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Sunday, 28 April, 2024
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वैध-अवैध की लड़ाई में दिल्ली के सरोजिनी नगर में फेरीवाले कर रहे हैं PM स्वनिधि लोन के लिए संघर्ष

दिल्ली के बाज़ार में फेरीवालों को स्ट्रीट वेंडर लोन नहीं मिल सकता है क्योंकि एनडीएमसी उन्हें वैध नहीं मानता है, लेकिन नगर निकाय ने भी 3 साल में वैध विक्रेताओं की पहचान के लिए सर्वे नहीं करवाया है.

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नई दिल्ली: गीता और रेशमा दो दोस्त और दिल्ली के चहल-पहल वाले सरोजिनी नगर मार्केट के साथी स्ट्रीट वेंडर, लक्ष्मीबाई नगर के पास एक टूटी-फूटी झुग्गी में एक साथ रहती हैं. लकड़ी के डंडों के सहारे खड़ी फटी हुई प्लास्टिक की चादरें दीवारों और छत का काम करती हैं और वहां मिट्टी के सख्त फर्श है.

दोनों महिलाएं एक साथ लगभग 100 से लेकर 300 रुपये प्रति दिन पर पौधें बेचती हैं और महामारी से प्रभावित स्ट्रीट वेंडर्स की मदद के लिए 2020 में शुरू की गई केंद्र सरकार की पीएम स्वनिधि योजना के तहत कर्ज मिलने की उम्मीद करती हैं.

लेकिन जिस व्यवस्था को उनके पक्ष में काम करना चाहिए था वो उनके खिलाफ खड़ी नज़र आ रही है.

कई अन्य रेहड़ी-पटरी वालों की तरह, गीता और रेशमा भी बमुश्किल दो-चार क्लास पढ़ी-लिखी हैं और ‘डिजिटल इंडिया’ के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. रेशमा के पास एक बेसिक फीचर फोन है, लेकिन वो उसे चलाने और अपने नंबर के बारे में ज्यादा नहीं जानती हैं. गीता अपनी पहचान साबित करने के लिए उत्सुक है, लेकिन उसके दस्तावेज़ थोड़े गड़बड़ हैं – उसके आधार कार्ड में उसकी उम्र 36 साल है, लेकिन उसकी वोटर आईडी में उसकी उम्र 39 बताई गई है. किसी भी महिला को यह भी नहीं पता कि कर्ज के लिए आवेदन कैसे करना है.

अपनी झुग्गी के बाहर स्ट्रीट वेंडर रेशमा (बाएं) और गीता (दाएं)। रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

लेकिन वे क्या जानते हैं कि आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा मिलने वाले लोन के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए, उन्हें पहले नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) द्वारा वैध विक्रेता के रूप में मान्यता लेनी होगी, जिसके अंतर्गत सरोजिनी नगर मार्केट आता है.

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हालांकि, एनडीएमसी, केंद्र सरकार के तत्वावधान में एक वैधानिक निकाय है, जिसने अभी तक ‘‘वैध’’ विक्रेताओं की पहचान करने के लिए सर्वे नहीं किया है. इसका मतलब है कि एनडीएमसी क्षेत्रों में अधिकांश विक्रेता लोन के लिए अपनी पात्रता साबित करने के लिए संघर्षरत हैं.

इस मामले में गीता और रेशमा ने भी जद्दोजहद की है.

गीता दिप्रिंट को लैमिनेटेड एनडीएमसी चालान दिखाती हैं कि, जिसे उन्होंने 2013 से 2021 तक सरोजिनी नगर बाजार में वेंडिंग के सबूत के रूप में भुगतान किया है, लेकिन दस्तावेज़ के बहुत दूर तक पहुंचने की संभावना नहीं है.

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स्ट्रीट वेंडर गीता के लैमिनेटेड चालान से उन्हें पीएम स्वनिधि लोन हासिल करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने में मदद मिलने की संभावना नहीं है | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

जबकि दिल्ली स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) योजना 2019 के तहत नियम कहते हैं कि “स्ट्रीट वेंडर साबित होने के लिए सबूत” में “चालान” (जुर्माने के भुगतान की रसीदें) शामिल हैं, लेकिन एनडीएमसी इन्हें वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है.

एनडीएमसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर विक्रेताओं को अपनी स्थिति साबित करने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में पूछे जाने पर दिप्रिंट से कहा, चालान से केवल ये साबित किया जाता है कि किसी ने कभी नियमों को तोड़ा था.

वे कहते हैं, “एक चालान अनिवार्य रूप से नियमों को दरकिनार करने के लिए जुर्माना भरने की रसीद है. तो इसे वेंडिंग का प्रमाण कैसे माना जा सकता है? हमने कभी भी किसी विक्रेता को लोन के लिए आवेदन करने से नहीं रोका. सभी अधिकृत विक्रेताओं को ऋण मिल गया है.”

एनडीएमसी के एक अन्य अधिकारी ने भी नाम न छापने की शर्त पर दावा किया कि सभी “अधिकृत” विक्रेताओं को लोन दे दिया गया है. उन्होंने दावा किया कि एनडीएमसी ने वेंडरों को लोन के लिए आवेदन करने में मदद करने के लिए वर्कशॉप्स भी आयोजित की थीं.

दिप्रिंट ने 28 अप्रैल को आधिकारिक टिप्पणी के लिए एनडीएमसी को ईमेल किया, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है.

दिप्रिंट से बात करने वाले वेंडर्स का कहना है कि सबसे अच्छा समाधान यह होगा कि एनडीएमसी आखिरकार 2019 से लंबित वेंडरों का एक सर्व कराए और उन्हें पीएम स्वनिधि लोन जैसे सरकारी लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक वैधता की मुहर प्रदान करे.

लेकिन वकील मनंजय मिश्रा, जो 2015 से एनडीएमसी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, रेहड़ी-पटरी वालों द्वारा दायर कई याचिकाओं पर अलग राय रखते हैं.

उनका दावा है कि हालांकि, देरी हुई है, लेकिन वेंडर्स ने भी बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटाकर इस प्रक्रिया का खाका खींच लिया है.


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सरोजिनी नगर में PM स्वनिधि कर्ज़ के लिए संघर्ष

फुटपाथों और गलियों में ढेर सारी दुकानों और अस्थायी स्टालों के साथ, सरोजनी नगर मार्केट दिल्ली के सबसे व्यस्त शॉपिंग हब में से एक है, लेकिन लॉकडाउन के महीनों में ये बाज़ार बदल गया और ज्यादातर दैनिक वेतन भोगी वेंडर्स की जीविका को नुकसान पहुंचा. लगभग हर जगह रेहड़ी-पटरी वालों को भी यही अंजाम भुगतना पड़ा.

ऐसे वेंडर्स के लिए अपने कारोबार को फिर से शुरू करने के लिए आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने जून 2020 में पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) की शुरुआत की थी.

Sarojini Nagar Market vendors
मुख्य सरोजनी नगर बाज़ार क्षेत्र के ठीक बाहर स्ट्रीट वेंडर | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

इस योजना के तहत, विक्रेता 10,000 रुपये की संपार्श्विक मुक्त कार्यशील लोन की पूंजी प्राप्त कर सकते हैं, जिसे उन्हें 12 महीनों के भीतर चुकाना होगा.

पहले लोन के सफल पुनर्भुगतान के बाद, विक्रेता 20,000 रुपये और फिर 50,000 रुपये के ऋण के लिए पात्र होते हैं.

आसान शब्दों में कहें तो पीएम स्वनिधि योजना किसी भी स्ट्रीट वेंडर के लिए लोन के लिए अर्हता प्राप्त करना आसान बनाती है.

एक आवेदक के लिए पहला कदम वैध विक्रेता के रूप में अपनी स्थिति को साबित करना है. अगर किसी वेंडर के पास वेंडिंग सर्टिफिकेट या आईडी कार्ड नहीं है, तो वे शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) से कुछ दस्तावेज़ मांग सकते हैं, जैसे सिफारिश पत्र (एलओआर) आदि.

पीएम स्वनिधि लोन ब्रोशर में मोटे अक्षरों में लिखा है, शहरी स्थानीय निकाय “ऐसे वेंडर्स की पहचान करने के लिए कोई अन्य वैकल्पिक तरीका अपना सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी योग्य विक्रेता सकारात्मक रूप से कवर किए गए हैं.”

वेंडर्स एलओआर के साथ-साथ ऋण के लिए पीएम स्वनिधि वेबसाइट पर आवेदन कर सकते हैं, लेकिन एनडीएमसी की मांग वाली सरोजनी नगर मार्केट में कई विक्रेता स्वनिधि लोन प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उन्हें वैध विक्रेता के रूप में मान्यता नहीं दी गई है और उन्हें अनुशंसा पत्र भी नहीं मिला है.

हालांकि, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के तहत आने वाले क्षेत्रों में यही मुद्दा प्रचलित नहीं लगता है.

एनडीएमसी बनाम एमसीडी

2021 में अधिवक्ता धर्मेंद्र शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट में सरोजिनी नगर के स्ट्रीट वेंडर्स की ओर से एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की, जिसमें पीएम स्वनिधि योजना के तहत लोन प्राप्त करने के अपने अधिकार का लाभ उठाने की मांग की गई थी.

इस बारे में पूछे जाने पर, उनका दावा है कि दिल्ली सरकार के तहत आने वाले दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) क्षेत्रों में चालान को “वेंडिंग इतिहास के प्रमाण” के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन एनडीएमसी ज़ोन में ऐसा नहीं है.

स्वनिधि वेबसाइट भी एनडीएमसी के खराब आंकड़े दिखाती है. 28 अप्रैल 2023 तक डैशबोर्ड ने दिखाया कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने 75,525 एलओआर आवेदनों में से 74,345 को मंज़ूरी दी थी- यानी 98 प्रतिशत अनुमोदन दर.

इसके उलट, एनडीएमसी ने इसी अवधि में प्राप्त 4,614 में से केवल 996 एलओआर आवेदनों को मंजूरी दी है यानी अनुमोदन दर 22 प्रतिशत.

दक्षिणी दिल्ली एमसीडी सेंट्रल जोन, लाजपत नगर के टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) के सदस्य श्री राम कहते हैं, “एनडीएमसी में वेंडर्स को एमसीडी के वेंडर्स की तुलना में अनुशंसा पत्र प्राप्त करने में अधिक कठिनाई होती है.”

Shri Ram, a town vending committee (TVC) member of the South Delhi MCD Central Zone, Lajpat Nagar
साउथ दिल्ली एमसीडी सेंट्रल जोन के टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) के सदस्य श्री राम स्ट्रीट वेंडर्स पर हमला करने वाले मुद्दों के बारे में बात करते हैं | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

एक शहरी स्थानीय निकाय की टाउन वेंडिंग कमेटी, चाहे एमसीडी हो या एनडीएमसी, एक वेंडर्स सर्वे करने और वैध विक्रेताओं का निर्धारण करने के लिए जिम्मेदार निकाय है.

दिल्ली में वर्तमान में 28 ऐसे टीवीसीएस हैं, जिनमें से प्रत्येक में 30 सदस्य हैं, जिनमें नगर निकाय के अधिकारी, पुलिस और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं, साथ ही 12 स्ट्रीट वेंडर अपने क्षेत्र से रजिस्टर्ड वेंडर्स द्वारा चुने गए हैं.

राम ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने एलओआर लैटर मांगने वाले विक्रेताओं के लिए एक फॉर्म तैयार किया है. आवेदक से संपर्क किए जाने पर उसे ये फॉर्म भरके हस्ताक्षर करके देना होता है.

इसके बाद, वेंडर स्वनिधि लोन के लिए आवेदन करने के लिए अनुशंसा पत्र प्राप्त करने के लिए पत्र को संबंधित एमसीडी कार्यालय में ले जाता है.

MCD letter template
लैटरहेड एमसीडी के श्री राम विक्रेताओं को अनुशंसा पत्र के लिए आवेदन करने में मदद करने के लिए उपयोग करते हैं | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

श्री राम कहते हैं, “बेशक मेरे एमसीडी जोन में समस्याएं हैं, लेकिन एनडीएमसी को एमसीडी से ज्यादा दिक्कतें हैं.”

दिनेश कुमार दीक्षित 1990 से सरोजनी नगर मार्केट में वेंडर हैं और एनडीएमसी क्षेत्र की टाउन वेंडिंग कमेटी के सदस्य भी हैं.

वे बताते हैं कि एमसीडी और एनडीएमसी इलाकों में नियम और संभावनाएं एक जैसी नहीं हैं.

उन्होंने बताया कि एनडीएमसी टीवीसी सदस्य के एक मामूली लैटर को अनुशंसा पत्र प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं मानेगा.

दीक्षित का अनुमान है कि सरोजिनी नगर मार्केट में लगभग 1,000 विक्रेता हैं. उन्हें नहीं पता कि उनमें से कितनों को एनडीएमसी से एलओआर मिला है, लेकिन वह कहते हैं कि “बहुत कम वेंडर्स को लोन मिला है”.

TVC member Dinesh Kumar Dixit
वेंडर और टीवीसी सदस्य दीक्षित उन दस्तावेज़ को प्रस्तुत करते हैं जो साबित करते हैं कि वे एक वैध वेंडर हैं | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

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मान्यता के लिए लंबी लड़ाई

कई विक्रेताओं का कहना है कि उनकी मुख्य बाधा एनडीएमसी से उन्हें आधिकारिक रूप से मान्यता दिलाना है—जो कुछ ऐसा है जो उन्हें सरकारी लाभों का दावा करने, एक स्थायी स्थान सुरक्षित करने और बेदखली अभियान से सुरक्षा प्राप्त करने में मदद कर सकता है.

उदाहरण के लिए, 39-वर्षीय मुन्ना को लीजिए, जो अपने आधार कार्ड के अनुसार सिर्फ एक ही नाम से जाना जाता है. दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के मंगलापुरी के रहने वाले, वे खुले में दुपट्टे बेचते हैं- इस कारोबार को उनके पिता ने 1980 के दशक में शुरू किया था.

केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ा-लिखा मुन्ना एक दिन में 300-500 रुपये कमाता है.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने पीएम स्वनिधि लोन के लिए आवेदन किया है, उनका कहना है कि उनके पास आवश्यक जानकारी नहीं है कि किस बैंक से संपर्क किया जाए और संस्थागत प्रक्रियाएं कैसे काम करती हैं.

वे कहते हैं कि उनकी तत्काल चिंता एनडीएमसी द्वारा एक स्थायी स्थान के साथ एक वैध विक्रेता के रूप में पहचानी जा रही है. मुन्ना का दावा है कि उसने 2015 में हौज खास के डीसीपी को बेदखली से सुरक्षा की मांग करते हुए एक पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

66-वर्षीय सतीश कुमार पुष्करणा जैसे अन्य लोगों ने लड़ाई को अदालत तक पहुंचाया है.

उनका कहना है कि उन्हें 2012 में एनडीएमसी द्वारा एक वैध विक्रेता के रूप में मान्यता देने के लिए चुना गया था, लेकिन सिफारिश पत्र प्राप्त करने में विफल रहे और इसलिए लोन भी नहीं मिला.

street vendor Satish Kumar Pushkarna
सरोजिनी नगर मार्केट में अपने अस्थायी बिक्री स्टेशन के बाहर स्ट्रीट वेंडर सतीश कुमार पुष्करणा | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

पुष्करणा एनडीएमसी के उन वेंडर्स में से एक है, जिन्होंने 2011 में बेदखली से सुरक्षा की मांग करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

इन मामलों के परिणामस्वरूप 2012 में अदालत ने अपने एक आदेश में कहा, एनडीएमसी एक लॉटरी के माध्यम से वेंडरों को बैठने की जगह आवंटित कर सकता है. इसके बाद अदालत को रिकॉर्ड दिखाएं जाएं, एनडीएमसी ने सरोजनी नगर सहित अपने अधिकार क्षेत्र के तहत 628 पात्र विक्रेताओं की एक सूची तैयार की है.

हालांकि, प्रक्रिया में देरी हुई और पुष्करणा सहित इनमें से कई आवेदकों को कभी भी अपना स्थायी स्थान या विक्रेता प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं हुआ.

फिर, दो साल बाद, केंद्र सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों को विनियमित करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक नया कानून बनाया- रेहड़ी-पटरी वाले (आजीविका का संरक्षण और रेहड़ी-पटरी बेचने का नियमन) अधिनियम, 2014.

कानूनी रूप से, जब एक नया कानून बनाया जाता है, तो पुराने निर्णय और सरकार की नीतियां अपना पूर्व महत्व खो देती हैं.

2014 का कानून यह निर्धारित करता है कि संबंधित शहरी स्थानीय निकाय को क्षेत्र में मौजूदा विक्रेताओं का सर्वेक्षण करने के लिए एक टाउन वेंडिंग कमेटी (TVC) की स्थापना करनी चाहिए. सर्वे का उद्देश्य विक्रेताओं की पहचान करना, उनमें से ‘वैध’ को प्रमाणित करना और उन्हें वेंडिंग स्पॉट आवंटित करना है.

इस नए कानून द्वारा सूचित, दिल्ली सरकार ने स्ट्रीट वेंडर्स को विनियमित करने के लिए नियमों का एक नया सेट निर्धारित किया है – दिल्ली स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) नियम, 2017.

इसके बाद, एनडीएमसी में एक टाउन वेंडिंग कमेटी की स्थापना की गई और 2018 में एक वेंडर सर्वे किया गया.

हालांकि, दिल्ली सरकार ने सर्वेक्षण को अमान्य माना है क्योंकि यह विक्रेता सर्वेक्षण करने के लिए उचित प्रक्रिया की रूपरेखा वाली योजना- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली स्ट्रीट वेंडर्स सरकार (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) योजना, 2019 जारी करने से पहले आयोजित किया गया था.

इसके जरिए, पुष्करणा जैसे विक्रेता थे जो हार गए और उन्होंने अपना स्थान खो दिया.

इस बीच, सरोजिनी नगर मार्केट में काम करने वाले विक्रेताओं के एक समूह ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा कि एनडीएमसी का टीवीसी कानून के अनुपालन में वेंडरों का सर्वेक्षण करता है और इस दौरान उन्हें “परेशान” करने या उनके स्टालों को हटाने से भी परहेज करता है.

नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एनडीएमसी के टीवीसी को सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को राहत का इंतजार जारी है.

Vendor Suresh Narayan Chobey
अपने कपड़ों की दुकान के बाहर विक्रेता सुरेश नारायण चौबे | रेजिना मिहिंदुकुलासुरिया/दिप्रिंट

एक अन्य याचिकाकर्ता 51-वर्षीय सुरेश नारायण चौबे ने कहा कि वे लगभग 10 वर्षों से सरोजनी नगर में कपड़े बेच रहे हैं. वैधता की मुहर के लिए उत्सुक होने का एक कारण यह है कि वह पीएम स्वनिधि लोन मिलने की उम्मीद कर रहे हैं.

चौबे ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने स्वनिधि ऋण के लिए अनुशंसा पत्र प्राप्त करने के लिए दो बार कोशिश की थी.

पहला प्रयास लगभग 8-10 महीने पहले किया गया था, उसके बाद दूसरा प्रयास लगभग दो या तीन महीने पहले किया गया था. हालांकि, उनका दावा है कि उन्हें किसी भी मौके पर एनडीएमसी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

विक्रेता सर्वेक्षण जो कभी हुआ नहीं

कानूनी रूप से अनिवार्य स्ट्रीट वेंडर सर्वेक्षण औपचारिक मान्यता और स्वनिधि ऋण योजना जैसे लाभों तक पहुंच की मांग करने वाले विक्रेताओं के कई अनुरोधों को हल करने की कुंजी रखता है.

हालांकि, स्ट्रीट वेंडर्स को रेगुलेट करने के लिए दिल्ली सरकार की 2019 की योजना के लागू होने के बाद से एनडीएमसी ने अभी तक सर्वेक्षण नहीं किया है. समस्या यह है कि 2019 की योजना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चालान को सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके बावजूद एनडीएमसी के अधिकारी चालान को वेंडिंग के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं.

तो, सर्वेक्षण करने में देरी के पीछे क्या है?

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर के एक वरिष्ठ साथी सिविल सोसाइटी के लिए जिसका काम स्ट्रीट वेंडर्स से संबंधित कानूनों और नीतियों पर केंद्रित है, वकील नारंग के अनुसार, एक संभावित स्पष्टीकरण एनडीएमसी की ओर से “जवाबदेही की कमी” है, जो “एक निर्वाचित परिषद नहीं बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त” है.

हालांकि, एनडीएमसी के पैनल में शामिल अधिवक्ता मनंजय मिश्रा भी नगरपालिका निकाय को चुनौती देने वाले उनके कई मुकदमों के कारण देरी में योगदान देने के लिए विक्रेताओं को दोषी ठहराते हैं.

वे कहते हैं, “यह सही है कि केंद्रीय अधिनियम 2014 में लागू हुआ और अधिनियम को लागू करने में देरी हुई है. तो जाहिर है कि सभी हितधारकों की ओर से देरी हुई है. एनडीएमसी की हर कवायद को चुनौती देने वाले कई दौर के मुकदमों के कारण रेहड़ी-पटरी वाले भी जिम्मेदार हैं.’

जबकि एनडीएमसी द्वारा 4 मई को टाउन वेंडिंग कमेटी की बैठक आयोजित करने से आशा की एक किरण दिखाई दे रही है, जिसमें “स्ट्रीट वेंडर्स के सर्वेक्षण और संबंधित मुद्दों” पर चर्चा की जाएगी, इसी तरह के आमने-सामने सर्वेक्षण के बिना अतीत में हुए थे. उदाहरण के लिए, टीवीसी की बैठक जून 2021 में हुई, लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला.

हालांकि, सरोजिनी नगर के मार्केट वेंडर और टीवीसी सदस्य दिनेश कुमार दीक्षित इस बात पर अपनी उंगली रख रहे हैं कि बैठक इस बात का संकेत है कि सर्वेक्षण जल्द ही शुरू होगा.

वे कहते हैं, “हम उम्मीद कर रहे हैं कि यहां के विक्रेताओं को वास्तविक लोगों के रूप में पहचाना जाएगा,” वे कहते हैं, “और इन सभी वर्षों और अदालती मामलों के बाद, आखिरकार, उन्हें अपना अधिकार मिल जाएगा।”

फाल्गुनी शर्मा के रिपोर्टिंग इनपुट्स के साथ

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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