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Thursday, 19 December, 2024
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फास्ट ट्रैक कोर्ट के ऑडिट के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों और गवाहों के बयान के सेंटर की जरूरत है

यौन अपराधों और POCSO मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित अदालतों का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन का ऑडिट पिछले महीने पेश की गई रिपोर्ट में कमी को उजागर करता है.

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नई दिल्ली: जांच अधिकारियों और प्रमुख हितधारकों का प्रशिक्षण, अनिवार्य कमजोर गवाह बयान केंद्र, फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में कुशल और पर्याप्त जनशक्ति और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रबंधन प्रणाली – ये भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की एक शोध टीम द्वारा की गई कुछ प्रमुख सिफारिशें हैं जिसने फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSC) का जायजा लिया.

आईआईपीए ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के निर्देश पर पूरे भारत में एफटीएससी के क्षेत्र का दौरा करते हुए ऑडिट कार्यक्रम शुरू किया, जिसने इसे ऐसी अदालतों की प्रगति की समीक्षा करने के लिए कहा था.

इसने अपनी रिपोर्ट, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, कानून मंत्रालय के तहत न्याय विभाग को पिछले महीने सौंपी थी, जिसमें मोदी सरकार की एफटीएससी योजना को जारी रखने का सुझाव दिया गया था, जिसके तहत बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चे अधिनियम (पॉक्सो) के अंतर्गत किए जाने वाले अपराधों के त्वरित निपटान के लिए विशेष अदालतें गठित की जाती हैं.

एफटीएससी को पहली बार अक्टूबर 2019 में आपराधिक कानून में संशोधन के बाद शुरू किया गया था, जिसमें यौन अपराधों के लिए कड़ी सजा और ऐसे मामलों में सुनवाई पूरी करने के लिए दो महीने की समय सीमा तय की गई थी.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था, मोदी सरकार ने यौन अपराधों के लिए विशेष एफटीएससी स्थापित करने की योजना को जारी रखने के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की है.

IIPA की रिपोर्ट कहती है,“डेटा विश्लेषण के बाद, यह देखा गया कि प्रत्येक राज्य की मामले के निपटान की दर अलग-अलग होती है, जो एक प्रमुख कारक है जब हम योजना के पूरे विकास को देखते हैं. इसलिए, यदि योजना को कम से कम तीन और वर्षों के लिए जारी रखा जाता है, तो राज्य पर्याप्त काम करने वाले लोगों को उपलब्ध करा पाएंगे और ज्यादा समय तक मामलों के लंबित रहने से संबंधित मुद्दों को हल किया जा सकता है यदि उस विशेष राज्य में लंबित दर के आधार पर प्रति जिले अदालतों की संख्या में और वृद्धि की जाती है.”

FTSC योजना के तहत, केंद्र सरकार को अदालतों के खर्च का 60 प्रतिशत धन देना आवश्यक है, जबकि संबंधित राज्य सरकारें बाकी के 40 प्रतिशत का योगदान करती हैं.

Graphic by Ramandeep Kaur, ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट

जबकि इस योजना ने 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1,023 एफटीएससी प्रस्तावित किए थे, 28 राज्यों में केवल 765 ही काम कर रहे हैं. इनमें से 418 एक्सक्लूसिल POCSO अदालतें हैं. प्रारंभ में, यह योजना 767.25 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ दो वित्तीय वर्षों में फैली हुई थी.

FTSCs के ऑडिट की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, कानून मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया: “यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या ये अदालतें और अन्य हितधारक FTSC योजना के शासनादेश के अनुसार वितरित करने में सक्षम हैं. एफटीएससी के पीछे का विचार मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करना था. जबकि योजना की ऑडिट के पीछे का उद्देश्य यह था कि इसके कार्यान्वयन में अगर कोई अंतराल नजर आता है तो उसकी पहचान हो सके.

क्या कहती है IIPA की रिपोर्ट

आईआईपीए टीम की रिपोर्ट में किए गए महत्वपूर्ण सुझावों में से एक जांच अधिकारियों और जमीनी स्तर पर शामिल प्रमुख हितधारकों को प्रशिक्षित करना है.

रिपोर्ट कहती है, “विभिन्न अदालतों के इनपुट रिकॉर्ड करने के दौरान, यह पाया गया कि गैर-प्रशिक्षित जांच अधिकारियों की समस्या आम थी, जो मामलों के निपटान को प्रभावित करती थी और साथ ही साथ न्याय मिलने पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती थी.”

चूंकि यौन अपराधों के लिए की गई जांच पीड़ितों को न्याय दिलाने में निर्णायक कारक बन जाती है, रिपोर्ट ने “ऐसे संवेदनशील मामलों से निपटने वाले जांच अधिकारियों की औपचारिक क्षमता निर्माण” की सिफारिश की है.

इसमें “किशोर न्याय अधिनियम, POCSO अधिनियम और अन्य बाल-संरक्षण कानून एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं” पर प्रशिक्षण जैसे पहलू शामिल होने चाहिए, POCSO अधिनियम और अन्य कानूनों के तहत उपलब्ध पुनर्वास और समर्थन विकल्पों पर शिक्षा, महत्वपूर्ण हितधारकों के साथ समन्वय में सुधार, सफल अभियोजन के लिए और अपराध स्थल से एकत्र किए गए डीएनए के सबूतों को कैसे संरक्षित किया जाए जैस टॉपिक शामिल होने चाहिए.

आईआईपीए की रिपोर्ट बताती है कि निष्पक्ष और त्वरित न्याय के लिए फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में कुशल और पर्याप्त जनशक्ति की भी आवश्यकता है.

इन प्रयोगशालाओं में अपर्याप्त जनशक्ति और आवश्यक उपकरणों की कमी “आपराधिक जांच के तुरंत निष्कर्ष” के लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है.

प्रत्येक उच्च न्यायालय के तहत बनाई गई निगरानी समितियों के माध्यम से विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों के समय-समय पर मूल्यांकन की वकालत करते हुए, आईआईपीए रिपोर्ट एफटीएससी को एक वर्ष में “कम से कम 165 मामलों” का फैसला करने के लिए दिए गए आदेश पर एक और नज़र डालने की सलाह देती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कई मामलों का निपटान करना “थोड़ा दूर की कौड़ी लगता है”.

भारत के जनसांख्यिकीय आकार और अदालतों की न्यायिक प्रक्रिया को देखते हुए, IIPA का मानना है कि सभी FTSCs के लिए एक विशिष्ट जनादेश उचित नहीं है, और प्रत्येक राज्य में निपटान तंत्र में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के बाद एक राज्य-वार शासनादेश तय किया जाना चाहिए.

आईआईपीए ने भारत भर के सभी जिलों में अनिवार्य रूप से कमजोर गवाह बयान केंद्रों की आवश्यकता पर जोर दिया है, और इन बयान केंद्रों में बाल-दुर्व्यवहार पीड़ितों को परीक्षण में गवाही देने से पहले सहायता देने के लिए बाल मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति की मांग की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां भी इस तरह के केंद्र स्थापित हुए हैं, इन मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों ने सकारात्मक परिणाम देखे हैं.

FTSC जांच के दायरे में

कानून मंत्रालय ने पहले FTSCs की प्रगति की निगरानी के लिए एक डैशबोर्ड स्थापित किया था.

कानून मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, डेटा को हर महीने डैशबोर्ड पर अपलोड किया गया था, जिसमें उन मामलों का विवरण दिया गया था, जिन्हें एक विशेष एफटीएससी ने एक महीने में तय किया था.

कानून मंत्रालय के अधिकारी ने पहले कहा था कि IIPA ऑडिट, डैशबोर्ड में पेश किए गए नए तत्वों के अतिरिक्त है, जैसे कि एक नया कॉलम जिसमें प्रत्येक FTSC को यह निर्दिष्ट करने की आवश्यकता है कि किसी मामले को तय करने में कितना समय लगा.

अधिकारी ने कहा, “इस डेटा में दो से 12 महीनों के बीच और 12 महीनों के बाद मामलों के निपटान में लगने वाले समय को दर्शाया जाना चाहिए.”

अधिकारी ने कहा कि डैशबोर्ड में जोड़ा गया एक और कॉलम लंबित मामलों से संबंधित है.

“इसके तहत, प्रत्येक अदालत को यह जानकारी देनी होगी कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद से कितने मामले लंबित हैं. यह तीन श्रेणियों के तहत दिया जाना है – जहां मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं, फिर दो से 12 महीने के बीच और फिर दो महीने, ”अधिकारी ने समझाया, यह कहते हुए कि इन विवरणों को हर महीने डैशबोर्ड पर अपडेट करने की आवश्यकता है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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