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Sunday, 22 December, 2024
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इन दो BJP शासित राज्यों ने लागू किए थे कृषि कानून, अब एक हैरान है, तो दूसरे ने कहा- कोई असर नहीं पड़ेगा

उत्तराखंड और कर्नाटक उन राज्यों में थे, जिन्होंने केंद्रीय कृषि कानूनों के आधार पर अपने कानून बना लिए थे. अब जहां पर्वतीय राज्य कानून को रद्द किए जाने का स्वागत कर रहा है, वहीं दक्षिणी सूबे के मंत्री ‘चकराए’ हुए हैं.

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देहरादून, बेंगलुरू: शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान ने पूरे देश को चौंका दिया. बीजेपी-शासित राज्यों उत्तराखंड और कर्नाटक भी कुछ अलग नहीं थे, जिन्होंने केंद्र सरकार के कानूनों के आधार पर अपने कानून बना लिए थे.

लेकिन, जहां एक राज्य ने पीएम के फैसले का स्वागत किया है, वहीं दूसरे का कहना है कि उसे न सिर्फ हैरानी हुई है, बल्कि वो दुविधा में भी पड़ गया है.

उत्तराखंड और कर्नाटक अकेले सूबे नहीं थे, जिन्होंने कृषि कानूनों को किसी और रूप में लागू किया था. ऐसे दूसरे राज्य थे- गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश.


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उत्तराखंड में ‘कोई असर नहीं’

उत्तराखंड सरकार ने कानून को रद्द करने के पीएम मोदी के फैसले का स्वागत किया है और दावा कर रहा है कि इसका हाल ही में लागू किए गए कृषि कानूनों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

इस मुद्दे पर कई घंटों की खामोशी के बाद, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार शाम फैसले का स्वागत किया.

उन्होंने ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं. मैं तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत करता हूं. इस फैसले के नतीजे में देश में भाईचारे का विकास बढ़ेगा’.

मुख्यमंत्री की अनिश्चितता को देखते हुए, उत्तराखंड बीजेपी नेताओं को पार्टी नेतृत्व की ओर से इस विषय पर कुछ न बोलने के कड़े निर्देश थे, जब तक कि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से स्पष्ट दिशानिर्देश न मिल जाएं.

लेकिन दिप्रिंट से बात करते हुए कृषि मंत्री सुभाष उनियाल ने कहा कि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण केंद्र के कानूनों के लागू होने पर रोक लगा दी गई थी और अब उनके रद्द होने से राज्य के उत्तराखंड कृषि उत्पाद एवं पशुधन विपणन अधिनियम (एपीएम एक्ट) 2020 पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जो केंद्रीय कृषि कानूनों की तर्ज़ पर था.

इस अधिनियम में, जो उत्तराखंड कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) एक्ट का एक बदला हुआ रूप था, मंडियों पर से सरकारी नियंत्रण को हटा दिया गया था. इसने कई मंडियों के बनाए जाने का रास्ता साफ कर दिया था. इसमें अनुमति दी गई थी कि निजी व्यक्ति, पार्टियां या समूह अपनी खुद की मंडियां स्थापित करने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर सकते थे, जहां किसानों को प्रतिस्पर्धात्मक कीमतें ऑफर की जा सकती थी.

उनियाल ने कहा, ‘सितंबर 2020 में पारित केंद्र सरकार के कृषि कानूनों पर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. चूंकि मामला एससी में लंबित था, इसलिए उत्तराखंड में इसे अपनाए जाने के लिए अंतिम मंजूरी का इंतजार था. हमने उसे लागू नहीं किया था. लेकिन, अब तीनों कानून अमान्य हो गए हैं, इसलिए हमारे लिए कृषि कानूनों पर यथास्थिति बनी हुई है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मौजूदा हालात में इनके लागू किए जाने की बात करना बेकार है. उत्तराखंड सरकार ने केंद्र द्वारा पारित आवश्यक वस्तु अधिनियम और अनुबंध कृषि अधिनियम को लागू नहीं किया था’.

उनियाल ने आगे कहा कि एपीएम एक्ट अपनी जगह बना रहेगा. मंत्री का कहना था, ‘एपीएम 2021 हमारे 2011 के एपीएमसी कानून का एक संशोधित रूप था, जिसका उद्देश्य विपणन का प्रभावी विनियमन करना और राज्य में किसानों की उपज के लिए उचित विपणन प्रणालियां स्थापित करना था. वो राज्य का कानून था’.


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‘दुविधा’ में कर्नाटक

राज्य के कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री जेसी मधुस्वामी के अनुसार, पीएम के फैसले ने कर्नाटक सरकार को पूरी तरह चौंका दिया.

मधुस्वामी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस घोषणा ने हमें भी चौंका दिया है. न तो कोई परामर्श किया गया, ना ही कोई सूचना दी गई. हमें अभी चर्चा करनी है कि राज्य स्तर पर क्या किया जाना है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम केंद्र सरकार को लिखेंगे और उनके निर्देशों के हिसाब से आगे की कार्रवाई करेंगे’.

पिछले साल दिसंबर में कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने- जब उसके मुखिया बीएस येदियुरप्पा थे- कर्नाटक कृषि उत्पाद विपणन (विनियमन एवं विकास) (संशोधन) विधेयक, 2020, पारित किया था, जो केंद्र के कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) नियम, 2020 का एक अपना रूप था, जिसका उद्देश्य एपीएमसी कानून में बदलाव करना था.

कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने कीमत आश्वासन और कृषि सेवा (विवाद समाधान) नियम, 2020 पर कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) करार या आवश्यक वस्तु (संशोधन) एक्ट, 2020 का कोई प्रादेशिक रूप तो लागू नहीं किया था लेकिन अपने ‘कृषि सुधार’ के तहत भूमि से जुड़े नियमों को उदार करने के लिए वो एक कानून जरूर लाई थी.

कर्नाटक भूमि सुधार (द्वितीय संशोधन) एक्ट, 2020 भी सितंबर 2020 में ही किसानों तथा विपक्षा के भारी विरोध के बीच पारित किया गया था.

मधुस्वामी ने कहा, ‘हमें केंद्र सरकार के साथ एपीएमसी एक्ट में संशोधन पर चर्चा करनी होगी लेकिन हम भूमि सुधार एक्ट को वापस नहीं लेंगे क्योंकि ये एक राज्य का कानून है और केंद्र सरकार के फैसले का इस पर कोई असर नहीं होगा’.

कर्नाटक के कृषि मंत्री बीसी पाटिल ने भी दिप्रिंट से कहा कि केंद्र सरकार के फैसले का राज्य के संदर्भ में अध्ययन करने की जरूरत है. पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसने हमें भी चौंका दिया. मैं अगले सप्ताह मुख्यमंत्री से चर्चा करूंगा कि हमें अपने कानूनों का क्या करना चाहिए’.

लेकिन जहां एक ओर उनके मंत्री चकरा गए, वहीं मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने पीएम मोदी का समर्थन किया.

बोम्मई ने शुक्रवार दोपहर पत्रकारों से कहा, ‘पीएम मोदी ने कहा है कि किसानों की भावनाओं का खयाल रखते हुए संसद के आगामी सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया जाएगा. इससे जाहिर होता है कि सरकार कितनी उत्तरदायी है’.

लेकिन कर्नाटक में विपक्षा चाहता है कि राज्य सरकार अपने कानून को वापस ले ले. कांग्रेस विधायक और राज्य के पूर्व कृषि मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये निर्णय प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक था. ये फैसला पार्टी की ओर से सरकार के पास आया है, इसलिए राज्य सरकार को भी अपना कानून रद्द करना होगा. शीत सत्र शुरू होने से पहले हम इस मामले पर स्पष्टता की मांग करते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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