर्ज़ लिया होता है उनके पास आत्महत्या करने के सिवा कोई चारा नहीं बचता, लेकिन अब राजस्थान सरकार इन किसानों के लिए राहत और बदलाव लेकर आई है.

अशोक गहलोत सरकार एक ऐसा विधेयक लेकर आई है, जिसके जरिए बैंक सीधे तौर पर किसानों की ज़मीन को नीलाम नहीं कर पाएंगे — जिसका नाम है राजस्थान राज्य कृषक ऋण राहत आयोग विधेयक, 2023 जिसे विधानसभा में पेश किया और हंगामे के बीच इसे पारित कर दिया गया है.

विधेयक पारित हो गया है इसलिए कर्ज़ राहत आयोग के गठन का रास्ता साफ हो गया है, अब बैंक या कोई भी फाइनेंशियल संस्था जिसे भारत सरकार ने अधिसूचित किया हो किसी भी कारण से फसल खराब होने की सूरत में किसानों पर कर्ज़ वसूली का प्रेशर नहीं बना सकेंगे.

अशोक गहलोत सरकार ने 10 फरवरी को पेश किए गए बजट में विधेयक की घोषणा की थी. इस दौरान उन्होंने राज्य में कृषि के बजट को 5 हज़ार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7 हज़ार करोड़ रुपये कर दिया था.

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विधेयक में क्या-क्या है

इस विधेयक के मुताबिक, बागवानी, औषधीय पौधों की खेती, फसलें-अंतर फसलें, फल-फूल, वनस्पति, घास, चारा, पेड़ या मिट्टी किसी भी प्रकार की खेती, नर्सरी संचालित करना, मत्स्य, मधुमक्खी, रेशमकीट, कुक्कुट, बतख, सुअर, को पशुधन का प्रजनन और पालन और कृषि सहबद्ध क्रियाकलाप या किसी अन्य कृषि प्रयोजनों के लिए भूमि का उपयोग करने वाले किसान इसमें शामिल हैं.

विधेयक में कहा गया है कि सीमांत किसान जिनकी ज़मीन 1 हेक्टेयर या आधे हेक्टेयर तक होगी और छोटे किसान जिनकी ज़मीन 2 हेक्टेयर या सीमांत किसानों से अधिक होगी और आजीविका का प्रमुख साधन कृषि है इसके तहत कवर किए जाएंगे.

सरकार अब एक ऐसे आयोग का गठन करेगी, जिसके पास कोर्ट जैसी शक्तियां होंगी. आयोग में पांच सदस्य होंगे और इसका कार्यकाल भी केवल तीन साल का होगा.

किसान अपनी फसल खराब होने की स्थिति में कर्ज़ माफी की मांग करने के लिए आयोग में आवेदन कर पाएंगे और आयोग सरकार को पूरे कर्ज़ की माफी या सहायता के लिए भी सुझाव दे सकता है.

सुनवाई के दौरान अगर आयोग के सदस्यों को लगता है कि किसान कर्ज़ चुका पाने की स्थिति में नहीं है तो वो उस एक किसान या पूरे जिले को संकटग्रस्त घोषित कर सकते हैं. आयोग के पास सरकार को किसानों के कर्ज़ को माफ करने या सहायता करने के आदेश कभी भी जारी करने की शक्ति है.

हालांकि, विधेयक में नियम यह है कि अगर कर्ज़ की राशि दो लाख रुपये तक है तो सरकार केवल 75 प्रतिशत तक सहायता करेगी और अगर राशि दो लाख से अधिक या 4 लाख रुपये तक है तो सरकार 50 प्रतिशत तक सहायता करेगी.

गौरतलब है कि कृषि के मसले राज्य सरकार के अधीन होते हैं और बैंकिंग सेक्टर इसमें दुविधा खड़ी न करें इसलिए बैंकों को राशि सरकार अपने कंसोलिडेटेड फंड से चुकाएगी.

बता दें कि भारत की 3.75 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी में राजस्थान 15.7 लाख करोड़ रुपये का योगदान देता है और राज्य में 11 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है.

गौरतलह है कि राजस्थान सरकार राज्य में सरकारी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए अलग-अलग कैंप भी लगा रही है. शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता है जब किसानों की आत्महत्या की खबरें सुर्खियां न बनती हों और वो लोग पीएम या सीएम के नाम पर सुसाइड नोट न छोड़ते हों.

राजस्थान में किसानों को उनकी ज़मीनों की नीलामी के लिए बैंक से लगातार नोटिस मिलते रहते हैं और कर्ज़ न चुका पाने के कारण बैंक उन पर चक्रवृद्धि ब्याज लगा देते हैं, जिसका किसान लगातार विरोध कर रहे हैं. इन्हीं मामलों को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ही सरकार यह विधेयक लाने का विचार कर रही है.


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अन्य राज्यों में क्या है प्रावधान

अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में सरकारें समय-समय पर किसानों के कर्ज़ को पूरी तरह से माफ करती रही हैं, जिसे लोन वेवर कहा जाता है, लेकिन इस विधेयक को डेब्ट रिलीफ कहा गया है, जिसका मतलब होता है — सहायता करना.

राजस्थान से पहले महाराष्ट्र सरकार ने 2021 में लोन रिलीफ स्कीम की घोषणा की थी और 2006 में केरल को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था, जब राज्य में खेती में रबर और काली मिर्च जैसी निर्यात-उन्मुख नकदी फसलों का वर्चस्व था, जिनकी कीमतें वैश्विक बाजार में गिर गई थीं. इससे उन किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया था, जो कर्ज़ का भुगतान नहीं कर पा रहे थे. उस समय राज्य में डेब्ट रिलीफ कमीशन बनाया गया था, जिससे तहत अधिकारी घर-घर जाकर किसानों की मदद कर रह थे और इस आयोग से अभी तक लगभग 11 करोड़ से अधिक किसानों को फायदा पहुंचा है.

दिसंबर 2022 में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में बताया था कि राजस्थान के प्रत्येक किसान परिवार पर औसत 1 लाख 13 हज़ार 865 रुपये का कर्ज़ है. राज्य के 15 लाख किसानों द्वारा सहकारिता कर्ज लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपये के करीब है और प्रति किसान परिवार कर्ज़ के मामले में राजस्थान देश में सातवें स्थान पर है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में लगभग 5 हज़ार 563 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की और उद्योग में आत्महत्या करने वालों की संख्या 2020 से 9 प्रतिशत के मुकाबले 2021 में 29 प्रतिशत हो गई.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा था कि फसल खराब होने या प्राकृतिक आपदाओं के कारण कर्ज़ चुकाने में असमर्थ किसान ब्याज दरों में कटौती के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं, बशर्ते उनके राज्य में किसान समुदाय के लिए राज्य का कर्ज राहत कानून मौजूद हों.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 21ए के तहत बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, जो अदालतों को बैंक और उसके ग्राहक के बीच नियमों और शर्तों की फिर से जांच करने से रोकता है, उन राज्यों में कृषि लोन पर लागू नहीं होगा जहां राज्य कर्ज राहत अधिनियम लागू हैं.

आयोग का कार्यकाल

किसान कर्ज़ राहत आयोग का कार्यकाल तीन साल का होगा और सदस्यों का कार्यकाल भी 3 साल या फिर उनके 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक का होगा.

सरकार अपने स्तर पर आयोग की अवधि को बढ़ा भी सकती है और किसी सदस्य को हटा भी सकती है. अगर कोई सदस्य बीच में अपना पद छोड़ देता है तो अन्य व्यक्ति को केवल उसी अवधि के लिए रखा जाएगा, जितना कार्यकाल शेष रहेगा.

इस आयोग के अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज होंगे. इसके अलावा अन्य पांच सदस्यों में एसीएस या प्रमुख सचिव रैंक पर रहे रिटायर्ड आईएएस, जिला और सेशन कोर्ट से रिटायर्ड जज, बैंकिंग सेक्टर में काम कर चुके अधिकारी और एक कृषि विशेषज्ञ को इसका सदस्य बनाया जाएगा. सहकारी समितियों के एडिशनल रजिस्ट्रार इसके पदेन सचिव होंगे.

आयोग किसानों के पक्ष में कोई भी फैसला करने से पहले बैंकों के प्रतिनिधियों को भी सुनवाई का मौका देगा.

साथ ही, सेंट्रलाइज्ड और कॉमर्शियल बैंकों से लिए गए किसानों के कर्ज को री-शेड्यूल करने, कर्ज़ माफी, ब्याज कम करने को लेकर भी आदेश जारी कर सकेगा. शॉर्ट टर्म लोन को मिड टर्म या लॉन्ग टर्म में बदलने के लिए भी री-शेड्यूल करने के आदेश भी आयोग के पास होंगे.

इस आयोग को कोर्ट जैसी शक्तियां दी जाएंगी इसलिए फैसले को सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. आयोग किसी भी अफसर या व्यक्ति को समन करके बुला सकेगा.

यह आयोग समय-समय पर फील्ड में जाकर ऐसी जगहों पर अपनी बैठकें करेगा, जहां पर उसे आवश्यकता महसूस होगी या जो इलाके संकटग्रस्त है और जहां फसलें खराब हुई हैं, वहां पर खास तौर से किसानों का पक्ष जानने और हालात का जायज़ा लेने के लिए आयोग के प्रतिनिधि जाएंगे.

बैठक के लिए 5 में से 3 मेंबर्स का रहना ज़रूरी होगा और आयोग जिलों में होने वाली बैठकों के लिए दो या उससे ज्यादा मेंबर्स वाली न्याय पीठ का गठन करके बैठक करेंगे.

विधेयक में कहा गया है कि जब तक कि आयोग के पास में केस पेंडिंग रहता है तो किसान के विरुद्ध किसी भी तरह की कोई भी वाद आवेदन अपील और याचिकाओं पर रोक रहेगी.

आयोग के अधिकारियों को लोक सेवक माना जाएगा और उनके काम में बाधा पर भारत सरकार के नियम लागू होंगे. आयोग को हर साल अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट सरकार के समक्ष पेश करनी होगी.

आंकड़ों को अगर देखें तो हर साल 100 से अधिक किसान आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन अब इस विधेयक के जरिए देखना यह है कि ऐसे कितने मामले कम हो पाते हैं.


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