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Friday, 1 November, 2024
होमदेश'आतंकियों से डर तो लगता है लेकिन भूख से ज्यादा नहीं,' मौत के तांडव के बीच कश्मीर न छोड़ने को मजबूर हैं मजदूर

‘आतंकियों से डर तो लगता है लेकिन भूख से ज्यादा नहीं,’ मौत के तांडव के बीच कश्मीर न छोड़ने को मजबूर हैं मजदूर

बिहार और अन्य प्रदेशों से आकर काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि कश्मीर के इन इलाकों में मजदूरी अच्छी खासी मिलती है और लोग भी अच्छे और मिलनसार हैं. अगर कहीं और इतनी मजदूरी मिल सकती तो वे यहां नहीं आते.

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नई दिल्ली: दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में रविवार को आतंकवादियों ने बिहार के दो मजदूरों की उनके किराए के मकान में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी और एक अन्य को घायल कर दिया.

जम्मू कश्मीर में 24 घंटे से भी कम समय में गैर-स्थानीय मजदूरों पर यह तीसरा हमला है. बिहार के एक रेहड़ी-पटरी वाले और उत्तर प्रदेश के एक बढ़ई की शनिवार शाम को आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

बिहार के बांका जिला के बाराहाट प्रखंड निवासी गोल गप्पा दुकानदार अरविंद कुमार साह के गांव पड़घड़ी में शोक और दहशत का माहौल है.

बिहार के दो और गैर-स्थानीय मजदूरों की कुलगाम में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी, एक के किराए की दुकान पर गोलियां चलाईं. मारे गए एक मजदूर बिहार के बांका जिला के बाराहाट प्रखंड निवासी अरविंद कुमार साह थे जो वहां गोलगप्पे की दुकान चलाते थे. उससे पहले श्रीनगर के लाल बाजार में एक स्ट्रीट फूड विक्रेता वीरेंद्र पासवान की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पासवान बिहार के भागलपुर के रहने वाले थे.

घात लगाकर किए जा रहे हमलों के बाद जम्मू-कश्मीर में रह रहे मजदूरों ने पलायन करना शुरू कर दिया है. लेकिन कुछ मजदूर ऐसे भी हैं जो खौफ में तो हों लेकिन उनका यह कहना है कि आतंकियों से डर तो लगता है पर भूख से ज्यादा डर लगता है और वह कहीं नहीं जाएंगे.

बिहार और अन्य प्रदेशों से आकर काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि कश्मीर के इन इलाकों में मजदूरी अच्छी खासी मिलती है और लोग भी अच्छे और मिलनसार हैं.

देश के कई हिस्सों से मजदूर हर साल मार्च की शुरुआत में चिनाई, बढ़ई का काम, वेल्डिंग और खेती जैसे कामों में कुशल और अकुशल श्रमिकों व कारीगरों के तौर पर काम के लिए घाटी में आते हैं और नवंबर में सर्दियों की शुरुआत से पहले घर वापस चले जाते हैं.


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‘हम डरे हुए हैं लेकिन बिहार वापस नहीं जा रहे हैं’

बिहार से आए 45 वर्षीय श्रमिक शंकर नारायण ने कहा, ‘हम डरे हुए हैं लेकिन हम बिहार वापस नहीं जा रहे हैं, कम से कम अभी तो नहीं. हम हर साल नवंबर के पहले सप्ताह में वापस जाते हैं और इस बार भी ऐसा ही होगा.’

नारायण की तरह बिहार से ही ताल्लुक रखने वाले कुमार ने कहा कि वह नवंबर के पहले सप्ताह में तय कार्यक्रम के अनुसार अपने घर वापस जाएंगे. नारायण पिछले 15 साल से हर बार मार्च में कश्मीर आते रहे हैं और घर लौटने से पहले नवंबर के पहले सप्ताह तक यहां काम करते हैं.

उन्होंने कहा कि कश्मीर में रहने के दौरान उन्हें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘ यहां के लोग बहुत मदद करते हैं. 2016 में जब पांच महीनों के लिये लॉकडाउन था तो हमें इन्हीं लोगों ने कोई नुकसान नहीं होने दिया भले ही स्थानीय लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी.’

कुमार और नारायण ने कहा कि उन्हें अगर कहीं और इतनी मजदूरी मिल सकती तो वे यहां नहीं आते. कुमार ने कहा, ‘हम अव्वल तो यहां पर आते ही नहीं, लेकिन घर पर मिलने वाली मजदूरी हमें यहां मिलने वाली मजदूरी से आधी भी नहीं है. साथ ही, यहां लोग बहुत दयालु और उदार होते हैं.’

कुमार 30 वर्ष के हैं. वह बताते हैं कि 2017 में मलेशिया गए थे लेकिन वह फिर घाटी लौट आए जहां वह खुद को ज्यादा ‘सम्मानित’ महसूस करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं दो साल तक क्वालालंपुर में था लेकिन वह एक बुरा फैसला था. मुझे वीजा और काम के परमिट के लिये मोटी रकम चुकानी पड़ी. अंत में मैं बस किसी तरह घर वापस लौट सका.’

कुमार ने दावा किया कि विदेशों में निर्माण और सेवा क्षेत्र से जुड़े कामगारों को हेय दृष्टि से देखा जाता है.

बढ़ई का काम करने वाले उत्तर प्रदेश के रियाज अहमद (36) अपने पूरे परिवार -पत्नी और तीन बच्चों- को कश्मीर ले आए हैं.

अहमद ने कहा, ‘यहां का जीवन घर से बेहतर है. मुझे और मेरी पत्नी को नियमित रूप से काम मिलता है.’ उन्हें कुछ वर्षों में अपना घर खरीदने के लिए पर्याप्त बचत कर लेने की उम्मीद है.

अहमद ने कहा, ‘मैं बढ़ई के तौर पर काम करता हूं जबकि मेरी पत्नी घरेलू सहायिका हैं. कमाई और बचत पर्याप्त है…मैं दो से तीन साल में सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में अपना घर खरीदने की स्थिति में रहूंगा.’

क्या वह गैर स्थानीय लोगों की हत्या के बाद से डरे हुए हैं?

उन्होंने अपने बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘डर तो लगता है पर भूख से ज्यादा डर लगता है. घर (सहारनपुर) पर हमें सही से दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता.’

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और पुलवामा जिलों में शनिवार को आतंकियों ने पांच हत्याओं को अंजाम दिया और मरने वालों में दो गैर-स्थानीय लोग भी शामिल थे. इस महीने अब तक नागरिकों को निशाना बनाकर की गई गोलीबारी में 11 लोगों की मौत हो चुकी है.


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बाहर के लोगों को जान बूझकर निशाना बनाया जाना चिंता का विषय- नीतीश

कश्मीर में बिहार के मजदूरों की हो रही हत्या पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निंदा करते हुए कहा कि निशाना बनाकर हाल में की गयी हत्या की वारदातों से निश्चित रूप से वहां डर का माहौल कायम हुआ है . उन्होंने कहा, ‘हमलोग काफी दुखी हैं.’

मुख्यमंत्री कुमार ने कहा कि घटना की जानकारी मिलते ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बात की और और हत्या पर अपनी गंभीर चिंता जताई और कहा, ‘ बिहार के मजदूरों के साथ यह तीसरी घटना है इसको लेकर हमलोग काफी चिंतित हैं.’

उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल ने आश्वासन दिया है कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन इसको लेकर पूरी तरह से गंभीर है, घटना के दोषियों पर कार्रवाई होगी. उन्होंने कहा कि काम के सिलसिले में कश्मीर गये बाहर के लोगों को जान बूझकर निशाना बनाया जा रहा है.

कुमार ने कहा , ‘इस तरह की घटना को लेकर बिहार सरकार पूरी तरह से अलर्ट है और जम्मू.कश्मीर के प्रशासन को भी हमने अलर्ट कर दिया है. हमने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ भी इस घटना को लेकर चर्चा की है.’

कुमार ने कहा, ‘हमे भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन बिहार के लोगों की सुरक्षा का इंतजाम करेगा ताकि आतंकी इस तरह की घटना को अंजाम न दे सके.’

उन्होंने कहा, ‘मृतकों के आश्रितों को बिहार सरकार की ओर से हरसंभव मदद की जायेगी. मजदूरों के पार्थिव शरीर को बिहार लाने का इंतजाम किया जा रहा है. इसको लेकर बिहार सरकार के वरिष्ठ अधिकारी जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों के निरंतर संपर्क में हैं.’


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