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Friday, 26 April, 2024
होमहेल्थकुछ डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोविड टीके पर संदेह लेकिन वे इसकी खुराक लेंगे

कुछ डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोविड टीके पर संदेह लेकिन वे इसकी खुराक लेंगे

कुछ डॉक्टरों को टीकों की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर आशंकाएं हैं लेकिन उनका कहना है कि अभी इस बारे में जानकारी और जागरूकता अभियान वक्त का तकाजा है.

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नई दिल्ली: कोविड-19 टीकाकरण अभियान सुचारू रूप से रोल आउट करने की चुनौती पार करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को एक और काम भी करना होगा—और वो यह कि डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के एक छोटे वर्ग में टीके को लेकर संदेहों को दूर करना.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को घोषणा की थी कि भारत में वैक्सीन रोलआउट 16 जनवरी को स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीका लगाने के साथ शुरू होगा, फिर फ्रंटलाइन वर्कर्स और 50 साल से ऊपर के लोगों की बारी आएगी.

कुछ डॉक्टरों ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान टीकों की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर संदेह जताया, और साथ ही उनके सामने स्थिति पूरी तरह स्पष्ट न होने और टीकाकरण के लिए साइन-अप प्रक्रिया पर भी कुछ नाराजगी जताई. हालांकि, मेडिकल प्रैक्टिशनर ने वैक्सीन लेने की बात से इनकार नहीं किया. वरिष्ठ डाक्टरों ने कहा कि जागरूकता अभियान वक्त का तकाजा है.

1 जनवरी तक सिर्फ कोविड अस्पताल रहे राष्ट्रीय राजधानी स्थित राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के निदेशक डॉ. बी.एल. शेरवाल ने कहा, ‘हर कोई चिंतित है. लेकिन हमने तय किया है कि जागरूकता अभियान को आगे बढ़ाया जाए.’

डॉ. शेरवाल ने कहा, ‘मैं उनकी हिचकिचाहट दूर करने के लिए व्यक्तिगत रूप से एक इंटरैक्टिव सत्र आयोजित करूंगा और अन्य बातों के अलावा मौजूदा कोविड-19 वैक्सीन और इसी तरह के अन्य टीकाकरण कार्यक्रमों से जुड़ा डाटा साझा करूंगा. मैं अस्पताल से वैक्सीन लेने वाला पहला व्यक्ति बनूंगा ताकि यहां के डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ के बीच भरोसा कायम करने में मदद मिले.’ साथ ही जोड़ा स्वास्थ्य कर्मियों में जो हिचकिचाहट है वह ‘स्वाभाविक मानव व्यवहार’ का हिस्सा है.

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अस्पताल प्रशासकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को पूरी उम्मीद है कि एक बार टीकाकरण शुरू हो जाने पर इसके दूरगामी नतीजे नजर आने लगेंगे और ये उन लोगों को प्रोत्साहित करेंगे जो अभी चिंता जता रहे हैं.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के चेयरमैन डॉ. डी.एस. राणा ने कहा, ‘हिचकिचाहट सिर्फ शुरुआती 3-4 दिनों तक ही रहने के आसार है, जिसके बाद हेल्थकेयर वर्कर्स समेत सभी लोगों को अहसास होगा कि इसकी खुराक लेना फायदेमंद है.’

राणा ने कहा, ‘अंतत: तो यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है. एक बार जब लोग दूसरों को इसे लेते देखेंगे तो वह भी अपना मन बना लेंगे.’

दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण से संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.


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सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर चिंता

3 जनवरी को भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित) और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे दी. हालांकि, भारत बायोटेक ने कोई प्रभावकारिता डाटा प्रकाशित नहीं किया है और एस्ट्राजेनेका ने ट्रायल के दौरान खुराक में कुछ गलती कर दी थी.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सोमवार को बयान जारी करके अपने सभी 3.5 लाख सदस्यों यह कहते हुए प्रोत्साहित किया कि ‘स्वेच्छा से टीकाकरण के लिए आगे आकर पूरी दुनिया को यह दिखा दें ये वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावकारी हैं.’

आईएमए के बयान में कहा गया है, ‘हम इन दोनों टीकों की सुरक्षा और प्रभावकारिता का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ खड़े हैं, इसलिए सोशल मीडिया में टीकाकरण को लेकर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना और दुष्प्रचारों का मुकाबला करना हमारी प्राथमिकता होगी. हमारे आधुनिक मेडिकल प्रैक्टिशनर इस कठिन समय में सुरक्षा, गुणवत्ता और व्यावसायिकता के लिए प्रतिज्ञा करेंगे और टीके के उपयोग की आपातकालीन मंजूरी का समर्थन करेंगे.’

हालांकि, दिप्रिंट से बात करने वाले डॉक्टरों ने जोर देकर कहा कि वे टीके के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जल्दबाजी में मंजूरी और प्रभावकारिता डाटा की अभाव के कारण कोवैक्सीन और कोविशील्ड पर कुछ संदेह जरूर जताया. सरकार ने यह घोषणा नहीं की है कि किस टीके की आपूर्ति पहले की जाएगी, या फिर दोनों की आपूर्ति एक साथ होगी.

राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘मैं इसलिए ये टीके लेने में असहज महसूस कर रहा हूं, क्योंकि इसको मंजूरी देने में वैज्ञानिक बाध्यताओं का पालन नहीं किया गया था. लेकिन मैं वैक्सीन लूंगा क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में मेरे पास कोई और विकल्प भी नहीं है. मुझे ज्यादा भरोसा होता यदि मानदंडों का पालन किया जाता.’

राष्ट्रीय राजधानी के लाजपत नगर मोहल्ला क्लिनिक के डॉ. वी.के. गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि यद्यपि वह ‘व्यापक हित में’ वैक्सीन लेने के इच्छुक हैं. लेकिन उनके सहयोगियों में कुछ संदेह है.

गुप्ता ने बताया, ‘मैं डॉक्टरों के कई व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ा हूं, और आजकल सभी इस बारे में ही बातें कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि ट्रायल के संबंध में अधिक डाटा होना चाहिए था. हालांकि, कई डॉक्टरों के नाम सरकार को भेजे गए हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जो आखिरी क्षणों में पीछे हट जाएं.’

पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने भी कहा कि संस्थान में कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ता, विशेष रूप से भारत बायोटेक के स्वदेशी टीके कोवैक्सीन की प्रभावकारिता को लेकर चिंतित थे.

उक्त डॉक्टर ने दिप्रिंट से कहा, ‘हालांकि, यह अच्छी खबर है कि टीकों को मंजूरी दे दी गई है, लेकिन लोगों को टीका लगाने के लिए कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी तक प्रभावकारिता पर पर्याप्त डाटा उपलब्ध नहीं हैं. कई नर्स और डॉक्टर तो खुराक लेने के बारे में फिर से विचार करना चाहते हैं.’

एम्स, नई दिल्ली में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदर्श प्रताप डॉक्टरों के बीच संशय की इस स्थिति में कुछ भी ‘असामान्य नहीं’ मानते हैं और उनका कहना है कि ऐसे डॉक्टरों की काउंसलिंग से ‘कैच-22 वाली स्थिति’ हो सकती है.

डॉ. प्रताप ने कहा, ‘यह एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि एक तरफ हम लोगों को परामर्श दे रहे होते हैं और दूसरी तरफ एसोसिएशन के भीतर ही ऐसे डॉक्टर होते हैं जो चिंतित होते हैं. पहले चरण में टीकाकरण के इच्छुक डॉक्टर ही अंततः उन लोगों को अपनी आशंकाओं से छुटकारा पाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं जो अभी इसे लेकर संदेह जता रहे हैं.’

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, गांधीनगर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनीश सिन्हा ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट स्वाभाविक बात है, और यदि ‘बड़ी हस्तियां’ और विभिन्न समुदायों के नेता खुराक लेने के लिए आगे आएं तो इसे दूर किया जा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘किसी भी राज्य या शहर विशेष के स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कुछ विशिष्ट लोग होते हैं और ये लोग अगर पहले वैक्सीन लें तो यह मददगार हो सकता है. मैंने कई ऐसे डॉक्टरों को देखा है जो शुरू में तो पूरी तरह वैक्सीन लेने के खिलाफ थे, लेकिन यह जानने के बाद कि उनका कोई परिचित इसे ले रहा है, वे इसके लिए तैयार हो गए.’

सिन्हा ने आगे कहा, ‘प्रभावशाली लोगों का व्यवहार भी मददगार हो सकता है, वरिष्ठ डॉक्टरों को पहले वैक्सीन लेनी चाहिए और सोशल मीडिया पर तस्वीरें पोस्ट करनी चाहिए ताकि जो लोग अभी भी डर रहे हैं वे इससे प्रेरित हो सकें.’

सबकी भलाई का काम

कई डॉक्टरों का कहना है कि इसके गुण-दोषों को तौलना महत्वपूर्ण है.

अजमेर की एक डॉक्टर डॉ. ज्योत्सना रंगा ने कहा, ‘हम मजाक में अपनी तुलना गिनी पिग से कर सकते हैं लेकिन वास्तव में हम वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं. इस तरह की आपात स्थिति में यह सोचना ज्यादा महत्वपूर्ण इससे क्या व्यापक हित सध रहा है. सबका भला किसमें है.’

अपोलो अस्पताल, कोलकाता के एक ट्रांसफ्यूजन विशेषज्ञ डॉ. रफीक-उज-जमान इससे सहमति जताते हैं. उन्होंने कहा, ‘किसी महामारी के समय निर्णय जल्दी करने पड़ते हैं. यह मेरे लिए या मेरे सहयोगियों के समूह के लिए कोई समस्या नहीं है और हम इसे लेने को लेकर आश्वस्त हैं.’

फोर्टिस हेल्थकेयर के मेडिकल ऑपरेशंस हेड डॉ. बिष्णु पाणग्रही ने कहा, ‘हमारे अस्पताल के लोगों में उत्साह है और हमारे सामने किसी ने कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई. हमने सरकार के सभी दिशानिर्देशों का पालन किया है, और इसकी शुरुआत एक आंतरिक कोविड विशेषज्ञ समिति बनाकर की है.

उन्होंने कहा, ‘ना-नुकुर करने वाले तो हर जगह मौजूद होते हैं. भारत दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माताओं में एक है, और जरूरी यह है कि इसके सकारात्मक पहलू को देखा जाए. यह भी याद रखा जाना चाहिए कि यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है, और किसी को इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.’

अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा कि उनके सामने तो हिचकिचाहट या संदेह जैसी कोई बात नहीं आई है.

सिब्बल ने कहा, ‘यहां डॉक्टरों के बीच किसी भी तरह का संदेह नहीं है. अगर जरूरत पड़ी तो हम वैक्सीन लेने के उन सभी फायदों और इसकी उपयोगिताओं को स्पष्ट करेंगे, जो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं.


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टीकों और साइन अप प्रक्रिया की जानकारी

पब्लिक डोमेन में इन टीकों के बारे में जानकारी की उपलब्धता भी एक ऐसा मुद्दा है जिसे डॉक्टरों ने उठाया है.

गांधीनगर में रहने वाले डॉ. सिन्हा कहते हैं, ‘वैक्सीन कैंडीडेट के बारे में अब तक पब्लिक डोमेन में एक लीफलेट या उत्पाद का ब्योरा उपलब्ध करा दिया जाना चाहिए था, ताकि डॉक्टरों को व्हाट्सएप या फेसबुक पर आने वाली सूचनाओं पर निर्भर रहने के बजाये यह पता चल सके कि इसमें क्या सामग्री इस्तेमाल की गई है.’

स्वास्थ्य कर्मियों ने एक और मुद्दा उठाया है जो टीकाकरण के लिए साइन-अप प्रक्रिया के बारे में जानकारी के अभाव के साथ-साथ कार्यक्रम के बारे में कम्युनिकेशन की सामान्य कमी से जुड़ा है.

दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल के एक डॉक्टर ने दिप्रिंट को बताया, ‘सुना है कि हमारी सारी संबंधित जानकारी सरकार को भेज दी गई है, लेकिन मुझे इस बारे में सही जानकारी नहीं है कि क्या इससे रजिस्ट्रेशन हो जाएगा या फिर रजिस्ट्रेशन बाद में होगा. मेरा मानना है कि हमारे अस्पताल ने हमारी जानकारी भेज दी है, लेकिन मुझसे इस बारे में कुछ पूछा तक नहीं गया. मैं और अधिक जानकारी चाहूंगा. मैं जानना चाहता हूं कि मुझे कौन-सा टीका लगने वाला है. मेरे पास अब तक की सारी जानकारी मीडिया के माध्यम से ही आई है.’

तेलंगाना में एक टीकाकरण केंद्र कामिनेनी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एक रेजीडेंट डॉक्टर ने भी कुछ ऐसी ही राय जताई, ‘मैं साइन-अप प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी पाना चाहूंगा. मुझे लगता है कि हमारा डाटा सरकार को भेज दिया गया है, लेकिन मुझे यह स्पष्ट नहीं है कि इस बारे में मेरी राय कब पूछी जाएगी. जब हमारा डाटा भेजा गया तब हमें इसकी कोई जानकारी नहीं थी. कोई सीधा संवाद नहीं हुआ है.’

सरकार ने स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कार्यकर्ताओं का डेटाबेस तैयार करने के लिए जानकारी जुटानी शुरू कर दी है जिन्हें सबसे पहले टीका लगाया जाएगा. हालांकि, यह प्रक्रिया एक समान नहीं रही है—कुछ जिलों में कार्यकर्ताओं को रजिस्ट्रेशन वाले लिंक के माध्यम से टीकाकरण के लिए साइन अप करने दिया जा रहा है, जबकि अन्य जिलों ने उन्हें कोई सूचना दिए बिना संगठनों और अस्पतालों से ही पूरी जानकारी सीधे सरकार को भेजने को कह दिया है.

सिन्हा ने कहा, ‘स्थानीय स्तर पर भी (वैक्सीन पंजीकरण के लिए) अलग-अलग प्रक्रिया अपनाई जा रही है. उदाहरण के लिए अहमदाबाद में नगर निगम लोगों को वैक्सीन के लिए पंजीकरण करने के लिए एक ऑनलाइन लिंक साझा कर रहा है, जबकि अन्य जिलों में ऐसा कुछ नहीं है.


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