नयी दिल्ली, 12 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि विशेष कानूनों के तहत दर्ज मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए अदालतें स्थापित करना केंद्र और राज्यों के लिए जरूरी है। न्यायालय ने इसी के साथ केंद्र और राज्यों से दो सप्ताह में अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ महाराष्ट्र के गडचिरौली के एक नक्सल समर्थक की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राज्य में हुए एक विस्फोट में त्वरित प्रतिक्रिया दल के 15 पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
पीठ ने नौ मई के अपने आदेश में कहा, ‘‘भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) ने प्रतिवादी 2 – राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा दायर हलफनामे का हवाला दिया है। हालांकि, हमारा मानना है कि जब विशेष कानूनों के तहत मुकदमे चलने हैं, तो केंद्र या राज्यों के लिए जरूरी है कि वे शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे के साथ विशेष अदालतें स्थापित करें, ताकि कानून के विधायी उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके।’’
पीठ ने कहा कि इसलिए, एएसजी राजकुमार भास्कर ठाकरे को मामले पर निर्देश प्राप्त करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया जाता है और मामले की अगली सुनवाई 23 मई के लिए निर्धारित की जाती है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया कि वे कानून लागू होने के बाद विशेष कानूनों के न्यायिक प्रभाव का आकलन क्यों नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘हम बार-बार कह रहे हैं कि न्यायाधीश और अदालतें कहां हैं? यदि आप मौजूदा न्यायाधीशों पर विशेष कानूनों के तहत अतिरिक्त मामलों का बोझ डालेंगे तो आप गंभीर मामलों में तेजी से सुनवाई कैसे कर पाएंगे? मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि आप विशेष कानूनों के तहत मुकदमा चलाना चाहते हैं तो पहले पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा तैयार करें और न्यायाधीशों की नियुक्ति करें।’’
ठाकरे ने कहा कि विशेष अदालतों की स्थापना का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है और इस पर विचार किया जा रहा है, लेकिन न्यायमूर्ति कांत ने पूछा कि राज्य सरकार संवेदनशील मामलों – जैसे कि वर्तमान मामला – पर निर्णय करने के लिए विशेष अदालत क्यों नहीं स्थापित कर रही है, जिसके महत्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
इसके बाद ठाकरे ने निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा, जिस पर अदालत ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि मुकदमे के पूरा होने में देरी के कारण जघन्य अपराधों के आरोपियों ने जमानत का लाभ उठाया, क्योंकि मुकदमे अनिश्चितकाल तक नहीं चल सकते थे।
शीर्ष अदालत कैलाश रामचंदानी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। रामचंदानी ने बंबई उच्च न्यायालय द्वारा पांच मार्च, 2024 को उसकी जमानत याचिका खारिज किये जाने के फैसले को चुनौती दी है।
रामचंदानी ने दलील दी कि वह 2019 से जेल में हैं जबकि अब तक इस मामले में अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं, लेकिन सह-आरोपी को जमानत दे दी गई है।
भाषा धीरज अविनाश
अविनाश
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