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Saturday, 23 November, 2024
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मैकेनिकल घड़ियों के शौकीन एक घड़ीसाज और एक घड़ी संग्राहक की कहानी

बेंगलुरु के दिलीप शिवरमण ने खास एंटीक घड़ी बनाई है. वहीं, चेन्नई के रॉबर्ट कैनेडी ने 1700 से ज़्यादा मैकेनिकल घड़ियों का संग्रह तैयार किया है.

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चेन्नई/बेंगलुरु: ’पृथ्वी की परिधि 360 डिग्री होती है. इन 360 डिग्री को चार मिनट से गुणा करने पर 24 घंटा मिलता है. इस तरह से आपको एक दिन मिल जाता है.’ इसी सिद्धांत का फायदा उठाकर साल 1872 में प्रकाशित जुल्स वर्नस के क्लासिक उपन्यास के पात्र फिलियास फोग ने ‘80 दिन में पूरी दुनिया का चक्कर लगाने’ के चैलेंज को पूरा किया. यह उपन्यास Le Tour Du Monde En Quatre-Vingts Jours सबसे पहले फ्रांस में प्रकाशित हुआ था.

उपन्यास का पात्र फोग समय का पाबंद था. उसकी घड़ी, ‘घंटा, मिनट, सेकंड, दिन, महीना और साल’ बताती थी. फोग का नौकर पासेपारटाउट, धीमा चलने के बावजूद अपनी ‘पुस्तैनी घड़ी’ से काफी लगाव रखता था. उसे यह घड़ी अपने परदादा से मिली थी. इससे पता चलता है कि औद्योगिक क्रांति के बाद लोगों का अपनी घड़ियों से कितना लगाव था.
धूप घड़ी और छाया घड़ी का जमाना हजारों साल पहले खत्म हो गया. यह युग क्वार्ट्ज और परमाणु घड़ियों का है. नए जमाने की ये घड़ियां, सबसे सटीक समय बताती हैं. धातु, स्प्रिंग, शीशे और पत्थर से बनी मैकेनिकल घड़ियों का इस्तेमाल सदियों तक समय देखने के लिए हुआ है. ये घड़ियां आज भी घड़ीसाजों और संग्रहकर्ताओं को आकर्षित करती हैं. मैकेनिकल घड़ियों को चलाने के लिए चाभी देने की ज़रूरत पड़ती है.

मैकेनिकल घड़ियां बनाने में कभी जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस के लोगों को महारत हासिल थी. लेकिन, इन घड़ियों के कद्रदान भारत में भी हैं, जो पुराने जमाने की इन घड़ियों में जान डालकर इतिहास को सहेजने का काम कर रहे हैं.

इनमें एक आर्किटेक्ट भी हैं जो पुराने जमाने की घड़ियों की कला को आधुनिक तकनीक से जोड़कर उन्हें आज के हिसाब से बनाते हैं. एक ऐसा आर्किटेक्चर जो मैकेनिकल घड़ियों से इतना प्रभावित हुआ कि घड़ीसाज बन गया.
मैकेनिक घड़ियों का दूसरा शौकीन चेन्नई का एक घड़ी संग्राहक है.


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दिलीप शिवरमणः गाटो को बनाने वाले

‘ग्रैंडफादर क्लॉक’ नाम सुनने पर फर्श पर रखी भव्य और मजबूत घड़ी की छवि दिमाग में बनती है. जिसके घातु के बने लंबे पेंडुलम, लकड़ी और शीशे में बंद होते हैं. इसके ऊपर बड़ा-सा चमकीला डायल होता है, जिसमें अलग-अलग मोटाई की कई सुइयां घुमती रहती हैं.

ऐसी घड़ी जो दिखने में पुराने जमाने की हो लेकिन इस्तेमाल में आसान हो. मिनिमलिस्टिक और बिना ज़्यादा ताम-झाम वाला हो. दिलीप शिवरमण ने ऐसी ही नायाब घड़ी ‘गाटो’ बनाई है. यह एक आधुनिक फ्लोर क्लॉक है.

बेंगलुरु में उनके शांत अपार्टमेंट में जाने पर ‘गाटो’ आपके स्वागत में खड़ी दिखती है. आप घड़ी को देखकर यह पूछे बिना नहीं रह पाते कि दिलीप आपने इस घड़ी को कैसे बनाया.

पेशे से आर्किटेक्ट रह चुके घड़ीसाज दिलीप शिवरमण ने अपने वर्कशॉप को भी दिखाया जहां पर वे मैकेनिकल घड़ियां तैयार करते हैं. उन्होंने ‘गाटो’ की कहानी दिप्रिंट के साथ कुछ इस तरह से साझा की, ‘मैंने 2014 में पुरानी दीवार घड़ी खरीदी थी. इससे, मुझे भारत में बड़े पैमाने पर बनाई गई मैकेनिकल घड़ियों की खामियों के बारे में पता चला. घड़ीसाज के यहां बनवाने के बाद यह कुछ समय बाद ही बंद हो गई. मैंने इन घड़ियों को बनाने की कोशिश की, लेकिन इसके पुर्जे और मैकेनिज़म चलने लायक नहीं थे. इसके बाद, मैंने महसूस किया कि अगर मुझे शानदार मैकेनिकल घड़ी चाहिए, तो मुझे उसे खुद ही बनाना होगा.’

शिवरमण को खुद से अपने लिए चीजें बनाना पसंद है. एक आधा-अधूरा तैयार साइकिल इसकी गवाही देती है. वह साइकिल की ओर इशारा करते हुए बताते हैं, ‘मेरी पत्नी ने साइकिल चलाना चाहा, तो मैंने कहा कि मैं उसके लिए एक साइकिल बनाऊंगा. लेकिन मैं बना नहीं पाया. आखिरकार उसने नई साइकिल खरीद ली.’

साल 2014 में अपने फैसले पर अमल करते हुए उन्होंने घड़ी बनाने को लेकर ज़्यादा जानना शुरू किया. डेढ़ साल के अथक परिश्रम के बाद उन्होंने अपनी पहली घड़ी, ‘गाटो’ तैयार की. गाटो एक स्पैनिश शब्द है जिसका अर्थ बिल्ली होता है. वे कहते हैं, ‘जिस तरह बिल्लियां ऊंचाई से कूदने के बाद भी बच जाती हैं वैसे ही ये घड़ी मेरे जिन्दा रहने तक चलती रहेगी.’

शिवरमण को अपनी घड़ी की वजह से कई सम्मान मिले हैं. साल, 2014 में वह यंग टैलेंट प्रतियोगिता के अंतिम चरण के प्रतियोगियों में जगह बनाने में कामयाब रहे. इस प्रतियोगिता का आयोजन वॉचमेकिंग एकेडमी ऑफ क्रिएटर्स (एएचसीआई) या Académie Horlogère des Créateurs Indépendant ने किया था. इसका उदेश्य स्वतंत्र रूप से दीवार और हाथ घड़ियां डिजाइन करने को बढ़ावा देना है. 30 देशों के प्रतियोगियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था. शिवरमण, भारत से शामिल होने वाले एक मात्र व्यक्ति थे.

कई बार गलतियां करने के बाद, शिवरमण अपनी घड़ी बना पाने में कामयाब रहे. उन्होंने कहा, ‘मैंने सबसे पहले दुनिया की बेहतर घड़ियों में इस्तेमाल होने वाले मैकेनिज़म को समझने के लिए पढ़ना शुरू किया. इसके बाद मैंने डिजाइन तैयार की और तकनीक को प्लान किया. आर्किटेक्ट होने की वजह से मैं सीएडी (कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन), सीएनसी (कंप्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल) और इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज मैकेनिज्म का इस्तेमाल घड़ी बनाने में कर पाया. सबसे पहले मैंने 3डी प्रिंटिंग का इस्तेमाल करके प्लास्टिक के पुर्जे बनाए. उसके बाद मैंने धातु पर काम शुरू किया.’

घड़ी के पुर्जों को असेम्बल करने से पहले, उन्होंने खराद मशीन और दूसरे औजारों का इस्तेमाल सीखने के लिए डिप्लोमा कॉलेज में पढ़ाई करने के साथ ही धातुविज्ञान और भौतिकी में अपने ज्ञान को बढ़ाया.

पेंडुलम का मैकेनिज्म, मैकेनिकल घड़ियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. शिवरमण को रेगुलेटर क्लॉक डिजाइन करने में छह महीने लगे. रेगुलेटर क्लॉक में पेंडुलम होता है.

उनकी गाटो में प्लैनेटरी गियर मोशन वर्क का इस्तेमाल हुआ है. शिवरमण कहते है, ‘मैं अपनी घड़ियों में चैप्टर रिंग का इस्तेमाल करना नहीं चाहता था. मैं चाहता था कि इसका हर हिस्सा कोई न कोई काम करे. साधारण घड़ियों का मैकेनिज्म कॉम्पैक्ट होता है लेकिन मैंने इसे कुछ ज्यादा ही बड़ा कर दिया.’

वह कहते हैं कि बेंगलुरु के पेन्या इंडस्ट्रियल स्टेट में इतना टूल, इक्विपमेंट, स्किल और एक्पर्ट हैं कि स्पेसक्राफ्ट बनाया जा सकता है. वह कहते है कि स्टेट में, अपनी घड़ी के लिए जिस गियर का इस्तेमाल किया है उसे और भी बेहतर बनाया जाता है.

चैप्टर रिंग, घड़ी की डायल में लगा हुआ गोल घेरा होता है जिस पर घंटे के अंक खुदे होते हैं. किसी-किसी चैप्टर रिंग में घंटा के साथ-साथ मिनट भी खुदे होते है. गाटो में चैप्टर रिंग की जगह 12 स्पोक वाला एक रिंग गियर लगा हुआ है, जो समय बताता है. इसकी वजह से ही प्लैनेटरी गियर मोशन वर्क काम करता है.

शिवरमण कहते हैं, ‘मेरी घड़ी में प्लैनेट करियर का इस्तेमाल घंटे की सुई के लिए हुआ है. यह असामान्य बात है.’ गाटो में आठ दिनों तक चाबी देने की ज़रूरत नहीं है. वाइंडिंग डॉक को सोच समझ कर रिंग गियर के नीचे लगाया गया है. इससे चाबी देने के दौरान भी घड़ी ठीक से चलती रहती है.

इस घड़ी को 75 पुर्जे मिलकर चलाते हैं, जिन्हें सावधानी से तैयार किया गया है. घड़ी में स्टेनलेस स्टील, टाइटेनियम और एलुमिनियम का इस्तेमाल किया गया है. पेंडुलम रॉड को इन्वार से बनाया गया है. साथ ही, केल्वर की गुथी हुई रस्सियों और टंग्सटन कार्बाईड की पैलेट टीथ का इस्तेमाल हुआ है. घड़ी के बाहरी हिस्से को लकड़ी और शीशे से पैक किया गया है. यह सब इस घड़ी को अनोखा बनाता है.

दिप्रिंट से बातचीत में शिवरमण ने कहा, ‘मैंने खराद मशीन अमेरिका से मंगवाया और इस पर (घड़ी) काम करना शुरू किया. हमारी डाइनिंग टेबल ही काम करने वाली पहली टेबल थी. यह किचन धातु के अवशेषों से भर गया था.’ बाचतीच के दौरान उन्होंने कॉफी बनाने के लिए जिस किचन का इस्तेमाल किया वह उसी जगह की बात कर रहे थे.

शिवरमण की पत्नी ग्रिसेल्डा ने गाटो नाम सुझाया है. ग्रिसेल्डा कहती हैं, ‘वह इससे काफी लगाव रखता हैं और मैं खुश हूं कि वह अपने पैशन का काम कर रहा है.’

गाटो की कीमत आठ लाख रुपये हैं और इसके खरीददार बेंगलुरु, स्पेन और मुंबई से हैं.

शिवरमण के क्लाइंट अनुज सहाय ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं इस बात की बहुत कद्र करता हूं कि एक मैकेनिकल घड़ी को बनाना कितना कठिन और जटिल काम है और इस खूबसूरत डिजाइन के पीछे कितनी जटिलताएं छिपी हुई हैं. जब भी मैं इसके पास खड़ा होता हूं मैं इससे आकर्षित महसूस करता हूं.’

उन्होंने अपने लिविंग रुम में गाटो को रखा है, जिस पर उनका नाम लिखा हुआ है.

शिवरमण ने कहा, ‘यह किसी सजीव की तरह है, क्योंकि आपको इसे चाभी देना है, इसकी देखभाल करनी है. ऐसा करने से आप इससे जुड़ जाते हैं. आप अपने कुत्ते से प्यार करते हैं, क्योंकि आप उसे खिलाते हैं और उसकी देखभाल करते हैं. मुझे याद है, जब घड़ी ने चलना शुरू किया तो मुझे मां की तरह महसूस हुआ. यह आश्चर्यजनक है कि कैसे कुछ धातु के टुकड़े मिलकर जीवंत हो जाते हैं.

शिवरमण अपने वर्कशॉप में मौजूद खराद मशीन, ड्रिल प्रेस, ग्राइंडर और पॉलिशर जैसे औजारों पर गर्व करते है. वे औजारों की खूबियां गिनाते हैं. ये वही औजार हैं जिसकी मदद से वे अपनी कलाकृतियां गढ़ते हैं.

आर्किटेक्ट का काम रचनात्मक होता है. शिवरमण कहते हैं कि वह कई बार अपने मन का काम नहीं कर पाते हैं. वह कहते हैं कि घड़ी बनाना उनके लिए अपनी भावनाओं को जाहिर करने जैसा है.

शिवरमण कहते हैं कि अपनी पसंदीदा डिजाइन वाली घड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सदियों पुरानी तकनीकों से प्रेरणा लेते हैं और उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं.

वह कहते हैं, ‘घड़ियां बनाने से मुझे अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल करने में मदद मिलती है. मैं उन्हें खुद के लिए बनाता हूं.’

चेन्नई में रॉबर्ट केनेडी के निजी घड़ी संग्रहालय में 1,706 मैकेनिकल दीवार घड़ियां चालू हालत में हैं. इसके अलावा, कोडंबक्कम इलाके में स्थित उनके दो कमरे के अपार्टमेंट में 509 पॉकेट घड़ी, 750 से ज़्यादा कलाई घड़ी (सभी मैकेनिकल हैं), दर्जनों एंटीक कैमरे और टाइपराइटर करीने से सजाकर रखे गए हैं.


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रॉबर्ट कैनेडीः मैकेनिकल घड़ियों के लिए खरीदा घर

यह पूछे जाने पर कि जब ये घड़ियां हर घंटे बजती हैं, तो उन्हें कैसा लगता है. इसके जवाब में उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘लगता है जैसे में स्वर्ग में पहुंच गया हूं, मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता.’

कैनेडी के संग्रह में मौजूद 1706 मैकेनिकल घड़ियों की समीक्षा, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की टीम ने की है. वह पिछले छह साल से गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपने संग्रह में मौजूद घड़ियों को दर्ज करने का प्रयास कर रहे थे.

कैनेडी के दादा मुन्नार के एक चाय बगान में क्लर्क थे. उन्हें 1930 के आसपास किसी ब्रिटिश ने ‘ग्रैंडफादर’ घड़ी उपहार में दी थी. यहीं से कैनेडी का मैकेनिकल घड़ियों से प्यार शुरू हुआ और वह एक के बाद एक मैकेनिकल घड़ियों को अपने संग्रह में शामिल करते गए.

वह 39 साल से ऐसी घड़ियों का संग्रह कर रहे हैं. वह अपने संग्रह में मौजूद हर घड़ियों का पूरा ब्यौरा रखते हैं. म्यूजियम में मौजूद घड़ियों पर लेबल लगाए गए हैं और उन्हें एक यूनीक नंबर दिया गया है. घड़ियों को उनके साइज, डिजाइन और फंक्शन के हिसाब से बांट कर रखा गया है. इसमें उन्हें पूरे दो साल लगे.

उनके संग्रह में हर साइज और मैटेरियल से बनी मैकेनिक घड़ियां हैं. कैनेडी कहते है कि इनमें से एक घड़ी कम से कम 290 साल पुरानी है. उन्होंने अपने अपार्टमेंट की दीवार के हर हिस्से को खूबसूरती से सजाया है.

कैनेडी कहते हैं, ‘कभी मेरे परिवार के सदस्यों को लगता था कि मुझे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं और मुझे मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए. मैं उन्हें यह नहीं समझा सका कि मुझे मैकेनिकल घड़ियों से लगाव क्यों है. लेकिन, जब मेरे म्यूजियम की ओर लोगों का ध्यान गया, तब मैं सही साबित हुआ.’

वह अपनी घड़ियों के संग्रह करने, उनके मरम्मत और रखरखाव पर करीब 60 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं.’ वह कहते हैं, ‘यह सच नहीं है कि घड़ी संग्रह अमीरों का शौक है. मैंने ये घड़ियां कबाड़ की दुकानों, फेरीवालों, नीलामी करने वालों, घड़ीसाजों, और व्यापारियों से खरीदी हैं, चाहे वे किसी भी हालत में हों मैंने उनकी मरम्मत करवा दी. मैं पुराने जमाने की घड़ियों को ठीक करने के लिए, कबाड़ से घड़ियों को खरीदता था.’ वह कहते हैं कि उनके संग्रह में मौजूद घड़ियों को चालू करने के लिए कभी-कभार ही चाभी देने की ज़रूरत पड़ती है.

कैनेडी कहते हैं, ‘मैकेनिकल घड़ियों का मैकेनिज़म और मूवमेंट ही ऐसा होता है कि उनमें जान आ जाती है. अच्छी देखभाल होने पर वे पीढ़ियों तक अपना काम करती रहती हैं. लेकिन, बैटरी और बिजली से चलने वाली घड़ियों में ये खूबियां नहीं होतीं. वे ज्यादा टिकाऊ नहीं होती हैं.’

संग्रह में अलार्म घड़ियों से लेकर पिजन रेस क्लॉक और स्टीपल घड़ियां (गॉथिक शैली की डिजाइन वाली घड़ियां) से लेकर साल गिरह की घड़ियां, ग्रैंडफादर क्लॉक (फर्श पर रखी जाने वाली घड़ियां), कक्कू क्लॉक, मेंटल क्लॉक और अलर्ट क्लॉक, हर तरह की घड़ियां शामिल हैं.

इनमें कई घड़ियां दशकों और कुछ सदियों पुरानी हैं. इनमें कुछ घड़ियां ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों की दीवारों को खूबसूरत बनाती थीं, कुछ घड़ियां अधिकारियों और राजशाही परिवारों के घरों में समय बताती थीं. इनमें से कुछ घड़ियां चोरी होने के बाद यहां तक पहुंची हैं. संग्रह में मौजूद घड़ियां कबाड़ की दुकानों और नीलामी में भी खरीदी गई हैं.

कैनेडी ने कहा, ‘1993 में, जब मेरी शादी हुई, तब मेरे पास लगभग 200 घड़ियां थीं. पढ़ाई के दौरान भी मैं अपना सारा पैसा भोजन या घड़ियों पर खर्च करता था. साल 1999 तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा लेकिन, उसके बाद, मेरी पत्नी को मेरा यह शौक अजीब लगा, इसको लेकर हमारे बीच बहुत बड़ी लड़ाई हुई और उसने मुझे घड़ियों और उसके बीच किसी एक को चुनने को कहा.’ वह कहते हैं कि आखिरकार अपनी पत्नी टेनी रॉबर्ट को मनाने में कामयाब रहे और अपने पैशन को भी जारी रखा.

कैनेडी कहते हैं, ‘शुक्र है, मेरे परिवार को जल्द ही एहसास हो गया कि मैं अपने शौक को लेकर कितना उत्साहित हूं और अपने संग्रह को छोड़ नहीं सकता. साल 2005 में अपनी घड़ियों को रखने के लिए मैंने यह अपार्टमेंट खरीदा.’

कैनेडी मानते हैं कि मैकेनिकल घड़ी का प्रचलन खत्म हो रहा है. वह कहते हैं, ‘मैकेनिकल घड़ियों को बनाने वाले और उसके मैकेनिज्म को समझने वाले बहुत कम लोग बचे हैं.’

कैनेडी की घड़ियों की मरम्मत करने वाले घड़ीसाज़ वी नागराज पिछले 30 सालों से मैकेनिकल घड़ियों की मरम्मत कर रहे हैं.

नागराज ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने यह हुनर अपने पिता से सीखा है. उन दिनों, लोगों के घर में मैकेनिकल घड़ियां होती थीं, तब उनकी मरम्मत की भी ज़रूरत पड़ती थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. मेरे बेटों ने मेरा यह हुनर नहीं सीखा क्योंकि इस काम में पैसा नहीं है.’

नागराज, घड़ी की मरम्मत और उसे असेम्बल करने में एक्सपर्ट हैं. उन्हें पता है कि कौन सा पुर्जा किस घड़ी में मिलेगा. वह कहते हैं, ‘एक मैकेनिकल घड़ी में 30 से 35 पुर्जे होते हैं. कुछ बड़े, कुछ छोटे और कुछ बहुत ही छोटे होते हैं. इन्हें जोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन जब एक बार ये ठीक से असेम्बल कर दिए जाएं, तो साथ ये साथ मिलकर घड़ी की सुइयों को घुमाने की ताकत रखते हैं.’

इंटरनेट से कैनेडी को फायदा और नुकसान दोनों हुआ है. अब वे इसका इस्तेमाल करके मैकेनिकल घड़ियों के बारे में शोध कर पाते हैं और इसके बारे में ज़्यादा जान पाते हैं. लेकिन, इंटरनेट की वजह से अब घड़ियों का संग्रह करना महंगा भी हो गया है.

कैनेडी ने हंसते हुए कहते हैं, ‘मेरे स्क्रैप डीलर जो मुझे घड़ी के हालत के हिसाब से 600 रुपये या उससे ज़्यादा में दीवार घड़ियां बेचते थे. अब वे मुझे दिखाते हैं कि लोग ई-कॉमर्स साइटों पर उनके लिए कितना पैसा खर्च करने को तैयार हैं.’

उन्होंने कहा कि वह अपने घड़ी संग्रहालय के प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट खोलना चाहते हैं.

कैनेडी ने कहा, ‘मैं अपनी ये घड़ियां अपने बच्चों को नहीं दूंगा. वे अभी इसका महत्व नहीं समझते.’ उन्होंने कहा कि ये कलात्मक चीजें उनके पास ही होना चाहिए जिनमें इसको लेकर जुनून हो.

चाहे घड़ी डिजाइन करने वाले शिवरमण हों या फिर घड़ियों के संग्रहकर्ता कैनेडी, दोनों इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि डिजिटल या क्वार्टज घड़ियां किसी अच्छे एन्टीक मैकेनिकल घड़ियों के मुकाबले अच्छी नहीं होतीं.

कैनेडी कहते हैं, ‘क्वार्ट्ज घड़ी के बारे में क्या खास है? आप बैटरी लगाते हैं और यह आपको समय बताती है. लेकिन, मैकेनिकल घड़ियां भौतिकी और गणित की सटीक गणना पर चलने वाली एक आर्ट वर्क हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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