नई दिल्लीः भारत में परिवार के बीच रहते हुए भी बुजुर्गों के साथ दुर्व्यहार होता है या कहें तो परिवार ही उनके साथ दुर्व्यवहार करता है. बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था हेल्पएज इंडिया के द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 82 फीसदी बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रहते हैं. लेकिन उनमें से काफी बुजुर्ग अपने बेटों और बहुओं से के हाथों पीड़ित महसूस करते हैं. तमाम बुजुर्ग घर वालों के गलत बर्ताव के कारण उनसे बात नहीं करते तो तीन चौथाई से ज्यादा बुजुर्ग परिवार में रहने के बावजूद भी अकेलेपन के शिकार हैं.
सर्वे के मुताबिक, देश में 59 फीसदी बुजर्गों को लगता है कि समाज में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. हालांकि, केवल 10 फीसदी ने ही इस बात को स्वीकार किया कि वे भी दुर्व्यवहार के शिकार हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 36 फीसदी रिश्तेदारों, 35 फीसदी बेटे और 21 फीसदी बहू के द्वारा परेशान हैं. वहीं, 57 फीसदी अनादर, 38 फीसदी मौखिक दुर्व्यवहार, 33 फीसदी उपेक्षा, 24 फीसदी आर्थिक शोषण और 13 फीसदी बुजुर्गों ने पिटाई और थप्पड़ मारने के रूप में शारीरिक शोषण का अनुभव किया.
बेटों और बहुओं से हैं परेशान
राजधानी दिल्ली की बात करें तो 74% बुजुर्गों का मानना है कि इस तरह के दुर्व्यवहार समाज में प्रचलित हैं, जबकि 12% ने ही खुद को पीड़ित बताया. बुजुर्ग अपने बेटों (35%) और बहुओं (44%) को दुर्व्यवहार के सबसे बड़े कारण मानते हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर दुर्व्यवहार झेलने वाले बुजुर्गों में से 47% ने कहा कि उन्होंने परिवार के दुर्व्यवहार के कारण प्रतिक्रिया के रूप में ‘उनसे से बात करना बंद कर दिया’. दिल्ली में, 83% बुजुर्गों ने कहा कि उन्होंने ‘परिवार से बात करना बंद कर दिया.’
दुर्व्यवहार की रोकथाम के संबंध में, 58% बुजुर्गों ने राष्ट्रीय स्तर पर कहा कि ‘परिवार के लोगों की काउंसिलिंग किए जाने’ की आवश्यकता है, जबकि 56% बुजुर्गों ने कहा कि नीतिगत स्तर पर इससे निपटने के लिए ‘समयबद्ध निर्णयों’ और एज-फ्रैंडली रिस्पॉन्स सिस्टम को बनाने की जरूरत है.
लेकिन चिंता की बात है कि 46% बुजुर्गों को किसी भी दुर्व्यवहार निवारण तंत्र के बारे में पता नहीं है और केवल 13 फीसदी लोगों को ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007’ के बारे में पता है. दिल्ली में, 38% बुजुर्गों का कहना है कि वे दुर्व्यवहार के लिए निवारण तंत्र के बारे में नहीं जानते हैं, जबकि बेंगलुरु के लिए यह आंकड़ा 80% और रायपुर के लिए 84% प्रतिशत है.
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आयु संबंधी हैं परेशानियां
26 फीसदी बुजुर्गों ने हाइपर टेंशन, 23.7 फीसदी ने डायबिटीज और 17.8 फीसदी ने श्वास संबंधी समस्या बताई. करीब 48 फीसदी बुजुर्ग महिलाओं और 40 फीसदी पुरुषों ने आयु संबंधी बीमारी जैसे- आंखों से कम दिखना, सुनने में परेशानी, चलने व पहचानने में दिक्कत जैसी समस्याएं बताईं.
बुजुर्गों के लिए परिवार काफी महत्त्वपूर्ण है खासकर पति या पत्नी, बच्चे, बच्चों के बच्चे और भाई-बहन. लगभग 78.4 फीसदी बुजर्गों का मानना है बच्चों और बच्चों के बच्चों की के द्वारा अच्छा खाना और 51.9 फीसदी का मानना है उनके प्यार और देखभाल की वजह से अच्छा स्वास्थ्य पाने में काफी मदद मिली.
परिवार के लोग समय नदीं देते
फिर से कहना होगा कि स्वास्थ्य और खुशी दरअसल परिवार के सदस्यों के सहयोग से ही हासिल की जा सकती है. 79 प्रतिशत बुजुर्गों को लगता है कि उनका परिवार उनके साथ पर्याप्त समय नहीं बिताता है. भले ही अधिकांश (82 प्रतिशत) बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रह रहे हैं, लेकिन 59 प्रतिशत चाहते हैं कि उनके परिवार के सदस्य उनके साथ अधिक समय बिताएं. इससे पता चलता है कि परिवार के साथ रहने के बाद भी बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेलापन महसूस करते हैं.
सामाजिक समावेशन के मुद्दे पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हासिल हुईं. 78 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि घर पर उनकी देखभाल करने वाले लोग परिवार के मसलों पर निर्णय लेने में उन्हें शामिल करते हैं. लेकिन 43.1 प्रतिशत बुजुर्गों ने युवा पीढ़ी द्वारा उपेक्षित महसूस किया और खुद को अलग-थलग भी बताया.
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71 फीसदी बुजर्गों के पास स्मार्टफोन नहीं
वर्तमान दौर में डिजिटल इंडिया को भारी बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन नई डिजिटल तकनीक के निरंतर विकास के साथ, हमारे बुजुर्ग अभी भी बहुत पीछे हैं क्योंकि 71 प्रतिशत बुजुर्गों के पास स्मार्टफोन नहीं है. जो लोग स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, उन्होंने अभी तक इसके लाभों को पूरी तरह नहीं समझा है और वे इसका उपयोग मुख्य रूप से कॉलिंग (49 प्रतिशत), सोशल मीडिया (30 प्रतिशत) और बैंकिंग लेनदेन (17 प्रतिशत) के लिए करते हैं. इस बीच स्मार्ट फोन के 34 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं ने कहा कि उन्हें स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया को सिखाने के लिए किसी न किसी की आवश्यकता है. दिल्ली में, 47 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि वे स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, 44 प्रतिशत मुख्य रूप से केवल कॉलिंग उद्देश्यों के लिए और 37 प्रतिशत सोशल मीडिया के लिहाज से स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं.
डिजिटल तकनीक तक पहुंच की कमी के कारण भी विभिन्न ऑनलाइन सुविधाओं तक लोग आसानी से नहीं पहुंच पाते हैं, मसलन स्वास्थ्य सेवा को ही लें, विशेष रूप से ऐसे युग में जहां टेलीहेल्थ का दायरा बढ़ रहा है. इसके अलावा, बुजुर्गों के लिए दैनिक जरूरत की वस्तुओं को हासिल करना भी बहुत मुश्किल होता जा रहा है. महामारी से उपजे लॉकडाउन के दौरान उनकी यह मुश्किल और बढ़ गई थी. और उनके लिए लोगों से बातचीत करना भी दुरूह होता जा रहा है. दिल्ली में, 76 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना है कि उन्हें डिजिटल समावेशन के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि उनके लिए बैंक खातों को संचालित करना, यूपीआई भुगतान करना और सोशल मीडिया तक पहुंच बनाना आसान हो जाए.
52 फीसदी बुजर्गों के पास अपर्याप्त आमदनी
हालांकि, जब आय की पर्याप्तता के बारे में पूछा गया, तो राष्ट्रीय स्तर पर 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उनकी आमदनी अपर्याप्त है. 40 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, इसके दो बड़े कारण हैं- पहला, क्योंकि ‘उनके खर्च उनकी बचत/आमदनी से अधिक हैं’ (57 प्रतिशत) और दूसरा, पेंशन भी पर्याप्त नहीं है (45 प्रतिशत). इससे पता चलता है कि बाद के वर्षों के लिए वित्तीय नियोजन और सामाजिक सुरक्षा दोनों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. इस बीच दिल्ली में 52 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनकी आय पर्याप्त है, जबकि 48 प्रतिशत का कहना है कि उनकी आमदनी बहुत कम है और इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. दिल्ली में कुल मिलाकर करीब 71 फीसदी बुजुर्गों का कहना है कि वे अपने आप को वित्तीय रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं.
हालांकि यह सर्वेक्षण रिपोर्ट बड़े पैमाने पर शहरी मध्यम वर्ग की स्थिति बयान करती है, लेकिन यह गरीब शहरी और ग्रामीण बुजुर्गों की दुर्दशा पर भी सवाल खडे़ करती है. ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है या पर्याप्त आय अथवा पेंशन नहीं है.
इन कमियों को बारीकी से देखने और इन्हें तत्काल दूर करने की जरूरत है. आज, बुजुर्गों का जीवनकाल बहुत लंबा है और कई लोग अपने 80 और 90 के दशक में अच्छी तरह से जीते हैं, ऐसे में यह अनिवार्य है कि वे अपनी दूसरी पारी को सम्मान और गरिमा के साथ बिताएं और उन्हें समान और पर्याप्त अवसर और पहुंच दी जाए, ताकि उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके.
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