नई दिल्ली: यमुना नदी में लगभग 20 साल बाद आई बाढ़ ने देश की राजधानी के यमुना पार इलाके की व्यवस्था को चरमरा कर रख दिया. नदी के आसपास और डूब क्षेत्रों के लोग रातों-रात अपना घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों की तलाश में निकल पड़े. सरकार ने सड़कों पर अस्थायी रूप से उनके लिए राहत शिविरों की व्यवस्था की, जहां वो पिछले 15 से अधिक दिनों से गुज़र बसर कर रहे हैं.
इस बाढ़ ने लोगों से उनका घर, कीमती सामान, रोज़गार सब छीन लिया है. हालांकि, बाढ़ पीड़ित सरकारी सुविधाओं से खुश हैं, लेकिन स्वास्थ्य सहूलियत, सरकारी दवाओं पर भरोसा, छत की चाह और खाने पीने की चीजों की बर्बादी अब भी एक अहम मुद्दा बना हुआ है.
दिप्रिंट ने जब कश्मीरी गेट के पास गोल्डन जुबली पार्क और बेला गांव के इलाके के बाढ़ प्रभावित कैंप का दौरा किया तो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में असिस्टेंट पब्लिक हेल्थ इंस्पेक्टर मनीष कुमार मीणा लोगों से घिरे हुए थे और सभी के आधार कार्ड और बैंक के कागज़ात देख रहे थे.
तभी अचानक एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘मुझे भी लोन मिलेगा न सर.’’
दरअसल, दिल्ली जल बोर्ड द्वारा आने वाले पानी में क्लोरीन की मात्रा की जांच करने आए अधिकारी केंद्र सरकार की तरफ से लोगों को रोज़गार दिलाने के वास्ते पीएम स्वनिधि योजना के फॉर्म भरवा रहे थे.
अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘हर दिन 10 लोगों का फॉर्म भरवाने का टार्गेट है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैडम पहले दो लाइसेंसी इंस्पेक्टर को केवल इसलिए सस्पेंड किया गया, क्योंकि वो फॉर्म नहीं भरवा रहे थे.’’
बता दें कि कोविड संबंधित लॉकडाउन के बाद फुटपाथ और गलियों में ढेर सारी दुकानें और अस्थायी स्टाल सूने पड़ने लगे थे और ज्यादातर दैनिक वेतन भोगी वेंडर्स की जीविका को नुकसान पहुंच रहा था. लगभग हर जगह रेहड़ी-पटरी वालों को भी यही अंजाम भुगतना पड़ा.
ऐसे वेंडर्स के लिए अपने कारोबार को फिर से शुरू कराने के मकसद से आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने जून 2020 में पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) की शुरुआत की थी. योजना के तहत वेंडर्स 10,000 रुपये तक का संपार्श्विक मुक्त कार्यशील लोन ले सकते हैं, जिसे उन्हें 12 महीनों के भीतर चुकाना होगा. पहले लोन के सफल पुनर्भुगतान के बाद वह 20,000 रुपये और फिर 50,000 रुपये के कर्ज़ के लिए पात्र होते हैं.
मीणा ने समझाया कि लोन का फॉर्म भरने के बाद एमसीडी के पास अप्रूवल के लिए भेजा जाता है और फिर बैंक की जांच (केवाईसी) के बाद कम से कम 15 दिन के बाद ही पैसे खाते में पहुंचते हैं. इस लोन के लिए वर्तमान कारोबार (रेहड़ी/पटरी पर गुमटी) को दिखाना ज़रूरी होता है और डिफॉल्टर पाए जाने पर दोबारा कभी फॉर्म नहीं भरा जा सकता है.
लोग जीवन संकट से जूझ रहे हैं, उन्हें अपनी आजीविका के बारे में शंकाएं हैं और इस वजह से वह लोन को लेकर उत्साही भी नहीं हैं. दबे स्वर में एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘लोगों की कर्ज़ की ज़रूरत नहीं, लेकिन इनका फॉर्म भरवाना हमारा टार्गेट है.’’
इस बीच कैंप में लोग पानी से बचाए गए अपने कागज़ों में से बैंक की पासबुक तलाश रहे थे और लाइन लगा कर इसे अधिकारी को दिखा रहे थे.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिन पहले ट्वीट कर कहा था कि जिन लोगों का नुकसान हुआ है, उन्हें सरकार मुआवजे के तौर पर 10 हज़ार रुपये देगी. साथ ही सरकारी दस्तावेज़ों के लिए कैंप लगाए जाएंगे और बच्चों को स्कूल से नईं किताबें दिलाई जाएंगी.
हालांकि, सरकारी अधिकारी भी मुआवजे को लेकर असमंजस में हैं. नाम ने छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, ‘‘अभी फॉर्म भरे गए हैं लेकिन पैसे कब तक दिए जाएंगे इसकी कोई तय तारीख नहीं है.’’
उन्होंने आगे कहा कि दावा नहीं किया जा सकता, लोन मिलने में तीन महीने से ज्यादा टाइम लग सकता है.
इस बीच सोमवार को यमुना नदी का जल स्तर फिर बढ़ गया और लोग फिर से तंबुओं में लौट आये.
राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि केजरीवाल ने समय से इत्तला नहीं किया और नालों से गाद नहीं निकाली जिसके कारण दिल्ली को ऐसा मंज़र देखना पड़ा.
पिछले साल, दिल्ली के पर्यावरण विभाग ने विधानसभा में बताया था कि दिल्ली में यमुना नदी को साफ करने के लिए, 2017-21 तक पांच वर्षों में लगभग 6,856.91 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.
यह भी पढ़ें: वैध-अवैध की लड़ाई में दिल्ली के सरोजिनी नगर में फेरीवाले कर रहे हैं PM स्वनिधि लोन के लिए संघर्ष
सरकारी दवा पर भरोसा नहीं
कश्मीरी गेट और यमुना बाज़ार इलाके में मानसून के दौरान यमुना नदी में पानी का लेवल बढ़ता है. राहत शिविरों में रहने वाले लोग सरकारी सहूलियतों को देख कर वैसे तो बहुत खुश हैं, उनका कहना है कि ऐसी सुविधाएं इससे पहले मुहैया नहीं कराई गई थीं, लेकिन वहां दी जाने वाली सरकारी दवाओं पर उन्हें भरोसा नहीं है.
मानसून के दौरान कंजक्टीवाइटिस (आंख आना, पिंक आई), पेट खराब, बुखार, खांसी सामान्य बीमारी के रूप में तेज़ी से फैलती है. इस बार भी राजधानी को कंजक्टीवाइटिस ने तेज़ी से अपनी चपेट में ले रखा है.
दिप्रिंट ने जब आई फ्लू से जूझ रहे लोगों से पूछा कि आंखों के लिए दवा दी जा रही है, तो उन्होंने एक हरे रंग की शीशी की ओर इशारा करते हुए कहा कि इससे कोई असर नहीं पड़ रहा.
कैंप निवासी वसीम अक्रम (25) ने कहा, ‘‘मैं गीता कॉलोनी में काम करता हूं, वहीं से दवाई ला रहा हूं और उसी से ठीक हुआ. यहां जो गोलियां दी जा रही हैं वो इतनी गर्म है कि पेट में गर्मी होने लगी.’’
हालांकि, हैजा, आन्त्रशोध और मच्छरों से बचाव के स्टीकर चस्पा करते हुए अधिकारियों ने कहा कि जल जनित बीमारियों और गर्मी से बचने के लिए सभी सुविधाएं दी जा रही हैं. केंद्र और राज्य सरकार ने पुख्ता इंतजाम किए हैं. हर रिलीफ कैंप के इलाके में सरकारी अधिकारी दौरा करते हैं और 8-8 घंटे की ड्यूटी करते हैं.
दरियागंज डीएम ऑफिस के एक जूनियर एलडीसी नरेश कुमार मीणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘दिन में तीन बार फॉगिंग कराई जाती है और पानी में क्लोरिन डाला जाता है. सभी सुविधाओं के सुचारू रूप से संचालन के लिए हम दिन रात यहां बैठे हैं.’’
उन्होंने कहा कि ओआरएस के घोल और सभी दवाईयां चैक-अप टाइम से होता है. एंबुलेंस के ड्राइवर ने बताया कि लोकनायक अस्पताल के डॉक्टर यहां आते हैं और दोपहर बाद चले जाते हैं.
हालांकि, महिलाओं के लिए पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले सेनिटरी नैपकिन और गर्भवती महिलाओं के लिए दवाईयां भी इन तंबुओं तक पहुंचाए जा रहे हैं. एक एंबुलेंस दिन रात हर कैंप के बाहर मुस्तैद है और पैरामेडिकल स्टाफ की हर आठ घंटे पर ड्यूटी बदलती रहती है.
गोल्डन जुबली कैंप की 40-वर्षीय राजन जो कि गर्भवती हैं, ने कहा, ‘‘मुझे पूरा समय होने वाला है. रोज़ मेरे लिए दवाई और दूध यहां आता है और चैकिंग के लिए अस्पताल जाने के लिए गाड़ी (एंबुलेंस) भी खड़ी है.’’ राजन के पहले भी दो बच्चे हैं.
यह भी पढ़ें: दिल्ली के सिविल लाइन्स इलाके में किसी के लिए कहर तो किसी के लिए उपहार लेकर आई यमुना की बाढ़
‘झुग्गियों में लौट जाइए’
धूप में दूर से दिखाई देने वाले ये तंबु सरकारी कैंप के नाम से मशहूर हैं, लेकिन इनमें मक्खियां, बदबूदार चादरें बंधा हुआ सामान और खाना बिखरा पड़ा था.
इन सफेद रंग के तंबुओं में मजबूती तो बहुत है, लेकिन इनमें लाइट का कनेक्शन केवल रात में दिया जाता है.
अक्रम की पत्नी रानी (20) जो अपने सोए हुए बेटे के मुंह से मक्खियां हटाने के लिए हाथ से पंखा झल रही थीं, ने कहा, ‘‘बस रात में जनरेटर चलता है और दिन में तो धूप, मक्खी सब आते हैं. लाइटें रात को जलती हैं और फिर हम खाना बना लेते हैं.’’
उन्होंने अपने बिस्तर पर बिछी हरी दरियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि हमें पलंग दरियां और सूखा राशन पहली बार मिला है. वहीं, अन्य कैंप के निवासियों का भी कहना था कि उन्हें यहां रहने में परेशानी नहीं है बस गर्मी झेलना मुश्किल है.
इस बीच, गाड़ियों से गुज़र रहे लोग रुक-रुक कर खाना और कपड़े बांट रहे थे, जिसके लिए कैंप में मारा-मारी मची थी.
लोगों ने बताया कि सरकारी अधिकारी आते हैं और उन्हें वापिस उनके घरों में लौट जाने के लिए कहते हैं. हालांकि, पिछले दो दिनों से यमुना फिर से खतरे के निशान के करीब पहुंच चुकी है और मंगलवार को लोहे के पुल पर यातायात एक बार फिर से बंद कर दिया गया था.
एक अधिकारी ने बातचीत में लोगों से कहा, ‘‘अब पानी नहीं है लौट जाइए,’’ लेकिन लोगों का कहना है कि घरों में कीचड़ और गाद भरा हुआ है और अभी भी घुटनों तक पानी है. जब तक पानी पूरी तरह से नहीं निकल जाता वो वहां से नहीं हिलेंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘अब पानी नहीं है बना लो फिर से झुग्गी, 15 दिन से हमें लगने लगा है कि हम भी टेंट में रहते हैं.’’ वो नीचे के बाग से तोड़ कर लाए गए अमरूदों और जामुन को दिखाते हुए लोगों को बार-बार नीचे जाने के लिए कह रहे थे.
राहत कैंप के निवासियों ने बताया कि दिन में पांच बार खाने वाली गाड़ी आती है और उसमें दलिया, कढ़ी चावल, दाल चावल और पूड़ी सब्ज़ी आता है. इसके अलावा कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) भी खाने का इंतज़ाम करा देते हैं.
इसी दौरान वहां एक फूड इंस्पेक्टर खाने की गाड़ी से पहले चैकिंग के लिए पहुंचे थे. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि खाने की क्वालिटी और टेस्ट को चेक करके हर दिन चीफ सेक्रेटरी को रिपोर्ट भेजी जाती है.
लेकिन, दिप्रिंट ने पाया कि खाने का सामान नदी और कूड़ेदान के पास बिखरा था. अधिकारी ने बताया कि दोपहर तक पीने के पानी के तीन टैंकर खत्म हो जाते हैं क्योंकि इसे कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
कैंप के निवासियों ने बताया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधिकारियों ने कुछ दिन पहले झुग्गियों को तोड़ दिया था, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में वो लोग केस लड़ रहे हैं.
शारदा देवी (50) ने कहा, ‘‘मेरी शादी हो कर मैं यही आई थी, लेकिन डीडीए वाले कहते हैं कि हमारी ज़मीन है. उन्होंने हमसे कोरे कागज़ पर हस्ताक्षर करवा लिए और वकील भी बिक गया और डीडीए की तरफ से लड़ रहा है.’’
‘‘कभी मकान पानी में बह जाता है, कभी बुलडोज़र के नीचे आ जाता है.’’
यह भी पढ़ें: ‘बार-बार घर बनाकर थक चुके है’, दिल्ली के राहत शिविरों में बाढ़-विस्थापितों को फिर याद आया 1978 का वो मंज़र