scorecardresearch
Thursday, 9 May, 2024
होमदेश'बार-बार घर बनाकर थक चुके है', दिल्ली के राहत शिविरों में बाढ़-विस्थापितों को फिर याद आया 1978 का वो मंज़र

‘बार-बार घर बनाकर थक चुके है’, दिल्ली के राहत शिविरों में बाढ़-विस्थापितों को फिर याद आया 1978 का वो मंज़र

दिल्ली के बाढ़-विस्थापितों को सरकार की मदद और उनके घरों को नए सिरे से बनाने का इंतजार है. पिछले सप्ताह दिल्ली में बाढ़ से लगभग 2.5 लाख लोग विस्थापित हुए.

Text Size:

नई दिल्ली: 45 साल हो गए हैं, लेकिन दिल्ली की 57 वर्षीय बिनीता देवी को आज भी वो डरावनी आवाजें सुनई देती हैं: गायों का लगातार रंभाना, कुत्तों और बिल्लियों की दर्दनाक चीखें, बचाव कर्मियों द्वारा लोगों को बचाने के आदेश की आवाजे़, और इन सब के बीच बाढ़ का पानी लगातार उसके घर में घुस रहा है.

वह उस दृश्य को भी नहीं भूल सकती – बर्तन और अनाज इधर-उधर तैर रहे थे, भीगी हुई किताबें पानी के पास बेकार पड़ी थीं.

समय के साथ, सितंबर 1978 की वे यादें धुंधली हो गईं – लेकिन इस बार बिनीता देवी की वो यादें एक बार फिर ताज़ा हो गई, जब पिछले हफ्ते नदी के तेज पानी ने एक बार फिर उनके घर को तोड़ दिया, जिस कारण उन्हें पिछली बार की तरह राहत शिविर में जाना पड़ा.

Yamuna river flooding in Delhi | Photo: Suraj Singh Bisht/The Print
दिल्ली में यमुना नदी में बाढ़ | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

बिनीता पिछले हफ्ते दिल्ली में बाढ़ से विस्थापित हुए लगभग 2.5 लाख लोगों में से एक हैं, जिसके लिए भारी बारिश के साथ-साथ अनुचित योजना और प्रशासनिक निरीक्षण को भी जिम्मेदार ठहराया गया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, बिनीता देवी ने कहा कि “जब पानी तेजी से आने लगा तो उन्हें पास के एक पक्के ढांचे के ऊपर चढ़ना पड़ा”.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने कहा, “कुछ ही मिनटों में सबकुछ तबाह हो गया, चीजें खराब हो गईं, बचत और आजीविका हमेशा के लिए खत्म हो गई.”

बिनीता जो वर्तमान में सैकड़ों अन्य लोगों के साथ मयूर विहार चरण 1 के पास एक अस्थायी राहत शिविर में रह रही है- ने कहा, “उस समय की यादें धुंधली हो गई थीं. वे 2010 में एक बार वापस आए लेकिन इस साल की तरह नहीं. सायरन की आवाज़, डर – सब कुछ वैसा ही है जैसा सितंबर 1978 में महसूस हुआ था.”

बिनीता की तरह, यहां रहने वाले लोग ज्यादातर यमुना खद्दर इलाके में रहते हैं और आजीविका के लिए छोटे-मोटे काम करते हैं.


यह भी पढ़ें: दिल्ली के सिविल लाइन्स इलाके में किसी के लिए कहर तो किसी के लिए उपहार लेकर आई यमुना की बाढ़


पुराने घाव

इस शिविर में पूर्वी दिल्ली में एक फ्लाईओवर के किनारे पर सफेद और काले रंग के तंबू लगाए गए हैं. मंगलवार को, भारी बारिश के कारण पानी छोटे-छोटे तंबुओं में घुस गया, जिससे उनके विस्थापन की भावना तीव्र हो गई, जबकि राजधानी के बाकी हिस्से प्रभावी रूप से सामान्य स्थिति में लौट आए हैं.

शिविर में अधिकांश लोग एक सप्ताह से अधिक समय से रुके हुए हैं, उनके पास जो थोड़ा-बहुत सामान है, वह बाहर ले जा सकते हैं.

निवासियों का कहना है कि वे अब अधिकारियों द्वारा उनके नुकसान का आकलन करने और उनके घरों के पुनर्निर्माण का इंतजार कर रहे हैं.

बुधवार को, जब दिप्रिंट ने इलाके का दौरा किया, तो सिविल डिफेंस वालंटियर विस्थापित लोगों के आधार कार्ड विवरण एकत्र कर रहे थे.

लेकिन राजधुई जैसे 50 साल की उम्र वाले लोगों के लिए इंतजार लंबा होने की उम्मीद है, जिनके आईडी कार्ड बाढ़ में डूब गए थे. राजधुई ने कहा कि उनके फोन में सॉफ्ट कॉपी थी, लेकिन फोन में पानी जाने के कारण यह काम नहीं कर रही है.

कक्षा 9 की छात्रा शिवानी ने कहा, “जिन लोगों के दस्तावेज़ खो गए हैं उनके लिए सरकार द्वारा विशेष शिविर आयोजित किए जाएंगे. चीजों में समय लगेगा लेकिन ऐसा होगा.”

बिनीता की तरह राजधुआई ने भी 1978 की बाढ़ देखी. उन्होंने कहा,  “शिविर में पहले दो दिन मुझे बुरे सपने आये. मैंने [अपने सपनों में] देखा कि बाढ़ ने लोगों और जानवरों को मार डाला…पानी हमारे शिविरों को तोड़ रहा है और हम उसमें डूब रहे है.”

बगल के तंबू में 26 साल की मधु देवी अपने 5 महीने के बच्चे को चुप कराने की कोशिश कर रही थी. बुधवार को तापमान बढ़ गया और मधु और उसके पति राम सेरा के हाथ के पंखे का उपयोग करने का प्रयास बच्चे को शांत करने में विफल रहा, जो लगातार रो रहा था.

Madhu Devi with her husband and son | Bismee Taskin | ThePrint
मधु देवी अपने पति और बेटे के साथ | बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

थोड़ी देर बाद, राम सेरा पुलिस बैरिकेड्स के पार बैठने के लिए तंबू से बाहर निकल गया और मधु अपने बेटे को खाना खिलाती रही.

उन्होंने कहा, “देखो कैसे उठ के चला गया.” “वह इस बात से परेशान है कि जिस ट्रॉली पर उन्होंने सब्जियां बेचीं वह पूरी तरह नष्ट हो गई है. अब हमें काम पर वापस लौटने के लिए इंतजार करना होगा. अगर कल को सरकार हमें दूध और अन्य खाद्य पदार्थ देना बंद कर दे तो क्या होगा?”

मधु ने कहा कि “घर में जो बचत थी, उसे इकट्ठा नहीं कर सके. कुछ सोने के गहने भी खो गए हैं.”

इस बीच, मधु की सास माला देवी, जो 1978 में जीवित बची थीं, ने कहा कि वह अपने घर के पुनर्निर्माण के इस चक्र से थक गई थीं.

उन्होंने राहत सामग्री प्रदान करने के लिए गैर सरकारी संगठनों द्वारा लगाए गए शिविरों का जिक्र करते हुए कहा, “चीजें अब बेहतर हैं. उन्होंने हमें उपयोग करने के लिए सेनेट्री नैपकिन भी दिए हैं.” माला ने आगे कहा, “पहले के समय में, इन स्थितियों में, हममें से कई लोगों को फटे कपड़ों का उपयोग करना पड़ता था और कभी-कभी तो अखबार से ही काम चलाना पड़ता था.

नुकसान और चिंता

राहत शिविर के निवासियों की चिंताएं व्यापक स्तर पर फैली हुई हैं.

शिवानी ने कहा कि वह चिंतित है कि वह स्कूल कब लौट पाएगी, उसने बाढ़ में अपनी किताबें खो दीं.

सरकार द्वारा दी गई चारपाई पर बैठकर अपने नोट्स निकालने के लिए एल्युमीनियम ट्रंक खोलते हुए उसने कहा, “मुझे नहीं पता कि मुझे किताबें कब वापस मिलेंगी.”

Shivani with her cousins | Bismee Taskin | ThePrint
शिवानी अपनी बहनों के साथ | बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

उसने कहा, “मेरे पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, इसलिए हम दोबारा किताबें नहीं खरीद पाएंगे. मैं स्कूल वापस जाना चाहती हूं और परीक्षा की तैयारी करना चाहती हूं.”

पांच भाई-बहनों सहित आठ लोगों के अपने परिवार में, शिवानी अकेली है जो अपनी स्कूली शिक्षा जारी रख रही है.

मोरी गेट स्थित आश्रय स्थल पर रह रहीं सुनीता मौर्या को बाढ़ में बर्बाद हुए पैसों की चिंता सता रही है.

यमुना बाज़ार की निवासी सुनीता ने कहा, “कोई हमारे घर में घुस गया और अलमारी में बंद पैसे ले गया. हमें लगभग 20,000 रुपये का नुकसान हुआ. मुझे वह पैसा वापस चाहिए, यह मेरे पिता के इलाज के लिए है.”

The shelter at Mori Gate | Bismee Taskin | ThePrint
मोरी गेट पर बना शेल्टर | बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

जबकि इस शिविर में स्थिति बेहतर है – सर्वोदय बाल विद्यालय के अंदर स्थित, उचित शौचालय सुविधाओं और हॉल में पंखे के साथ – सुनीता के ससुर नीना धर, 86, अपनी आंखों में आंसू लेकर बैठे थे.

उन्होंने कहा, “मुझे घर वापस जाने का मन नहीं है.” धर ने कहा, “अब घर क्या है? घर मिट्टी और बाकि चीज़ो से भर गया है. न पानी है, न बिजली. सारा फर्नीचर खराब हो गया है. मुझे नहीं लगता कि मुझमें अब और धैर्य है.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


यह भी पढ़ें: दिल्ली के मुकुंदपुर में बाढ़ के पानी में तैरने गए 3 बच्चों की डूबने से मौत


share & View comments