नई दिल्ली: मजदूरों के काम पर फिर से लौटने को सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालयी पैनल ने कुछ उपाय सुझाए हैं जिनमें मजदूरों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय रोजगार नीति को बनाना, माइग्रेंट वर्कर्स वेलफेयर फंड बनाना और उन्हें आयुष्मान भारत के साथ जोड़ना शामिल है.
सरकार के सूत्रों के अनुसार मंत्रियों के समूह (जीओएम) जिसका नेतृत्व सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत कर रहे हैं, ने मोदी सरकार को कुछ उपाय सुझाए हैं जिससे कोरोना लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए लाखों प्रवासी मजदूर जो अपने घरों की ओर लौट चुके हैं या लौट रहे हैं, उन्हें वापस शहरों में वापस लाकर कैसे काम को फिर से शुरू किया जा सके.
जीओएम ने कहा कि सभी प्रवासी मजदूरों को अपने आप ही प्रधानमंत्री आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) जो कि आयुष्मान भारत नाम से जाना जाता है, उसके साथ नामांकित किया जाना चाहिए. यह सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. मंत्रालयी समूह ने कहा है कि ऐसा करने से वे अपने काम की जगह पर कैशलेस मेडिकल सुविधा पा सकेंगे.
नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि पीएम-जेएवाई से अलग जो राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना चला रही हैं, प्रवासी मजदूरों को उनकी सुविधा मिलनी चाहिए.
पैनल ने माइग्रेंट वर्कर्स वेलफेयर फंड बनाने की भी सलाह दी है जिसके तहत प्रवासी मजदूरों को अपने आप इससे जोड़ा जाना चाहिए जिसमें मजदूरों, काम मुहैया कराने वाले, गृह राज्य सरकार, जिस राज्य में काम कर रहे हैं और केंद्रीय प्रशासन की बराबर की हिस्सेदारी होगी.
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इस फंड की देखरेख श्रम मंत्रालय करेगा और अगर प्रवासी मजदूर अपनी नौकरी बदलता है तब उन मामलों में वो मजदूरों के रहने, स्वास्थ्य बीमा, और बेरोजगारी भत्ता की समस्याओं को हल करेगा.
राष्ट्रीय रोजगार नीति
मंत्रालयी समूह (जीओएम) ने राष्ट्रीय रोजगार नीति (एनईपी) बनाने की भी सलाह दी है.
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘यह देश में समग्र श्रम कल्याण और श्रम बाजार प्रशासन सहित कौशल और मानव संसाधन विकास को बढ़ाने के लिए रोजगार और आर्थिक विकास के लिए एक अंतर-क्षेत्रीय रणनीति के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने वाले एक मध्यम से दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य के साथ एक दृष्टि दस्तावेज हो सकता है’
उन्होंने कहा, ‘एनईपी के बुनियादी संदर्भों को उन पहलों में वर्गीकृत किया जाएगा, जो एक ओर श्रमिकों की मांग के लिए अग्रणी नए उद्यमों और उद्योगों की स्थापना के लिए सक्षम वातावरण बनाने के लिए उठाए जा सकते हैं, और दूसरी ओर रोजगार बढ़ाने और श्रम बाजार व्यवस्था में कुशल कर्मचारियों की आपूर्ति के उपाय के लिए.
जीओएम ने प्रवासी मजदूरों के बच्चों की स्कूलिंग के लिए छात्रवृत्ति, आंगनवाड़ियों तक पहुंच, पाठ्यपुस्तकों और स्कूल की वर्दी, पानी और स्वच्छता के उपायों के लिए उनके ठहरने के स्थान, राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी और मनोरंजन जैसे विश्वास-निर्माण उपायों का भी सुझाव दिया है.
प्रवासी मजदूरों के बड़े शहरों से चले जाने के कारण काफी बड़ी संख्या में श्रमिकों की कमी हुई है जिससे व्यवसायों और उद्योगों के काम पर बुरा असर पड़ा है.
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एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘श्रम बल आपूर्ति श्रृंखला में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. उनके चले जाने से, औद्योगिक और विनिर्माण इकाइयों, छोटे और बड़े व्यवसायों, खुदरा श्रृंखलाओं आदि सभी जगह काम प्रभावित हुआ है. यदि प्रवासी श्रमिक वापस नहीं आते हैं तो इसके काफी बुरे परिणाम होंगे.’
निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों के लिए की गई सिफारिशें
जीओएम ने यह भी सिफारिश की कि लगभग 2 करोड़ निर्माण श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए एक अभियान चलाया जा सकता है, जो पात्र हैं लेकिन उन्होंने भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (बीओसीडब्ल्यू) अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं किया है.
पहले सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘इससे मजदूरों को पेंशन, सामाजिक सहायता, हाउसिंग लोन, शैक्षणिक सुविधाएं, ग्रुप बीमा, मैटरनिटी सुविधाएं और स्किल ट्रेनिंग मिलेंगी. बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के वर्तमान नियमों को आसान बनाया जाना चाहिए और पंजीकरण मोबाइल फोन के जरिए होना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘बीओसीडब्ल्यू वेलफेयर बोर्ड के तहत कल्याणकारी लाभ के पोर्टेबिलिटी को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र का निर्माण उन निर्माण श्रमिकों के लिए भी किया जाना चाहिए जो काम के लिए अक्सर दूसरे राज्यों की यात्रा कर रहे हैं.’
सरकार ने पहले ही प्रवासी मजदूरों के लिए कुछ उपायों की घोषणा की है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से पीडीएस लाभ का उपयोग करने के लिए प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों को सक्षम करने के लिए ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ प्रणाली की घोषणा की.
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से अधिकांश उपाय ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ जैसी योजनाएं दीर्घकालिक हैं. वे यह भी कहते हैं कि अभी प्रवासी श्रमिकों को योजनाओं के बजाय अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नकदी की जरूरत है.
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अधिकार कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, ‘सरकार ने जिन उपायों की घोषणा की है उनमें से अधिकांश दीर्घकालिक हैं. प्रवासी श्रमिकों के लिए इसका अभी कोई मूल्य नहीं है. प्रवासी कामगारों को अभी नकदी की जरूरत है. ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ की घोषणा करने के बजाय, सरकार सार्वभौमिक पीडीएस पात्रता की घोषणा कर सकती थी, जिससे सभी को राशन लेने की अनुमति मिल सके.’
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा घोषित एकमात्र अन्य उपाय, जिसका प्रभाव होगा, वो मनरेगा है जिसके बजट में 40,000 करोड़ रुपये और दिए गए हैं जिसमें 60,000 करोड़ रुपये बजट में पहले आवंटित किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘मनरेगा गांव वापस लौटने वाले लोगों को आजीविका की सुरक्षा देगा.’
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