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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेश‘वो भी पीड़ित हों जैसे हम हैं’ — पत्रकार सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड में 5 आरोपी मकोका के तहत दोषी करार

‘वो भी पीड़ित हों जैसे हम हैं’ — पत्रकार सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड में 5 आरोपी मकोका के तहत दोषी करार

सजा की अवधि के लिए कोर्ट में 26 अक्टूबर को दोबारा सुनवाई होगी. न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ आरोपों को बिना किसी संदेह के साबित कर दिया.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी के वसंत विहार में पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की 15 साल पुरानी हत्या के जुर्म में साकेत कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए सभी पांच आरोपियों को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत दोषी करार दिया.

इडिया टुडे की 25-वर्षीय पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की 30 सितंबर, 2008 की सुबह वसंत विहार के नेल्सन मंडेला रोड पर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हालांकि, पुलिस ने दावा किया था कि यह सशस्त्र डकैती का मामला था.

पांच लोग — रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत मलिक और अजय कुमार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा (302- हत्या), (390-डकैती) के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवींद्र कुमार पांडे ने रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत, अजय सेठी और अजय कुमार को मकोका के प्रावधानों के तहत भी दोषी ठहराया. जज ने 14 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सभी आरोपियों को मकोका अधिनियम की धारा 3 (1) (i), 3(2) और 3(5) के तहत “उचित संदेह से परे” दोषी ठहराया गया. सजा की अवधि के लिए कोर्ट में 26 अक्टूबर को दोबारा सुनवाई होगी.

न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ आरोपों को बिना किसी संदेह के साबित कर दिया.

वहीं, सौम्या की मां का कहना है कि वे आरोपियों के लिए आजीवन कारावास की सज़ा चाहती हैं और उनके पिता ने फैसले को उनकी बेटी के साथ न्याय करार दिया.

पत्रकार की की मां माधवी विश्वनाथन ने दोषसिद्धि के बाद दिप्रिंट से कहा, ‘‘हम आरोपियों के लिए आजीवन कारावास की मांग कर रहे हैं. मौत की सजा उनके लिए आसान होगी. हम चाहते हैं कि वे भी उसी तरह पीड़ित हों जैसे हम पीड़ित हैं.’’

सौम्या के पिता ने कहा कि मेरी बेटी के साथ, ‘‘न्याय हुआ…’’

इस बीच, दिल्ली के विशेष पुलिस आयुक्त, एचजीएस धालीवाल ने कहा, ‘‘हम सभी संतुष्ट हैं. टीम ने इसके लिए बहुत कोशिश की है. मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर था. हत्या के मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण था…बहुत सारी चुनौतियां थीं.’’

यहां, दिप्रिंट इस मामले में घटनाओं की टाइमलाइन पर नज़र डाल रहा है.

उस दिन क्या हुआ था

30 सितंबर, 2008 को तड़के जब विश्वनाथन काम से घर वापस आ रहीं थीं तो उनके सिर में गोली मार दी गई थी. अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, वसंत कुंज के स्थानीय थाने को सुबह 3:45 बजे हत्या की सूचना देने के लिए फोन आया था.

इस मामले में उसी दिन दर्ज की गई एफआईआर में अज्ञात लोगों पर हत्या (आईपीसी की धारा 302) का मामला दर्ज किया गया, लेकिन हत्या के एक साल बाद तक भी पुलिस को जांच में कोई वास्तविक सफलता नहीं मिली. 21 मार्च, 2009 को तकनीकी विशेषज्ञ जिगिशा घोष का शव फरीदाबाद से बरामद किया गया था. पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया- कपूर, शुक्ला और मलिक.

पूछताछ के दौरान मलिक ने कथित तौर पर विश्वनाथन की हत्या में अन्य आरोपियों की कथित संलिप्तता का खुलासा किया. बाद में, मामले के सिलसिले में दो अन्य लोगों – अजय कुमार और अजय सेठी को गिरफ्तार किया गया.

Infographic: Ramandeep Kaur | ThePrint
इन्फोग्राफिक : रमनदीप कौर/दिप्रिंट

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने रवि कपूर के घर से वह पिस्तौल बरामद करने का दावा किया जिसका इस्तेमाल विश्वनाथन को मारने के लिए किया गया था. उस समय की खबरों में यह भी बताया गया था कि कपूर ने डकैती का प्रयास करने के लिए पहले विश्वनाथन की कार को रोकने के लिए उस पर गोली चलाई, लेकिन जब वह नहीं रुकीं, तो उसने कथित तौर पर उन्हें गोली मार दी.

2019 में मलिक द्वारा मुकदमे में तेज़ी लाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत करने के बाद, निचली अदालत से पूछा गया कि मामले में देरी क्यों हो रही है. अपने जवाब में, ट्रायल कोर्ट ने कथित तौर पर अभियोजन गवाहों की अनुपस्थिति और एक विशेष लोक अभियोजक की कमी का हवाला दिया.

अक्टूबर 2009 में दिल्ली पुलिस ने पांच आरोपियों के खिलाफ मकोका लागू कर दिया, यह कहते हुए कि वे एक “संगठित गिरोह” के हिस्से के रूप में काम कर रहे थे – जो कड़े कानून को लागू करने के लिए एक आवश्यक तत्व है. पुलिस ने अपनी चार्जशीट में रवि कपूर को गिरोह का सरगना बताया था.

टाइम्स ऑफ इंडिया की 11 मई, 2011 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस का यह भी मानना है कि कड़े कानून को लागू करने से जांच में मदद मिलेगी क्योंकि आरोपियों को कम से कम छह महीने तक ज़मानत नहीं मिलेगी. इसके लिए पुलिस को आरोपियों के खिलाफ पिछली एफआईआर का भी पता लगाना होगा.

मकोका लगाए जाने के बाद, एक सहायक पुलिस आयुक्त-रैंक के अधिकारी को जांच अधिकारी नामित किया गया था – जो कि इंस्पेक्टर-रैंक के अधिकारी से अपग्रेड था, जो शुरू में आईओ था.

2014 में, सरकारी वकील राजीव मोहन, जो मुकदमे की शुरुआत से ही मामले को संभाल रहे थे, ने कथित तौर पर निजी प्रैक्टिस करने के लिए नौकरी छोड़ दी – एक ऐसा विकास जो मामले में एक बड़ा झटका था. फिर, नवंबर 2015 में, तत्कालीन दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने मोहन को मामले में सरकारी वकील के रूप में फिर से नियुक्त किया.

2016 में सौम्या विश्वनाथन के पिता एम.के. विश्वनाथन ने मुकदमे में देरी को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से संपर्क किया था.

(मयंक कुमार के इनपुट्स के साथ)


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