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Friday, 22 November, 2024
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‘उन सबको मार दिया गया है’– कोविड के बाद पोल्ट्री किसानों के लिए एक और विपदा लाया बर्ड फ्लू

9 राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों में, बर्ड फ्लू का मतलब है कि पोल्ट्री किसानों को, जो कोविड की मार से उबरना शुरू ही हुए थे, अब 12 महीनों में दूसरी बार, बड़ी संख्या में पक्षियों को मारना पड़ रहा है.

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बरवाला: सुधीर कुमार को पोल्ट्री फार्म व्यवसाय में सिर्फ ढाई साल हुए हैं, लेकिन उन्हें ऐसा लगता है, जैसे सारी ज़िंदगी इसी में गुज़र गई है.

बीते साल में, महामारी और उसके बाद लॉकडाउन्स ने, उनके कारोबार को अकल्पनीय नुक़सान पहुंचाया है. फार्म की कुल 50,000 मुर्ग़ियों में से आधी को, उन्हें खुद से मार देना पड़ा. कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने ज़मीन खोदी और उन्हें ज़बर्दस्ती दफ्न कर दिया. हम और कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि ऐसा न करने पर वो भूखी मर जातीं’.

साल के बदलने के साथ ही, बाक़ी सब लोगों की तरह कुमार को भी उम्मीद थी कि दिन फिर जाएंगे. लेकिन जैसे ही लगा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में, भारत को सफलता मिलने लगी है, और इसकी वैक्सीन सामने नज़र आने लगी है, कुमार को एक और मुसीबत ने घेर लिया- बर्ड फ्लू.

हरियाणा के पंचकुला में कुमार का फार्म, उन पहले दो फार्म्स में से था, जो वायरस के लिए पॉज़िटिव पाए गए. कुमार ने बताया, ‘दिसंबर 2020 में मेरे पास 58,000 पोल्ट्री थीं, जिनमें से 30,000 बर्ड फ्लू से मर गईं, और बाक़ी को मार दिया गया. मेरे पास कुछ नहीं बचा है’. 42 वर्षीय दो बच्चों के पिता, अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं.

अभी तक नौ राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों से, बर्डफ्लू के पुष्ट मामले सामने आ चुके हैं. ये हैं- दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात.

हरियाणा में पक्षियों की मौत के, सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं- पिछले दो-तीन हफ्तों में चार लाख- जिसके बाद सरकार ने पंचकुला ज़िले के पांच फार्मों पर, 1.5 लाख पोल्ट्री बर्ड्स को मारने का आदेश दे दिया.

इस नए संकट के दौरान, पोल्ट्री किसानों के लिए अपने कारोबार को फिर से खड़ा करने का संघर्ष कहीं अधिक बढ़ गया है, चूंकि महामारी की मार से उबरे हुए, अभी साल भी नहीं हुआ था. बर्ड्स को मारने से हुए नुक़सान के अलावा, उन्हें महामारी के बचे कुचे प्रभावों से भी निपटना पड़ रहा है, और अब उनके सामने ये सवाल है, कि इस नए वायरस से किस तरह निपटा जाए.


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फ्लू के दौरान बर्ड्स को मारने के नुक़सान

पंचकुला का बरवाला इलाक़ा जहां कुमार रहते हैं, एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पोल्ट्री केंद्र है, जहां क़रीब 200 पोल्ट्री फार्म्स हैं. इनमें से दो फार्म्स- कुमार का सिद्धार्थ पोल्ट्री फार्म, और आरके गुप्ता का नेचर पोल्ट्री फार्म, बर्ड फ्लू टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए हैं, जिसे एवियन इनफ्लुएंज़ा (एच5एन8 वायरस) भी कहा जाता है.

पिछले हफ्ते, हरियाणा के पशुपालन व डेयरी मंत्री जेपी दलाल ने कहा, ‘प्रभावित पोल्ट्री फार्मों के वर्कर्स को निर्देश दिया गया, कि वो फार्मों से बाहर न जाएं. फार्म मालिकों को निर्देश दिया गया, कि अंडे और चिकंस फार्मों से बाहर न भेजें. प्रभावित हिस्से के कम से कम 10 किलोमीटर के दायरे की, एक महीने के लिए घेराबंदी कर दी गई है’.

पंचकुला में पक्षियों को मारने का काम 9 जनवरी को शुरू हुआ. मुआवज़े के तौर पर राज्य सरकार ने ऐलान किया, कि वो मारी गई हर बर्ड के लिए, मालिक को 90 रुपए देगी. लेकिन, बर्ड्स को मारने के लिए पेश की गई रक़म ने, बहुत से पोल्ट्री किसानों को नाराज़ कर दिया है.

एक पोल्ट्री फार्म मालिक राजेश सिंघला, जो एसोसिएशन के लिए मीडिया से संपर्क का काम भी देख रहे हैं, ने कहा, ‘एक बर्ड की लागत कम से कम 300 रुपए आती है, उसके मुक़ाबले 90 रुपए कुछ भी नहीं है. हम अपने क़र्ज़ कैसे अदा कर पाएंगे? हरियाणा पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन ने इस बारे में हरियाणा के पशुपालन विभाग, मुख्यमंत्री खट्टर, और प्रधानमंत्री को लिखा है’.

बरवाला में सिंघला के फार्म से भी, बर्डफ्लू के लिए नमूने लिए गए थे. लेकिन, सभी दो लाख नमूनों के टेस्ट निगेटिव पाए गए.

पिछले महीने जब बर्डफ्लू फैलने का डर व्याप्त होना शुरू हुआ, तो पोल्ट्री किसान मजबूरन अपने उत्पाद, कम दामों पर बेंचने को मजबूर हो गए. कुमार ने कहा, ‘आमतौर पर मैं एक चिकन 120 रुपए में बेंचता हूं, लेकिन अब मुझे मजबूरन सिर्फ 30 रुपए में, उनसे छुटकारा हासिल करना पड़ा’. सिंघला ने कहा, ‘अंडों के दामों में भी, कम से कम 30-40 प्रतिशत की गिरावट आई है’.

12 महीनों में ये दूसरी बार है, जब पोल्ट्री किसानों को या तो मजबूरन कम दामों पर बेंचना पड़ा, या अपनी बर्ड्स को उन्हें खुद मारना पड़ा.

लॉकडाउन का असर

सितंबर 2020 में अमेरिकी सरकार के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफर्मेशन में छपे एक पेपर में, भारत के पोल्ट्री उद्योग के ऊपर कोरोनावायरस से उत्पन्न लॉकडाउन के गंभीर असर पर रोशनी डाली गई, जो भारत की कृषि, मछली पालन और वानिकी जीडीपी का 4.5 प्रतिशत है. मात्रा के मामले में ये दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है.

‘विभिन्न वस्तुओं की मांग में कमी, ट्रांसपोर्ट और बाज़ार बंद होने की वजह से उत्पाद की बरबादी, उत्पादों की आपात बिक्री, श्रम बल की कमी, और सरकार की ओर से पुनरुद्धार की रणनीतियों से’ इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई थी.

लेकिन पोल्ट्री फार्म मालिकों की मानें तो, मार्च 2020 में लॉकडाउन के पहली बार लागू होने से पहले ही, उनपर असर पड़ना शुरू हो गया था.

सिंघला ने कहा, ‘व्हाट्सएप पर ये अफवाहें चल रहीं थीं, कि आपको मांस नहीं खाना चाहिए, चूंकि उससे आपको कोविड हो सकता है. मांग में आई कमी की वजह से, दामों में काफी कमी आ गई- अंडों के दाम 4-5 रुपए प्रति पीस से गिरकर, 1.5 रुपए प्रति पीस पर आ गए’.

उसके बाद जो लॉकडाउन हुआ, उसने उनकी समस्याओं को और बढ़ा दिया. आने जाने पर कड़ी पाबंदी के चलते, फार्म मालिक अपनी पोल्ट्री के लिए, कुछ भी फीड नहीं ला पा रहे थे, और उन्हें मजबूरन अपनी बर्ड्स को खुद मार देना पड़ा.
कुमार ने याद किया, ‘लॉकडाउन के समय में कोई बिक्री नहीं हुई. मेरे पास बस इतना पैसा था, कि अपनी आधी पोल्ट्री को फीड करके बचा लूं’. शुरू मार्च में कुमार ने चिक्स में निवेश किया था, जिन्हें उन्होंने फीड किया, और उनकी देखभाल की, लेकिन फिर बाद में उन्हें बेंच देना पड़ा. ‘अब वो सब मार दी गई हैं’.

घटे हुए दाम और जानवरों का भोजन न होने से, पशु चिकित्सालयों तक पहुंच पाना भी, एक और बड़ा मसला बन गया.
सिंघला ने कहा, ‘जुलाई-अगस्त तक, पोल्ट्री उद्योग कोविड लॉकडाउन्स के आर्थिक प्रभाव से उबरने लगा था. लेकिन दिसंबर मध्य तक, उनके बुरे दिन फिर शुरू हो गए. पहले हमने सोचा कि बर्ड्स उम्र की वजह से मर रही हैं, क्योंकि वो समय रहते बेंची नहीं जा सकीं थीं, इसलिए हमने उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब प्रवासी पक्षी मरने लगे, तो हमें चिंता शुरू हो गई’.

टीका बनाम हत्या

बरवाला-रायपुर रानी क्षेत्र में स्थित कुछ फोल्ट्री फार्म मालिकों ने, लाखों पोल्ट्री बर्ड्स को मरवा देने के, राज्य सरकार के फैसले से असहमति जताई है. उनका कहना है कि बार बार होने वाली इस समस्या का हल ये है, कि बर्ड्स को टीके लगाए जाएं.

बर्ड फ्लू के लिए टीका उपलब्ध तो है, लेकिन फिलहाल उसे अपात स्थिति के लिए संचित करके रखा जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसे उपलब्ध कराया जाना चाहिए, चूंकि उनके अनुसार ये एक अपेक्षाकृत सस्ता विकल्प है.

इसी मांग से सहमति जताते हुए सिंघला ने कहा, ‘टीकाकरण ही एकमात्र समाधान है, क्योंकि प्रवासी पक्षी हर साल आएंगे, और हम उन्हें मार नहीं सकते. हम नहीं चाहते कि ये संकट हर साल खड़ा हो, क्योंकि भारत की सालाना जीडीपी में, पोल्ट्री उद्योग का अच्छा ख़ासा योगदान है’.

एक मवेशी और पोल्ट्री कंसल्टेंट इब्ने अली समेत, बहुत से लोगों का आरोप है कि बर्डफ्लू की वैक्सीन्स, ग़ैर-क़ानूनी ढंग से तस्करी करके, भारत में लाई जा रही हैं’.

दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्होंने कहा, ‘बहुत से पोल्ट्री फार्म मालिक हैं, जो अपनी पोल्ट्री बचाने के लिए, अवैध तरीक़े से बर्डफ्लू वैक्सीन इस्तेमाल कर रहे हैं. भारत में ये बीमारी बार बार सामने आने वाली समस्या है. जब पोल्ट्री फार्म्स में ऐसी घटनाएं होती हैं, तो मालिक आमतौर से सरकार के पास नहीं जाते, और टीके लगाकर अपनी बर्ड्स को बचाने की कोशिश करते हैं. सरकारी इकाइयों की नज़र में ये तब आता है, जब प्रवासी पक्षी मरने शुरू होते हैं’.

अली ने बर्ड्स के टीकाकरण से संबंधित, लॉजिस्टिक्स की चिंताओं पर भी प्रकाश डाला, जैसे कि टीकों की व्यापक उपलब्धता. उसके इलावा वैक्सीन को लेकर, एक डर की संभावना भी बनी रहती है.

उन्होंने ये भी कहा, ‘मैं बर्ड्स को बेतरतीब ढंग से मार देने से सहमत नहीं हूं. हमें जैव सुरक्षा व बचाव, और ज़ाहिर है किसानों की जागरूकता पर काम करना चाहिए. बहुत विरले मामलों में ही कैंडिडेट वैक्सीन्स की सिफारिश की जा सकती है’.

पोल्ट्री उद्योग को, जो पिछले तीन सालों में 10-12 प्रतिशत की दर से विकसित हो रहा था, एक के बाद एक झटका झेलना पड़ा है. महामारी के प्रकोप और अब बर्डफ्लू के बाद, सिंघला को कोई ख़ास उम्मीद नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि निकट भविष्य में, हमारे फिर से खड़ा हो पाने की कोई संभावना है. अब तो स्वस्थ बर्ड्स को भी मारा जा रहा है, आख़िर वो कब रुकेंगे? अगर यही चलता रहा तो हमारे लिए कारोबार में वापसी करना बहुत मुश्किल हो जाएगा. हमें अपने परिवार पालने हैं, और क़र्ज़ चुकाने हैं’.


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