खुल्दाबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने मई में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र का दौरा किया था, उस समय शेख निसार अहमद ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि यह सब इतने बड़े विवाद में तब्दील हो जाएगा.
अहमद ने दिप्रिंट को बताया कि उनका परिवार पिछली छह पीढ़ियों से मकबरे की देखभाल करता आ रहा है, और यह पहली बार था कि ओवैसी की यात्रा के बाद सांप्रदायिक तनाव के डर से औरंगाबाद शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में स्थित इस स्मारक को पांच दिनों के लिए बंद करना पड़ा.
मकबरे की देखभाल करने वाले 63 वर्षीय अहमद ने भारत की साझी संस्कृति का जिक्र करते हुए कहा, ‘मैंने अपने जीवनकाल में पहली बार इस तरह का तनाव देखा है. अन्यथा, कभी कोई समस्या नहीं हुई. गंगा-जमुनी तहजीब से जुड़े हिंदू और मुसलमान शांति से रहते हैं. यहां सभी धर्मों और जातियों के लोग आते रहे हैं. कई राजनेताओं ने भी (मकबरे का) दौरा किया है.’
मुगल बादशाह और उनके द्वारा मस्जिद निर्माण के लिए मंदिरों को तोड़े जाने को लेकर जारी बहस के बीच 13 मई को ओवैसी मकबरे पर पहुंचे और औरंगजेब की कब्र पर फूल चढ़ाए. महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा दखल रखने वाले राजनीतिक दलों ने उनकी इस यात्रा की कड़ी आलोचना की थी.
शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा कि ओवैसी की राजनीति सिर्फ महाराष्ट्र का माहौल खराब करने वाली है. भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने एआईएमआईएम नेता पर देशद्रोह के आरोप लगाने की मांग की और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार की खिंचाई की. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की मांग थी कि इस ढांचे को ढहा दिया जाना चाहिए.
एमवीए के एक घटक कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने पलटवार करते हुए कहा कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी 2019 में उस समय मकबरे का दौरा किया था जब फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने भाजपा को यह भी याद दिलाने की कोशिश की कि उसके अपने एक मुस्लिम नेता भी ऐसा ही कर चुके हैं.
औरंगजेब, जिसने 1689 में मराठा गौरव छत्रपति शिवाजी के बेटे संभाजी को फांसी देने का आदेश दिया था, को महाराष्ट्र में ध्रुवीकरण की प्रतीक एक हस्ती माना जाता है. ओवैसी की यात्रा पर विवाद के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुल्दाबाद स्थित एक मस्जिद समिति के अनुरोध पर मकबरे को पांच दिनों के लिए बंद कर दिया था.
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औरंगजेब का ‘खादिम’
अहमद ने बताया कि उनके पूर्वज औरंगजेब के ‘खादिम (नौकर)’ थे.
अहमद ने बताया, ‘उनकी (औरंगजेब) मृत्यु के बाद उनके बेटे ने हमारे परिवार से कहा कि हमने उनके पिता की ठीक से देखभाल की है और हमें उनकी कब्र की देखभाल करनी चाहिए. 1977 में पिता की मृत्यु के बाद मैंने केयरटेकर की जिम्मेदारी संभाल ली.’
अहमद का परिवार मकबरे पर आने वाले लोगों की तरफ से मिले दान से ‘उर्स’ और अन्य समारोहों का आयोजन करता है. यह परिवार पिछले चार दशकों से रत्न और इत्र का कारोबार कर रहा है. अहमद कब्र के ठीक बाहर एक छोटी सी दुकान चलाते हैं.
खुल्दाबाद में कई शासकों और सूफी संतों को दफनाया गया है. औरंगजेब का मकबरा उसी परिसर में है जहां ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन शिराजी का मकबरा है, जिसे बादशाह अपना ‘गुरु’ मानते थे.
केयरटेकर के मुताबिक, औरंगजेब चाहता था कि उसका मकबरा ‘मिट्टी’ से बना हो और उसके बगल में मीठी तुलसी का एक पौधा हो और वह खुले आसमान के नीचे हो. अहमद ने कहा, ‘उनकी इच्छा थी कि 14 रुपये 12 आने में एक मकबरा बनाया जाए. इसमें जरी और मलमल का कोई इस्तेमाल न किया जाए.’
एक दृष्टिबाधित टूर गाइड मकबरे पर आने वाले लोगों को एक सांस में इसके बारे में जानकारी मुहैया करा देता है और इसके लिए वह कोई शुल्क भी नहीं मांगता है.
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एक ऐतिहासिक स्थल
अहमद ने कहा कि महामारी से पहले मकबरे में हर साल लगभग 2,000 से 3,000 देशी-विदेशी पर्यटक आते थे, लेकिन अब यह संख्या काफी कम हो गई है.
अहमद ने बताया, ‘लोग सिर्फ औरंगजेब के मकबरे को देखने या उसका इतिहास जानने के लिए नहीं आते हैं. इस मकबरे के दूसरी तरफ (दक्कन के अफ्रीकी मूल के दुर्जेय सैन्य जनरल) मलिक अंबर का मकबरा है. लोग इसलिए भी आते हैं क्योंकि खुल्दाबाद सूफी संतों का किला है. ‘खुल्द’ का मतलब स्वर्ग होता है, इसलिए जब लोग यहां आते हैं तो औरंगजेब के मकबरे का भी दीदार करते हैं. यहां भद्रा मारुति मंदिर भी स्थित है, और मकबरे के भ्रमण के बाद लोग वहां भी जाते हैं.’
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