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Friday, 22 November, 2024
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‘पारले जी, रसना, डालडा,’ खाने-पीने की ये 5 चीजें जिसने पिछले 75 वर्षों से हमारे घरों में राज किया

आजादी को 75 साल हो गए लेकिन तब से लेकर अब तक किसी न किसी रूप में ये चीजें हमारे किचन का हिस्सा रही हैं. समय समय पर इनके फ्लेवर या लुक में जरूर बदलाव हुआ लेकिन ये हमारे खान-पान का हिस्सा बने रहे.

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नई दिल्लीः आज पूरा देश आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. 15 अगस्त 1947 में आजादी के बाद से देश ने काफी कुछ प्रगति की है. सड़क परिवहन, हवाई मार्ग, कपड़े, वाहन से लेकर खाने-पीने की चीजों तक सब कुछ बदल गया. तब से तमाम नए-नए ब्रांड आए जो कि लोगों के खाने-पीने के पैटर्न के हिसाब से वस्तुएं बनाते और बेचते थे. लेकिन कुछ ब्रांड ऐसे भी हैं जो पिछले कई सालों से या आजादी के पहले से शुरू होकर आज भी हर घर के किचन में किसी न किसी रूप में मौजूद हैं. हम आपको ऐसे 5 ब्रांड्स के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ लोगों के किचन में बल्कि उनके दिल में जगह बनाई है-

पारले जी

पारले जी एक ऐसा ब्रांड है जो हम सभी की ज़ुबान पर है. बिस्किट की बात होती है तो ऐसा नहीं हो सकता है कि पारले जी की अनदेखी की जा सके. पारले जी की स्थापना 1929 में की गई थी, लेकिन तब से लेकर अब तक पारले जी अब तक मध्य वर्ग के लगभग घरों में मौजूद रहता है.

लेकिन 80 के दशक के बाद जब कुछ अन्य कंपनियों ने ग्लूकोज़ बिस्किट बनाने शुरू कर दिए तो पारले जी की मार्केट थोड़ा सिकुड़ने लगा. काफी लोगों को तो सिर्फ ग्लूकोज बिस्किट्स चाहिए था ब्रांड से उनका कुछ लेना-देना नहीं था. इसलिए 1982 में ब्रांड ने अपना नाम बदलकर पारले जी रख दिया.

इसकी खास बात यह थी कि यह न सिर्फ स्वास्थ्यप्रद था बल्कि काफी सस्ता भी था. एक सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन 2020 के समय में पारलेजी को सबसे ज्यादा बिकने वाल बिस्किट पाया गया था. बता दें कि पिछले 25 साल से पारले जी ने कीमत नहीं बढ़ाई है फिर भी उसकी टर्नओवर लगातार बढ़ा है.


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 ताकत देता हॉर्लिक्स

घर में बच्चे हों और हॉर्लिक्स न हो ऐसा शायद किसी ही मध्यमवर्गीय परिवार में होगा. हम टीवी पर भी हॉर्लिक्स का विज्ञापन देखते हुए बड़े हुए हैं जिसमें बच्चा दूध में हॉलिक्स मिलाकर पीता है और फिर उसे ताकतवर होता हुआ दिखाया जाता है.

दरअसल, हॉर्लिक्स एक मॉल्टेड मिल्क ड्रिंक है जिसकी शुरुआत शिकागो में दो भाइय़ों विलियम और जेम्स हॉर्लिक्स ने शुरू किया था. लेकिन भारत में इसका चलन प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद आया. क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इसे सैनिकों के लिए डायट सप्लीमेंट के तौर पर पेश किया गया था. हालांकि, शुरुआती दिनों में ये भारतीय परिवारों में अमीर खानदानों तक ही सीमित था लेकिन बाद के सालों में ये भारतीय मध्यम वर्ग के परिवारों के डेली ड्रिंक का हिस्सा बन गया खासकर बच्चों के लिए.

श्वेत क्रांति आने के बाद देश में दूध उत्पादन बढ़ने के साथ ही हॉर्लिक्स की पॉपुलरिटी और भी ज्यादा बढ़ी. लेकिन बॉर्नवीटा, बूस्ट और कॉम्प्लैन से चुनौती के बाद भी मार्केट में इसका शेयर बना रहा.

ब्रेड हो तो खाना किसान जैम

सुबह के नाश्ते में जैम-ब्रेड ऐसा है जो काफी आसानी से खाया जा सकता है. किसान जैम का स्वाद हर किसी के जुबान पर है. इसकी शुरुआत भारत में 1935 में हुई थी. सबसे पहले यूके के मिशेल ब्रदर्स ने बैंगलोर में फ्रूट एंड वेजिटेबल प्रोसेसिंग यूनिट किसान नाम से लगाई थी. धीरे-धीरे किसान काफी मशहूर हो गया और एक तरह से केचअप सेगमेंट में मार्केट लीडर बन गया.

साल 2000 के शुरुआती दौर में किसान को किसान अन्नपूर्णा ब्रांड कर दिया गया और इस ब्रांड नाम से चावल, गेंहू, नमक और दूसरी खाने-पीने की चीजें बेची जाने लगीं लेकिन धीरे-धीरे मैगी टोमैटो केचअप के सामने इसकी पॉपुलरिटी घटने लगी वहीं रसना और कोला की वजह से इसकी स्क्वॉश या ड्रिंक की मार्केट भी घट गई. बाद में अन्नपूर्णा ब्रांड को किसान से अलग कर दिया गया.

बाद में किसान को रिवाइव करने के लिए कंपनी ने टमाटर के बीज के पैकेट्स को न्यूज पेपर इत्यादि के साथ लोगों के घरों तक पहुंचाया और बच्चों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे खुद के टमाटर के उगाकर उसकी स्टोरी किसान की वेबसाइट पर शेयर करें. इससे लोगों के बीच किसान की मांग भी बढ़ी और विश्वसनीयता भी कि केचअप बनाने के लिए फ्रेश वेजिटेबल्स का यूज किया जाता है.

यही नहीं 500 करोड़ के इस ब्रांड ने किसानों को भी काफी सशक्त बना दिया. इसकी वजह से किसानों को खेती, खासकर टमाटर की खेती के लिए और ज्यादा प्रोत्साहन मिला.


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हमारा रसना

90 के दशक की वह लड़की हमें आज भी याद है जब टीवी पर वह अपनी मां को रसना ड्रिंक बनाने के लिए कहती है और उसे पीते हुए कहती है आई लव यू रसना. 80 दशक में पैदा होने वाले शायद ही किसी व्यक्ति की जीभ पर आज भी रसना का स्वाद नहीं होगा. रसना की एंट्री भारतीय बाजारों में तब होती है जब लिम्का और थम्स अप जैसे कार्बोनेड ड्रिंक्स का दबदबा था. लेकिन उस वक्त तक सॉफ्ट ड्रिंक्स बाजार में मौजूद नहीं थे. रसना ने न सिर्फ बच्चों को बल्कि बड़ों को भी टारगेट किया.

साथ ही यह भी बताने की कोशिश की कि कैसे एक पैकेट रसना से 32 ग्लास ड्रिंक बनाया जा सकता है. इसके अलावा केसर, इलायची, जलजीरा जैसे कई फ्लेवर्स में रसना को लॉन्च करने की वजह से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी पहुंच बढ़ गई.

रसना ने लोवर मिडिल क्लास के लोगों को कम पैसे में एक ड्रिंक उपलब्ध कराया जो कि उस महंगे कार्बोनेटेड ड्रिंक का खर्च नहीं उठा सकते थे.


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दादा से डालडा तक

डालडा का ताड़ के पेड़ वाला पीला हरा डब्बा आज भी जब कहीं विज्ञापन में या किसी के घर में रखा दिख जाता है तो एक बार बचपन की याद ताजा हो जाती है. आज डालडा का रूप रंग भले ही बदल गया है लेकिन वो टिन के वनस्पति डिब्बे वाली बात कहां. हम सभी ने अपने बचपन में कभी न कभी अपने किचन में जरूर देखा होगा. डालडा वनस्पति घी, तेल और किया जाता था.

डालडा का नाम डालडा कैसे पड़ा यह भी अपने आप में काफी रोचक है. दरअसल, हुसैन दादा एक डच कंपनी से वनस्पति घी को आयात करके भारत में बेचते थे. उस वक्त वे इसे दादा वनस्पति घी के नाम से बेचते थे बाद में लीवर ब्रदर्स ने जब इसे टेकओवर कर लिया तो उन्होंने इसके नाम में एल जोड़ दिया, जिसके बाद इसका नाम डालडा हो गया.

1937 से शुरू हुआ डालडा ब्रांड 1990 आते आते भारत के लगभग हर घर तक पहुंच चुका था. कारण वही था कि देशी घी की तुलना में इसकी कीमत काफी कम थी और स्वाद व फ्लेवर घी वाला था. लेकिन इसके बाद 90 के बाद कुछ अन्य ब्रांड भी बाजार में आ गए और इसके बाद डालडा का कॉम्पटीशन अन्य कंपनियों से बढ़ने लगा. साथ ही डालडा को लेकर ऐसी खबरें भी सामने आने लगीं कि चिकनाई बढ़ाने के लिए उसमें पशुओं की चर्बी का प्रयोग किया जाता है. यह भारतीय समाज के किसी भी परिवार के लिए काफी बड़ी बात थी. जिससे इसकी बिक्री में कमी आई.

हालांकि, उस वक्त तक धीरे-धीरे रिफाइंड ऑयल का विकल्प भी भारतीय बाजारों में आने लगा था जिससे वनस्पति घी का प्रयोग कम होने लगा था. अब इसका प्रयोग काफी कम हो गया है लेकिन ऐसा नहीं है कि प्रयोग बिल्कुल बंद हो गया है या बाजारों में डालडा बिकना बंद हो गया हो.


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