मुंबई, 31 जुलाई (भाषा) मालेगांव में 2008 में हुए विस्फोट मामले में पीड़ित परिवारों की मदद करने वाले एक संगठन ने सात आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर नाराजगी व्यक्त की और जानना चाहा कि अगर वे लोग इस कृत्य में शामिल नहीं थे तो इसके लिए कौन जिम्मेदार था।
संगठन ने यह भी कहा कि अदालत का फैसला घटना में मारे गए लोगों को न्याय दिलाने में विफल रहा है।
मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी और 101 अन्य लोग घायल हो गए थे।
विस्फोट के लगभग 17 साल बाद मुंबई की एक विशेष अदालत ने भारतीय जनता पर्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सातों आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ ‘कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं’ है।
‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए, कुल जमात-ए-तंज़ीम संगठन के प्रभारी फिरोज अहमद आजमी ने कहा, ‘‘मालेगांव विस्फोट मामले में अदालत के फैसले ने हमें स्तब्ध कर दिया है, क्योंकि मरने वालों को न्याय नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मालेगांव में 2006 में हुए बम धमाकों के बाद, हमने हमेशा एजेंसियों से सही दिशा में काम करने की मांग की थी और 2008 के विस्फोट के बाद महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने उचित जांच की तथा इन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ।’’ उन्होंने इन लोगों के खिलाफ सभी सबूत भी पेश किए।
आज़मी ने कहा, ‘‘जांच सही दिशा में हो रही थी, जिससे हम खुश थे। एजेंसियां पिछले 17 सालों से काम कर रही थीं, इसलिए उनके पास ज़रूर मज़बूत सबूत रहे होंगे। लेकिन अदालत ने जो फ़ैसला सुनाया, उससे हम स्तब्ध हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘विस्फोट में मारे गए लोगों को न्याय नहीं मिला। अगर ये लोग मालेगांव विस्फोट के लिए जिम्मेदार नहीं थे, तो फिर इसमें कौन शामिल था? एजेंसियों को आगे बढ़ना चाहिए और दोषियों को पकड़ने के लिए इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए।’’
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए यहां नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।
भाषा यासिर नरेश
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